29 August, 2014

दोहे

चलिये आज कुछ पुराने दोहे लिख कर काम चला लेते हैं

कौन  बिछाये बाजरा कौन चुगाये चोग
देख परिन्दा उड गया खुदगर्जी से लोग

इधर भिखारी भूख मे उधर बुतों पर भोग
कैसी है ये आस्था   भूले रस्ता लोग

सबकी करनी देख कर लिखता वो तकदीर
बिना बनाये मांगता क्यों कर मीठी खीर

लुप्त हुई खग जातियां छोड गयी कुछ देश
कहां बनायें घोंसले  पेड रहे ना  शेष

19 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
    --
    श्रीगणेश चतुर्थी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अच्छा लगा आपको दोबारा ब्लॉग पर देखकर ! शुभकामनाएं जी ...

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  3. पुराने कहाँ हैं
    आज और अभी के हैं
    बहुत सुंदर ।

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  4. इंसान इंसान की भूख नहीं आस्था के नाम पर भोग उनका भोग लगाना नहीं भूलता .. विकट विडम्बना है ... सार्थक चिंतन

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  5. कल 31/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. बहुत सुन्दर.
    घुघूती बासूती

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  7. बेहद अपने आंच लिए जलन लिए। सन्देश लिए गीता का :

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  8. सुन्दर ... मन को छु गए सभी दोहे ...

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  9. सभी दोहे अच्छे लगे ।

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  10. दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!

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  11. अनुपम प्रस्तुति......आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
    नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

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  12. आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं |

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  13. बहुत ही शानदार
    http://puraneebastee.blogspot.in/
    @PuraneeBastee

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  14. बहुत खूब। सुदर रचना।

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।