सच्ची साधना {कहानी}
बस से उतर कर शिवदास को समझ नहीं आ रहा था कि उसके गांव को कौन सा रास्ता मुड़ता है । पच्चीस वर्ष बाद वह अपने गाँव आ रहा था । जीवन के इतने वर्ष उसने जीवन को जानने के लिए लगा दिए, प्रभु को पाने के लिए लगा दिए । क्या जान पाया वह ? वह सोच रहा था कि अगर कोई उससे पूछे कि इतने समय में तुमने क्या पाया तो शायद उसके पास कोई जवाब नही । यूँ तो वह संत बन गया है, लोगों में उसका मान सम्मान भी है, उसके हजारों शिष्य भी है फिर भी वह जीवन से संतुष्ट नहीं है । क्या वह भौतिक पदार्थों के मोह से ऊपर उठ चुका है ? शायद नही ...... आश्रम में उसका वातानुकूल कमरा, हर सुख सुविधा से परिपूर्ण था । क्या काम, कोध्र, लोभ, मोह व अहंकार से ऊपर उठ चुका है ? ... नहीं...नहीं...अगर ऐसा होता तो आज घर आने की लालसा क्यों होती ? आज गांव क्यों आया है ? उसे अपना आकार बौना सा प्रतीत होने लगा । पच्चीस वर्ष पहले जहां से चला गया था वहीं तो खड़ा है । अपना घर, परिवार ..... गांव.... एक नज़र देखने का मोह नही छोड़ पाया है.... आखिर चला ही आया । बच्चों की याद, पत्नि का चेहरा, माँ की सूनी आंखे, पिता की कमजोर काया ..... सब उसके मन में हलचल मचाने लगे थे । आज उसके प्रभू भी उसके मन के आवेग को रोक नही पा रहे थे ....
जहाँ बस से उतरा था वहाँ सड़क के दोनो ओर आधा किलामीटर तक बड़ी-ंउचयबड़ी दुकानें थीं । जब वो वहां से गया था तो यहाँ दो चार कच्ची पक्की दुकानें थी । अब आसपास के गांवों के लिए इस बाजार में से होकर सड़क निकलती थी । 8--10 दुकानों के बाद एक कच्ची सड़क थी ।--- पता नही कहाँ गयी---- किसी से पूछना ही ठीक रहेगा ..... सोचते हुये वो एक दुकान की तरफ बढा---
‘भईया, मेहतपुर गांव को कौन सी सड़क जाती है ? ‘शिवदास ने एक हलवाई की दुकान पर खड़े होकर पूछा । वह पहचान गया था-- कि यह उसका सहपाठी वीरू था । मगर शिवदास अपनी पहचान नही बताना चाहता था । साधु के वेष में लम्बी दाढी, जटाएं कन्धे तक -झूलती हुई , हाथ में कमण्डल .... लामबा सा साधुयों वाला चोला
‘‘वो सामने है बाबा जी ।‘‘ वीरू ने सड़क की तरफ इशारा किया । ‘‘ बाबा कुछ चाय पानी पी लीजिए ।‘‘ वीरू ने सेवा भाव से कहा ‘‘ धन्यवाद भाई, कुछ इच्छा नही ।‘‘ पहचाने जाने के डर से वह आगे बढ गया । मन फिर कसमसाने लगा .... उसे डर किस बात का है ? क्या वह कोई अपराध करके गया है ? ....... शायद चोरी से बुजदिल की तरह घर से भाग गया ...... बीबी, बच्चों का बोझ नही उठा पाया ।
सडक़ पर चलते हुए उसके पाँव भारी पड़ रहे थें । वह किसी भी जगह जीवन से संतुष्ट क्यों नही हो पाता । क्यों भटक रहा है? ... यह तो उसने सोच लिया था कि वह अपने घर नही जाएगा । पहले राम किशन के पास जाएगा, उसके बाद सोचेगा । राम किशन उसका बचपन का दोस्त था। यदि रामकिशन न मिला तो मंदिर में ठहर जाएगा ।
आज यह साँप की तरह बल खाती सड़क खत्म होने को नाम नही ले रही थी । वह अपनी सोच में चला जा रहा था । सड़क खत्म होती ही एक बड़ी सी हवेली थी । वह पहचान गया -\--- ये तो ठाकुर शमशेर सिंह की हवेली है-- .... समय के साथ हवेली भी अपनी जीवन सँध्या में पहँच चुकी थी । आगे बड़े-बड़े, ऊँचे पक्के मकान बन गए थे । गाँव का नक्शा ही बदल गया था । न तालाब .... न पेड़ों के -झुरमुट, न पीपल के आस-ऊँचे से बने चबूतरे .... । गाँव में जिन घने पेड़ों के नीचे चबूतरों पर सारा दिन यार दोस्त इकटठे होते तो कहकहों के स्वर गूँजते , राजनीति पर चर्चा होती । कही ताश के पत्तों के साथ गम बांटा जाता । ऐसा लगता सारा गांव एक ही खुशहाल परिवार है, जैसे इनकी जिन्दगी में कोई चिन्ता ही नहीं---- कि उपर भी जाना है कुछ भगवान का नाम ले लें मगर आज सब कुछ बेजान है ।
उसे रामकिशन का ध्यान आया क्या फक्कड़ आदमी था । आज़ादी के आँदोलन में ऐसा बावरा हुआ न शादी की न घर बार बसाया .... न अपना मकान बनाया बस एक टूटी सी -झोँपड़ी मे ही प्रसन्न रहता । घर रहता ही कितने दिन .... आज़ादी के आँदोलन में कभी जेल तो कभी कहीं चला रहता था । उसे आज भी उसकी दिवानगी याद है ... वह कुछ माह भगत सिंह से साथ भी जेल में रहा था । जब भगत सिंह को फाँसी हुई तों रामकिशन रिहा हो चुका था । भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फाँसी का उसने इतना दुखः मनाया कि तीन--चार दिन उसने कुछ नही खाया । इस दर्दनाक शहादत ने रामकिशन को अन्दर तक -झकझोर कर रख दिया था । वह अपनी -झोँपड़ी के बाहर चारपाई पर पड़ा, आजादी के, भगत सिंह के गीत गाता रहता । गाँव के लोगों को बच्चों को इकट्ठा कर देश भक्तों की कहानियाँ सुनाता, उनके उपर ढाए गए कहर की गाथाएं सुन के लोग अपने आँसू नही रोक पाते । समय के साथ वह फिर उठा और आंदोलन में सक्रिय हो गया । आज़ादी से संबंधित साहित्य छपवा कर लोगों में बांटता तथा आज़ादी के परवानों के साथ काम करता ।
इस सारे काम के लिए धन अपनी जेब से खर्च करता । काम धन्धा तो कुछ था नहीं, पुरखों की जमीन जो उसके हिस्से में आई थी, उसी को बेचकर रामकिषन अपना खर्च चलाता । देष आजा़द हुआ । रामकिषन की खुषी का ठिकाना नहीं था । अब वह राजनिती में भी सक्रिय हो गया था । उसने उसे भी कई बार अपने साथ जोड़ने का प्रयत्न किया मगर षिवदास का मन कुछ दिन में ही उचाट हो जाता । क्रमश:
कहानी में रोचकता बनी है ,आगे क्या हुआ.
ReplyDeleteकहानी दिलचस्प लग रही है । शाम को मज़े लेकर पढेंगे।
ReplyDeleteकहानी का आरंभ अच्छा है। कहानी के पाठ में अनेक स्थान पर श के स्थान पर ष छप रहा है। इसे दुरुस्त कर सकें तो अखरेगा नहीं।
ReplyDeleteबेहतरीन शुरुआत...जारी रहिये!
ReplyDeleteAagale ank ki pratiksha rahegi...!!
ReplyDeleteSaadar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
आदमी अगर भौतिक सुख की पूर्ति में लगा रहे तो शांति मिल ही नही सकती...बढ़िया कहानी अलगी कड़ी का इंतज़ार है माता जी.. सादर प्रणाम
ReplyDeletenice
ReplyDeleteintzar shuru ho gaya Nirmala jee..........:)
ReplyDeleteiska bhee ek alag hee aanand hai ...........
बहुत रोचक शुरुआत है कहानी की, आगे का इंतजार है.
ReplyDeleteरामराम.
क्या माँ जब उत्सुकता बढ़ती है तब आप कहती हैं कि बाकी अगले पोस्ट में ।
ReplyDeleteagli post ka besabri se intezaar hain!
ReplyDeleteसधे शब्द, रोचक भाषा, पठनीयता से भरपुर इस कहानी की अगली कड़ी का इंतज़ार।
ReplyDeleteबहुत रोचक कहानी है .जारी रहिये!
ReplyDeleteकुछ लीक से अलग हट कर कहानी लग आयी है ये आपकी .... रोचक है ....
ReplyDeleteइसके आगे हर पाठक को अगर कहानी बुनने को कहा जाये तो न जाने क्या क्या बने! :-)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
रोचक कहानी लग रही है...प्रतीक्षा है अगली कड़ी की....
ReplyDeleteकहानी का पहला ही एपीसोड यह प्रमाणित करता है कि आप कहानी-कला में सिद्धहस्त हैं!
ReplyDeleteहमेशा की तरह इस बार फिर एक उम्दा शुरूआत लिये, अगली कड़ी की प्रतीक्षा में ।
ReplyDeletekahani rochak hone ke saath sahi disha ka maargdarshan bhi kar rahi ,apni jimmedariyon se door bhagna bhi kayrata hai ,yahi apradh ka bhav jagati hai .kartavaya ke saath dhyaan uchit hai ,sachcha sant wahi hai jo jeevan -kasauti par khada utre .
ReplyDeleteRochak katha...agle bhaag ka intjaar rahega....
ReplyDeleteअगली कड़ी का इंतज़ार है .......
ReplyDeleteउत्सुकता बढ़ गयी है,आगे क्या होगा?? इंतज़ार है
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
http://vicharonkadarpan.blogspot.com/
मम्मा.... कहानी में रोचकता बनी हुई है.... बहुत अच्छी लग रही है... कहानी..... अब आगे का इंतज़ार है....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर और रोचक पोस्ट रहा! मैंने दो बार पढ़ लिया और अब अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है!
ReplyDeletepratiksha mein...
ReplyDeleteअरे यह रुक क्यो गई... इतनी अच्छी कहानी कि अचानक क्रमश!! बेनामी टिपण्णी की तरह से लगता है, बहुत सुंदर इंतजार रहेगा अगली कडी का.
ReplyDeleteधन्यवाद
आप की कहानी पढ कर ऎसा लगा कि जेसे मै ही अपने घर जा रहा हुं,
रोचक शुरुआत ...इन्तजार और सही ....!!
ReplyDeleteऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं इस कहानी को पहले से पढ़ चुका हूँ?
ReplyDeleteकहानी शुरू से ही रोचक लग रही है अगली कड़ी का इंतजार है
ReplyDeleteBahut rochak katha vishay..!
ReplyDeletebahut rochak hai kahani.........agli kadi ka intzaar hai.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी चल रही है कहानी...अगले अंक का इंतज़ार
ReplyDeletekahani mein desh ke aazaad hone se ek naya mod liya hai
ReplyDeletejigyasa bad gayi hai
aage ka inetzaar hai
अरे..यह तो किसी बेचैन आत्मा की ही कहानी लग रही है !...अत्यधिक रोचक है..देखें इसे कहाँ जा कर शांति मिलती है!..अगली कड़ी की प्रतीक्षा में..
ReplyDeleteकहानी की शुरूआत तो बहुत बढिया है...लेकिन हमें तो ये क्रमश: वाला चक्कर बहुत खराब लगता है...जब तक अगला भाग प्रकाशित होता है..तब तक पहले का पढा हुआ भूल जाते हैं :)
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