02 July, 2012

gazal


54 comments:

  1. निर्मलाजी बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली। अच्‍छी रचना है। अब स्‍वास्‍थ्‍य कैसा है?

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  2. वाह.... दिल को छू गयी आपकी यह गज़ल.... हर एक अश`आर मायनेखेज़ है...

    बहुत दिनों के बाद आपकी लिखी कोई गज़ल पढ़ने को मिली....

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  3. मन को द्रवित कर गयी यह रचना। बच्चों की यह कृतघ्नता अक्षम्य होती है..

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  4. वाह! जिंदगी की शाम के दर्द को
    अभिव्यक्त करती सशक्त रचना.

    आपकी कविता सरल निर्मल हृदय का उदगार हैं.
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार,निर्मला जी.

    समय मिलने पर मेरी नई पोस्ट पर आईएगा.

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  5. इस ग़ज़ल ने दिल को दर्द से भर दिया. ज़िंदगी की शाम पता नहीं कब सरक आती है और पहाड़ बन कर खड़ी हो जाती है. शायद यही समय है जब व्यक्ति स्वयं को किसी अज्ञात विधाता के सम्मुख समर्पित कर देता है.
    विषय की गंभीरता इस ग़जल की महानता है.

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  6. नादानी बच्चों की देखी
    बघारते रहते हैं शेखी
    खलल हरदम डालते हैं
    उम्मीद फिर भी पालते हैं -जिंदगी की शाम में |
    अक्ल कोई तो सिखाये -
    आइना इनको दिखाए
    मजबूरियों से भेंट होगी-जिंदगी की शाम में |

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  7. गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें

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  9. हिन्दुस्तानी मां बाप अक्सर बस बच्चों के लिए ही जीते हैं . लेकिन बच्चे कहाँ उनकी परवाह करते हैं . इसीलिए ज़रूरी है -समय रहते अपने लिए भी जीना चाहिए .
    मार्मिक प्रस्तुति .

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  10. जिदगी की हकीकत को बयां करती
    बहुत सुंदर गजल
    क्या कहने

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  11. बहुत दिनों बाद आपकी गज़ल पढने मिली बहुत अच्छा लगा. सचमुच बहुत मुश्किल होती है, यह जिन्दगी की शाम.भावपूर्ण रचना के लिए आपका आभार निर्मला जी

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  12. सुन्दर बिम्बो का अनुप्रयोग
    सादर्

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  13. दिल को छू गयी ये ग़ज़ल , जिन्दगी के हर रंग को दिखा गयी है और वाकई यही रंग जिन्दगी की शाम में शेष रह गए हें और रह जाते हें क्योंकि अब इन्द्रधनुष के रंग भी तो बदल गए हें फिर जिन्दगी पर उसकी छाया क्यों न पड़ेगी?

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  14. बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

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  15. मारक गज़ल।
    ....'ज़िंदगी की शाम में।'.. यह तो कहर ढा रही है हर शेर में। बहुत बधाई।

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  16. दोष किसका है जो बदतर जिंदगी है मौत से
    Lagta hai mano mere moohse alfaaz chhin gaye hon....

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  17. बेहतरीन प्रस्तुति बहुत ही मार्मिक गजल "भूषण अंकल"की बात से पूर्णतः सहमत हूँ।

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  18. निर्मला दी, सर्वप्रथम मेरा प्रणाम स्वीकारें।....... लम्बे अरसे बाद आपकी रचना से रू-ब-रू हो रहा हूँ। बहुत प्रसन्नता हो रही है
    किन्तु यह क्या ? ग़ज़ल में आपका दर्द झलक रहा है। हकीकत बयां कर दी आपने। गला भर आया।
    कल हमें भी इस हकीकत से दो चार होना है। क्या किया जा सकता है। इश्वर हमें इस दर्द को झेलने की क्षमता दे बस !
    शुभकामनायें !!

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  19. आदमी के पास कोई पल तो हो आराम का
    अब भी हैं चप्पू चलाते जिंदगी की शाम में

    Waah.....Behtreen Gazal

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  20. बड़े दिनों बाद वापस आयीं....सुस्वागतम
    उम्दा ग़ज़ल

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  21. बेटी घर में मौज करती, फर्ज लादे है बहु....बहुत सुन्दर

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  22. क्या नहीं करते हैं बच्चो के लिए माँ बाप , मगर जीवन की शाम ही फैसला करती है बच्चों के प्रेम का !
    अच्छी ग़ज़ल !

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  23. निर्मला जी बहुत अरसे के बाद आपकी बेहतरीन रचना पढने को मिली बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
    अब आपका स्वास्थ्य कैसा है |
    आशा

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  24. मर्मस्पर्शी रचना ...!

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  25. मेल दुअरा श्री मनोज जयसवाल जी की टिप्पणी----
    सब से अपने गम छुपाते ज़िन्दगी की शाम में चुपके से आँसू बहाते ज़िन्दगी की शाम में दोष किसका है जो बदतर जिंदगी है मौत से वक्त का मातम मनाते ज़िन्दगी की शाम में ख्वाब सारे टूट जायें, साथ छोड़े जिस्म भी आँखें अपने ही चुराते ज़िन्दगी की शाम में बेटी घर मे मौज करती फर्ज लादे है बहू आसिया माफिक घुमाते ज़िन्दगी की शाम में आदमी के पास कोई पल तो हो आराम का अब भी हैं चप्पू चलाते जिंदगी की शाम में आग उगले शह्र की आबोहवा है आजकल साँप डर के फन उठाते ज़िन्दगी की शाम में टाँग कर खूँटी पे सारे ख़्वाब सोया मीठी नींद दर्द पर दिल के जलाते ज़िन्दगी की शाम में क्या नही करते हैं बच्चों के लिये माँ बाप पर हैं अनादर वो दिखाते ज़िन्दगी की शाम में.
    बेहतरीन प्रस्‍तुति ... आभार

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  26. मर्मस्पर्शी सच्चाई!

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  27. harek ki jindgi ki shaam par ek marmik sacchayi jo shaneh shaneh sabke samaksh aani hai.

    bahut bahut prabhaavshali abhivyakti.

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  28. ज़िन्दगी की शाम क्या ऐसी ही होती है. शायद. सुन्दर रचना.

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  29. बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली।

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  30. जब जब थक कर चूर हुए थे ,
    खुद ही झाड बिछौना सोये
    सारे दिन, कट गए भागते
    तुमको गुरुकुल में पंहुचाते
    अब पैरों पर खड़े सुयोधन!सोंचों मत,ऊपर से निकलो !
    वृद्ध पिता की भी शिक्षा में, एक नया अध्याय चाहिए !


    सारा जीवन कटा भागते
    तुमको नर्म बिछौना लाते
    नींद तुम्हारी ना खुल जाए
    पंखा झलते थे , सिरहाने
    आज तुम्हारे कटु वचनों से, मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
    अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

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  31. .सच्चाई बयान करती मर्मस्पर्शी ...आभार..

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  32. आप की टिप्पड़ी से मन उत्साहित हुआ .

    'करते अनादर जिन्दगी की शाम में '

    यह कटु सत्य है काश ! ऐसा न होता ..

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  33. सुन्दर रचना, सार्थक पोस्ट, बधाई.
    कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .

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  34. यार मत बोलो ये सच ,तुम ज़िन्दगी की शाम में ....
    वक्त था ,जो कट गया सब ,क्या बचा है शाम में .

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  35. क्या गिला शिकवा किसी से ज़िन्दगी की शाम में ,

    यार मत बोलों भला सच, ज़िन्दगी की शाम में .

    क्या गिला शिकवा किसी से ज़िन्दगी की शाम में .

    क्यों रहें रुसवा किसी से ज़िन्दगी की शाम में .बढिया प्रस्तुति भाव विरेचन करती हुई .

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  36. मन को छू जाती गजल!!

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  37. नेकी कर दरिया में डाल .सभी संतानें यकसां होती हैं ,दुनिया किस्मत पे रोती है .शुक्रिया आपके ब्लॉग पे आने का ,टिपियाके हौसला बढाने का ...

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  38. वाह.....
    बहुत सुन्दर गज़ल....
    मन को छू गयी..

    सादर
    अनु

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  39. लिखा तो अच्छा है। मगर जीवन ऐसा तो नहीं है। और,अगर है तो कसूर हमारा ही होगा। हर पीढ़ी का यही रोना है,हम सीखते क्यों नहीं कुछ दूसरों के अनुभव से?

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  40. जिंदगी की शाम में हो जाता है आने वाली रात का आभास ।

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  41. Mummy,such a beautiful poem...very true,who else can describe life better than you my dearest mom...love u lots..

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  42. बहुत दिनों बाद मिली ये ग़ज़ल पढ़ाने को - जिन्दगी शाम में ही तो सारी बातें याद आती हैं क्योंकि जिन्दगी भर तो दिन के उजले में सब जी जान से जुटे रहते हैं अपने सामर्थ्य के अनुरुप अपने आशियाँ को सजाने और परिवार को बनाने में और जब शाम आती है तो थक जाते हैं और तब ऐसी हकीकत देख कर कलम चलने लगती है और जिन्दगी की शाम के इस असली रूप को समझने लगती है.
    एक यथार्थ को दिखती सुंदर सी ग़ज़ल के लिए आभार.
    .

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  43. मन को छू लेनेवाली प्रसार बेहतरीन गज़ल ! इतनी देर से पढ़ पाई इसके लिये अफ़सोस हूँ ! उम्मीद है आप माफ ज़रूर कर देंगी ! नुक्सान भी तो मेरा ही हुआ है ! है ना ?

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  44. वाह, कितनी यथार्थवादी गज़ल पेश की है ।

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  45. एक बहुत सुन्दर गजल पढी व दूसरी सुनी |दोनों ही दिल को छूने वाली |

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  46. बहुत सुन्दर गजल...

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  47. कैसी हैं आप । ब्लॉग पर आपकी कमी खलती है ।

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  48. Bahut hi shandar Ghazal kahi hai aapne. Hardik Badhayi.
    Kutty thevangu & Hoolock gibbon iucn

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।