दोहे
सूरत से सीरत भली सब से मीठा बोल
कहमे से पहले मगर शब्दों मे रस घोल
रिश्ते नातों को छोड कर चलता बना विदेश
डालर देख ललक बढी फिर भूला अपना देश
खुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
बुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार
हैं संयोग वियोग सब किस्मत के ही हाथ
जितना उसने लिख दिया उतना मिलता साथ
कोयल विरहन गा रही दर्द भरे से गीत
खुशी मनाऊँ आज क्या दूर गये मन मीत
बिन आत्म सम्मान के जीना गया फिज़ूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल
कहमे से पहले मगर शब्दों मे रस घोल
रिश्ते नातों को छोड कर चलता बना विदेश
डालर देख ललक बढी फिर भूला अपना देश
खुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
बुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार
हैं संयोग वियोग सब किस्मत के ही हाथ
जितना उसने लिख दिया उतना मिलता साथ
कोयल विरहन गा रही दर्द भरे से गीत
खुशी मनाऊँ आज क्या दूर गये मन मीत
बिन आत्म सम्मान के जीना गया फिज़ूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल
sabhi dohe ek-se badkar ek hain, sabhi kuchh n akuchh sandesh dete hain, jeevan upyogi dohe
ReplyDeletesabhi behad achchhe hain.
ReplyDeletebina aatmsamman ke jeena bhi kya jeena hai !
ReplyDeleteआनन्द आ गया...
ReplyDeleteअच्छे गूढ़ अर्थ वाले दोहों के लिए बधाई. पहले दोहे में कहने की जगह कह्मे हो गया है. सुधार लें.
ReplyDelete----देवेन्द्र गौतम
सभी दोहे बहुत बढ़िया है!
ReplyDeleteमगर आपका लिखा हुआ दूसरा दोहा
दोहे की मर्यादा पर खरा नही उतरता है!
--
देखिए-
"रिश्ते नातों को छोड़कर, चलता बना विदेश।
डालर देख ललक बढ़ी, फिर भूला अपना देश!"
--
सही तो यह होगा-
"रिश्ते नाते छोड़कर, चलता बना विदेश।
डालर की छवि देखकर, भूला अपना देश!"
--
अन्तिम दोहे में भी कुछ कमी है-
"बिन आत्म सम्मान के, जीना गया फिजूल।
उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।।
--
सही इस प्रकार होगा-
"बिना आत्म सम्मान के, जीना हुआ फिजूल।
उस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।।
--
आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगी!
...अच्छे दोहे।
ReplyDeleteयह तो बहुत अच्छा लगा..
खुशी गमी तकदीर की खुद भोगे किरदार
बुरे वक्त में हों नहीं साथी रिश्तेदार
इन दोहों में सच्चाई बयान कर दी आपने....
ReplyDelete.
ReplyDeleteआदरणीया निर्मला जी,
मयंकी संशोधित दोहे पसंद आये.
गौतम जी भी जानते दोहों के क्या बोल.
लिखने से पहले अगर 'कहमे' का दो रोल.
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बेहतरीन.... :)
ReplyDeleteसभी दोहे एक से बढ़कर एक....
कोयल बिरहन गा रही दर्द भरे से गीत.
ReplyDeleteख़ुशी मानों आज क्या दूर गए मन मीत !
सुन्दर भावों से परिपूर्ण हैं सारे दोहे !
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletekya kahne hain di........har baat me aage..:)
ReplyDeleteआनन्दवर्द्धक दोहे । हर दोहा जीवन की सच्चाईयों का ज्ञान कराता हुआ । शानदार प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब ....बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर निर्मलाजी ....... सभी दोहे अर्थपूर्ण
ReplyDeleteवाह...वाह.....निर्मला जी ..
ReplyDeleteआल राउंडर बनने की पूरी तैयारी है आपकी ...
पहले ग़ज़ल अब दोहे भी .....???
वो भी एक से बढ़ कर एक .....
और हाँ हाईकू भी तो ....
बधाइयां ......
एक से एक दोहे हैं जी,
ReplyDeleteकिस किस का जिक्र करुं,
"रिश्ते नातों को छोड़कर, चलता बना विदेश।
डालर देख ललक बढ़ी, फिर भूला अपना देश!" इस दोहे में पंजाब की त्रासदी नजर आती है।
आभार
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ReplyDeleteउस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल...
So true ! There is no point living without principles.
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सारे दोहे अच्छे है। खासकर चौथा वाला।
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी , इसमे अन्यथा लेने की कोई बात ही नही। बल्कि आपका आभार है कि आपने इसे अच्छी तरह पढा और मेरी गलती बताई। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसभी उम्दा और बढ़िया दोहे है !
ReplyDeleteगज़ब के दोहे है…………सभी शानदार्।
ReplyDeleteयूँ तो हर दोहा लाजवाब है ,
ReplyDeleteमगर
उस जीवन को क्या कहें जिसके नहीं उसूल ... सार्थक सन्देश भी दे रहा है ...
गहरे अर्थ लिए है हर दोहा .. अपने आप में मुकम्मल बात कहता हुवा ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
bahut achhe nirmala ji .
ReplyDeleteसभी दोहे एक से बढ़कर एक....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे हैं । दोहे लिखने के लिए भी बड़ी दिमागी कसरत करनी पड़ती है ।
ReplyDelete’जितना उसने लिख दिया...."
ReplyDeleteऔर अंतिम दोहा बहुत अच्छे लगे।
सभी दोहे प्रेरक हैं।
आभार स्वीकारें।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबिना आत्मसम्मान के, जीना गया फिजूल,
ReplyDeleteउस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।
प्रेरणास्पद दोहे हैं। इन दोहों को पढ़ने का अपना एक अलग ही आनंद है।
बहुत अच्छे दोहे ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteआदरणीया निर्मला जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे
दोहे गहरे भाव लिए,बहुत अच्छे लगे
ReplyDeleteआशा
सभी दोहे बहुत बढ़िया है| एक से बढ़कर एक| धन्यवाद||
ReplyDeleteमजा आगया.
ReplyDeleteरामराम
निम्मो दी!
ReplyDeleteपहले भी कहा है शायद मैंने.. आपकी सभी रच्नाओं में आपका अनुभव बोलता है.. ये दोहे भी आपके अनुभव से हमें सीख देते हैं.. चरण स्पर्श!!
बहुत सुंदर दोहे जी, धन्यवाद
ReplyDeleteबढ़िया प्रेरक दोहे|दूसरा दोहा पढकर मेरे मन में भी वही बात आयी थी जो शास्त्री जी ने लिखी।
ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDelete"है संयोग वियोग सब किस्मत के ही हाथ
जितना उसने लिख दिया उतना मिलता साथ"
बहुत बहुत सुन्दर
Prerna dayak dohe likhe haae aapne --dhayvaad--|
ReplyDeletesundar dohe
ReplyDeleteखुशी गमी तकदीर की भोगे खुद किरदार
ReplyDeleteबुरे वक्त मे हों नही साथी रिश्तेदार
कोयल विरहन गा रही दर्द भरे से गीत
खुशी मनाऊँ आज क्या दूर गये मन मीत
बिन आत्म सम्मान के जीना गया फिज़ूल
उस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल
वाह वाह , बहुत खूब.
सुंदर लगे सभी दोहे,आपको प्रस्तुति हेतु धन्यवाद.
ReplyDeleteबढ़िया दोहे.
ReplyDeleteमहिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
एक से बढ़कर एक..
ReplyDeletenirmala ji bahut achchha likha hai .aakhri me jordaar baate kah daali .mahila divas ki badhai aapko .
ReplyDeleteबहुत अच्छे दोहे लिखे हैं आपने. सभी दोहे एक से बढ़ कर हैं. इस विधा का इन दिनों में सुंदर प्रयोग आपके यहाँ देखने को मिला है. बहुत खूब.
ReplyDeleteसुन्दर और अनुकरणीय दोहे।
ReplyDeletebahut achhe dohe
ReplyDeleteसभी दोहों के भाव अच्छे हैं बस 13-11की मात्राओं का पालन कर लें।
ReplyDeleteवर्ष की श्रेष्ठ कथा लेखिका चुने जाने की बधाई.
ReplyDeleteसभी दोहे मन को भाये ...सीख देते हुए अच्छे दोहे हैं ...बाकी शास्त्री जी और अजीत जी ने बता ही दिया है ..
ReplyDeleteमैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब दोहे ! बेहतरीन प्रस्तुती!
वाह निर्मला जी, बहुत ही सुन्दर दोहे हैं ... क्या ऐसी कोई विधा है कविता का जिसमें आपको महारत हासिल न हो ?
ReplyDeleteमान गए !
"बिन आत्म सम्मान के, जीना गया फिजूल।
ReplyDeleteउस जीवन को क्या कहें, जिसमें नहीं उसूल।।
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sabhi dohe lajawab hain. aabhar.
अनुभवजन्य। अमल योग्य।
ReplyDeleteवाह वाह सारपूर्ण दोहे हैं सभी खास तोर पर चोथा और अंतिम बहुत अच्छे लगे धन्यवाद
ReplyDeleteउस जीवन को क्या कहें जिसमें नही उसूल । वाह वाह निर्मला जी एक से बढ कर एक दोहे हैं ।
ReplyDeletesare dohe bahut acchhe lage. clap clap karne ko dil kar raha hai aapki is vidha ko padh kar.
ReplyDeleteनिर्मला दी आपको बधाई भेजने के लिए आपकी ब्लॉग पर आयी लेकिन ऐसी दुख भरी कविताएं पढ़ कर मेरा मन ना जाने कैसा हो गया आंखों में आंसू आ गए . अब समझ आया मेरी सरोज बहन के जाने पर आपकी प्रतिक्रिया इतनी दिल को छू लेने वाली क्यों थीं । अब आगे कुछ नहीं लिख पा रही हूं आंसू शब्दों को समझने नहीं दे रहे हैं
ReplyDeleteबिना आत्मसम्मान के जीना गया फिजूल
ReplyDeleteउस जीवन को क्या कहें जिसमे नहीं उसूल.....
क्या क्या बात कही...
बस वाह वाह वाह.....
bin aatmsammaan ke jeena...........
ReplyDeletebahut badhiya dohe hain nirmala ji khas taur se ye wala
har vidha men parangat ho gai hain didi .
mam aap ne bahut sundar prastuti di hai.
ReplyDeletemam aap ne bahut sundar prastuti di hai.
ReplyDeleteआज आपके अभूत सरे दोहे पढ़े मन क्या आत्मा भी प्रसन्न हो जाती है आपको पढ़कर ..पहले दोहे में कहने की जगह कहमे लिख गया है ..
ReplyDeleteग़ज़ल बहुत दिलकश और पुरमानी लगी यूँ कहो की अश्कों को शब्द बना डाला है आपने