नई सुबह - ---- कहानी
आज मन बहुत खिन्न था।सुबह भाग दौड करते हुये काम निपटाने मे 9 बज गये। तैयार हुयी पर्स उठाया, आफिस के लिये निकलने ही लगी थी कि माँ जी ने हुकम सुना दिया *बहु एक कप तुलसी वाली चाय देती जाना।*
मन खीज उठा , एक तो लेट हो रही हूँ किसी ने हाथ तो क्या बँटाना हुकम दिये जाना है ,फिर ये भी नही कि सब एक ही समय पर नाश्ता कर लें ,एक ही तरह का खा लें सब की पसंद अलग अलग । किसी को तुलसी वाली चाय तो किसी को इलाची वाली। मेरी तकलीफ कोई नही देखता।
आज समाज को पढी लिखी बहु की जरूरत है जो नौकरी पेशा भी हो,कमाऊ हो। घर और नौकरी दो पाटों के बीच पिसती बहु को क्या चाहिये इसका समाधान कोई नही सोचता।
जैसे तैसे चाय बना कर बस स्टाप के लिये भागी, मगर बस निकल चुकी थी।मेरी रुलाई फूटने को हो आयी।मन मे आया बास की डाँट खाने से अच्छा है आज छुट्टी ले लूँ। कई दिन से सोच रही थी आँटी से मिलने जाने का मगर विकास 10 दिन से टूर पर गये थे समय ही नहीं मिल पाया।दूसरा कई दिन से सोच कर परेशान थी नौकरी और घर दोनो के बीच बहुत कुछ छूट रहा था जिन्दगी से। दोनो जिम्मेदारियों मे जो मुश्किल आती वो तो अपनी जगह थी मुझे चिन्ता केवल बच्चों की पढाई की थी। मैं इतनी थक जाती कि रात को बच्चों का होम वर्क करवाने की भी हिम्मत न रहती। विकास की नौकरी ऐसी थी कि अक्सर टूर पर जाना पडता था।मुझे गुस्सा आता कि अगर नौकरी वाली बहु चाहिये तो घर मे नौकरानी रखो। मगर माँजी बाऊ जी नौकरानी के हाथ से बना भोजन नही करते थे।मैने नौकरी छोडने की बात की तो विकास नही माने। मुझे लगता कि अगर माँ जी या बाऊ जी से कहूँगी तो पता नही क्या सोचेंगे-- घर मे कहीं कलेश न हो जाये कि शायद मैं घर के काम से कतराने लगी हूँ । ससुराल मे उतनी आज़ादी भी नही होती जितनी कि मायके मे बात कहने की होती है।
बस स्टैंड पर खडे ध्यान आया कि चलो आज छुट्टी करती हूँ और आँटी के घर हो आती हूँ, अपनी समस्या के बारे मे भी उनसे बात हो जायेगी।वो एक सुलझी हुयी महिला हैं। जरूर कोई न कोई हल मिल जायेगा। मन कुछ आश्वस्त हुया।रिक्शा ले कर मैं उनके घर के लिये चल पडी।
कमला आँटी मेरे मायके शहर की हैं। 15-20 वर्ष से वो इसी शहर मे रह रही हैं। अपने पति की मौत के बाद उन्होंने एक बोर्डिंग स्कूल मे वार्डन की नौकरी कर ली।थी वहीं रह रही हैं। जैसे ही मैं पहुँचीवो मुझे देख कर ह्रान हो गयी--
*नीतू ,तुम? इस समय? क्या आज छुट्टी है?* उन्होंने एक दम कई प्रश्न दाग दिये।
* आँटी आज आफिस से लेट हो गयी थी तो सोचा बास की डाँट खाने से अच्छा है आपके हाथ की बनी चाय पी ली जाये और कुछ मीठी खटी बातें भी हो जायें।*
* वलो अच्छा हुया तुम आ गयी*इधर बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं हास्टल भी खाली है। बैठो मैं चाय बना कर लाती हूँ फिर बातें करते हैं।*
मैने कमरे मे सरसरी नज़र दौडाई सुन्दर व्यवस्थित छोटा स घर थआँटी बहुत सुघड गृहणी हैं ।ये मैं पहले से जानती थी । रिश्तों को सहेजना और घर परिवार को कैसे चलाना है ये महारत उनको हासिल थी तभी तो उन के बेटे बहुयें उन्हें बहुत प्यार करते हैं । उन्हें अपने पास बुलाते हैं मगर आँटी कहती हैं कि जब तक हाथ पाँव चल रहे हैं तब तक वो काम करेंगी । इसी लिये बेटे की ट्रांस्फर के बाद उनके साथ नही गयी।
चाय की चुस्की लेते हुये आँटी ने बचों का .घर का हाल चाल पूछा।मैं कुछ उदास से हो गयी तो आँटी को पता चल गया कि मैं परेशान हूँ।
* नीतू ,क्या बात है कुछ परेशान लग रही हो?*
*आँटी मैं नौकरी और बच्चों की पढाई को ले कर परेशान हूँ।नौकरी के साथ घर सम्भालना , बच्चों की पढाई भी करवानी माँ और बाऊ जी का ध्यान, दवा दारू, और रिश्तेदारों की आपे़क्षायें इन सब के बीच पिस कर रह गयी हूँ आपको पता ही है विकास को अकसर टूर पर जाना पडता है अगर घर मे भी हों तो भी बच्चों की तरफ ध्यान नही जाता। माँ जी को कीर्तन सत्संग से फुरसत नही, बिमारी मे भी कोई हाथ बंटाने वाला नहीं। वैसे मुझे घर मे कोई कुछ कहता नही मगर मुझे किसी का कुछ सहारा भी तो चाहिये ।बताईये मै क्या करूँ?*
*बेटी ये समस्या केवल तुम्हारी ही नही है,हर कामकाजी महिला की है । असल मे हमारे परिवारों मे बहु के आने पर ये समझ लिया जाता है कि बस अब काम की जिम्मेदारी केवल बहु की है। सास ननदें कई बार तो बिलकुल काम करना छोड देती हैं बस यहीं से परिवारों मे कलह बढ जाती है।*
अब यहाँ दो बातें आती हैं एक तो ये ------- क्रमश:
आज मन बहुत खिन्न था।सुबह भाग दौड करते हुये काम निपटाने मे 9 बज गये। तैयार हुयी पर्स उठाया, आफिस के लिये निकलने ही लगी थी कि माँ जी ने हुकम सुना दिया *बहु एक कप तुलसी वाली चाय देती जाना।*
मन खीज उठा , एक तो लेट हो रही हूँ किसी ने हाथ तो क्या बँटाना हुकम दिये जाना है ,फिर ये भी नही कि सब एक ही समय पर नाश्ता कर लें ,एक ही तरह का खा लें सब की पसंद अलग अलग । किसी को तुलसी वाली चाय तो किसी को इलाची वाली। मेरी तकलीफ कोई नही देखता।
आज समाज को पढी लिखी बहु की जरूरत है जो नौकरी पेशा भी हो,कमाऊ हो। घर और नौकरी दो पाटों के बीच पिसती बहु को क्या चाहिये इसका समाधान कोई नही सोचता।
जैसे तैसे चाय बना कर बस स्टाप के लिये भागी, मगर बस निकल चुकी थी।मेरी रुलाई फूटने को हो आयी।मन मे आया बास की डाँट खाने से अच्छा है आज छुट्टी ले लूँ। कई दिन से सोच रही थी आँटी से मिलने जाने का मगर विकास 10 दिन से टूर पर गये थे समय ही नहीं मिल पाया।दूसरा कई दिन से सोच कर परेशान थी नौकरी और घर दोनो के बीच बहुत कुछ छूट रहा था जिन्दगी से। दोनो जिम्मेदारियों मे जो मुश्किल आती वो तो अपनी जगह थी मुझे चिन्ता केवल बच्चों की पढाई की थी। मैं इतनी थक जाती कि रात को बच्चों का होम वर्क करवाने की भी हिम्मत न रहती। विकास की नौकरी ऐसी थी कि अक्सर टूर पर जाना पडता था।मुझे गुस्सा आता कि अगर नौकरी वाली बहु चाहिये तो घर मे नौकरानी रखो। मगर माँजी बाऊ जी नौकरानी के हाथ से बना भोजन नही करते थे।मैने नौकरी छोडने की बात की तो विकास नही माने। मुझे लगता कि अगर माँ जी या बाऊ जी से कहूँगी तो पता नही क्या सोचेंगे-- घर मे कहीं कलेश न हो जाये कि शायद मैं घर के काम से कतराने लगी हूँ । ससुराल मे उतनी आज़ादी भी नही होती जितनी कि मायके मे बात कहने की होती है।
बस स्टैंड पर खडे ध्यान आया कि चलो आज छुट्टी करती हूँ और आँटी के घर हो आती हूँ, अपनी समस्या के बारे मे भी उनसे बात हो जायेगी।वो एक सुलझी हुयी महिला हैं। जरूर कोई न कोई हल मिल जायेगा। मन कुछ आश्वस्त हुया।रिक्शा ले कर मैं उनके घर के लिये चल पडी।
कमला आँटी मेरे मायके शहर की हैं। 15-20 वर्ष से वो इसी शहर मे रह रही हैं। अपने पति की मौत के बाद उन्होंने एक बोर्डिंग स्कूल मे वार्डन की नौकरी कर ली।थी वहीं रह रही हैं। जैसे ही मैं पहुँचीवो मुझे देख कर ह्रान हो गयी--
*नीतू ,तुम? इस समय? क्या आज छुट्टी है?* उन्होंने एक दम कई प्रश्न दाग दिये।
* आँटी आज आफिस से लेट हो गयी थी तो सोचा बास की डाँट खाने से अच्छा है आपके हाथ की बनी चाय पी ली जाये और कुछ मीठी खटी बातें भी हो जायें।*
* वलो अच्छा हुया तुम आ गयी*इधर बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं हास्टल भी खाली है। बैठो मैं चाय बना कर लाती हूँ फिर बातें करते हैं।*
मैने कमरे मे सरसरी नज़र दौडाई सुन्दर व्यवस्थित छोटा स घर थआँटी बहुत सुघड गृहणी हैं ।ये मैं पहले से जानती थी । रिश्तों को सहेजना और घर परिवार को कैसे चलाना है ये महारत उनको हासिल थी तभी तो उन के बेटे बहुयें उन्हें बहुत प्यार करते हैं । उन्हें अपने पास बुलाते हैं मगर आँटी कहती हैं कि जब तक हाथ पाँव चल रहे हैं तब तक वो काम करेंगी । इसी लिये बेटे की ट्रांस्फर के बाद उनके साथ नही गयी।
चाय की चुस्की लेते हुये आँटी ने बचों का .घर का हाल चाल पूछा।मैं कुछ उदास से हो गयी तो आँटी को पता चल गया कि मैं परेशान हूँ।
* नीतू ,क्या बात है कुछ परेशान लग रही हो?*
*आँटी मैं नौकरी और बच्चों की पढाई को ले कर परेशान हूँ।नौकरी के साथ घर सम्भालना , बच्चों की पढाई भी करवानी माँ और बाऊ जी का ध्यान, दवा दारू, और रिश्तेदारों की आपे़क्षायें इन सब के बीच पिस कर रह गयी हूँ आपको पता ही है विकास को अकसर टूर पर जाना पडता है अगर घर मे भी हों तो भी बच्चों की तरफ ध्यान नही जाता। माँ जी को कीर्तन सत्संग से फुरसत नही, बिमारी मे भी कोई हाथ बंटाने वाला नहीं। वैसे मुझे घर मे कोई कुछ कहता नही मगर मुझे किसी का कुछ सहारा भी तो चाहिये ।बताईये मै क्या करूँ?*
*बेटी ये समस्या केवल तुम्हारी ही नही है,हर कामकाजी महिला की है । असल मे हमारे परिवारों मे बहु के आने पर ये समझ लिया जाता है कि बस अब काम की जिम्मेदारी केवल बहु की है। सास ननदें कई बार तो बिलकुल काम करना छोड देती हैं बस यहीं से परिवारों मे कलह बढ जाती है।*
अब यहाँ दो बातें आती हैं एक तो ये ------- क्रमश:
34 comments:
आप ने आम मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की समस्या को उठाया है। कहानी के आगे के भागों की प्रतीक्षा रहेगी।
कहानी की यह कड़ी पसंद आयी ,अगली और भी रोचक होगी.
बढ़िया शुरुवात..इन्तजार करते हैं अगली कड़ी का..
समाज का कटु सत्य, अगर अपनी लड़की के साथ हो तो ज्यादती और बहु के साथ हो तो फ़र्ज, वाह मेरे प्रिय भारतीय समाज।
ये बॉस के डांट से छुट्टी लेने वाला तरीका सही नहीं लगा अरे बॉस तो बना ही डांटने के लिये और आम कर्मचारी बना है डांट खाने के लिये।
सम्मान परिवार में तभी मिलता है जब उनके मन की करो अगर अपने मन की करी और जो दूसरे मतलब वो छोटे हों या बड़े तो मनों में खटास आने लगती है।
बहुत कुछ कहती कहानी।
क्रमश: का इंतजार है।
रोचक कहानी, दूसरा भाग भी जल्दी दें
सास बहू पुराण पर रोचक कथा की अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा ...!!
बहुत सुंदर कहानी, आगे की प्रतिक्षा है.
रामराम.
कहानी के प्रारम्भ से ही आभास होता है कि आम जीवन खासकर माध्यम वर्ग की यह कहानी एक रोचक अंत की और जायेगी !
agli kadi ka intezaar rahega nirmala ji....
मम्मा..... बहुत रोचक और अच्छी कहानी........ अब आगे का इंतज़ार है....
निर्मला दी,
कहानी बहुत अच्छी बन पड़ी है...ओज समाज में बदलते मापदंडों में कामकाजी महिलाओं की समस्या और दुविधा दोनों को उजागर करती हुई कहानी. ऐसा लगा बहुत जल्दी यह भाग ख़त्म ही गया अगले की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी
सादर
निर्मला जी, सबसे पहले तो आप सेन्ट्रल एलाइंटमेंट की जगह जस्टीफाई कर लें। पढ़ने में कठिनाई होती है। आप की कहानी आगे जाकर क्या रंग लाएगी इंतजार रहेगा। लेकिन ऐसी बहुए कहाँ मिलती हैं?
शुरूआत बहुत ही सुन्दरता के साथ की है, आगे की कहानी में क्या होना है उत्सुकता बरकरार है।
सामाजिक विषयों और समाज की समस्याओं को आप बाखूबी अपनी कहानियों से सुलझाती हैं ..... इस कहानी में भी बहुत से परिवारों की समस्या को आप बहुत प्रभावी तरीके से उठा रहीं हैं ...... आगे की प्रतीक्षा रहेगी .....
अगली कडी का बेसब्री से इंतजार है जी
प्रणाम
aaj ka jwalant vishay uthaya hai jisse har kamkaji mahila ru-b-ru ho rahi hai..........atyant rochak........agli kadi ka intzaar hai.
अगली कडी का इंतजार है
प्रणाम
बढ़िया शुरुवात.....अगली कडी का बेसब्री से इंतजार है.
krantidut.blogspot.com
कहानी की यह कड़ी पसंद आयी इन्तजार करते हैं अगली कड़ी का...
sab ki tarah mujhe bhi pratiksha hai :)
आपकी कहानी आज के संदर्भ में बहुत उपुक्त है |बहुत उत्तम |अगली कड़ी का इंतजार है |
आशा
निर्मला जी , कहानी तो मार्मिक बनती जा रही है .
हालाँकि बड़े शहरों में हालात बदल गए हैं।
यहाँ तो शादी होते ही बेटा -बहू पहला काम यह करते हैं की अलग घर ढूंढते हैं।
यानि न रहता है बांस , न बजती है बांसुरी।
लेकिन कामकाजी महिला के लिए निसंदेह दोनों ड्यूटी पुगाना बहुत कठिन काम है।
thanks mummy ji.....
aap ke asirwad se aur achha likhunga.....
बहुत सुंदर रोचक कहानी है , अगले भाग की प्रतीक्षा है.
महावीर शर्मा
रोचक कथा। अगली कड़ी का इंतज़ार।
एकदम जैसे हर कामकाजी महिला की कहानी है यह...बहुत अच्छी जा रही है,..अगली किस्त का इंतज़ार
Kahani bahut hi rochak lagi aapko bahut dhanywad!! agake bhag ki pratiksha me..
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
Maasi pahlee baar padhne par ye kahani bahut khoobsurat lagi thee.. aur doosri baar to poochhiye mat..
Maaji! aapne to hamare dil ki baat kah dee kahani mein. Kaamkaji mahila hone ke naate yah baat lagu ho rahi hai..
Bahut badhai
prateeksha agale bhag kee.............
कहानी कहानी में आप बहुत कुछ सीखा जाती है आज की आम जिंदगी के बीच उठाते ऐसे सैकड़ों समस्याएँ है जिस पर किसी का ध्यान नही जाता क्योंकि लोग उसे रोजमर्रा की बातें कहते है जबकि जीवन को बनाने और बिगड़ने में उनका बहुत हाथ होता है...आपकी कहानी ऐसे कई समस्याओं को दर्शाती हुई आयेज बढ़ती है जो बहुत अच्छी लगती है ऐसा ही कुछ यह चल रहा है....सादर प्रणाम!!
बहुत रोचक कहानी. अगले भाग का इन्तज़ार है.
हर कामकाजी महिला की कहानी है ।
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