07 June, 2009

प्रेम सेतु (कहानी )

जीना तो कोइ पटेल परिवार से सीखे1 जीवन रूपी पतँग को प्यार की डोर से गूँथ कर ऐसा उडाया कि आसमान छूने लगी1 ऐसी मजबूत डोर को देश धर्म जाति की पैनी छुरी भी नही काट् सकी1 वृ्न्दा अक्सर कहती है कि उसने पिछले जन्म मे जरूर कोई बडा पुण्यकर्म किया है जो भगवान ने बैठे बिठाये हेडन को उसकी झोली मे डाल दिया1 आज हेडन अपने सगे बेटे से भी बढ कर है1 अपना खून नहीं तो क्या हुआ1 कितने माँ बाप हैं जो अपने बच्चों से दुखी हैं1 अब मि- मुरगेसन को ही ले लो उनके बच्चो ने उनका जीना हराम कर रखा है1 हेडन ने खून धर्म जाति का रिश्ता ना होते हुये भी उन्हें सर आँखों पर बिठाया1
कैसा गोरा चिट्टा-धीर गम्भीर - मेहनती मेधावी और संवेदनशील लडका है1 ऐसा कौन सा गुण् है जो उसमे नहीं है! वो अकसर हेड्न से कहती --
हेडन! तुम सोलह कला सँपूर्ण हो कृ्ष्ण की तरह-
माँ आप भी तो यशोधा से कम नहीं हो- और दोनो मुस्कुरा देते 1
हेडन 7 वर्ष का था जब से वो उसे जानने लगी है1 उसके पिता टास और माँ मैसी की अपनी कोई औलाद नहीं थी उन्हों ने हेडन को एक अनाथालय से गोद लिया था1 तब वो केवल दो वर्ष का था1 वो नये घर मे आ कर बहुत खुश था1 पैसे की कोई कमी नहीं थी1 वो किसी राजकुमार की तरह ठाठ बाठ से पलने लगा1 मगर भगवान की माया कुछ और ही ताना बाना बुन रही थी1 वो अभी 6 वर्ष का ही हुया था कि उसकी माँ मैसी एक कार ऐक्सीडेण्ट मे मर गयी1 हेडन और टास पर जेसे वज्रपात हुआ था1 वो निराश हो गया उसे घर मे कुछ भी अच्छा नहीं लगता1 टास उसे बहलाने की बहुत कोशिश करता उसे बच्चों के साथ खेलने पार्क मे भेज देता पर वहाँ भी वो गुमसुम सा अकेले ही बैठा रहता1 बच्चों को अपने मा-बाप के साथ हंसते खेलते देखता तो उसे माँ की बडी याद आती1 वो उदास हो कर घर लौट आता1
टास ने चार महीने बाद दूसरी शादी कर ली उसे हेडन की भी चिन्ता थी1 मैगी उसकी नयी माँ उसे पसंद नही करती थी मगर फिर भी वक्त गुजरने लगा1 धीरे धीरे मैगी को हेडन से चिढ सी होने लगी1 क्यों की शाम को जेसे ही टास और मैगी घर आते हेड्न भी नर्सरी से आ चुका होता1 टास उसे बहुत प्यार करता था इस लिये शाम को अधिक से अधिक समय हेडन के साथ गुज़ारना पसंद करता था1 लेकिन मैगी का आम अमेरिकन की तरह एक ही फँडा था --
--ईट ड्रिन्क ऐँड बी मैरी --
वो किसी पराये बच्चे के लिये अपनी खुशियाँ क्यों बरबाद करे! वो टास के साथ अकेली घूमना फिरना पसंद करती1 ऐसे मे हेडन का साथ होना उसे एक आँख ना सुहाता1
धीरे धीर टास और मैगी मे खटपट होने लगी1 हेडन बेशक बच्चा था मगर समय के थपेडों ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था1 उसे धीर गम्भीर बना दिया था1 इसलिये वो शाम को कई बार खेलने का बहाना कर गार्डन मे चला जाता ताकि मैगी और टास अकेले कहीं जा सकें1
टास ग्रोव ड्राईव मेन्शन-- साँटा कलारा के एक फलैट् मे रहता था1 और उसके सामने ही एक फ्लैट मे भारतीय परिवार रहता था1 उसमे मि- राजीव पटेल उनकी चार वर्ष की बेटी पत्नी और माँ रहते थे पटेल एक कम्पनी मे जाब करता था1परिवार खुश हाल था1
उनकी माँ वृ्न्दा अपनी पोती सुगम को बहुत प्यार करती थी 1 वो शाम को रोज़ उसे घुमाने गार्डन मे ले जाती1 अमेरिकन बच्चे अकसर आपस मे ही खेलते1 सुगम भारतीय बच्चो के साथ खूब शरारते करती1 वृ्न्दा सब बच्चों की प्यारी दादी बन गयी थी1 बच्चे उनसे कई कहानियाँ सुनते1 सुगम कई बार दादी की गोद मे बैठ कर गले मे बाहें डाल लेती और खूब प्यार करती1 हेडन कई बार दूर खडा हो कर उन्हें ताकता रहता उसे ये सब बहुत अच्छा1 लगता उसे अपनी मांम की याद आ जाती 1 वो हिन्दी भाषा नहीं जानता था मगर इन्सान् की संवेदनायें तो एक होती हैं1 उसे सुगम और दादी को देखना सुनना बहुत अच्छा लगता1 उस दिन टास और मैगी एक पार्टी मे जाने वाले थे1 वो मैगी के साथ कहीं जाना ही नहीं
चाहता था1 उसने खेलने का बहाना बनाया और गार्डन मे आ गया घर की एक चाबी उसके पास रहती थी1
वो गार्डन मे एक खाली बैंच पर बैठ गया1 सामने दादी और सुगम हँस रही थीं1 वो उत्सुकता से उन्हें देखने लगा1 उसे अपनी माँ याद आ गयी और आँखें भर आयी1 वो उठ कर घर की ओर बढने ही लगा था कि सामने से आते बच्चे से टकरा कर गिर गया1 दादी ने देखा तो भाग कर उसे गोदी मे उठा लिया और पुचकारने लगी1 उसे चुप करवाते हुये अपने घर ले आयी1उसका जख्म साफ कर उस पर बेडेड लगा दी1 हेड्न अभी भी दादी की गोद मे था1--
-बेटा नेम -- अब दादी को इन्गलिश तो आती नहीं थी पर ये पता था कि नाम को नेम कहते हैं अब सुगम ट्रान्सलेटर का काम करने लगी
-शी इज़ आस्किन्ग युयर नेम-- सुगम ने हेड्न को बताया1
हेडन -- हेडन धीरे से बोला
फिर सुगम दुआरा ही दादी ने उसके घर का पता पूछा ताकि उसे घर छोड दे1
घर पर कोई नहीं था दादी ने उसे अकेले छोडने से मना कर दिया 1 मन ही मन हेडन भी खुश था उसे दादी की गोद मे अच्छा लग रहा था1 सुगम की माँ ने टास के लिये वाईस मेसेज छोड दिया कि जब भी वो घर आयें हेडन को उनके घर से ले लें एक कागज़ पर लिख कर घर के दरवाजे पर लगा दिया1
क्रमश

9 comments:

  1. nirmalaaji,
    aap dhnya hain
    aapki soch dhnya hai
    aapki lekhni dhnya hai

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  2. निर्मला जी........... बहुत ही सुखद आर्श्चय से भरी हुयी चल रही है कहानी........... भावनाओं से भरी..... आगे भी प्रतीक्षा रहेगी

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  3. वाह कहानी तो बड़ी सरलता से चलती जा रही है हर छोटी छोटी बात को कितनी खूबसूरती से आपने पिरोया है यहाँ तक के दादी को नाम जानने के लिए नेम पूछना... अगले अंक का इंतज़ार बेशब्री से है ....


    अर्श

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  4. निर्मला जी यह कहानी यहां करीब हर घर की है, आप ने इसे बहुत ही सुंदर शव्दो मे पिरोया है, लेकिन अब यह कहानी विदेश ही की नही अपने देश मै भी शुरु होने लगी है, काश ऎसा ना हो.
    यहां के बच्चे बचपन मै प्यार को बहुत तरसते है, सब कुछ होता है यहां बच्चो के पास लेकिन मां बाप नही होते, इस लिये इन बच्चो को लगता है कही कुछ आधुरा रह गया,
    धन्यवाद

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  5. prem setu.........aisa hi hota hai jahan bhi apnapan mile insaan ki fitarat hai wo wahin ka ho jata hai.achchi bhavmayi kahani.

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  6. शब्दों के जादू से रोचकता बनी रही है।

    ---
    तख़लीक़-ए-नज़र

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  7. इंसान प्यार का भूखा सदैव से ही रहा है.....खासतौर पे बच्चे....इन मासूम से फरिश्तों को प्यार-दुलार की दरकार सबसे ज्यादा होती है....आपने इसी विषय पर केन्द्रित कहानी पढ़वाकर भावुक कर दिया.....अच्छा समाँ बाँधा है आपने.....उम्मीद करते हैं अगला अंक शीघ्र ही प्रकाशित हो....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  8. अपनत्व की भूक. अभी तो आगे और है. भाषा के सुन्दर प्रयोग का आनंद ले रहे हैं

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  9. अपनत्व की भूक. अभी तो आगे और है. भाषा के सुन्दर प्रयोग का आनंद ले रहे हैं

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