09 September, 2009

सुनो मेरी वेदना

सूरजमुखी सी
समर्पित्
दिन भर ताकती हूँ
करती हूँ
तेरी किरणो से
अठखेलियाँ
पलकों मे सजा कर
कुछ सपने
तेरे मिलन के
तुझ मे
आत्मसात हो जाने के
मगर तुम निष्ठुर
चले जाते हो फिर भी
नहीं जान पाते
मेरा अनुराग
नहीं देख पाते मेरी वेदना
चाँद भी पिघल जाता है
देखकर मेरा
कुम्हलाया चेहरा
और टपका देता है
कुछ बूँदें मेरी पलकों पर
हे प्राणाधार
सारी रात तेरे इन्तज़ार मे
मेरे आँसूओं से
सुबह तक भीग जाती है
सारी धरती
तुम सुबह आते हो
और हंस देते हो
समझ कर इसे ओ
क्या तुम् 
नहीं जान पाते ?
ये ओस नहीं मेरे आँसू हैं
तुझ से मिलन की
चाह लिये बहाये हैं रात भर्
हे प्राणेश्वर आओ
स्वीकार करो
मेरा समर्पण
और ले जाओ
अपनी दिव्य किरणो मे
आत्मसात कर
दूर अपनी दुनिया मे

30 comments:

  1. बधाई शब्द बहुत छोटा पड़ रहा है.............
    नमन ठीक रहेगा...
    ____________नमन आपको !
    बहुत ख़ूब !

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  2. एक बेहतरीन रचना....बहुत अच्छी लगी

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  3. बहुत खुब माँ एक और बेहतरिन रचना। बहुत-बहुत बधाई.....

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  4. नतमस्तक हूँ..........

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  5. सूरजमुखी सी
    समर्पित्
    दिन भर ताकती हूँ
    करती हूँ
    तेरी किरणो से
    अठखेलियाँ
    पलकों मे सजा कर
    कुछ सपने
    तेरे मिलन के

    बेहतरीन रचना....
    बहुत-बहुत बधाई!!!

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  6. बहुत सुंदर रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. क्या कहूं,शब्द ही नही मिल रहे है तारीफ़ के लिये।

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  8. सूरजमुखी सी
    समर्पित्
    दिन भर ताकती हूँ
    करती हूँ
    तेरी किरणो से
    अठखेलियाँ
    पलकों मे सजा कर
    कुछ सपने

    खूबसूरत अभिव्यक्ति !!
    समर्पण का भाव वो भी इस हद तक...निर्मला जी आप ही व्यक्त कर सकतीं हैं
    नमन स्वीकारें !!

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  9. तेरी किरणो से
    अठखेलियाँ
    पलकों मे सजा कर
    कुछ सपने

    बहुत ही सुन्‍दर रचना, आभार

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  10. NAMAN HAI IN SUNDAR, MAN BHAAVAN, BEHATREEN, AASHAVAADI RACHNA PAR ...... SHASHAKT ABHIVYAKTI .......

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  11. "हे प्राणेश्वर आओ
    स्वीकार करो
    मेरा समर्पण
    और ले जाओ
    अपनी दिव्य किरणो मे
    आत्मसात कर
    दूर अपनी दुनिया मे"

    आपने अपनी कविता के माध्यम से समर्पण का
    अभिनव सन्देश दिया है।
    बधाई!

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  12. अद्भुत्………………………समर्पण को दर्शाती ……………………गहरे भावो से परीपूर्ण रचना………………………वेदना की टीस बहुत गहन है।

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  13. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  14. मनोभावनाओं का सुन्दर काव्य

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  15. वाह ! वाह ! वाह ! अतिसुन्दर अभिव्यक्ति....भावविभोर कर दिया आपने...

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  16. "हे प्राणेश्वर आओ
    स्वीकार करो
    मेरा समर्पण
    और ले जाओ
    अपनी दिव्य किरणो मे
    आत्मसात कर
    दूर अपनी दुनिया मे"
    वाकई आप की लेखन-शैली कमाल की है......

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  17. वाकई इस रचना के लिए बधाई और आभार जैसे शब्द छोटे दीखते है ... भावः और शब्दों का ऐसा संयोजन मुश्किल से ही पढने को मिलता है और आप इसमें माहिर है पूरी तरह से ... शब्द जैसे आपको सलाम करते है और खुद को गर्व महसूस करते है जब आप उनका इस्तेमाल अपनी रचनावों में करती हैं... बस सादर चरणस्पर्श...


    अर्श

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  18. अति सुंदर रचना, बहुत अच्छी लगी.
    धन्यवाद

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  19. Bahut hee sunder prem aur wirah ka adbhut mishran.

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  20. wah poem....

    ...ghazal, kahani, nazm, poem...

    ab kaunsa padav.
    waisi aapki wo 'sehar ki naari' ke uppar likhi post bhi dil ko bahut bhaii...

    2-3 din ke avkaash hetu kshmaprarthi hoon...

    nimn lines vishesh taur par prabhavit karti hai:
    "देखकर मेरा
    कुम्हलाया चेहरा
    और टपका देता है
    कुछ बूँदें मेरी पलकों पर
    हे प्राणाधार
    सारी रात तेरे इन्तज़ार मे
    मेरे आँसूओं से
    सुबह तक भीग जाती है
    सारी धरती
    तुम सुबह आते हो
    और हंस देते हो
    समझ कर इसे ओ
    क्या तुम्
    नहीं जान पाते ?
    ये ओस नहीं मेरे आँसू हैं"

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  21. BHAVABHIVYAKTI ATI SUNDAR AUR SARAS
    HAI.GEET KAA SAA AANAND HAI.BADHAEE
    AUR SHUBH KAMNA.

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  22. shaskt bhaavabhivyakti.
    virah vednaa liye achchhee kavita.

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  23. ओस से आंसुओं का मिलान कर दिव्य समर्पण
    मन भी कुछ कुछ ऐसा ही गीला हो गया है
    अद्भुत भावाभिव्यक्ति ..!!

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  24. गुरूदेव का आशीर्वाद पा कर धन्य हूँ। आपके यही शब्द मेरे लिये प्रेरणा स्त्रोत हैं। बाके सब पाठकों की भी आभारी हूँ उन्हों ने मेरी हर रचना पर मुझे उत्साहित किया है। गुरूदेव जी के आने से मेरे ब्लागको चार छाँद लग गये हैं आपके चरनो मे सादर नमन

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  25. बहुत गहरी वेदना है।

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  26. बहुत गहरी वेदना है।

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।