गुरू मन्त्र
कहानी
मदन लाल ध्यान ने संध्या को टेलिवीजन के सामने बैठी देख रहें हैं । कितनी दुबली हो गई है । सारी उम्र अभावों में काट ली, कभी उफ तक नही की । वह तो जैसी बनी ही दूसरों के लिए थी । संयुक्त परिवार का बोझ ढोया, अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया और शादियां की और फिर सभी अपने-अपने परिवारों में व्यस्त हो गए । मदन लाल जी और संध्या को जैसे सभी भूल गये । मदन लाल जी क्लर्क के पद से रिटायर हाने के बाद अभी तक एक साहूकार के यहां मुनिमी कर रहे हैं । बच्चों की शादियों पर लिया कर्ज अभी बाकी है । फिर भी वे दोनों खुश है । संध्या आजकल जब भी फुरस्त में होती है तो टेलिविजन के सामने बैठ जाती है , कोई धार्मिक चैनल लगाकर । साधु -संतों के प्रवचन सुनकर उसे भी गुरू धारण करने का भूत सवार हो गया है। मगर मदन लाल को पता नही क्यां इन साधु संन्तों से चिढ़ है । संध्या कई बार कह चुकी है कि चलो हरिद्वार चलते हैं । पड़ोस वाली बसन्ती भी कह रही थी कि स्वामी श्रद्वा राम जी बड़े पहूंचे हुये महात्मा है । उनका हरिद्वार में आश्रम है । वो उन्हें ही गुरू धारण करना चाहती हैं ।संध्या ने प्रवचन सुनते-सुनते एक लग्बी सास भरी । तो मदन लाल जी की तन्द्रा टूटी । जाने क्यों उन्हें संध्या पर रहम सा आ रहा था । उन्होंने मन में ठान लिया कि चाहे कही से भी पैसे का जुगाड़ करना करें, मगर संध्या को हरिद्वार जरूर लेकर जाएंगे । आखिर उस बेचारी ने जीवन में चाहा ही क्या है । एक ही तो उसकी इच्छा है ।
‘‘संध्या तुम कह रही थी हरिद्वार जाने के लिए, क्या चलोगी‘क्या,?"
वह चौंक सी गई ------‘‘मेरी तकदीर में कहा जिन्दा जी जाना बदा है । अब एक ही बार जाना है हरिदुयार मेरी अस्थिया लेकर‘ । ‘‘ वह कुछ निराश् सी होकर बोली ।
‘‘ऐसा क्यों कहती हो ? मदन लाल के मन को ठेस सी लगी । अब बुढापे मे तो दोनो के केवल एक दूसरे का ही सहारा था।
‘‘सच ही तो कहती हूं । पैसे कहाँ से आऐंगे ? बच्चो की शादी का कर्ज तो अभी उतरा नही । बेटा भी कुछ नही भेजता । आज राशन वाला लाला भी आया था ।‘‘
‘‘ तुम चिन्ता मत करो । मैं सब कर लूंगा । बच्चों की तरफ से जी मैला क्यों करती हो । नइ -2 ग्ृहस्थी बसाने में क्या बचता होगा उनके पास । हम हरिद्वार जरूर जाएंगें ‘‘ कहते हुए वह बाहर निकल गया । मदन लाल भावुक होकर संध्या से कह तो बैठे, मगर अब उन्हें चिन्ता सता रही थी कि पैसे का इन्तजाम कैसे करें । मन में एकाएक विचार आया कि क्यों न अपना स्कूटर बेच दें । यूं भी बहुत पुराना हो गया है । हर तीसरे दिन ठीक करवाना पड़ता है । बाद में किश्तों पर एक साईर्कल ले लेंगे । वैसे भी साईकिल चलाने से सेहत ठीक रहती है --उसने अपने दिल को दोलासा दिया। हाँ, यह ठीक रहेगा । मन ही मन सोच कर इसी काम में जुट गए । चार-पाच दिन में ही उन्होने पाँच हजार में अपना स्कूटर बेच दिया । उन्हें स्कूटर बेचने का लेश मात्र भी दुख न था । बेशक उनका अपना मन हरिदार जाने का नही था मगर वह संध्या की एक मात्र इच्छा पूरी करना चाहतें थें ।
संध्या बड़ी खुश थी । उसे मन चाही मुराद मिल रही थी । उसने धूमधम से हरिदार जाने की तैयारी शुरू कर ली । अब गुरू मन्त्र लेना है तो गुरू जी के लिए गुरू दक्षिणा भी चाहिए, कपड़े, फल, मिठाई आदि कुल मिलाकर दो ढाई हजार का खर्च । चलो यह सौभाग्य कौन सा रोज रोज मिलता है । जिस प्रभू ने इतना कुछ दिया उसके नाम पर इतना सा खर्च हो भी गया तो क्या ।
हरिदार की धरती पर पाव रखते ही संध्या आत्म विभोर हो गई । मदन लाल जी गर्मी से वेहाल थे मगर संध्या का सारा ध्यान स्वामी जी पर ही टिका हुआ था । अब उसका जीवन सफल हो गया । गुरू मंत्र पाकर वो धन्य हो जायेगी। मदन लाल जी भी नास्तिक तो नही थे मगर धर्म के बारे में उनका नजरिया अलग था । वो संध्या की आस्था को ठेस पहूंचाना नही चाहते थे ।
दोपहर बारह बजे वो आश्रम पहूंचे । आश्रम के प्रांगण में बहुत से लोग वृक्षों की छांव में बैठे थें । मदन लाल जी रात भर ट्रेन के सफर में थक गए थे । पहले वह नहा धोकर फ्रेश् होना चाहते थे । आश्रम के प्रबन्धक से ठहरने की व्यवस्था पूछी । तीन सौ रूपये किराए से कम कोई कमरा नहीं था । चलो एक दिन की बात है यह सोचकर उन्होंने एक कमरा किराए पर ले लिया । थोड़ा आराम करके नहा धोकर तैयार हुए । 2 बजे के बाद गुरू दीक्षा का समय था ।------ क्रमश
यथार्थ, कड़ुआ और मीठा दोनों। अच्छी कहानी है, आगे का इंतजार है।
ReplyDeleteकहानी अच्छी है और प्रेम का अच्छा उदाहरण है जो केवल पहले देखने को मिलता था, आजकल तो शायद ऐसा कहीं देखने को भी न मिलेगा।
ReplyDeleteमोंम, बहुत अच्छी लगी यह कहानी...... अब आगे का इंतज़ार है.........
ReplyDeleteबिचार परख कहानी, निर्मला जी , बीच-बीच में टंकण की कुछ गलतिया है अगर आप उन्हें सुधार ले तो उत्तम !
ReplyDeleteनिर्मला जी,
ReplyDeleteगुरु घंटालों के इस देश में खुद खाने को हो या न हो, लेकिन कथित गुरुओं की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती...तभी तो इन गुरुओं के हर शहर में आलीशान ठिकाने देखने को मिल जाते हैं...अगर ये गुरु सच्चे हैं तो इन्हें भौतिक सुख-सुविधाओं से इतना प्यार क्यों...हिमालय की कंदराओं में जाकर धूनी क्यों नहीं जमाते...
अगली कड़ी का इंतज़ार...
जय हिंद...
बहुत ही अच्छी लगी कहानी, अगली कड़ी का इंतजार रहेगा, आभार ।
ReplyDeletekahaani achchhi buni hai aapne, aage ka intzar
ReplyDeleteएक पारिवारिक कहानी है आगे इंतजार है-आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी पारिवारिक कहानी , अगली बार का इंतजार है !
ReplyDeleteरोचक कहानी है, आगे के अंक की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDelete--------
अदभुत है हमारा शरीर।
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा?
अच्छी लगी कहानी ,भावुक और सहज ...
ReplyDeleteरोचक कहानी .....
ReplyDeleteअब आगे का इंतज़ार है...
अच्छी लगी कहानी,अगली कड़ी का इंतज़ार है.
ReplyDeleteकहानी की अच्छी शुरुआत है ...... सामाजिक विषयों पर लिखने मैं वाइसे भी आपकी मजबूत पकड़ है ..... जागरूकता भरा अंत होगा ..... उत्सुक्त बनी हुई है ..........
ReplyDeleterochak kahani hai........agli kadi ka besabri se intzaar.
ReplyDeleteकहानी की रोचक शुरुआत ने उत्सुकता बढ़ा दी है ...अगली कड़ी का इन्तजार है ...!!
ReplyDeleteBahut hi rochak jaa rahi hai katha...agli kadi ki pratiksha rahegi...
ReplyDeletemanviiy samvednaon ko bahut hi saarthak dhang se aapne ukera hai..
रोचकता से भरपूर इस कहानी की अगली कड़ी का इन्तजार है!
ReplyDeleteमदन लाल जी तो बड़े प्रैक्टिकल निकले, लेकिन संध्या ---
ReplyDeleteसच्चाई को दर्शाती रचना। आगे का इंतज़ार है।
कहानी तो बहुत ही बढिया लग रही है लेकिन ये क्रमश: वाला चक्कर खराब है....अगला भाग आते आते हमारे जैसा भुलक्कड आदमी तो पिछला सब भूल जाता है ओर फिर नये सिरे से पढनी पडती है :)
ReplyDeleteयह रचना बहुत अच्छी लगी। अगली कड़ी का इन्तजार है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी आप की यह कहानी, लेकिन इन गुरु घंटालों से मुझे एलर्गी है, मदन लाल का प्यार भी सच्चा है.
ReplyDeleteधन्यवाद
मदन लाल जी नापसंद के बावजूद पत्नी के प्रति प्रेम को रोक नही पाए और ऐसे हालत में भी हरिद्वार जाने का जुगाड़ कर लिए...बढ़िया कहानी आगे के कड़ियों का इंतज़ार है...बधाई
ReplyDeleteagli kadi ka intajar :) ...kaafi rochak lag rahi hai kahani
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और अच्छी पारिवारिक कहानी लिखा है आपने जो बहुत अच्छा लगा! अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा!
ReplyDeleteआप बहुत रोचक ढंग से लिखती है कहानी को ..आगे का इन्तजार रहेगा .शुक्रिया
ReplyDeletebudhape ki zindagi ka tana bana badhiya buna hai.....is umr men ek doosare ke parati samarpan ke ehsaas hote hain...ichchha puri karne ki khwaahish rahati hai....sundar kahani ka prarambh hai...aage intzaar hai....lagta hai ki sadhu sanyaasiyon par vyang aane wala hai....khair dekhate hain....
ReplyDeleteअच्छी चल रही है इस सरल, श्रद्धालु, मध्यमवर्गीय दंपत्ति की गाथा. देखते हैं की अगले अंक में उच्चवर्गीय बाबाजी क्या गुल खिलाते हैं.
ReplyDeleteरोचक कहानी कुछ कुछ प्रेमचंद जी की कहानियों की झलक देती है ।
ReplyDelete