10 June, 2009

बुलबुला (कहानी )

इतना गहरा सन्नाटा ! कमरे मे अजीब सी विरानी! वो समझ नहीं पा रहा था कि ये क्या है----क्यों है---आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि जो शब्द बडे शौक से अपनी गज़लों को दिया करता था लिखा करता था--- उनका वज़ूद इतना असह होता है--- वो तो इन शब्दों से कितनी तालियॉ बटोरा करता था-----इनको लिख कर कितना खुश होता था-----ओह कितना खौफज़दा है इन शब्दों को जीना----1 उसने खिडकी से बाहर नज़र डाली----सामने वाले पेड पर आज चिडिया भी उदास बैठी है-- आगे इतना चहचहाती थी------सडक सुनसान पडी थी----लोग कहाँ गये ----क्या रोज़ ऐसे ही सुनसान हुआ करती थी------शायद----उसे तो सारी दुनिया हंसती खेलती खिलखिलाती दिखती थी् ---- उसका ये कमरा किसी के ना होते भी किसी के होने का एहसास देता था--------इसमे अपने सपनों को हरदम मुस्कराते देखता था----तो क्या वो खुद ही इन्हें तोडने नहीं जा रहा-------हाँ इस सारी दुनिया के सन्नाटे के लिये वो ही जिम्मेदार है------पर क्या करे------ अपनी मजबूरी पर उसकी आँख मे एक कतरा ेआँसू भर आया --पर उसने उसे समेट लिया-- नहीं नहीं इसे बहने नहीं देगा-----कहीं दिल की परतों मे सहेज लेगा----और उस मे डूब कर उसके दर्द को महसूस किया करेगा------अभी तो वो अपने ही दर्द को महसूस कर रहा है जब उसकी टीस इसमे मिलेगी तो क्या वो जी पायेगा-----शायद------नहीं----शायद इससे आगे वो अभी सोचना नहीं चाहता था------आज वो सिर्फ उन पलों को टूट टूट कर जीना चाहता था जो कल उसका अतीत बनने जा रहे थे पर क्या वो अतीत बन पायेंगे ये भी सोचना नहीं चाहता था------
आज वो खुद अर्चना -को गाडी मे बिठा कर आया था 1अपनी एम बे ए पूरी कर वो घर जा रही थी-------वो उसके साथ आखिरी पल क्या वो भूल पायेगा---- कितनी देर चलती गाडी मे भी उसके हाथ को नहीम छोडा था भागता रहा था-----ओह !कितनी गहरी टीस उठी थी जेसे कोई उसका दिल काट कर ले जा रहा हो---- --उस समय उसके मन मे क्या था वो नही जानती थी----उस की आँखो मे तो वही चमक थी जो दोनो के साथ होने पर होती है-- और एक विश्वास कि वो जल्दी उसका हाथ माँगने उसके घर आयेगा ----------उसे क्या पता कि अपनी दी हुई रोशनी को वो खुद मिटा देगा ------जब पहली बार उसे देखा था---- कितनी सहमी---डरी सी मासूम होती थी वो-------कोई उसके सामने आ जाता तो उसकी दिल की धडकन रुकने लगती -----सहम जाती ----उसने ही तो उसके दिल को सुरताल दिये-----उसे बेखौफ धडकना सिखाया----अपने प्यार से उसके रोम रोम मे बस कर उसके सपनों को पंख दिये----आज उन्हीं पँखों को वो काटने जा रहा है1कल ये प्यारे से पँख उसका भी अतीत बनने जा रहे हैं-------ेआसमान पर बादल छा रहे थे-------ऐसे पलों का दोनो को कितना इन्तज़ार रहता था झ्ट से एक दूसते को फोन किया कि वो अपने हास्टल से सीधे वही उस दरिया के किनारे पहुँच जाती उसे सब पता होता था कि किस समय पर कहाँ जाना है-------इस शहर के चप्पे चप्पे मे उन दोनो की धडकने सुनाई देती थीं-------- वो जल्दी से उठ कर तैयार हुया और चल पडा-------
आज वो उस दरिया के किनारे बैठ कर उन हसीन पलों को याद कर दिल की गहरी परतों मे छुप लेना चाहता था------ताकि जब कभी जीवन से थक जाये तो इन से बात कर अपने मन को बहला सके-----आज उसे ये सारा शहर ही विरान नज़र आ रहा था-------सब नज़ारे उसके साथ ही चले गये थे ---------दरिया के किनारे उस पत्थर पर बैठ गया जिस पर कभी दोनो बैठा करते थे जो उनके प्यार के पलों का गवाह था---वर्षा की छोटी छोटी बूँदें गिरने लगी थी1 तन का तो उसे होश नही था मगर मन भीग गया था1---ऐसा ही एक दिन था जब उसने उसे छूआ था------जाने क्या था उस पहली छुअन मे -----उसका रोम रोम झँकृ्त हो गया था-----
प्यार की गहराईयों मे डूबे ना जाने कितनी देर वो आसमान मे उडते रहे थे----और फिर अचानक उसने अपना सिर उसके कन्धे पर रख दिया था-------कितना विश्वास और प्यार था उसकी आँखों मे------ और फिर वो ये हाथ पकड कर कितनाेआगे तक बढ गये थे-------उसके मन मे एक टीस उठी और उसका हाथ अपने कन्धे को सहलाने लगा----एक आँसू बरखा की बूँदोँ के साथ बह गया---दरिया की अथाह गहराईयों मे-----काश ! वो कहीं से निकल कर सामने आ जाये---वो उसे बाहों मे कैद कर लेगा ---कभी नहीं जाने देग--अपनी ज़िन्दगी से दूर् -----कभी नहीं-------- बेबसी से सिहर उठा वो---नही जी पायेगा उसके बिना-----------
धुँधली सी आँखों से देख रहा है---उन बुलबुलों को---- आकाश से गिरती वर्षा की वो बूँद दरिया मे गिरते ही कितनी उछलती है मचलती है--------उपर उठ कर बुलबुला बन जाती है -----कितनी हसरतें-----कितने सपनों से लवारेज़------खिलखिलाती-------नहीं जानती ---कि बेदर्द हवा के झोँके कहाँ पनपने देंगे उन ख्वाबों के फूल ------मसल देंगे------उसकी हसरतों की कलियाँ------एक पल मे मिटा देंगे वो उस का आशियाना-------ये बुलबुला बेचारा---जान ही नहीं पायेगा कि कब कैसे वो लील लिया गया--------उसका प्यार भी तो एक बुलबुला था--------बना और मिट गया---------
आज वो अपने सारे आँसू इस दरिया को सौंप जाना चाहता था-------ताकि कभी गलती से भी वो कहीं जीवन के किसी मोड पर मिल गयी तो वो इन आँसुओ के आईने मे उसके दिल की टीस को ना देख ले-------नहीं तो वो भी नहीं जी पायेगी----
क्यों वो ऐसा करने जा रहा है------क्यों उसे दर्स देने जा रहा है------खुद को मिटाने जा रहा है--ाखिर क्यों---लेकिन वो क्या करता---उसी ने तो कहा था----हमारी राह मे आने वाली हर अडचन को वो ही दूर करेगा -----वो जमाने के साथ लड नहीं पायेगी-------उसे लगता था कि वो सब ठीक कर लेगा-------कोई उनकी राह मे नहीं आ पायेगा---------लेकिन एक हाथ की लकीर भी नही लाँघ पाया वो-------ये प्यार होने से पहले कुछ नहीं सोचता------अपनी मज़बूरियों को दोनो ने नहीं सोचा-------इतना आगे बढ गयी थे ------ उसे छू कर कितने इन्द्रधनुष बुन लिये थे----ानजाने मे----बिना सोचे कि ये तो क्षण भँगुर हैं---
फिर भी उसने बहुत कोशिश की थी----------- वो एक ऐसे दोराहे पर खडा हो गया था जहाँ एक तरफ उसकी ज़िन्दगी थी और दूसरी तरफ उसके जीवन की कुछ मान्यतायें जिनके बिना भी जीवन के कोई मायने नहीं होते------वो परँपरायें जिन के बिना ये समाज दिशाहीन हो कर अपनी मर्यादा और सुन्दरता खो देता है ----दरिया के किनारों को भी अगर बाँधा ना जाये तो वो उन्मुक्त बह कर तबाही मचाता हैं-------मगर अपनी उमँगों मे वो कहाँ सोच पाया था ये सब ---फिर वो भी तो ऐसे ही सोचती थी------
अर्चना के पिता उसके गुरू थे कितने वर्ष वो उसे पढाते रहे उसे किसी मुकाम पर पहुँचने के लिये कितने प्रयत्न किये उन्हों ने---बिना कसी लालच के---बिना किसी रिश्ते के------तभी तो वो अपने पिता से भी बढ कर उन्हें मानता था-------तब नहीं जानता था कि गुरू के लिये कभी इतनी बडी गुरुदक्षिणा भी देनी पडेगी--------
और उसके गुरू ने दक्षिणा मे माँग लिया उसका हँसता खेलता ये संसार-------बहुत तडपा बहुत सोचा मगर वो एक्लव्य को भी शर्मिन्दा नहीं करना चाहता था------उसका तो एक सपना था मगर जो सिर्फ उसका अपना था ---बाकी कितने जीवन इससे जुडे थे किसी माँ के --बाप के-- भाई- बहन के---- और ना जाने कितने-----उसे क्या हक है कि अपने लिये वो इतने लोगों को दुख दे------- और उनके कहने पर वो जा रहा था उनकी बेटी के जीवन से दूर -------एक इन्सान को अगर दुनिया मे जीना है तो इसकी मर्यादा मे रह कर ही जीना पडेगा---
अच्छा होना भी कई बार कितनी पीडा देता है ----अच्छाई त्याग माँगती है---- और् इसकी राह हमेशा काँटो. भरी होती ह------फिर भी इसकी सुन्दरता को नकारा नहीं जा सकता-------
वो उसे कुछ नहीं बतायेगा-------अच्छा होगा उसे बेवफा समझ कर भूल जायेगी---- शायद कभी नहीं जान पायेगी उसकी मजबूरियाँ ------ और वो कभी नहीं भूल पायेगा उसे----- फिर एक आँसू------
बारिश कुछ तेज होने लगी थी-----मगर वो आँख बन्द कर उसकी पीडा को खुद मे जीनी की कोशिश कर रहा था ---काश कि वो उसके आँसूओं को अपनी आँखों से बहा सकता------उसे बाहों मे समेट कर -----उसे बहला सकता-------- और आँखें बन्द कर पता नही कब तक सहेजता रहा कुछ यादों को दिल की परतों मे--------


19 comments:

  1. अद्भुत...निर्मला जी..बुलबुले के सातों इन्द्रधनुषी रंग इस कहानी में दिख गए....कमाल की शैली है आपकी...बिलकुल विशिष्ट....

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  2. चुपचाप पढ़ता चला गया खामोशी से ...बहोत ही रोचक घटना क्रम को आपने आपने लेखनी से चमका दिया है जो कहीं परत दर परत घुटती किसी दश्त में दफन हो चुकी थी इतने करीने से आप लिखी है के क्या कहने ... कोई किसी के लिए क्यूँ बदनाम हो बेवजह इस बात पे एक शे'र याद आगया के ...

    अब तो एहतियातन उस तरफ से कम गुजरता हूँ...
    मेरे लिए कोई मासूम क्यूँ बदनाम हो जाये
    ....
    मगर एक और बात के ....
    तू बता कर गया होता ...
    फिर तेरा आसरा नहीं होता

    मैं सभी से यही कहता हूँ
    बा-वफ़ा बे-वफ़ा नहीं होता...

    आपकी लेखनी को सलाम,,


    अर्श

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  3. कमाल की शैली है आपकी,आपकी लेखनी को सलाम,

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  4. bahut umda............
    anand aur aahlaad se bhar deti hain aap,
    badhaai aapko

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  5. bilkula ek alag andaj me prastutikaran

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  6. गज़ब की शैली में लिखा है............. बस पूरी घटना पढ़ कर ही दम लिया............. रोचक लिखा है........... लाजवाब

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  7. ह्रदयस्पर्शी कहानी है ...मुझे बहुत अच्छी लगी ...दिल के करीब

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  8. "---काश कि वो उसके आँसूओं को अपनी आँखों से बहा सकता------उसे बाहों मे समेट कर -----उसे बहला सकता-------- और आँखें बन्द कर पता नही कब तक सहेजता रहा कुछ यादों को दिल की परतों मे--------"

    मर्मस्पर्शी कथा के पढ़वाने लिए,
    निर्मला जी आपको धन्यवाद।

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  9. "---काश कि वो उसके आँसूओं को अपनी आँखों से बहा सकता------उसे बाहों मे समेट कर -----उसे बहला सकता-------- और आँखें बन्द कर पता नही कब तक सहेजता रहा कुछ यादों को दिल की परतों मे--------"

    मर्मस्पर्शी कथा के पढ़वाने लिए,
    निर्मला जी आपको धन्यवाद।

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  10. बेहतरीन रवानी है आपकी कलम में...एक सांस में पढ़ गया...वाह.
    नीरज

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  11. बहुत ही सुंदर, भावुक, कमाल है जी.
    धन्यवाद

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  12. अब तक तो केवल आपकी कविताओं का रसास्वादन करते रहे परन्तु हमें बिलकुल पता नहीं था कि आप का गद्य इतना विराट होगा. वाकई इन्द्रधनुषी आलेख है. हम इन्हें सात रंगों में समेट नहीं सकते.

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  13. sunder abhivyakti,dil ko chu liya,badhai.

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  14. बहुत ही अच्छी कहानी है...जिसमे जिंदगी के तमाम रंग मौजूद है...!सारा घटनाक्रम जैसे आस पास ही हो रहा है...!कोई गुरु ऐसा भी... है जो गुरु दक्षिणा में शिष्य की खुशियाँ.. ही मांग ले,हैरान करने की बात है....बाकि गुरु तो हमेशा देता ही है....!लेकिन आज के जीवन में जो सबसे करीब है वो ही सबसे गहरी चोट देता है...

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  15. बहुत ही रोचक शैली में आपने शब्दों को बुना है. एक ही सांस में पूरा पढ़ गया.

    आभार...

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