23 January, 2009

जिन्दगी कतरा कतरा
दूर जाना चाहती हूँ
तुम्हारे मोहपाश से
जब भौ करती हूँ प्रयास
आता है एक हवा का झोंका
तुम्हारे जिस्म को छू कर
लिपट जाता है मेरे तन से
और खीँच लाता है मुझे
तुम्हारे और करीब
जब कभी इन दिवारों मे
घुट्ने लगता है दम
मेरी अपनी साँसें
बार बार टकराती हैं मुझसे
ऊब जाती हूँ जीवन से
तभी आता है हवा का एक झोंका
तुम्हारी साँसों की खुश्बू लिये
महक जाता है तन मन
और आ जाती हूँ
तुम्हारे और करीब
कभी जीवन का बोझ
कर देता है उदास्
दिखने लगती है आँखों मे
टूटे सपनों की परछाईयाँ
फिर आता है एक हवा का झोंका
तुम से बिछुड जाने का दर्द समेटे
और कर जाता है आँखों को नम्
बहने लगता है मेरे सामने
मेरी मजबूरियों का दरिया
इन लहरों की छिटकन में
बह रही है
जिन्दगी कतरा कतरा


20 comments:

  1. फिर आता है एक हवा का झोंका
    तुम से बिछुड जाने का दर्द समेटे
    और कर जाता है आँखों को नम्
    "इन पंक्तियों ने अनायास ही मन को छु लिया....सुंदर "

    Regards

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  2. तुम्हारी साँसों की खुश्बू लिये
    महक जाता है तन मन
    और आ जाती हूँ
    तुम्हारे और करीब
    कभी जीवन का बोझ
    कर देता है उदास्
    दिखने लगती है आँखों मे
    टूटे सपनों की परछाईयाँ

    ओह ! भावनाओं के लहरों में डूबती उतराती जिंदगी का ऐसा चित्र खींच हैं आपने कि लगता है हमारे सामने जिंदगी बह रही है और हम तटस्थ होकर देख रहे हैं . बहुत ही उत्तम कविता है .

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  3. बहुत खूबसूरत जज्ब्बत पिरोये हैं आपने
    प्रदीप मनोरिया 09425132060
    http://manoria.blogspot.com
    http://kundkundkahan.blogspot.com

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  4. bahut sundar kavita hai

    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    गुलाबी कोंपलें

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  5. बेहतरीन जज्बात और भावों से सजी है आपकी यह रचना ..अच्छी लगी यह

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  6. बहुत सुंदर भावनायें।

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  7. ऊब जाती हूँ जीवन से
    तभी आता है हवा का एक झोंका
    तुम्हारी साँसों की खुश्बू लिये
    महक जाता है तन मन...

    bahut sundar....

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  8. दिल छूने वाली कविता !

    ( आप वर्ड वेरीफिकेशन हटाती हैं कि हम सत्याग्रह करें :)

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  9. माँ को मेरा प्रणाम , बहुत गहरी कविता ...
    जीवन में ना जाने कितने सपने अधूरे ही रह जाते है ....

    दिखने लगती है आँखों मे
    टूटे सपनों की परछाईयाँ
    फिर आता है एक हवा का झोंका
    तुम से बिछुड जाने का दर्द समेटे
    और कर जाता है आँखों को नम्
    बहने लगता है मेरे सामने
    मेरी मजबूरियों का दरिया
    इन लहरों की छिटकन में
    बह रही है
    जिन्दगी कतरा कतरा .

    आभार .....

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  10. "फिर आता है एक हवा का झोंका, तुम से बिछड़ जाने का दर्द समेटे
    और कर जाता है आँखों को नम ..."

    बहोत ही हृदय स्पर्शी और दिल को छू लेने वाली कविता
    कही है आपने ....
    लफ्ज़ दर लफ्ज़ एक एक मंज़रसा छाने लगता है
    आँखों के सामने
    बधाई ..........

    ---मुफलिस---

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  11. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  12. दूर जाना चाहती हूँ
    तुम्हारे मोहपाश से
    जब भौ करती हूँ प्रयास
    आता है एक हवा का झोंका
    तुम्हारे जिस्म को छू कर
    लिपट जाता है मेरे तन से
    और खीँच लाता है मुझे
    तुम्हारे और करीब

    बेहतरीन जज्बात और भावों से सजी है आपकी यह रचना अच्छी लगी.....

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  13. आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!

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  14. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाए |
    इश्वर हम सभी को अपने कर्तव्यों का पालन कराने की शक्ति प्रदान करे

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  15. प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं . सीधे ह्रदय में उतरती रचना.

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  16. गणतंत्र की जय हो .
    गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  17. Respected Nirmalaji,
    Bahut achchhee bhavnatmak kavita.
    Gantantra divas kee shubhkamnayen.
    Hemant Kumar

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  18. Pehli baar aapka blog dekha.Ek achche anubhav ke liye dhanyawaad.

    Agar word-verification hata den to tippani karne me asani hogi.

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  19. बहुत ही भाव पूर्ण पंक्तियों के लिए बधाई

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।