पुरुस्कार
शाम -- वो कैसे?
हमारे पडोसी ने किसी महिला पर कुछ कवितायें लिखी। उसे पुरुस्कार मिला।
उसी महिला पर मैने रचनायें लिखी मुझे कोई पुरुस्कार नही मिला।
तुम्हें कैसे पता है कि जिस महिला पर रचना लिखी वो एक ही महिला है?
राजा--- क्यों कि वो हमारे घर के सामने रहता है ।लान मे बैठ जाता और मेरी पत्नि को देख देख कर कुछ लिखता रहता था। लेकिन मै उसके सामने नही लिखता मैं अन्दर जा कर लिखता था। सब से बडा दुख तो इस बात का है कि मेरी पत्नी उस मंच की अध्यक्ष थी और उसके हाथों से ही पुरुस्कार दिलवाया गया था।
शाम-- अरे यार छोड । तम्हें कैसे पुरुस्कार मिलता क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को। द्दोर के ढोल सुहावने लगते हैं।उसने जरूर भाभी जी की तारीफ की होगी और तुम ने उल्टा सुल्टा लिखा होगा। फाड कर फेंक दे अपनी कवितायें नही तो कहीं भाभी के हाथ लग गयी तो जूतों का पुरुस्कार मिलेगा।
गुद्गदा गयी आपकी लघुकथा .सुबह सुबह मुस्कराहटें बिखेरने का शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत खूब, सही है :)
ReplyDeleteवाह, दृष्टि का विभेद है।
ReplyDeleteनिराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteसार्थक लघुकथा. बधाई. मेरे विचार में इसका शीर्षक कडवा सच होना चाहिए.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई निर्मला जी ।
" कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ...........कविता "
बहुत बढ़िया लघु कथा लगी .. हकीकत में ऐसा ही हो रहा है ... तौल मोल होने लगा है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ,अच्छा लगा
ReplyDelete:)
ReplyDeleteलघु कथा भीत अच्छी लगी |बधाई
ReplyDeleteआशा
लघुकथा में हक़ीकत नज़र आ रही है।
ReplyDeleteपढ़कर अच्छा लगा।
सच्चाई को बयाँ करती अच्छी लघु कथा
ReplyDeletehA hA...बढ़िया..
ReplyDeleteहा हा हा हा
ReplyDeleteमजेदार लघुकथा है।
उसने चाँद पर ही सब लिखा होगा।:)
क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को..इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया..बहुत सुन्दर लघु कथा..
ReplyDeleteयथार्थ को लघु कथा -माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteअरे मुझे नही लगता दुनिया मे मेरे सिवा कोई भी अपनी बीबी की तारीफ़ करता होगा, बेचारा....
ReplyDeleteसुबह सुबह आप ने तो हंसा ही दिया :)
धन्यवाद
बहुत खूब सुन्दर लघु कथा..
ReplyDeleteनिम्मो दी!
ReplyDeleteएक कड़वा सच!!
क्या बात है ...नजर का फर्क है ....
ReplyDeleteहा हा हा,सही है....
ReplyDeleteलघुकथा के बहाने पति पत्नी पर एक सटीक व्यंग्य. आपकी रचनात्मकता का यह "लघुकथा" रूप भी लुभा गया. ............ सुन्दर पोस्ट के लिए आभार!
ReplyDeletehee hee hee ..kya nirmala ji aap bhi ..itna sach koi likhta hai kya? :)
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteयह लघुकथा तो बहुत रोचक रही!
हाँ नज़र और नज़रिया ही कलम को शब्द देगा ना..... बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteहा हा हा ! हम भी अभी फाड़ कर फैंकते हैं जी ।
ReplyDeleteहमने भी पत्नी पर बहुत कवितायेँ लिखने की भूल की है ।
रोचक ।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
hahahaha...bahut acchi kahani hai... :) muskaan laane men saksham
ReplyDeleteइस लघुकथा में हास्य भी है, व्यंग्य भी। आज की मौज़ूदा व्यवस्था पर कटाक्ष भी।
ReplyDeleteपतियों के हित में,पत्नियों के लिए शक का कोई इलाज़ ढूंढा जाए!
ReplyDelete.
ReplyDelete---- : प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे : ----
मुझे पता है नहीं मिलेगा
मुझको कोई पुरस्कार.
इसीलिए मन के दर्पण का
करता हूँ ना तिरस्कार.
जैसा लगता कह देता हूँ
कटु तिक्त मीठा उदगार.
मित्रों को भी नहीं चूकता
तुला-तर्क वाला व्यवहार.
मुझको बंधन वही प्रिय है
जो भार होकर आभार.
प्रेम नहीं प्रतिउत्तर चाहे
मिले यदि, 'जूते' स्वीकार.
.
बस इसी फर्क में ही तर्क है।
ReplyDeleteइसीलिये पतियों का बेडा गर्क है।:))
बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया । धन्यवाद|
ReplyDeleteहा हा हा हा ....
ReplyDeleteसचमुच दूर के ढोल ही सुहावने होते हैं ...
शानदार लघु कथा ...!
khoobsurat katha...
ReplyDeletekalpnaaon ka vraksh benargatta...
nirmala ji...BANGALORE mein Banerghtta road ek jagah ka naam bhi hai!
निर्मला जी,
ReplyDeleteलघु कथा में सच्चाई ही सच्चाई है !
आजकल पुरस्कारों का यही हाल है !
सत्यता के बेहद निकट यह प्रस्तुति ।
ReplyDeleteफर्क अपनी और पडोसी की पत्नि के प्रति नजरिये का.
ReplyDeleteअच्छी लघुकथा है ।
बहुत सुन्दर है ये लघु कथा । इसे पढ़कर आनन्द आ गया ।बहुत बहुत बधाई निर्मला जी ।
ReplyDeleteआजकल की सच्चाई को बयां करती हुई एक बेहतरीन लघुकथा... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. बहुत रोचक
ReplyDeleteबधाई निर्मला जी
hame to padhkar khoob hansi aai aur saath hi is katha me sach ki tasvir ubhar aai .ati sundar .
ReplyDeleteदृष्टिपटल पर होता हुआ साक्षात्कार है यह लघु कथा
ReplyDeleteअरे वाह ! मज़ा आ गया |
ReplyDeletebilkul sach baat hai, door ke dhol suhavane hote hain aur ghar ki murgi daal barabar.
ReplyDeleteWah Wah
ReplyDeleteKya bat kahi hai aapne
bilkul manviye sonch ko pakad liya hai aapne.
क्या सच को कोई इतने सुन्दर ढंग से लिख सकता है जितना की झूठ को..
बहुत ही सार्थक लघु कथा ! वास्तविकता के बहुत करीब ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteलघु कथा के बहाने आपने साधे कई निशाने।..बहुत खूब।
ReplyDeleteलघु कहाँ,यह तो गुरुतर बात कह दी आपने इस छोटी सी कथा के माध्यम से....
ReplyDeleteबहुत खूब ........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लघु कथा
ReplyDeleteपुरस्कार की इच्छा रखने से लेखनी की महिमा कम हो जाती है। कवी हो या लेखक , वो अपने संतोष के लिए और दूसरों की भलाई के लिए लिखता है। बिना किसी अपेक्षा के।
ReplyDeleteकथा में
ReplyDeleteव्यंग्य के साथ
एक अर्थ भी है ,,,
हा हा हा हा
ReplyDeleteमजेदार
बहुत खूब.
ReplyDeletejamane ko chhuta ,bilkul sarthak.dhanyabad kapila ji.
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