12 October, 2009

अलविदा
आज कल देश मे खास कर ब्लाग जगत मे धर्म के नाम पर हो रहा है उस से मन दुखी है। इसका हमारे बच्चों पर क्या असर होता है क्या वो ये नहीं सोचेंगे कि धर्म हमे जोडता नहीं है बल्कि तोडता है? अगर कोई किसी के धर्म के खिलाफ बोलता है तो वो आपका कुछ नहीं बिगाड रहा बल्कि अपने धर्म की संकीर्णता और कट्टरता का प्रचार कर रहा है जब कि किसी भी धर्म मे दूसरे धर्म के खिलाफ बोलना नहीं लिखा। अगर वो अपने देश{जिस मे कि वो रह रहा है} के खिलाफ कुछ क हता है तो भी दुनिया को अपनी असलियत बता रहा है कि मै जिस थाली मे खाता हूँ उसी मे छेद भी करता हूँ और जिस डाल पर बैठता हूँ उसे ही काट भी देता हूँ।िस लिये उत्तेजित होने की बजाये आप उस ब्लोग को पढना ही छोड दें। जिस को जिस से शिकायत है वो एक दूसरे के ब्लाग पर ही न जाये। कृ्प्या सभी भाई बहनों से निवेदन है कि ब्लागजगत मे हम सब एक परिवार की तरह ही रहें । इस बात को कहने के लिये मैं आज श्री महिन्द्र नेह जी की कविता प्रस्तुत करना चाहती हूँ जो कि कल श्री दिनेश राय दिवेदी जी के ब्लाग पर छपी थी उन्हीं के साभार !


अलविदा
महेन्द्र 'नेह'

धर्म जो आतंक की बिजली गिराता हो
आदमी की लाश पर उत्सव मनाता हो
औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस वतन से अलविदा
इस आशियाँ से अलविदा


धर्म जो भ्रम की आंधी उड़ाता हो
सिर्फ अंधी आस्थाओं को जगाता हो
जो प्रगति की राह में काँटे बिछाता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस सफर से अलविदा
इस कारवाँ से अलविदा


धर्म जो राजा के दरबारों में पलता हो
धर्म जो सेठों की टकसालों में ढलता हो
धर्म जो हथियार की ताकत पे चलता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस धरा से अलविदा
इस आसमाँ से अलविदा


धर्म जो नफ़रत की दीवारें उठाता हो
आदमी से आदमी को जो लड़ाता हो
जो विषमता को सदा जायज़ बताता हो
हम सभी उस धर्म से
मिल कर कहें अब अलविदा
इस चमन से अलविदा
इस गुलसिताँ से अलविदा

45 comments:

  1. सुंदर रचना पढवाने के लिए आभार !!

    ReplyDelete
  2. धर्म जो नफ़रत की दीवारें उठाता हो
    आदमी से आदमी को जो लड़ाता हो
    जो विषमता को सदा जायज़ बताता हो

    हम सभी उस धर्म से
    मिल कर कहें अब अलविदा
    इस चमन से अलविदा
    इस गुलसिताँ से अलविदा

    बहुत ही सुन्दर रचना मानव धर्म की ओर इन्गित करती हुई। शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  3. धर्म का अर्थ होता है कि हम जिन्‍हें गुणों के रूप में मन के अन्‍दर धारण कर लें उन्‍हें धर्म कहते हैं। धर्म स्‍वभाव बदल देता है। इसलिए केवल अलविदा कहने से काम नहीं चलेगा अब तो एक क्रांति का सूत्रपात करना होगा और जीवन के यथार्थ को बताना होगा। कविता अच्‍छी है, इसे प्रस्‍तुत करने के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार

    ReplyDelete
  5. बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. निर्मला जी,

    बाकी दियां गला छड्डो, बस दिल साफ होणा चाइदा...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  8. निर्मला जी, आभार तो आप का कि आप ने इस कविता को दुबारा अपने ब्लाग पर स्थान दिया। मेरी, महेन्द्र भाई, पुरुषोत्तम 'यक़ीन', शिवराम आदि की रचनाएँ जो भी अनवरत पर हैं। समाज के लिए लिखी गई हैं। उन का सदुपयोग हो इस में किसी को कोई आपत्ति नहीं है। वे सब की संपत्ति हैं। उन पर किसी कॉपीराइट का दावा नहीं। बस इतना जरूर है कि उन का कोई व्यवसायिक उपयोग न करे और सामाजिक उपयोग की सूचना दे दे तो पता रहे हमारा कर्म कहीं समाज में काम आ रहा है।
    पुनः एक बार आभार!

    ReplyDelete
  9. आपने सही कहा...हमें ऐसी बातों की तरफ ध्यान ना दे कर अपने ही कार्य में मग्न रहना चाहिए...


    जय हिन्द

    ReplyDelete
  10. औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो धर्मhi hai

    ReplyDelete
  11. स लिये उत्तेजित होने की बजाये आप उस ब्लोग को पढना ही छोड दें।

    yahi sahi rahega....... ki us blog lo padhna hi chhod den.......

    aur kavitaayen bahut achchi lagin.......


    JAI HIND

    ReplyDelete
  12. bahut hi sahi baat sehmat,sundr rachana,insaniyat hi sabse bada dharam hai.

    ReplyDelete
  13. बहुत सामयिक पोस्ट.

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. धर्म जो नफ़रत की दीवारें उठाता हो
    आदमी से आदमी को जो लड़ाता हो

    हम सभी उस धर्म से
    मिल कर कहें अब अलविदा


    कविता के माध्यम से आपने बहुत ही सारगर्भित और सुन्दर सन्देश दिया !
    बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर !

    आपकी ढेरों शुभकामनाएं



    *********************************
    प्रत्येक बुधवार सुबह 9.00 बजे बनिए
    चैम्पियन C.M. Quiz में |
    प्रत्येक सोमवार सुबह 9.00 बजे शामिल
    होईये ठहाका एक्सप्रेस में |
    प्रत्येक शुक्रवार सुबह 9.00 बजे पढिये
    साहित्यिक उत्कृष्ट रचनाएं
    *********************************
    क्रियेटिव मंच

    ReplyDelete
  15. आपने बहुत सुन्दर कविता प्रस्तुत की है, बहुत ही सामायिक रचना है.
    हिन्दीकुंज

    ReplyDelete
  16. बहुत ही उम्दा रचना, यतार्थ को चरित्र चित्रंण करती लाजवाब रचना। बात आपकी बिल्कुल सही है ऐसे धर्म को लेकर क्या फायदा जिससे विवाद और खुन खराबे होते है। और आपने बहुत ही सही समय पर इस रचना को प्रकाशित किया है।

    ReplyDelete
  17. अगर कोई किसी के धर्म के खिलाफ बोलता है तो वो आपका कुछ नहीं बिगाड रहा बल्कि अपने धर्म की संकीर्णता और कट्टरता का प्रचार कर रहा है जब कि किसी भी धर्म मे दूसरे धर्म के खिलाफ बोलना नहीं लिखा।

    bus apni is baat ko hi meri tippani maanein...


    "अलविदाधर्म जो नफ़रत की दीवारें उठाता होआदमी से आदमी को जो लड़ाता होजो विषमता को सदा जायज़ बताता होहम सभी उस धर्म से मिल कर कहें अब अलविदा"

    meri taraf se bhi taabot main ek keel gad dena....
    Mahendra 'neh' ji ki tarah !!
    Behterin rachna share karne ke liye dhanyavaad.

    ReplyDelete
  18. बहुत सुंदर ग़ज़ल..सच में ऐसी धर्म को अलविदा कह देना चाहिए जहाँ मानव धर्म और उसके मानने वाले ना हो..कविता एक एक लाइन दिल को छू जाती है...बेहद उम्दा कविता....बधाई

    ReplyDelete
  19. bahut badhiya kavita.

    samayik prastuti.

    [Aap ki chinta sahi hai.]

    abhaar.

    ReplyDelete
  20. सुन्दर कथा, सुन्दर गीत।
    बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  21. kis pankti ki tareef karke doosri ke sath anyay kar doon samajh nahi ata.
    poori rachna hi ek aisa sandesh deti hai jo aaj nitant anukarneeya hai.
    Nirmala Ji aapne mere blog pe kuchh samay pahle aake marg darshan kiya tha uske sandarbh me kuchh baat karni thi, uske peechhe chhipe raz ko sabke samne bolna theek nahin aap mail ID de den to paramarsh lene me aur apni baat rakhne me asani hogi.
    aapka putravat-
    Dipak 'Mashal'
    swarnimpal.blogspot.com

    ReplyDelete
  22. aur haan man ji aap apni pichli poem main bhi comment padh lijiyega...

    ReplyDelete
  23. धर्म जो आतंक की बिजली गिराता हो
    आदमी की लाश पर उत्सव मनाता हो
    औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो
    हम सभी उस धर्म से
    मिल कर कहें अब अलविदा
    इस वतन से अलविदा
    इस आशियाँ से अलविदा
    बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना . आभार

    ReplyDelete
  24. bahut hee achhi kavita,rochak, saarthak our kya kahen....हम सभी उस धर्म से
    मिल कर कहें अब अलविदा.


    krantidut.blogspot.com

    ReplyDelete
  25. हम सभी उस धर्म से मिल कर कहें अब अलविदा
    इस चमन से अलविदाइस गुलसिताँ से अलविदा
    मानव को मानव रहने दो

    ReplyDelete
  26. bahut sahi aur samyik baat kahi hai.......iska anumodan to har wo insaan karega jo vastav mein dharm se pahle insaniyat ka jazba rakhta hoga.........badhayi.

    ReplyDelete
  27. आपने बहुत ही मर्मस्पर्शी अपील की है और सारे ब्लॉगर्स को आपकी बात ध्यान से सुननी चाहिए. आरोप प्रत्यारोप से आपसी वैमनस्य और कटुता ही बढती है कुछ और नहीं...यह कविता कितने आहत कवि मन ने लिखा होगा....

    ReplyDelete
  28. मेने तो कब का जान छोड दिया,धर्म उसी का पक्का है जो इंसान है,हेवान का कोई धर्म नही होता, वो तो उकसाता है, ओर हमे पहले इंसान बनाना है, ओर एक इंसान को इन बेवकुफ़ी भरी बातो से कोई मतलब नही, एक इंसान तो दुसरे से प्यार करता है, दुसरे के दुख को अपना दुख समझता है,अब हमे खुद सोचना है कि हम हेवान बनाना चाहते है या इंसान

    ReplyDelete
  29. वाह वाह क्या बात है! बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! तारीफ़ के लिए शब्द कम पर गए!

    ReplyDelete
  30. रचना की हर पंक्ति और शब्द सच्चाई से परिपूर्ण है...बहुत बहुत बधाई...आपको इस अद्भुत रचना के लिए...काश हम ऐसा कर पायें...
    नीरज

    ReplyDelete
  31. ऐसे धर्म से अलविदा कहना ही सही है । आपसे और महेंन्द्र नेह जी से एकदम सहमत आज के समय के अनुकूल सशक्त रचना ।

    ReplyDelete
  32. धर्म जो आतंक की बिजली गिराता हो
    आदमी की लाश पर उत्सव मनाता हो
    औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो
    हम सभी उस धर्म से
    मिल कर कहें अब अलविदा
    इस वतन से अलविदा
    इस आशियाँ से अलविदा
    ham kah to rahe lekin doosre maane tab na ..
    bahut hi samsaamyik prastuti..Nirmala ji..
    dhanyawaad..

    ReplyDelete
  33. दादा महेन्द्र नेह जी का पूरा जीवन इसी विचार की स्थापना में बीता है. अद्भुत गीत है. आपका आभार इस गीत को अपने ब्लाग पर स्थान देने के लिये.

    ReplyDelete
  34. बहुत सही कहा है.

    ReplyDelete
  35. सही लिखा गया है
    आपके द्वारा इस रचना को पढ़वाने के लिए शुक्रिया

    ReplyDelete
  36. यह रचना मानव मूल्यों के संधर्ष को एक नई आवाज तथा पहचान देती है। आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

    ReplyDelete
  37. बहुत आभार महेन्द्र नेह जी समयानुकुल रचना लाने का.

    ReplyDelete
  38. धर्म जो आतंक की बिजली गिराता हो
    आदमी की लाश पर उत्सव मनाता हो
    औरतों-बच्चों को जो जिन्दा जलाता हो
    हम सभी उस धर्म से
    मिल कर कहें अब अलविदा
    इस वतन से अलविदा
    इस आशियाँ से अलविदा


    आभार इस सामयिक रचना के लिए.

    ReplyDelete
  39. "ब्लाग परिवार में सर्वप्रियता, एकता निरंतर बनी रहे', इस आन्दोलन में, प्रयास में सदैव आपके साथ हूँ.
    आपकी सराहनीय पहल का हार्दिक स्वागत है.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  40. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, आभार

    ReplyDelete
  41. यथार्थ रचना .......... सच लिखा है .......आपका दर्द कविता में नज़र आता है ...........

    ReplyDelete
  42. बहुत ही सुन्दर एवं समयानुकूल रचना......महेन्द्र नेह जी सहित आपको भी धन्यवाद इस सन्देशपरक कविता को प्रस्तुत करने के लिए......

    ReplyDelete
  43. धर्म का इस तरह शव परीक्षण करने के लिये महेन्द्र नेह जी को और प्रस्तुति के लिये आपको बधाई ।

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।