( कविता )
मृ्ग अभिलाशा
हम विकास की ओर !
किस मापदंड मे?
वास्तविक्ता या पाखन्ड मे !
तृ्ष्णाओं के सम्मोहन मे
या प्रकृ्ति के दोहन मे
साईँस के अविश्कारों मे
या उससे फलिभूत विकरों मे
मानवता के संस्कारो मे
या सामाजिक विकरों मे
धर्म के मर्म या उत्थान मे
या बढ्ते साम्प्रदायिक उफान मे
पूँजीपती के पोषण मे
या गरीब के शोषण मे
क्या रोटी कपडा और मकान मे
या फुटपाथ पर पडे इन्सान मे
क्या बडी बडी अट्टालिकाओं मे
या झोंपड पट्टी कि बढती सँख्याओं मे
क्या नारीत्व के उत्थान मे
या नारी के घटते परिधान मे
क्या ऊँची उडान की परिभाषा मे
या झूठी मृ्ग अभिलाषा मे
ऎ मानव कर अवलोकन
कर तर्क और वितर्क
फिर देखना फर्क
ये है पाँच तत्वोँ का परिहास
प्राकृ्तिक सम्पदाओँ का ह्रास
ठहर 1 अपनी लालसाओँ को ना बढा
सृ्ष्टि को महाप्रलय की ओर ना लेजा
हम विकास की ओर !
किस मापदंड मे?
वास्तविक्ता या पाखन्ड मे !
तृ्ष्णाओं के सम्मोहन मे
या प्रकृ्ति के दोहन मे
साईँस के अविश्कारों मे
या उससे फलिभूत विकरों मे
मानवता के संस्कारो मे
या सामाजिक विकरों मे
धर्म के मर्म या उत्थान मे
या बढ्ते साम्प्रदायिक उफान मे
पूँजीपती के पोषण मे
या गरीब के शोषण मे
क्या रोटी कपडा और मकान मे
या फुटपाथ पर पडे इन्सान मे
क्या बडी बडी अट्टालिकाओं मे
या झोंपड पट्टी कि बढती सँख्याओं मे
क्या नारीत्व के उत्थान मे
या नारी के घटते परिधान मे
क्या ऊँची उडान की परिभाषा मे
या झूठी मृ्ग अभिलाषा मे
ऎ मानव कर अवलोकन
कर तर्क और वितर्क
फिर देखना फर्क
ये है पाँच तत्वोँ का परिहास
प्राकृ्तिक सम्पदाओँ का ह्रास
ठहर 1 अपनी लालसाओँ को ना बढा
सृ्ष्टि को महाप्रलय की ओर ना लेजा
14 comments:
ek bahut hi achchhi rachna likhi hai prakrati ke liye aapne
behtreen
"मृ्ग अभिलाशा
हम विकास की ओर.."
सुन्दर गवेषणात्मक रचना के लिए बधाई।
निर्मला जी मैं आपका किस तरह से शुक्रियादा करूँ इसके लिए मेरे पास अल्फाज़ नहीं है! मुझे आपकी टिपण्णी बहुत अच्छी लगी क्यूंकि आपने अपना सुझाव ज़ाहिर किया और इतनी सुंदर पंक्तियों को लिखा की मैंने अब शायरी में आपकी ख़ूबसूरत पंक्तियों को जोड़ दिया है! एक बार पढियेगा ज़रूर! आप एक महान लेखिका हैं और आपसे कुछ सिखने को मिले ये तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है! आप इसी तरह से सुझाव देते रहिएगा! मैं कोई बड़ी शायर तो हूँ नहीं पर कोशिश करती हूँ कि बेहतर लिख सकूँ!
बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
aajk ke dinaak me ye saawaal? bahot hi satya se otprot hai ... insawaalon ke jawaab sabko milke dhundhane chahiye... aur apne jehan me rakhni chahiye ke aakhir kyun?
bahot hi shaandar kavitaa hai...
arsh
बहुत बढिया रचना ..
bahut sundar dhang se aapne prakriti ke dohan ke prati manushya ko jagrit kiya hai.........bas ye baat sabki samajh mein aa jaye.
शशक्त, लाजवाब ..........सोचा समझा और दार्शनिक यथार्थ से भरी रचना है...........
वाकई हम जिसे विकास कह रहे हैं...........क्या वो विकास ही है............या हमारी मिथ्या है.........
Prerak evam sachetak rachna hai. aabhaar.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हर बार की तरह बहुत अच्छी रचना है
बहुत ही सुन्दर रचना. शीर्षक तो होना था "श्रुष्टि को महा प्रलय की ओर न ले जा"
नमस्ते नानी जी,
आप कैसी हैं और मेरी दोस्त अर्शिया कैसी है. मेरे ब्लॉग पर अपनी राय देने के लिए आपका शुक्रिया.
मेरे पापा को आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी.
आपकी लवी
maa,I don' have any words to describe how beautifully you present your thoughts and chose such nice topic.You are an amazing poetess..
Thanx Nirmala ji for ur valuable comments on my blog.
u r a great writer,I salute ur mighty pen
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