30 November, 2009

अच्छा लगता है (कविता )
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कभी कभी
क्यों रीता सा
हो जाता है मन
उदास सूना सा
बेचैन अनमना सा
अमावस के चाँद सी
धुँधला जाती रूह
सब के होते भी
किसी के ना होने का आभास
अजीब सी घुटन सन्नाटा
जब कुछ नहीं लुभाता
तब अच्छा लगता है
कुछ निर्जीव चीज़ों से बतियाना
अच्छा लगता है
आँसूओं से रिश्ता बनाना
बिस्तर की सलवटों मे
दिल के चिथडों को छुपाना
और
बहुत अच्छा लगता है
खुद का खुद के पास
लौट आना
मेरे ये आँसू मेरा ये बिस्तर
मेरी कलम और ये कागज़
और
मूक रेत के कणों जैसे
कुछ शब्द
पलको़ से ले कर
दो बूँद स्याही
बिखर जाते हैँ
कागज़ की सूनी पगडंडियों पर
मेरा साथ निभाने
हाँ कितना अच्छा लगता है
कभी खुद का
खुद के पास लौट आना

52 comments:

  1. sanwedanashil rachana,dil ko chu gayi.sach kabhi kabhi man ka udaas hona bhi achha hi hota hai.bahut sunder.

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  2. भाव प्रवाहमयी कविता-आभार

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  3. सबके होते हुए भी
    किसे के न होने का आभास
    अजीव सी घुटन सन्नाटा
    जब कुछ नहीं लुभाता
    तब अच्छा लगता है
    कुछ निर्जीव चीजो से बतियाना ...

    बेहद सुन्दर पंक्तियाँ निर्मला जी !

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  4. "कभी खुद का अपने पास लौट आना..."

    क्या बात लिख दी आपने..यकीनन...

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  5. बेहद खूबसूरत रचना । आपने बड़ी खूबसूरती से उस लम्हे को रचा है जिसे हम अक्सर सोचा करते है जब मन कभी-कभी उदास व सूना लगता है।

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  6. "सबके होते हुए भी
    किसी के न होने का आभास..."


    ज़िन्दगी की राहों में रंज़ो-ग़म के मेले हैं
    भीड़ है कयामत की फिर भी हम अकेले हैं

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  7. सचमुच कभी कभी ऐसा अच्‍छा लगता है .. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  8. मोंम..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....

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  9. ye lamha udasee ka hava ke jhonke sa bas turant ud jae ruke na ye hee abhilasha hai .

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  10. हाँ तब हमें सुकून भी महसूस होता है
    है न

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  11. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता है । उदासी के ऐसे पलों को जी लेना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है ।
    इतनी सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ।

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  12. बहुत अच्छा लगता है
    खुद का खुद के पास
    लौट आना
    सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  13. बेहतरीन अभिव्यक्ति!
    शानदार नज़्म!

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  14. mook ret ke kano jaise
    kuchh shabd
    palak se le kar
    do bund syaahi
    bikhar jate hain
    kaagaz ki suni pagdandiyon par.....

    bahut hi samvedansheel rachna.....khoobsurati se abhivyakt kiye hain apane jazbaat....badhai

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  15. हां कितना अच्छा लगता है,
    कभी खुद का,
    खुद के पास लौट आना...

    भौतिकवाद की मृगतृष्णा में कौन लौट पाता है खुद के पास...

    जय हिंद...

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  16. kitna sach kaha........apne se milna wakai bahut hi sukhad lagta hai.........aise lamhat se kabhi na kabhi har koi gujarta hai.

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  17. आज का हर इंसान भीतर से अकेला है !
    अंतर्मन को छूती अत्यंत भावपूर्ण रचना !

    आपका आभार एवं शुभ कामनाएं

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  18. दी
    बहुत अच्‍छी कविता लिखी है आपने अपने पास ही लौटना या स्‍वयं ही ही तलाश में भटकना ये मानव का स्‍वभाव है । आपकी कविता मानव मन के उसे बंजारेपन को ठीक प्रकार से अभिव्‍यक्‍त कर पा रही है ।

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  19. उदासी के पलों का सच कहती सुन्दर रचना ..खुद के पास होना सबसे सुखद एहसास है

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  20. मानव मन का सहज चित्रण

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  21. स्वयं को तलाश करना जीवन में ज़रूरी होता है ...... बहुत से ऐसे लम्हे आते हैं जब इंसान अपने पास लौटना चाहता है ..... आपकी एक सशक्त और प्रभावी कविता है .......

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  22. बहुत सुंदर।
    और ऐसी सुंदर कविता के लिए कमेंट करना भी अच्छा लगता है।
    ------------------
    भीड़ है कयामत की, फिरभी हम अकेले हैं।
    इस चर्चित पेन्टिंग को तो पहचानते ही होंगे?

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  23. बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  24. बहुत कमाल के शब्द और भाव...वाह निर्मला जी गज़ब कर दिया आपने...बधाई..
    नीरज

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  25. खुद जब खुद के पास लौट आये तो फिर क्या कहने
    बहुत सुन्दर

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  26. दिल के चिथड़ों को छुपाना
    और बहुत अच्छा लगता है
    ख़ुद का ख़ुद के पास लौट आना॥
    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ! दिल को छू गई आपकी ये अत्यन्त सुंदर रचना!

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  27. सबके होते हुए भी
    किसे के न होने का आभास
    अजीव सी घुटन सन्नाटा
    जब कुछ नहीं लुभाता
    तब अच्छा लगता है
    कुछ निर्जीव चीजो से बतियाना ...

    बहुत ही बढिया लगी आपकी ये रचना......
    बेहद भावपूर्ण्!!

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  28. निर्मला जी आजकल लोगों को ख़ुद से मिलने की भी फुर्सत नही है।
    ऐसी है ये भाग दौड़ की जिंदगी।
    बहुत अच्छी लगी ये रचना ।

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  29. गुलदस्ते में सजी बिस्तर की सिलवटों के बीच दिल के चिथड़ों को चुपचाप आँखों की नमी में छुपाकर निर्जीव चीजो से बतिआती सुंदर नज़्म .....!!

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  30. बहुत सुंदर रचना. धन्यवाद

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  31. bahut sahi likha hai nirmala ji aisa hota hai.

    aapki is rachna ko padhkar kuchh purani likhi panktian yaad aa gain.

    bahut khushi ya bahut ranj hota hai jab kavita aati hai
    bankar sukh dekh ki sahgami, hriday mera sahla jaati hai

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  32. "अच्छा लगता है
    आंसुओं से रिश्ता बनाना
    बिस्तर की सलवटों में
    दिल के चिथड़ों को छुपाना
    और
    बहुत अच्छा लगता है
    ख़ुद का ख़ुद के पास
    लौट आना"
    निर्मला जी आपकी इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया..। सचमुच ख़ुद को ख़ुद के सबसे क़रीब पाने वाले लम्हें अद्भुत होते हैं..।

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  33. KUCH SHABAD
    PALKON SE LEKAR SYAHI
    BIKHAR JAATE HAIN..

    BAHUT KOMAL HRIDEYSAPARSHI RACHNA...

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  34. बिस्तर कि सिलवटें देख कर लगता है,
    गुजारी है रात किसी ने करवट बदल-बदल कर.
    -----------------------------------------
    दर्द का एहसास कराती है आपकी रचना...............
    शब्दों से नापने में असमर्थ हैं..............पर बधाई स्वीकारें.

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  35. मन की सारी परते खोल दी है | शिखर पर पहुंचने के बाद आदमी अकेला ही होता है कभी कभी सारी खुशिया मिलने के बाद
    आंसू ही खुशी दे जाते है \
    बहुत खूबसूरती से रची है ये कविता आपने |
    बधाई

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  36. कितना अच्छा लगता है कभी खुद के पास लौट जाना ...
    लाजवाब ...!!

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  37. आज सबसे ज्यादा मुश्किल है खुद से मुलाकात...तरसते हैं अब,लोग
    ऐसे पलों के लिए...बेहद संवेदनशील रचना..कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं
    "एक ये दिन जब,लाखों गम हैं और अकाल पड़ा है,आंसू का
    एक वो दिन जब,जरा जरा सी बात पर नदियाँ बहती थीं"

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  38. This comment has been removed by the author.

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  39. अपने पास रहने में ही सुकून है।

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  40. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति एक एक लाइन दिल जीत लेती है..हमेशा की तरह बेहतरीन शब्द सहेजे है आपने भाव से भरी सुंदर कविता..बहुत बहुत बधाई

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  41. 'bahut achha lagta hai
    khud ka khud ke paas
    laut aana "
    beautiful poem...

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  42. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति कपिला जी, शुभकामनाएं...

    अर घणी राम-राम

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  43. ये वो एहसास हैं जिनसे हर संवेदनशील मनुष्य रूबरू होता है
    आपने उन्हें शब्द दिया
    हमने महसूस किया
    शुक्रिया।

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  44. निर्मला दी,



    बड़े दिनों बाद आपने कविता में अभिव्यक्ति दी है . बहुत सुन्दर और स्वाभाविक रचना...अत्यंत आकर्षक लगीं निम्न पंक्तिया सच मानिये कई बार बांची आपकी ये कविता



    जब कुछ नहीं लुभाता

    तब अच्छा लगता है

    कुछ निर्जीव चीजो से बतियाना ...

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  45. अति सुंदर ..भावनाओं को पिरोते हुए एक बेहतरीन कविता को प्रस्तुत किया आपने..बहुत अच्छा लगा पढ़ कर निर्मला जी .बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए..

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।