मिड -डे मील
पुराने से फट से टाट पर
स्कूल के पेड के नीचे
बैठे हैं कुछ गरीब बस्ती के बच्चे
कपडों के नाम पर पहने हैं
बनियान और मैले से कछे
उनकी आँखों मे देखे हैं कुछ ख्वाब
कलम को पँख लगा उडने के भाव
उतर आती है मेरी आँखों मे
एक बेबसी एक पीडा
तोडना नही चाहती
उनका ये सपना
उन्हें बताऊँ कैसे
कलम को आजकल
पँख नही लगते
लगते हैँ सिर्फ पैसे
कहाँ से लायेंगे
कैसे पढ पायेंगे
उनके हिस्से तो आयेंगी
बस मिड -डे मीळ की कुछ रोटियाँ
नेता खेल रहे हैं अपनी गोटियाँ
इस रोटी को खाते खाते
वो पाल लेगा अंतहीन सपने
जो कभी ना होंगे उनके अपने
वो तो सारी उम्र
अनुदान की रोटी ही चाहेगा
और इस लिये नेताओं की झोली उठायेगा
काश्1 कि इस
देश मे हो कोई सरकार
जिसे देश के भविश्य से हो सरोकार्
9 comments:
BAHOT HI BHAVNAA PURN KAVITA HAI ... BAHOT HI BAARIK NAZAR RAKHTI HAI AAP SAMAAJH KE HAR PAHALU PE... CHHOTE SE CHHOTE PARESHAANI KO KITNE KARINE SE AAPNE SAJAAYA HAI DARD KO LEKHAR...
DHERO BADHAAYEE
AAPKA
ARSH
यह बहुत ज़ोर का थप्पड़ है
बहुत ही सही लिखा आपने..!एक शिक्षक होने के नाते मैं मिड डे मील की सच्चाई करीब से देखता हूँ..!इस योजना से भीड़ बढ़ी है..पढाई नहीं..!ऊपर से शिक्षण का जो माहोल था ,वो भी ख़तम हो रहा है..!क्यूंकि सभी का धयान इस और ही लगा रहता है...यहाँ तक की अधिकारी भी मिड डे मील का पूछते है,पढाई का नहीं...
sach bayan karti kavita
मिड डे मील का सटीक वर्णन है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मिड डे मील ...अजीब बात है न इसका नाम अंग्रेजी में रखा गया .ओर खाते है बेचारे देसी....
"काश्1 कि इस
देश मे हो कोई सरकार
जिसे देश के भविश्य से हो सरोकार्"
बहुत सुन्दर।
बधाई।
Aisi 'Sarkar' ka intejar hamein bhi hai.
काश्1 कि इस
देश मे हो कोई सरकार
जिसे देश के भविश्य से हो सरोकार्
सही लिखा........... पर किस सरकार की बात करें जो बस अपना ही अपना पेट देखती है..........मिड डे मील.......की वास्तविकता की से छुपी है...........सत्य है आपकी रचना........करारा चपेट है
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