30 January, 2011

लघु कथा

 पुरुस्कार

राजा-- देखो कैसा जमाना आ गया है सिफारिश से आज कल साहित्य सम्मान मिलते हैं।
 शाम -- वो कैसे?
  हमारे पडोसी ने किसी  महिला पर कुछ कवितायें लिखी। उसे पुरुस्कार मिला।
 उसी महिला पर मैने रचनायें लिखी मुझे कोई पुरुस्कार नही मिला।
तुम्हें कैसे पता है कि जिस महिला पर रचना लिखी वो एक ही महिला है?
राजा--- क्यों कि वो हमारे घर के सामने रहता है ।लान मे बैठ जाता और मेरी पत्नि को देख देख कर कुछ लिखता रहता था। लेकिन मै उसके सामने नही लिखता मैं अन्दर जा कर लिखता था। सब से बडा दुख तो इस बात का है कि मेरी पत्नी उस मंच की अध्यक्ष थी और उसके हाथों से ही पुरुस्कार दिलवाया गया था।
शाम-- अरे यार छोड । तम्हें कैसे पुरुस्कार मिलता क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को। द्दोर के ढोल सुहावने लगते हैं।उसने जरूर भाभी जी की तारीफ की होगी और तुम ने उल्टा सुल्टा लिखा होगा।  फाड कर फेंक दे अपनी कवितायें नही तो कहीं भाभी के हाथ लग गयी तो जूतों का पुरुस्कार मिलेगा।

57 comments:

  1. गुद्गदा गयी आपकी लघुकथा .सुबह सुबह मुस्कराहटें बिखेरने का शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. वाह, दृष्टि का विभेद है।

    ReplyDelete
  3. निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.

    ReplyDelete
  4. सार्थक लघुकथा. बधाई. मेरे विचार में इसका शीर्षक कडवा सच होना चाहिए.

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर :)

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया ।
    बहुत बहुत बधाई निर्मला जी ।

    " कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ...........कविता "

    ReplyDelete
  7. बहुत बढ़िया लघु कथा लगी .. हकीकत में ऐसा ही हो रहा है ... तौल मोल होने लगा है ...

    ReplyDelete
  8. बहुत खूब ,अच्छा लगा

    ReplyDelete
  9. लघु कथा भीत अच्छी लगी |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  10. लघुकथा में हक़ीकत नज़र आ रही है।

    पढ़कर अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  11. सच्चाई को बयाँ करती अच्छी लघु कथा

    ReplyDelete
  12. हा हा हा हा

    मजेदार लघुकथा है।

    उसने चाँद पर ही सब लिखा होगा।:)

    ReplyDelete
  13. क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को..इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया..बहुत सुन्दर लघु कथा..

    ReplyDelete
  14. यथार्थ को लघु कथा -माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  15. अरे मुझे नही लगता दुनिया मे मेरे सिवा कोई भी अपनी बीबी की तारीफ़ करता होगा, बेचारा....
    सुबह सुबह आप ने तो हंसा ही दिया :)
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  16. बहुत खूब सुन्दर लघु कथा..

    ReplyDelete
  17. क्या बात है ...नजर का फर्क है ....

    ReplyDelete
  18. लघुकथा के बहाने पति पत्नी पर एक सटीक व्यंग्य. आपकी रचनात्मकता का यह "लघुकथा" रूप भी लुभा गया. ............ सुन्दर पोस्ट के लिए आभार!

    ReplyDelete
  19. hee hee hee ..kya nirmala ji aap bhi ..itna sach koi likhta hai kya? :)

    ReplyDelete
  20. वाह!
    यह लघुकथा तो बहुत रोचक रही!

    ReplyDelete
  21. हाँ नज़र और नज़रिया ही कलम को शब्द देगा ना..... बहुत सुंदर ...

    ReplyDelete
  22. हा हा हा ! हम भी अभी फाड़ कर फैंकते हैं जी ।
    हमने भी पत्नी पर बहुत कवितायेँ लिखने की भूल की है ।

    ReplyDelete
  23. रोचक ।
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (31/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

    ReplyDelete
  24. hahahaha...bahut acchi kahani hai... :) muskaan laane men saksham

    ReplyDelete
  25. इस लघुकथा में हास्य भी है, व्यंग्य भी। आज की मौज़ूदा व्यवस्था पर कटाक्ष भी।

    ReplyDelete
  26. पतियों के हित में,पत्नियों के लिए शक का कोई इलाज़ ढूंढा जाए!

    ReplyDelete
  27. .

    ---- : प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे : ----

    मुझे पता है नहीं मिलेगा
    मुझको कोई पुरस्कार.
    इसीलिए मन के दर्पण का
    करता हूँ ना तिरस्कार.

    जैसा लगता कह देता हूँ
    कटु तिक्त मीठा उदगार.
    मित्रों को भी नहीं चूकता
    तुला-तर्क वाला व्यवहार.

    मुझको बंधन वही प्रिय है
    जो भार होकर आभार.
    प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे
    मिले यदि, 'जूते' स्वीकार.


    .

    ReplyDelete
  28. बस इसी फर्क में ही तर्क है।
    इसीलिये पतियों का बेडा गर्क है।:))

    ReplyDelete
  29. बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया । धन्यवाद|

    ReplyDelete
  30. हा हा हा हा ....
    सचमुच दूर के ढोल ही सुहावने होते हैं ...

    शानदार लघु कथा ...!

    ReplyDelete
  31. khoobsurat katha...
    kalpnaaon ka vraksh benargatta...
    nirmala ji...BANGALORE mein Banerghtta road ek jagah ka naam bhi hai!

    ReplyDelete
  32. निर्मला जी,

    लघु कथा में सच्चाई ही सच्चाई है !

    आजकल पुरस्कारों का यही हाल है !

    ReplyDelete
  33. सत्‍यता के बेहद निकट यह प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  34. फर्क अपनी और पडोसी की पत्नि के प्रति नजरिये का.
    अच्छी लघुकथा है ।

    ReplyDelete
  35. बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया ।बहुत बहुत बधाई निर्मला जी ।

    ReplyDelete
  36. आजकल की सच्चाई को बयां करती हुई एक बेहतरीन लघुकथा... सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  37. बहुत बढ़िया. बहुत रोचक
    बधाई निर्मला जी

    ReplyDelete
  38. hame to padhkar khoob hansi aai aur saath hi is katha me sach ki tasvir ubhar aai .ati sundar .

    ReplyDelete
  39. दृष्टिपटल पर होता हुआ साक्षात्कार है यह लघु कथा

    ReplyDelete
  40. bilkul sach baat hai, door ke dhol suhavane hote hain aur ghar ki murgi daal barabar.

    ReplyDelete
  41. Wah Wah
    Kya bat kahi hai aapne
    bilkul manviye sonch ko pakad liya hai aapne.
    क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को..

    ReplyDelete
  42. बहुत ही सार्थक लघु कथा ! वास्तविकता के बहुत करीब ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  43. लघु कथा के बहाने आपने साधे कई निशाने।..बहुत खूब।

    ReplyDelete
  44. लघु कहाँ,यह तो गुरुतर बात कह दी आपने इस छोटी सी कथा के माध्यम से....

    ReplyDelete
  45. बहुत बढ़िया लघु कथा

    ReplyDelete
  46. पुरस्कार की इच्छा रखने से लेखनी की महिमा कम हो जाती है। कवी हो या लेखक , वो अपने संतोष के लिए और दूसरों की भलाई के लिए लिखता है। बिना किसी अपेक्षा के।

    ReplyDelete
  47. कथा में
    व्यंग्य के साथ
    एक अर्थ भी है ,,,

    ReplyDelete
  48. हा हा हा हा
    मजेदार

    ReplyDelete
  49. jamane ko chhuta ,bilkul sarthak.dhanyabad kapila ji.

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।