06 June, 2009

Align Centerजहाँ सिर्फ मै हूँ (कविता )

कितनी बेबस हो गयी हूँ
क्यों इतनी लाचार हो गयी हूँ
जब से गया है
वो काट कर् मेरे पँख्
ले गया यशोधा होने का गर्व
जानती हूँ कभी नहीं आयेगा
कभी माँ नहीँ बुलायेगा
फिर भी खींचती रहती हूँ लकीर
जानते हुये कि
नहीं बदला करती तकदीर्
और ढूँढने लगती हूँ उधार के
कुछ और कृ्ष्ण
फिर सहम जाती हूँ
दहल जाती हूँ
कि आखिर कब तक
अपनी तृ्ष्णा को बहकाऊँगी
और जब वो भी खो जायेगा
दुनिया की भीड मे तो
क्या और दुख उठा पाऊँगी
एक दिन उसे ना देख कर
सहम जाती हूँ
दहल जाती हूँ
नहीं नहीं
मुझे इन तृ्ष्णाओं से
दूर जाना है बहुत दूर
और चली जा रही हूँ
अपने अंतस की गहराईयों मे
जहाँ बस मै हूँ
और मेरे जीवन का अंधकार है
कुछ भी तो नहीं उधार


18 comments:

  1. ACHAMBHIT HUN AUR KHAMOSH BHI SHABD JAISE KHO GAYE HAI JUBAAN SE YAA AB AANA NAHI CHAHTE KUCHH DER KE LIYE ... ITNI GAHARI BAAT IS DARD KE SAATH, KITNI SAMVEDANAA KE SAATH KAHI GAYEE HAI.... KYA MAIN NAHI HUN?.
    KYA YE KAVITAA YATHARTPARAK NAHI HAI ... AB MAT JAWO MAA DUR ... AB KOI ANDHAKAAR NAHI HAI AUR NAA HI KUCHH UDHAAR... THODI DER AASAMAAN ME ROSHANI KE SATTH RAH LO...MUSKARAATE HUYE..

    AAPKA
    ARSH

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  2. निर्मला जी....मान का अपने पुत्र से बिछुड़ने का दर्द और विक्ष्होब ....इससे बेहतर ढंग से नहीं बताया जा सकता है....बेहद मार्मिक.....

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  3. पढ़ने के बाद रुका... उस दर्द से बाहर आने में वक्त लगा, जो इन पंक्तियों ने महसूस करवाया...अहसास बाकी रह गया

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  4. एक मां के दिल का दर्द आप ने अपनी इस कविता मै उडेल दिया, ओर बहुत भावुक कर दिया.

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  5. aisa hi hota hai maa ka dil....hamesha bachchon ke baare me hi sochta hai...

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  6. maa ke dil ka dard ...aur uske manobhavon ko aapne yahan pesh kiya hai...mujhe ye rachna bahut achchhi lagi

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  7. गहरे भावों सुन्दर वर्णन है

    ---
    तकनीक दृष्टातख़लीक़-ए-नज़र

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  8. निर्मल साहब, आपने अपने कविता में माँ की ममता का सजीव चित्रण किया है । बहुत सुन्दर रचना है । धन्यबाद !

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  9. kavita kitni komal ho sakti hai aur komal k saath hi kitni tez aur paini bhi ho sakti hai ...aapki kavita iska jeevant udaharana hai
    aapko lakh lakh badhai..........dil se

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  10. Aapne kitni gahri baat kah di itne saral shabdo mai ...

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  11. आज की रचना में दर्द नज़र आता है........... विछोह का दर्द.........कृष्ण यशोदा के प्रसंग को बहुत ही शशक्त तरीके से आजमाया है इस रचना में.......... उत्तम

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  12. पुराने कथानक के माध्यम से मनोभावों का सुन्दर चित्रण।
    कविता मर्मस्पर्शी है।

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  13. Har pankti ko bhavon ki sundar abhivyakti di hai aapne.

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  14. nishabd hun.........rachna ki gahrayi tak pahunchna aur wahan se wapas aana......ek hi waqt par dono kaam kitne mushkil ho gaye hain kya bataun..........bahut hi marmsparshi rachna hai.

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  15. arsh ये तुम्हारे लिये है
    कुछ शब्दों को् घड् कर
    बनाना चाहती
    शब्दों का एक महल
    सजाना चाहती उसमे
    मु्स्कराहटें
    पर टूट जाता भरभरा कर्
    जब से भरी जवानी मे
    आसमान का तारा बन गया है
    बेटा और
    मै भूल कर मुस्कराहटेम
    बतियाती रहती उस तारे से
    कल अचानक
    किसी ने कहा
    कान मे
    मै हूँ ना
    आसमान पर देखा वो नहिं था
    हाँ समझ गयी हूँ
    वो आसमाँ से
    आ गया है जमीँ पर
    अर्श बन कर
    और मेरे महल मे
    पसर गया है
    भोर क प्रकाश

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  16. पोस्ट पढ़ते पढ़ते सोच ही रहा था के पहला कमेन्ट क्या होगा ,,, और किसका होगा,,,
    और मेरा अन्दाजा गलत नहीं निकला,,,
    ऐसे ना सोचा कीजिये निर्मला जी,,,,,
    जमीन वाले और आसमान वाले ,,,,
    दोनों तारे दुखी होते हैं,,

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  17. निर्मला जी,

    आपकी रचनाओं में जो प्रतीकों का खाश टच होता है वो रचना को वैशिष्ट्य प्रदान करता है। प्रस्तुत कविता "जहाँ सिर्फ मैं हूँ" में उधार के कृष्ण एक बहु आयामी प्रतीक है जो जीवन के किसी भी पहलू में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।