वक्त रुक गया है ये किस मुकाम पे
जिन्दगी घिर गयी है किस तुफान से
देख सलीका अपनों का खामोश हो गये
संभलने की सोची तो गुम होश हो गये
विश्वास उठ गया है धरमो-ईमान से
जिन्दगी घिर गयी है------------------------------
ना देते जख्म तो ना चाहे बात पूछते
ना लेते खबर मेरी न जज़बात पूछ्ते
हम भी न गुजरते इस इम्तिहान से
जिन्दगी घिर गयी-----------------------------------
ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
अपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
जिन्दगी घिर गयी है -------------------------------
ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
ReplyDeleteअपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट.....
इन पंक्तियों में आपने कितना सही कहा की अपनों से किस तरह से चोट मिलती है ....फिर भी हम हमेशा अपनों की तलाश में रहते हैं ...
बहुत ही सुंदर कविता ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है, निर्मला जी!
ReplyDeleteना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
ReplyDeleteअपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
सही कहा आपने ...आज का वक्त यही है .सुंदर लिखा है आपने
ना था गुमा कि दिल को यूँ लगेगी चोट
ReplyDeleteअपनों के मन मे भी आ जायेगा यूँ खोट
दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
भावपूर्ण प्रस्तुति.....
ReplyDeleteअगर आप वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें तो टिप्पणी करने में आसानी होगी।
आपके ने एकदम सही बात कही है. सुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeletebhavpurn khunsurat rachana,bhut badhai.behad
ReplyDeleteविश्वास उठ गया है धरमो-ईमान से|
ReplyDeletebilkul sahi kaha
aapne bahut hi sundar kavita likhi hai,
ReplyDeleteना देते जख्म तो ना चाहे बात पूछते
ReplyDeleteना लेते खबर मेरी न जज़बात पूछ्ते
हम भी न गुजरते इस इम्तिहान से
बहुत ही हृदयस्पर्शी भावनाएं लिए हुए अल्फाज़. बहुत खूबसूरत नज़्म.
बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteधन्यवाद
दँग रह गये हैँ हम रिश्तों के इनाम से
ReplyDeleteवक्त रुक गया है ये किस मुकाम पे
यथार्थ के करीब हैं पंक्तियाँ आपकी.