28 July, 2009

माँ की पहचान ---- गताँक से आगे ---कहानी

``माँ मै जिले भर मे फर्स्ट आया हूँ।``कहते हुये मेरे गले लग गया था।खुशी के मारे आँखें छलछला आईं थी।
``ये क्या माँ! खुशी मे भी रो रही हो? मुझे मालूम है तुम्हें अब ये दुख है कि मैं तुम से दूर चला जाऊँग। तो ठीक है मै पढने ही नहीं जाऊँगा। मेरी माँ की आँखों मे आँसू आयें मै ऐसा कोई काम नहीं करूँगा।``
```न--न-- बेटा ऐसा मत बोल । तुम्हारा जीवन संवारने के लिये मैं कुछ भी करूँगी।``
और वही बेटा आज मुझे छोड कर कैसे जा सकता है। जरूर उसके साथ कोई अनहोनी हो गयी होगी।
उसे एम -ब- बी- एस् मे दाखिला मिला तो मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा था।मै ही नहीं सारा मोहल्ला खुश था।इस गरीब आबादी मे कोई डाक्टर तो क्या दसवीं बाहरवीँ से आगे कोई पढ ही नही पाया था।मोहल्ले मे जो मुझे मेरे नाम से जानते थे वो मुझे अब नीरज की माँ से जानने लग गये थे।
मेरा बेटा मेरी पहचान बन गया था।
जब से वो लापता हुया है मोहल्ले मे सन्नाटा सा पसरा रहता है। हर कोई खौफ ज़दा है कि कहीं कोई हादसा ना हो गया हो उसके साथ। उसके ख्यालों मे गुम पता नहीं कब नीद आ गयी। रोज़ का यही तो नियम था चारपाई पर पडे रहना और उसे याद करना।
हफ्ता हो गया था एस पी से मिले। आज सोच ही रही थी कि एक बार फिर मिल आऊँ , बेटे के लिये तडप अब सहन नहीं होती थी।। तभी बाहर घन्टी की आवाज़ सुन कर उठी ,दरवाज़ा खोला ----
``नमस्ते बहिन जी! मैं पोलिस स्टेशन से आया हूँ एस -पी साहिब ने आपको बुलाया है। आपके गुमशुदा बेटे की शिनाख्त करने के लिये।``
``क्या हुया उसे?`` मेरे तो जैसे प्राण ही निकल गये थे।
``घबराईये नहीं कुछ चोटें आयी हैं ,अप सरकारी अस्पताल पहुँच जाईये।`` कह कर वो चला गया।
मैं मा को घर मे ही ठहरने को कह कर अस्पताल के लिये चल पडी।ास्पताल ढेड दो कि मी था।अटो से निकल कर गेट के अँदर पहुँची तो सामने एस पी साहिब ,जाँच अधिकारी और कुछ सिपाही खडे देख मैं उनकी तरफ बढ गयी--
``कहाँ है मेरा बेटा ?क्या हुया है उसे?`` मै बेटे को देखने के लिये बैचैन थी।
``बहिन जी धीरज रखिये। अभी अपको कुछ देर इन्तज़ार करना पडेगा। डाक्टर उसे चैक कर रहे हैं।`` कहते हुये उन्हों ने अस्पताल के ग्राऊँड की ओरिशारा करते हुये मुझे वहां आने को कहा। मन अग्यात भय से काँप उठा मगर उनके पीछे पीछे चल पडी।
``सर मुझे ये बताईये कि कहाँ से मिला मेरा बेटा ? आखिर बात क्या है? मेरी बेचैनी बढ रही थी मैने बेसब्री से पूछा।
``घबराईये नही मुझे मुझे कुछ बातों का जवाब दीजिये । क्या आपका बेटा कोई नशा भी करता था?इससे पहले भी वो घर से गायब हो जाता थ?`` एस पी ने बडी गौर से मेरी तरफ देखते हुये पूछा।
``नहीं मैने उसे कभी नशे मे नहीं देखावो हास्टल मे रहता था।वहाँ से कहीं आता जाता हो ये मुझे पता नहीं मगर उसकी ऐसी शिकायत कभी नहीं मिली।``
``क्या हास्टल जाने के बाद आपने उसमे कोई बदलाव देखा?``
मैं सोच मे पड गयी। ओह मै इतनी ना समझ कैसे हो गयी? मैने इस बात को क्यों गम्भीरता से नहीं लिया कि एक ढेड वर्श से उसमे काफी बदलाव आने लगा था। मै इसे उम्र के साथ और पढाई के बोझ के कारण स्वाभाविक समझने लगी थी।
``साहिब नीरज बचपन भावुक शरारती लडका था मगर बहुत भोला भी था।कालेज जाने के बाद लगभग वो एक साल ऐसा ही रहा। हर हफ्ते घर आता। सब से मिलता जुलता। उसे खाने का बहुत शौक था।छुट्टियों मेउसकी खाने की फरमाईश पूरी करते करते मैं थक जाया करती थी। धीरे धीरे उसका घर आना कम होता गया। आता भी तो कमरे मे घुसा रहता था। अब कोई शरारत भी नहीं करता था। या तो सोता रहता या फिर किताब ले कर बैठ जाता था। खामोश सा रहता मैं पूछती तो झुँझला ऊठता---- एक दिन मैने फिर बडे प्यार से पूछा तो उसने बताया----
``माँ, तुम्हें पता नहीं कि पढाई कितनी मुश्किल है!पैसों की तंगी के चलते मै पूरी किताबें भी नहीं खरीद सकता अच्छा खा पहन नहीं सकता,यहाँ तक कि कालेज और अस्पताल भी पैदल ही जाना पडता है। कह कर वो उठा और दराज से कोई दवा निकाल कर खाई मैने पूछा तो बोला कि पेट दर्द है डाक्टर से ले कर आया था।
मैं उसकी बातें सुन कर चिन्तित हो गयी थी। मैने उस से कहा कि मै बैंक से कर्जा ले लूँगी तुम्हें बाईक भी ले दूँगी और बाकी खर्च के लिये भी दूँगी। मगर उस ने मना कर दिया था।उसने कहा कि मै खुद ही इन्तजाम कर लूँगा।यह छ: महीने पहले की बात है। तब से वो घर नहीं आया। जितने पैसे मै भेजती थी भेजती रही उसने बताया था कि एक दोस्त ने उसकी मदद की है। हाँ उसका कभी कभी टेलिफोन पडोसियों के घर आ जाता तब उस से बात हो जाती थी।
``देखिये जिस लडके की शिनाख्त के लिये आपको बुलाया गया है पता नहीं वो आपका बेटा है भी या नहीं।``
क्रमश:

21 comments:

  1. पूरी कहानी जल्द से ज्ल्द कब पढने को मिलेगी?

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  2. बहुत उम्दा रचा जा रहा है, पढ़ते ही अगले अंक का इन्तजार लग जाता है.

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  3. कहानी के अंत के प्रति जिज्ञासा बढ़ती जा रही है।सुन्दर।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. बहुत खुब, आगे के अंक का इन्तजार रहेगा।।

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  5. आज तो आप ने बहुत खतरनाक मोड़ पर सस्पेंस के बीच छोड़ दिया।

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  6. ``देखिये जिस लडके की शिनाख्त के लिये आपको बुलाया गया है पता नहीं वो आपका बेटा है भी या नहीं।``

    इसके आगे जानने की इच्छा बलवती हो गई है।

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  7. बहुत सुन्दर रचना ,अगले अंक का इन्तजार रहेगा।
    हिन्दीकुंज

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  8. बहुत ही अच्‍छी लग रही है कहानी, अगले भाग की प्रतीक्षा आतुरता से हो रही है, आभार्

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  9. maan ki mamata aur pyar ka sundar varnana karati kahani..
    sab ki besbri yahi hai kab pura padh dale..bahut badhiya kahani..
    ab to sahi me jaisa sabhi ko hai mujhe bhi bechaini hai pura padhane ki..

    badhayi..

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  10. अगली कडी का भी इंतेजार है

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  11. बहुत दिलचस्प हो गयी है कहानी आगे का बेसब्री से इंतजार

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  12. बहुत ही दिलचस्प और वास्तविकता के नजदीक है कहानी । आगे क्या............।

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  13. मार्मिक कहानी है...आगे क्या हुआ?
    नीरज

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  14. aage kya hoga?...........ab to bas yahi prashna kaundh raha hai.

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  15. jaldi keejiye............. अब pori kahaani padhne को मन कर रहा है .......

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  16. Uf...! ab pooree kahanee padhke kuchh likhtee hun..!

    Nirmalaji..padhen:

    http://lalitlekh.blogspot.com

    "gazab qaanoon" aur "Dr Dharamveer National Police Commission ke dwara diye gaye police reforms ke sujhaw..unkee 1981 se hotee aa rahee avmaannaa...s turant laagoo hone chahiyen,is ucchh tam nyayalay ke order ke baawjood..!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

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  17. mujhe bhi kahani ke agale ank ka intajaar rahega ....bahut hi sundar

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  18. "maa ki pehchaan"....

    ..wo to pehle hi ho chuki hai....
    ...aur tab se ab tak kai baar ho rahi hai...

    ....aapse itni acchi baat ho rahi thi ki net chala gaya....

    ....aapki kahani bahut acchi hai hamesha ki tarah, aur baht marmik
    agli kadi ka besebari se intzaar rahega...

    ....
    Pranam.

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  19. अगली कड़ी पेश की जाय !

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।