रिश्ते
ये रिश्ते
अजीब रिश्ते
कभी आग
तो कभी
ठंडी बर्फ्
नहीं रह्ते
एक से सदा
बदलते हैं ऐसे
जैसे मौसम के पहर
उगते हैं
सुहाने लगते हैं
वैसाख के सूरज् की
लौ फूट्ने से
पहले पहर जैसे
बढते हैं
भागते हैं
जेठ आशाढ की
चिलचिलाती धूप की
साँसों जैसे
फिर
पड जाती हैं दरारें
मेघों जैसे
कडकते बरसते
नहीं रह्ते
एक से सदा
बदलते हैं ऐसे
जैसे मौसम के पहर
उगते हैं
सुहाने लगते हैं
वैसाख के सूरज् की
लौ फूट्ने से
पहले पहर जैसे
बढते हैं
भागते हैं
जेठ आशाढ की
चिलचिलाती धूप की
साँसों जैसे
फिर
पड जाती हैं दरारें
मेघों जैसे
कडकते बरसते
और बह जाते हैं
बरसाती नदी नालों जैसे
रह जाती हैं बस यादें
पौष माघ की सर्द रातों मे
दुबकी सी सिकुडी सी
मिटी कि पर्त् जैसी
बरसाती नदी नालों जैसे
रह जाती हैं बस यादें
पौष माघ की सर्द रातों मे
दुबकी सी सिकुडी सी
मिटी कि पर्त् जैसी
चलता रहता है
रिश्तों का ये सफर् !!
रिश्तों का ये सफर् !!
17 comments:
अरे वाह.. क्या सुंदर कविता है.... बधाई....
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ, बहुत सुन्दर रचना!
एक यथार्थवादी कविता के लिए आपका आभार।
आदरणीय निर्मला जी ,
रिश्तों में अज के समय में जो दरार ,खटास आती
जा रही है उसका अच्छा वर्णन है कविता में .
हेमंत कुमार
बहुत सुंदर
बसंत पंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामना
सही कहा....चलता रहता है रिश्तों का यह सफर।
मौसम के साथ रिश्तों का सफरनामा रोचक रहा. आभार.
निर्मला जी, मुझे तो लगता है पेसा ही सब से खराव है जो आज रिशतो मे भी दरार डाल रहा है.
बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने धन्यवाद
इस रचना के लिये धन्यवाद.
पंक्तियां सजा कर स्थापित की गयी मालूम होती हैं.
इन्हें अगर केवल देखें, पढ़े नहीं तो यह एक आकृति बनायेंगी. गजब की रिश्तेदारी है इनमें.
Respected Nirmalaji,
bahut hee kadvee sachchai ko likha hai apne rishtey kavita men.aj ke badalte parivesh ka sahee chitran.
Poonam
सफर, सफर है, इसमें यादें आती जाती है।
रिश्तों की बुनियाद, सफर में बनती जाती है।
आपने रिश्तों की सही परिभाषा दी है निर्मला जी।
वाह ...बहुत ही बढि़या ...
सटीक बात कहती कविता।
सादर
रिश्ते सचमुच ऐसे ही होते हैं....
सुन्दर विवेचना...
सादर...
बहुत ही सही कहा है आपने ....सार्थक रचना
बहुत सटीक लिखा है सुन्दर रचना
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