ब्लाग की दुनिया
बहुत सन्नाटा है
बडी खामोशी है
कहां गये वो चहचहाते मंजए
कहां गये वो साथी
जो आवाज दे कर
पुकारते थे कि आओ
सच मे मेरी रूह
अब अपने ही शहर मे
आते हुये कांपती है
क्यों की उसे कदमों की लडखडाहत नही
दिल और कदमों की मजबूती चाहिये
उजडते हुई बस्ती को बसाने के लिये
नया जोश और कुछ वक्त चाहिये
तो आओ करें एक कोशिश
फिर से इस रूह के शहर को बसाने की
ब्लाग की दुनिया को
हसी खुशी से
फिर उसी मुकाम पर पहुंचाने की
बहुत सन्नाटा है
बडी खामोशी है
कहां गये वो चहचहाते मंजए
कहां गये वो साथी
जो आवाज दे कर
पुकारते थे कि आओ
सच मे मेरी रूह
अब अपने ही शहर मे
आते हुये कांपती है
क्यों की उसे कदमों की लडखडाहत नही
दिल और कदमों की मजबूती चाहिये
उजडते हुई बस्ती को बसाने के लिये
नया जोश और कुछ वक्त चाहिये
तो आओ करें एक कोशिश
फिर से इस रूह के शहर को बसाने की
ब्लाग की दुनिया को
हसी खुशी से
फिर उसी मुकाम पर पहुंचाने की
3 comments:
बिना रूह का शहर भी बेगाना सा ही है.
सुंदर प्रस्तुति.
एकला चलो रे ...धीरे धीरे कारवां बन ही जायेगा फिर से.
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