29 January, 2009


वक्त रुक गया है ये किस मुकाम पे
जिन्दगी घिर गयी है किस तुफान से

देख सलीका अपनों का खामोश हो गये
संभलने की सोची तो गुम होश हो गये
विश्वास उठ गया है धरमो-ईमान से
जिन्दगी घिर गयी है------------------------------
ना देते जख्म तो ना चाहे बात पूछते
ना लेते खबर मेरी न जज़बात पूछ्ते
हम भी न गुजरते इस इम्तिहान से
जिन्दगी घिर गयी-----------------------------------
ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
अपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
जिन्दगी घिर गयी है -------------------------------

12 comments:

  1. ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
    अपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट.....

    इन पंक्तियों में आपने कितना सही कहा की अपनों से किस तरह से चोट मिलती है ....फिर भी हम हमेशा अपनों की तलाश में रहते हैं ...
    बहुत ही सुंदर कविता ....


    अनिल कान्त
    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है, निर्मला जी!

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  3. ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
    अपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
    दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से

    सही कहा आपने ...आज का वक्त यही है .सुंदर लिखा है आपने

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  4. ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
    अपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
    दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. भावपूर्ण प्रस्तुति.....

    अगर आप वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें तो टिप्पणी करने में आसानी होगी।

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  6. आपके ने एकदम सही बात कही है. सुंदर प्रस्तुति. आभार.

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  7. bhavpurn khunsurat rachana,bhut badhai.behad

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  8. विश्वास उठ गया है धरमो-ईमान से|
    bilkul sahi kaha

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  9. aapne bahut hi sundar kavita likhi hai,

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  10. ना देते जख्म तो ना चाहे बात पूछते
    ना लेते खबर मेरी न जज़बात पूछ्ते
    हम भी न गुजरते इस इम्तिहान से
    बहुत ही हृदयस्पर्शी भावनाएं लिए हुए अल्फाज़. बहुत खूबसूरत नज़्म.

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  11. बहुत सुंदर जी
    धन्यवाद

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  12. दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
    वक्त रुक गया है ये किस मुकाम पे
    यथार्थ के करीब हैं पंक्तियाँ आपकी.

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।