(कविता)
कितने लोगे इम्तिहान
ये था मेरा आत्मसम्मान
कि मैं पृ्थ्वि मे
विलीन हो गयी
मेरा त्याग मेरी व्यथा
राम की मर्यादा
मे समो गयी
पर मेरी त्रास्दी
मेरी वेदना है कि
नारी फिर भी
तुलसी दुआरा
ताडिन की
अधिकारी हो गयी
विश को अमृ्त बनाया
यम से पति को बचाया
और जिस पुरुश को
जन्म दिया उसके लिये
मैं भारी हो गयी
और कितने लोगे इम्तिहान्
10 comments:
सही है लेकिन मेरा यह प्रश्न है कि किसी एक पुरूष की ग़लतियों के लिए सबको क्यों इंगित किया जाता है! यह एक बेटे की तरह आपसे मेरा प्रश्न है? अग्र आपको आपत्ति है तो इस कमेंट को मिटा दें।
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
कविता में विषय की प्रस्तुति बखूबी की गई है.
[क्या करें पूरी दुनिया में स्थिति ऐसी ही है.]
nahiM vinay jee aap sahee kah rahe haim naaree jaati ne to sadiyon is santaap ko sahaa hai naaree ko ab abhivyakti ki savtantartaa mili hai to keh lene deejiye naa
कविता में सत्य को इंगित किया है।वैसे विनय जी की बात भी सही है।जैसे तुलसी जी ने लिखा है,ताड़न के अधिकारी। वैसे ही सिखों के धार्मिक ग्रंथ में लिखा है-
"तिसै क्यों मंदा आखिए जिन जम्मै राजान"
भाव वै स्त्रि कैसे बुरी हो सकती है जिसने राजाओ अर्थात राम, कष्ण जैसे अवतारी पुरूषों को जन्म दिया है।
लेकिन आजकल के हालातों पर नजर डाले तो आपकी रचना सही ओर इशारा कर रही है।बधाई\
achhi lagi kavita
bahut acchi kavita likhi hai aapne,maine aapka link apne blog par laga diya hai.
बिना इम्तहान पास किए थोड़े ही यह मानवता का झंडा बुलंद है !
sach kahu to JINDAGI ka doosra naam IMTIHAAN hi he.
aapki rachna naari - purush bhedhak pratit hui.mera manana he prakati ne har vastu, har jivan ko kisi na kisi upyog ke liye banaya he..uske vidhan ko jis kisi ne toda he vo nasht hua he..ese me purush ho yaa naari dono saman kabhi nahi ho sakte, hna dono ke karm unki prakrti par nirbhar he..
rachna bahut sundar he..mujhe achchi lagi..
न+अरि है नाम, नारि क्यों अबला कहलाती है?
सीता होकर, शक्ति-स्वरूपा बन नही पाती है।।
पहल स्वयं ही करनी होगी, अब अबला नारी को।
अन्यायी से लड़ना होगा, खुद नारी बेचारी को।।
आदरणीय निर्मला जी,
बहुत अच्छी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ...सचमुच नारी अपना सब कुछ न्यौछावर करने के बाद भी
वो दर्जा नहीं पा रही जो उसे मिलना चाहिए.
पूनम
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