अच्छा लगता है (कविता )
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कभी कभी
क्यों रीता सा
हो जाता है मन
उदास सूना सा
बेचैन अनमना सा
अमावस के चाँद सी
धुँधला जाती रूह
सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास
अजीब सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीज़ों से बतियाना
अच्छा लगता है
आँसूओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों मे
दिल के चिथडों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
मेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तर
मेरी कलम और ये कागज़
और
मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना
कभी कभी
क्यों रीता सा
हो जाता है मन
उदास सूना सा
बेचैन अनमना सा
अमावस के चाँद सी
धुँधला जाती रूह
सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास
अजीब सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीज़ों से बतियाना
अच्छा लगता है
आँसूओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों मे
दिल के चिथडों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
मेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तर
मेरी कलम और ये कागज़
और
मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना
sanwedanashil rachana,dil ko chu gayi.sach kabhi kabhi man ka udaas hona bhi achha hi hota hai.bahut sunder.
ReplyDeleteभाव प्रवाहमयी कविता-आभार
ReplyDeleteसबके होते हुए भी
ReplyDeleteकिसे के न होने का आभास
अजीव सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीजो से बतियाना ...
बेहद सुन्दर पंक्तियाँ निर्मला जी !
"कभी खुद का अपने पास लौट आना..."
ReplyDeleteक्या बात लिख दी आपने..यकीनन...
बेहद खूबसूरत रचना । आपने बड़ी खूबसूरती से उस लम्हे को रचा है जिसे हम अक्सर सोचा करते है जब मन कभी-कभी उदास व सूना लगता है।
ReplyDelete"सबके होते हुए भी
ReplyDeleteकिसी के न होने का आभास..."
ज़िन्दगी की राहों में रंज़ो-ग़म के मेले हैं
भीड़ है कयामत की फिर भी हम अकेले हैं
सचमुच कभी कभी ऐसा अच्छा लगता है .. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमोंम..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....
ReplyDeleteभाव प्रवण
ReplyDeleteye lamha udasee ka hava ke jhonke sa bas turant ud jae ruke na ye hee abhilasha hai .
ReplyDeleteहाँ तब हमें सुकून भी महसूस होता है
ReplyDeleteहै न
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता है । उदासी के ऐसे पलों को जी लेना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है ।
ReplyDeleteइतनी सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ।
बहुत अच्छा लगता है
ReplyDeleteखुद का खुद के पास
लौट आना
सुंदर अभिव्यक्ति !!
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteशानदार नज़्म!
mook ret ke kano jaise
ReplyDeletekuchh shabd
palak se le kar
do bund syaahi
bikhar jate hain
kaagaz ki suni pagdandiyon par.....
bahut hi samvedansheel rachna.....khoobsurati se abhivyakt kiye hain apane jazbaat....badhai
हां कितना अच्छा लगता है,
ReplyDeleteकभी खुद का,
खुद के पास लौट आना...
भौतिकवाद की मृगतृष्णा में कौन लौट पाता है खुद के पास...
जय हिंद...
kitna sach kaha........apne se milna wakai bahut hi sukhad lagta hai.........aise lamhat se kabhi na kabhi har koi gujarta hai.
ReplyDeleteआज का हर इंसान भीतर से अकेला है !
ReplyDeleteअंतर्मन को छूती अत्यंत भावपूर्ण रचना !
आपका आभार एवं शुभ कामनाएं
दी
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता लिखी है आपने अपने पास ही लौटना या स्वयं ही ही तलाश में भटकना ये मानव का स्वभाव है । आपकी कविता मानव मन के उसे बंजारेपन को ठीक प्रकार से अभिव्यक्त कर पा रही है ।
उदासी के पलों का सच कहती सुन्दर रचना ..खुद के पास होना सबसे सुखद एहसास है
ReplyDeleteमानव मन का सहज चित्रण
ReplyDeleteस्वयं को तलाश करना जीवन में ज़रूरी होता है ...... बहुत से ऐसे लम्हे आते हैं जब इंसान अपने पास लौटना चाहता है ..... आपकी एक सशक्त और प्रभावी कविता है .......
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteऔर ऐसी सुंदर कविता के लिए कमेंट करना भी अच्छा लगता है।
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भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?
बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत कमाल के शब्द और भाव...वाह निर्मला जी गज़ब कर दिया आपने...बधाई..
ReplyDeleteनीरज
सुभानअल्लाह
ReplyDeleteखुद जब खुद के पास लौट आये तो फिर क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
दिल के चिथड़ों को छुपाना
ReplyDeleteऔर बहुत अच्छा लगता है
ख़ुद का ख़ुद के पास लौट आना॥
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ! दिल को छू गई आपकी ये अत्यन्त सुंदर रचना!
सबके होते हुए भी
ReplyDeleteकिसे के न होने का आभास
अजीव सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीजो से बतियाना ...
बहुत ही बढिया लगी आपकी ये रचना......
बेहद भावपूर्ण्!!
behatareen
ReplyDeleteनिर्मला जी आजकल लोगों को ख़ुद से मिलने की भी फुर्सत नही है।
ReplyDeleteऐसी है ये भाग दौड़ की जिंदगी।
बहुत अच्छी लगी ये रचना ।
गुलदस्ते में सजी बिस्तर की सिलवटों के बीच दिल के चिथड़ों को चुपचाप आँखों की नमी में छुपाकर निर्जीव चीजो से बतिआती सुंदर नज़्म .....!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभूतियां.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना. धन्यवाद
ReplyDeletebahut sahi likha hai nirmala ji aisa hota hai.
ReplyDeleteaapki is rachna ko padhkar kuchh purani likhi panktian yaad aa gain.
bahut khushi ya bahut ranj hota hai jab kavita aati hai
bankar sukh dekh ki sahgami, hriday mera sahla jaati hai
"अच्छा लगता है
ReplyDeleteआंसुओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों में
दिल के चिथड़ों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
ख़ुद का ख़ुद के पास
लौट आना"
निर्मला जी आपकी इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया..। सचमुच ख़ुद को ख़ुद के सबसे क़रीब पाने वाले लम्हें अद्भुत होते हैं..।
KUCH SHABAD
ReplyDeletePALKON SE LEKAR SYAHI
BIKHAR JAATE HAIN..
BAHUT KOMAL HRIDEYSAPARSHI RACHNA...
बिस्तर कि सिलवटें देख कर लगता है,
ReplyDeleteगुजारी है रात किसी ने करवट बदल-बदल कर.
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दर्द का एहसास कराती है आपकी रचना...............
शब्दों से नापने में असमर्थ हैं..............पर बधाई स्वीकारें.
मन की सारी परते खोल दी है | शिखर पर पहुंचने के बाद आदमी अकेला ही होता है कभी कभी सारी खुशिया मिलने के बाद
ReplyDeleteआंसू ही खुशी दे जाते है \
बहुत खूबसूरती से रची है ये कविता आपने |
बधाई
कितना अच्छा लगता है कभी खुद के पास लौट जाना ...
ReplyDeleteलाजवाब ...!!
आज सबसे ज्यादा मुश्किल है खुद से मुलाकात...तरसते हैं अब,लोग
ReplyDeleteऐसे पलों के लिए...बेहद संवेदनशील रचना..कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं
"एक ये दिन जब,लाखों गम हैं और अकाल पड़ा है,आंसू का
एक वो दिन जब,जरा जरा सी बात पर नदियाँ बहती थीं"
khubasurat ahasas....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअपने पास रहने में ही सुकून है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति एक एक लाइन दिल जीत लेती है..हमेशा की तरह बेहतरीन शब्द सहेजे है आपने भाव से भरी सुंदर कविता..बहुत बहुत बधाई
ReplyDelete'bahut achha lagta hai
ReplyDeletekhud ka khud ke paas
laut aana "
beautiful poem...
shukria'
ReplyDeleteaccha lagta hai acchi lagi.
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति कपिला जी, शुभकामनाएं...
ReplyDeleteअर घणी राम-राम
ये वो एहसास हैं जिनसे हर संवेदनशील मनुष्य रूबरू होता है
ReplyDeleteआपने उन्हें शब्द दिया
हमने महसूस किया
शुक्रिया।
निर्मला दी,
ReplyDeleteबड़े दिनों बाद आपने कविता में अभिव्यक्ति दी है . बहुत सुन्दर और स्वाभाविक रचना...अत्यंत आकर्षक लगीं निम्न पंक्तिया सच मानिये कई बार बांची आपकी ये कविता
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीजो से बतियाना ...
अति सुंदर ..भावनाओं को पिरोते हुए एक बेहतरीन कविता को प्रस्तुत किया आपने..बहुत अच्छा लगा पढ़ कर निर्मला जी .बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए..
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