19 October, 2009

गज़ल

गज़ल से पहले एक सूचना देना चाहती हूँ

क्यों सिर्फ दौलू है, हिन्दी विज्ञान कथा लेखक?


[कल्किआन् हिंदी मे प्रकाशित ] गॉवों में एक कहावत प्रचलित है, "माया तेरे तीन नाम, दौलू, दौलत, दौलत राम", यानि कि किसी के स्टेट्स के साथ उसका नाम भी बदलता जाता है। आज हिन्दी विज्ञान कथा के लेखकों पर विचार करते समय अनायास ही ये बात मुझे याद आई। ---डा. अरविन्द दुबे {पूरा आलेख हिन्दी कल्किआन ब्लोग पर पढें}

कल हिन्दी कल्कियान ब्लोग पर ये आलेख पढ रही थी तो विग्यान कथा मे रुची जागी। यहाँ तक मुझे लगता है कि बहु गिनती के लेखक इस बारे मे अधिक सचेत नहीं हैं । न ही पत्र पत्रिकाओं मे इसके बारे मे अधिक प्रचार प्रसार होता है। अगर कोई नया लेखक लिखने की कोशिश भी करता होगा तो पत्रिकाओं मे छपना बहुत कठिन है । अगर आप लोग विग्यान मे रुची रखते हैं और विग्यान पर साहित्य सृजन करना चाहते हैं तो आप कल्कियोन ब्लोग के लिये लिखें और वहाँ आपका मार्ग दर्शन करने के लिये और विग्यान साहित्य को नयी दिशा देने के लिये एक प्रयासरत टीम है। आप नीचे दिये गये लिन्क पर देख सकते हैं। और वहाँ से पूरी जानकारी ले सकते हैं।
इस आलेख को भी इसी ब्लोग पर पढें।

http://hindi.kalkion.com/articles




गज़ल

मेहरबानी का इजहार न कर
यूँ महफिल मे तु शर्मसार न कर

दोस्त को कुछ भी कह ले मगर
दोस्ती पर भूले से वार न कर

प्यार अगर तू जाने ही नहीं क्या है
यूँ बढ चढ के तो तकरार न कर्

जो *निर्मल * वक्त पे काम न आये
ऐसे दोस्त पर एतबार न कर

जो इन्साँ को हैवान बना दे खुद मे
तू आदत वो शुमार न कर

कौन किसी का साथ निभाए सदा
जाने वाले का इन्तज़ार न कर

इन्साँ है तो इन्सानियत निभा
महरूम वफा से संसार न कर

34 comments:

  1. मेहरबानी का इजहार न कर
    यूँ महफिल मे तु शर्मसार न कर

    दोस्त को कुछ भी कह ले मगर
    दोस्ती पर भूले से वार न कर

    सुन्दर गजल !!!

    ReplyDelete
  2. जो इन्साँ को हैवान बना दे खुद मे
    तू आदत वो शुमार न कर
    बहुत खूब सुन्दर शेर

    ReplyDelete
  3. यह ग़ज़ल जिन्दगी को एक नए नज़रिए से देखने की ताक़त देती है।

    ReplyDelete
  4. दोस्त को कुछ भी कहले मगर
    दोस्ती पर भूले से वार न कर

    बहुत सुन्दर गजल !

    ReplyDelete
  5. इन्सां है तो इंसानियत निभा
    महरूम वफ़ा से संसार न कर...

    इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  6. "माया तेरे तीन नाम, दौलू, दौलत, दौलतराम"

    यही तो ध्रुव सत्य है! रुपये से नाम होता है पर नाम से रुपया नहीं कमाया जा सकता।

    गज़ल बहुत खूबसूरत है!!

    ReplyDelete
  7. प्यार अगर तू जाने ही नहीं क्या है
    यूँ बढ चढ के तो तकरार न कर्

    सुन्दर अभिव्यक्ति
    बधाई

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर ग़ज़ल है, एक एक शैर कीमती है।

    ReplyDelete
  9. अच्छी गज़ल है यह तो।
    भइया-दूज की शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  10. bahut hi sunder abhivyakti ke saath ek bahut hi sunder ghazal........



    JAI HIND

    ReplyDelete
  11. bahut sundar gazal kahi hai.

    bhaidooj ki shubhkamnayein.

    ReplyDelete
  12. जो इन्साँ को हैवान बना दे खुद मे
    तू आदत वो शुमार न कर ।।

    सुन्दर गजल!!
    कल्किआन के लिए हम भी कोई लेख भेजने की कौशिश करते हैं ।

    ReplyDelete
  13. "दोस्त को कुछ भी कह ले मगरदोस्ती पर भूले से वार न कर"

    गजल जब आम जनों की भाषा में लिखी जाती है तो कितनी अपनी सी लगती है ना...एक शब्द में..."सुन्दर"

    ReplyDelete
  14. दोस्त को कुछ भी कह ले मगर
    दोस्ती पर भूले से वार न कर

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति हर शब्‍द दिल के बेहद करीब आभार के साथ शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  15. जो इन्साँ को हैवान बना दे खुद मे
    तू आदत वो शुमार न कर ।।
    जबाब नही जी, बहुत सुंदर गजल.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  16. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है.
    हिन्दीकुंज

    ReplyDelete
  17. एक प्रभावशाली रचना......बधाई!

    ReplyDelete
  18. प्यार अगर तू जाने ही न क्या है
    यूँ बढ़ चढ़ कर तकरार न क

    कौन किसी का साथ निभाये सदा
    जाने वाले का इंतज़ार न कर

    बड़े पते की बात कह दी आपने इन पंक्तियों में...

    ReplyDelete
  19. जीवन का सत्य, छोटी छोटी बातें ..... आपने ग़ज़ल को आम इंसान से जोड़ कर लिखा है

    ReplyDelete
  20. प्यार अगर तू जाने ही नहीं क्या है
    यूँ बढ़-चढ़ के तो तकरार न कर

    बहुत खूब, सुन्दर ग़ज़ल का बढ़िया शेर.

    दीपावली और भाई-दूज पर आपको हमारी अनंत हार्दिक शुभकामनाएं

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  21. निर्मल * वक्त पे काम न आये
    ऐसे दोस्त पर एतबार न कर

    वाह, बहुत सुन्दर ग़ज़ल.

    ReplyDelete
  22. ..
    मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में ,नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा
    उतर क्यों न आयें नखत सब गगन के,नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा
    कटेगी तभी ये अंधेरी घिरी जब ,स्वयं धर मनुज दीप का रूप आये
    दीवाली मुबारक
    माफ़ कीजियेगा ,सबने तारीफ़ की है किन्तु मुझे तीसरे शेर प्यार........ में मात्राएँ ज्यादा नजर आ रही हैं , वैसे ग़ज़लें मेरा विषय नहीं है न ही मैं ज्यादा जानती हूँ मगर मेरे पति शायर हैं तो ज़रा सा ज्ञान है मुझे भी

    ReplyDelete
  23. क्यों सिर्फ दौलू है हिंदी विज्ञान कथा लेखक ....वाह बहुत खूब कहा आपने ....!!

    ग़ज़ल का भी हर शे'र लाजवाब है......

    मेहरबानी का इजहार न कर
    यूँ महफिल मे तु शर्मसार न कर

    बहुत खूब ....!!

    जो इन्साँ को हैवान बना दे खुद मे
    तू आदत वो शुमार न कर

    बहुत सुन्दर ....!!

    ReplyDelete
  24. बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  25. वक़्त पे काम ना आये ...ऐसे दोस्त पर ऐतबार ना कर ...
    इस वक़्त सच बहुत मुश्किल है किसी पर ऐतबार करना ...!!

    ReplyDelete
  26. बहुत ही सुंदर गजल, बधाई।
    ( Treasurer-S. T. )

    ReplyDelete
  27. जो *निर्मल * वक्त पे काम न आये
    ऐसे दोस्त पर एतबार न कर,

    WAH POORI RACHNA HI BEHATAREEN. BADHAI.

    ReplyDelete
  28. जिंदगी का फलसफा समझाती हुई, सरल शब्दों में गहरे अर्थ रखती हुई खूबसूरत गज़ल । भाई दूज पर यह सुंदर प्रस्तुति पढ कर बहुत आनंद मिला ।

    ReplyDelete
  29. मेहरबानी का इजहार न कर
    यूँ महफिल मे तु शर्मसार न कर


    ये शेर बहुत पसंद आया ....

    ReplyDelete
  30. भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत ही सुंदर और प्यारी ग़ज़ल है! बहुत अच्छा लगा! हमेशा की तरह एक बेहतरीन और शानदार पोस्ट!

    ReplyDelete
  31. आपकी गज़ल तो अच्छी है ही लेकिन आपकी अपील मे एक महत्वपूर्ण बात है ।

    ReplyDelete
  32. matle kaa se'r kyaa 4th sthaan par jaan boojh kar rakhaa hai ?

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।