05 May, 2015

rishte--- कविता



ये रिश्ते
अजीब रिश्ते
कभी आग
तो कभी
ठंडी बर्फ्
नहीं रह्ते
एक से सदा
बदलते हैं ऐसे
जैसे मौसम के पहर
उगते हैं
सुहाने लगते हैं
वैसाख के सूरज् की
लौ फूट्ने से
पहले पहर जैसे
बढते हैं
भागते हैं
जेठ आशाढ की
चिलचिलाती धूप की
साँसों जैसे
फिर
पड जाती हैं दरारें
मेघों जैसे
कडकते बरसते
और बह जाते हैं
बरसाती नदी नालों जैसे
रह जाती हैं बस यादें
पौष माघ की सर्द रातों मे
दुबकी सी सिकुडी सी
मिटी कि पर्त् जैसी
चलता रहता है
रिश्तों का ये सफर् !!