05 December, 2009

गुरू मन्त्र {कहानी}-------- गताँक से आगे
पिछली कडी मे आपने पढा कि मदन लाल जी अपनी पत्नि से बहुत प्रेम करते थे, उसने कभी अपने लिये उनसे कुछ नहीं माँगा था मगर आज कल उसे हरिदचार जा कर गुरू धारण करने की इच्छा थी जिसे मदन लाल जी ने पूरी करने के लिये अपना स्कूटर तक बेच दिया । बेशक उन्हें इन साधु सन्तों पर इतना विश्वास नहीं था मगर पत्नी के मन को ठेस पहुँचाना नहीं चाहते थे। वो उसे ले कर हरिदवार पहुँचे और आश्रम मे एक कमरा किराये पर ले लिया। अब आगे पढें-----

मई महीने की कड़कती गर्मी से बेहाल लोग आश्रम के प्रांगण में स्वामी जी का इन्तजार कर रहें थें । दोपहर का प्रचंड रूप भी आज संध्या को भला लग रहा था । आज उसकी बरसों की आशा पूर्ण होने जा रही थी । संध्या बड़ी श्रदा से गुरू दक्षिणा का सामान संभाले मदन लाल के साथ आश्रम के प्रांगण में एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गई । वह ध्यान से आस पास के लोगों का निरीक्षण कर रही थी । लोग बड़े-2 उपहार फलों के टोकरे मिठाई मेवों के डिब्बे, कपडे और , बड़े-2 कंबलों के लिफाफे लिए बैठे थे । साथ ही एक परिवार की औरत दूसरी औरत को दिखा रही थी कि वो 50 ग्राम सोने की चेन, विदेशी घड़ी गुरू दक्षिणा के लिए लाई है । साथ ही बता रही थी कि यह तो कुछ भी नही लोग गुरू जी को लाखों रूपये चढ़ावा चढ़ाते है । सुनकर संध्या ने कुछ शर्मिदा सा हो लिफाफे को कसकर बगल में दबा लिया ताकि उसकी तुच्छ सी भेंट कोई देख न ले । उस गरीब के लिए तो यह भी बहुत बड़ा तोहफा था ।

मदन लाल जी का गर्मी से बहुत बुरा हाल था । पाँच बजने वाले थें मगर गुरू जी का कोई अता पता नही था । मदन लाल को गुस्सा भी आ रहा था । साधु सन्तों को लोगों की असुविधा, तकलीफ का कुछ तो एहसासा होना चाहिए । फिर सुध्या ने तो सुबह से कुछ खाया ही नही था । गुरू मन्त्र लेना है तो व्रत तो रखना  ही था।  । पवित्र काम के लिए शुद्धि आवश्यक होती है ।
‘‘देखो जी लोग गुरू दक्षिणा के लिए कितना कुछ ले कर आए है । मुझे तो अपनी छोटी सी भेंट पर शर्म आ रही है । क्योंं न कुछ रूपये और रख दें । ‘‘ संध्या तो बस एक ही बात सोच रही थी । मगर कह नहीं पा रही थी।
‘‘महाराज क्या आज गुरू जी के दर्शन  होंगे ?‘  मदन लाल ने वहाँ एक आश्रम के सेवक से पूछा  ‘हाँ- हाँ, बस आने वाले है ।‘‘ उसने जवाब दिया ।
"हमारा नंबर जल्दी लगवा दीजीए, दूर से आए हैं , थक भी गए है ।"
‘‘ठीक है, बैठो-2 ‘‘ उसका ध्यान मोटी आसामियों पर था ।

संध्या तो मगन थी मगर मदल लाल जी को झुंझलाहट हो रही था । वो सोच ही रहे थे  कि बाहर कहीं जाकर कुछ खा पी लिया जाए तभी उन्होंने देखा कि 4-5 गाड़ियों का काफिला आश्रम के प्रांगण में आकर रूका । गाड़ियों में से गुरू जी तथा कुछ उनके शिश्य   उतरे और गुरू जी के कमरे में चले गए । सँत जी ने बाहर बैठे, सुबह से इन्तजार करते भक्तों की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखा । लोग जय जय कार करते रहे । संध्या कितनी श्रद्धा से आँख  बन्द कर हाथ जोड़ कर खड़ी थी । मदन लाल का मन क्षोभ से भर गया मगर बोले कुछ नहीं ।

सात बजे एक सेवक  अन्दर से आया । उसने लोगों को बताया कि गुरू जी थक गए है । सुबह आठ बजे सबको गुरू मन्त्र मिलेगा । जो लोग यहाँ ठहरना चाहते है उनके लिए हाल में दरियां विछा दी है । सब को खाना भी मिल जाएगा वहीं भजन कीर्तन करें । संध्या बहुत खुश  थी । वह सोच रही थी कि गुरू आश्रम मेंं सतसंग कीर्तन का आनन्द उठाएंगे, ऐसा सौभाग्य कहा रोज -2 मिलता है । मगर मदन लाल जी मन ही मन कुढ़ कर रह गए । - गुरू जी कौन सा हल जोत कर आए हैं जो थक गए है । ।महंगी ए- सी- गाड़ी में आए है। उन्हें क्यों ध्यान नही आया कि लोग सुबह से भूखे प्यासे कड़कती धूप में उनका इन्तजार कर रहे है । यह कैसे सन्त है जिन्हें अपने भक्तों की असुविधा, दुख दर्द का एहसास नही । उन्हेे तो पहले ही ऐसे साधु सन्तों पर विश्वास नही है जो वातानुकूल गाड़ियों में धूमते तथा महलनुमा वातानुकूल आश्रमों में आराम दायक जीवन जीते है । उनका मन हुआ कि यहा से भाग जाए । मगर वह संध्या के मन को चोट पहुचाना नही चाहते थे ।

दोनो ने कमरे में आकर कुछ आराम किया । फिर 8-30 बजे खाना खाकर वो सतसंग भवन में आकर बैठ गए जहाँ कीर्तन भजन चल रहा था । मदन लाल धीरे से ‘अभी आया‘ कहकर उठ गया । मन का विषाद भगाने के लिए वह खुली हवा में टहलना चाहते थे ।  वह आश्रम के पिछली तरफ बगीचे में निकल गया । सोचने लगा कि उनका क्षोभ अनुचित तो नही ? गुरू जी के मन का क्रोध उन्हें पाप का भागी तो नही बना रहा ------------ इन्ही सोचों में चलते हुए उसकी नजर आश्रम के एक बड़े कमरे के दरवाजे पर पड़ी । शायद वह गुरू जी के कमरे को पिछला दरवाजा था । दरवाजे पर गुरू जी का एक सेवक् 2-3 परिवारों के साथ खड़ा था । तभी अन्दर से एक आदमी तथा एक औरत बाहर निकले । सेवक  ने तभी एक और  परिवार को अन्दर भेज दिया । अब मदन लाल जी की समझ में सारा माजरा आ गया । मालदार लोगों के लिए यह चोर दरवाजा था , जहा से गुरू जी तक चाँदी की चाबी से पहूंचा जा सकता था । यह धर्म का कैसा रूप है ? यह साधु-सन्त है या व्यवसाई? उन्हें नही चाहिए ऐसे संतों का गुरूमन्त्र ! वह वापिस जाना चाहते थे मगर संध्या की आस्था का तोड़ उनके पास नही था । वह अनमने से संध्या के पास जाकर बैठ गए ।

कीर्तन के बाद कमरे में आकर उन्होंने संध्या को सब कुछ बताया मगर वह तो अपनी ही रौ में थी , ‘‘ आप भी बस जरा-2 सी बात में दोष ढूंढने लगते है । क्या सतसंग में सुना नही छोटे महात्मा जी क्या कह रहे थे ? हमें दूसरों के दोष ढूंढने से पहले अपने दोष देखने चाहिए । मगर तुम्हें तो साधु सन्तों पर विवास ही नही रहा । संध्या की आस्था के आगे उसके तर्क का सवाल ही नही उठता था । वह चुपचाप करवट लेकर सो गया ।

सुबह पाँच   बजे उठे नहा धोकर तैयार हुए और छ: बजे आरती में भाग लेने पहूंच गए । यहाँ भी गुरू जी के शिश्य  ही आरती कर रहे थे । संध्या ने व्रत रखा था । वह शुद मुख से मंत्र लेना चाहती थी । वह आठ बजे ही प्रांगण में जाकर बैठ गई और आस पास के लोगों से बातचीत द्वारा गुरू जी के बारे में अपना ज्ञान बांटने लगी । मदन लाल जी 9 बजे बाहर से नाश्ता करके उसके पास आकर बैठ गए । आठ बजे की बजाए गुरू जी 10 बजे आए और अपने आसन पर विराजमान हो गए । आस पास उनके सेवक  खड़े थे और कुछ सेवक  लोगों को कतार में आने का आग्रह कर रहे थे ।

गुरू जी ने पहले गुरू-शिष्य  परंपरा की व्याख्या जोरदार शब्दों में की । लोगों को मोह  माया त्यागने का उपदेश  दिया फिर बारी बारी एक-2 परिवार को बुलाने लगे । उन्हें धीरे से नाम देते फिर आाीर्वाद देते । लोगों की दान दक्षिणा लेकर ाष्यों को सपुर्द कर देते । जिनकी दान दक्षिणा अक्ष्छी होती उन्हें फल मिठाई को प्रसाद अधिक मिल जाता । उनको हंस कर आशीर्वाद देते, कुछ बातें भी करते । मदन लाल ने कई बार उठने की चेष्टा की मगरसेवक उन्हें हर बार बिठा देता । वह मालदार असामी को ताड़कार पहले भेज देता । मदन लाल मन मार कर बैठ जाते । उन्हें चिन्ता थी कि अगर दो बजे तक फारिग न हुए तो आज का दिन भी यहीं रहना पड़ेगा । चार पाच सौ रूपये और खर्च हो जाएगा ।

एक बजे तक बीस पचीस लोग ही गुरू मंत्र ले पाए थे । उनमें से कुछ पुराने भक्त भी थे । एक मास में केवल 3 दिन ही होते थे गुरू म्रत्र पाने के लिए । एक बजे गुरू जी उठ गए । भोजन का समय हो गया था । लोग मायूस होकर अपने’-2 कमरों में लौट गए । जिनके पास कमरे नहीं थे वो वृक्षों के नीचे बैठ गए । कई लोग तीसरी चौथी बार आए थें अभी उनहें गुरू मंत्र नही मिला था । चार बजे फिर गुरू जी ने मंत्र देना था । लोग इन्तजार कर रहें थे । पाँच बजे गंरू जी के सेवक  ने बड़े गर्व से लोगों को बताया कि अभी थोड़ी देर में एक मंत्री जी गुरू जी के दर्शन करने आने वाले है । इसलिए कल 10 बजे गुरू जी आपसे मिलेंगे । तभी चमचमाती कारों का काफिला प्रांगण में आकर रूका । मंत्री जी व उनके साथ आए लोग सीधे गुरू जी के कमरे में चले गए । चाय पानी के दौर के बाद गुरू जी मंत्री जी को आश्रम का दौरा करवाने निकले । इस काम में 7 बज गए । मंत्री जी आश्रम के लिए 50 हजार का चैक भी दे गए थे ।     
क्रमश:

24 comments:

  1. निर्मला जी...कहानी....बहुत खूब!!! आती हूँ पढने दुबारा ..अभी सुप्रभात !!

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  2. यह एक दुखद बात है की हम हिन्दुओ ने कुछ टेकेदार जो इन तीर्थस्थलों पर बिठा रखे है, और जिस ढंग से इंसाने की धार्मिक भावनाओं की आड़ में वे लूट खसौट करते है , वह शर्मिंदगी महसूस करवाती है !
    कहानी यथार्त से होकर गुजर रही है

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  3. बहुत सामयिक और यथार्थपरक कहानी है. बहुत धन्यवाद आपको.

    रामराम.

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  4. बहुत ही अच्‍छी लग रही है यह कहानी इनके पात्र यूं लगता है जैसे अपने आस-पास ही विचरण कर रहे हों, कोई समझाना चाहता है, और कोई समझना नहीं चाहता, हकीकत से रूबरू कराती अनुपम प्रस्‍तुति, अगली कड़ी के इन्‍तजार के साथ आभार ।

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  5. कहानी बहुत अच्छी जा रही है। आप ने बहुत सूक्ष्मता के साथ रचा है इसे।
    वास्तव में धार्मिक भावनाएँ बहुत गहरे पैठी होती हैं और सहज ही शोषण के लिए आकर्षित करती हैं। उस का लाभ धर्म का चोला पहने लोग उठाते हैं।

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  6. संध्या का विश्वास ,मदनलाल की खुली आँखों से देखी गयी गुरुवों की सच्चाई का बेहतरीन वर्णन.....आज के सन्दर्भ में ऐसा ही हो रहा है...पैसों पर बिकते देखा है....कटु पर सत्य...!!

    Sandhya jaise logon ke liye eye opner bhee hai...!!

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  7. निर्मला जी- आज की बाबाओं की कारस्तानी पर चोट करती जोरदार कहानी है। आंख के अंधो और गांठ के पुरों की कमी नही है। मदन लाल बेचारा पत्नी की इच्छा का सम्मान करके फ़ंस गया है झमेले मे, आगे की कहानी का इंतजार है।

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  8. आपने बहुत सूक्ष्म बिंदुओं को ध्यान में रखकर, समाज में हो राही धर्म के पीछे कुछ लोगों द्वारा लूट खसोट और मनमानी को अच्छी तरह दिखाया है.

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  9. बहुत ही अच्छी जा रही है,कहानी....लोगों के मन से इन गुरुओं के प्रति अंधविश्वास हटाने में सक्षम...और गुरुओं की भी असलियत दर्शाती हुई...अगली कड़ी का इंतज़ार

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  10. kahani bahut badhiya chal rahi hai aur baandh kar rakha huaa hai kahani ne........agli kadi ka besabri se intzaar.

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  11. मदनलाल जी को ऐसे गुरु का तो वहीं टेंटूआ दबा देना चाहिए था...कम से कम कई और गरीब तो इस गुरुघंटाल के झांसे में आने से बच जाते...

    जय हिंद...

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  12. यथार्थ लिख दिया है आपने इस कहानी में ......... आज कल के पोंगा पंडितों की कलाई खोलती अच्छी कहानी है ..... अगली कड़ी का इंतेज़ार है ...........

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  13. उम्मीद है अभी बहुत कुछ बाकी है इन ढोंगी पाखंडियों के बारे में बताने के लिए...पूरी पोल खुलने के इंतज़ार में ..!!

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  14. अरे वाह्भारत मै तो ऎसे गुरु भरे पडे है, ओर दुखी लोग एक दुसरे को देख कर इन से नाम लेते है, मुझे समझ नही आता कि यह दानव रुपी गुरु कोन सा नाम देते है जो इन के चुगल मै पडे लिखे लोग भी फ़ंस जाते है, मै तो इन्हे खुब गालिया देता हुं

    आप ने बहुत सही ढंग से कहानी शुरु कि, बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद

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  15. कहानी रोचक भी है और शिक्षाप्रद भी!
    अगली कड़ी का इन्तजार है!

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  16. अपने तो इस कहानी के माध्यम से धर्म के नाम पर हो रही लूट का यथार्थ चित्रण कर डाला....कहानी अपने पूर्ण प्रवाह में चल रही है।
    अब तो इसके आगामी भाग की प्रतीक्षा है....

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  17. हम्म
    सोच को उद्वेलित करते हैं ये विचार

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  18. यथार्थपरक कहानी है. बहुत धन्यवाद.

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  19. सच्चाई से जुडी हुई कहानी है जो दिल के हर कोण को छु लेती है...बाँध के रखा इस कहानी ने ..शुक्रिया

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  20. Nice Blog!! Nice post!!!
    Keep Blogging!!!
    www.onlinekhaskhas.blogspot.com

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  21. ye hoti hai bade logo ki ni nishani gerua varst pahan kar pujari ban gaye kahane ko bhagwaan ke sachche sewakpar insaan jo dopahari men baith kar tap rahe hai unaka kuch khyal nahi hai unako....aur dusari taraf sandhya ke samarpan dekhiye..

    niramala ji aaj ke sant aur unake dwara chala vyapaar par aapki kahani bahut fit hoti hai ekdam sach ko bayan karati kahani..

    bahut badhiya kahani..aage intzaar hai....bahut bahut badhai aise sandesh wahak prstuti ke liye dhanywaad bhi

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  22. पूरी तरह से दिल और दिमाग की खिड़कियाँ खोलने वाली कहानी है । आशा करती हूँ यथार्थ का इतना स्पष्ट चित्रण पढ़ कर लोगों की अंध भक्ति कम होगी और धूर्त गुरु घंटालों की दुकानें बंद होंगी । यदि ऐसा हो पाये तो निश्चित ही यह कहानी की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि होगी । बधाई ।

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  23. निर्मला जी, जाने कितने ही ऐसे गुरु समाज में फैले हैं। और भोली भाली जनता को बेवक़ूफ़ बना रहे हैं।
    लेकिन इसमे दोष तो जनता का भी है, इस धर्मभीरुता के रहते।
    मुझे तो मंदिरों के आगे लगी मीलों लम्बी कतार देखकर भी ऐसी ही फीलिंग आती है।

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  24. बहुत ही सुंदर और रोचक कहानी लिखा है आपने! अगली कड़ी का इंतज़ार है!

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।