27 July, 2009

माँ की पहचान
(कहानी )
चपरासी ने अंदर जाने की अनुमति दी।मन मे एक आशा लिये मै एस-पी साहिब के सामने जा खडी हुई।
```बैठिये।``एस पी साहिब की शाँत आवाज़ सुन कर उनके सामने पडी कुर्सी पर बैठ गयी और अपना परिचय दिया।
``सर् मैं आपके पास बडी उमीद ले कर आयी हूँ। तीन महीने हो गये हैं मेरे बेटे का कोई सुराग नहीं मिला। हर तरफ से निराश हो चुकी हूँ। अब आप पर ही आखिरी उमीद टिकी है।`` आँसू बरबस बहने लगे।
``रोईये मत मैने आपका केस अपने सब् से काबिल अफसर को सौँप दिया है। हम बहुत जलदी आपके बेटे का पता लगा लेंगे।``
सुना था कि एस पी साहिब बहुत अच्छे इन्सान हैं।अज बडी कोशिश से उन्हें मिल पाई थी। उनके आश्वासन से टाँगों को खडे होने की ताकत मिल गयी थी। आशा की एक किरण लिये घर तक पहुँची। आते ही औँधे मुँह चारपाई पर गिर गयी। माँ पानी का गिलास ले कर आयी।
``बेटी सुबह से मारी मारी फिर रही हो एसे कब तक भटकती रहोगी? अपनी सेहत का भी थोडा ध्यान रखो। कुछ खा पी लो। भगवान के घर देर है अँधेर नहीं है- हमारा नीरज जरूर लौटेगा। माँ पास बैठ कर मेरा माथा सहलाने लगी।
``माँ।`` मैं माँ से लिपट कर रो पडी। एक माँ का आँचल ही तो है जो दुनिया भर के गम समेटने की सामर्थय रखता है।
``मैं थोडा आराम करना चाहती हूँ। ठहर कर खाती हूँ । आप खा लो।`` मैं लेट गयी और माँ खाली गिलास ले कर चली गयी।
मेरी कितनी चिन्ता करता था नीरज्!उस दिन मैं सिले हुये कपडे धूप मे ग्राहक के घर देने गयी थी ---घर आ कर चार्पाई पर लेटी ही थी कि नीरज आ गया था। आते ही मेरे माथे पर हाथ रखा-
``माँ अपको तो बुखार है?``और भाग कर दवा ले आया। मेरे माथे पर ठँडी पट्टी करता रहा।
``माँ मैं अपनी पढाई छोड दूँ? मेरे कारण आपको इतना काम करना पडता है,लोगों की बातें सुननी पडती हैं। जरा सा काम खराब हो जाये तो ये पैसे वाले लोग कैसे आपकी बेईज़ती करते हैं। मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता।``
``ना बेटा ना ऐसी बात भूल कर भी नहीं करना।ामीर के नखरे सहना गरीब की नियति है।तभी तो मैं चाहती हूँ कि तू खूब पढे-- अच्छा डाक्टर बने तो ये सब कष्ट कट जायेंगे।``
``डाक्टर बन कर भी आज नौकरी कहाँ मिलती है। स्पैशलाईजेशन करनी पडती है। पढाई का खर्च भी इतना बढ गया है तुम कैसे चला पाओगी।``उसके मन मे निराशा से थी।
``मैं सब कर लूँगी तू चिन्ता मत कर ।ाइसी निराशा भरी बातें मत किया कर।चल जा कर पढ।`` मैने उसके सि्र पर हाथा फेरते हुये कहा।
नीरज एक बरस का ही था कि सडक हादसे मे उसके पिता की मौत हो गयी थी। बेटे के सिर से बाप का साया उठ गया । ससुराल वालों के लिये अब मैं मनहूस हो गयी थी।पति प्राईवेट फैक्टरी मे मकैनिक थे। कोई पैसा धेला भी नहीं मिला था। ससुराल वलों के ताने सुनने की ताकत ना रही तो मायके आ गयी। घर मे एक माँ और पोलियो ग्रस्त भाई था। जो चल फिर नहीं सकता था। माँ एक स्कूल मे आया थी उपर से मेरा बोझ पड गया । रिश्तेदारों ने सलाह दी कि मेरी दूसरी शादी कर दी जाये। मगर मै जानती थी कि एक विधवा को कैसा पति मिल सकता है । मै अपने बेटे की ज़िन्दगी बरबाद नहीं करना चाहती थी। इस लिये शादी के लिये मना कर दिया। उसके भविश्य को ध्यान मे रखते हुये मैने किसी की नहीं सुनी। मैं सिर्फ दसवीं पास थी ऐसे मे नौकरी कहाँ मिलती? मैने सिलाई कढाई सीख ली और लोगों के कपडे सीने लगी। काम ठीक चल पडा था।
बेटा स्कूल जाने लायक हुया तो उसे एक प्राईवेट स्कूल मे दाखिल करवा दिया। बेटा मेधावी था ज़िन्दगी ढर्रे पर चलने लगी थी। वो हर जमात मे प्रथम ही आता था।इस लिये मैं भी उसके जीवन के लिये बडे बडे सपने देखने लगी थी।कैसे भी हो उसे डाक्टर बनाऊँगी। मैं उसे घर से बाहर अकेले नहीं जाने देती ताकि वो कोई बुरी आदत ना सीख ले। इस लिये वो बहुत भोला भाला था। दुनियादारी से कोसों दूर । मैने कभी सोचा ही नहीं कि कल जब वो बाहर पढने जायेगा तो अच्छे बुरे की पहचान कैसे करेगा ! उसके भोले पन के कारण उसे कोई फुसला सकता था।माँ की आवाज़ सुन कर ख्यालों से निकली।
``बेटी ! एस -पी साहिब ने क्या कहा?`` माँ काम निपटा कर मेरे पास आ कर बैठ गयी थी
कहते तो हैं कि सब से काबिल अफ्सर को नीरज का केस सौंपा है। आगे भगवान जाने ! मेरा बात करने का मन ना देख कर माँ चुप कर गयी और फिर खाना ले कर आ गयी ।
मैने खाना खाया और् फिर लेट गयी। जीवन थम सा गया था। जब से नीरज गया था मैने कपडे सिलने बन्द कर दिये थे। हिम्मत ही नहीं थी। बस उसकी यादों मे खोई रहती। पता नहीं मेरे बेटे के साथ कैसा हादसा हुया था ।वो ऐसे मुझे छोड कर जा ही नहीं सकता था। मुझे याद है जिस दिन उसका बाहरवीं का नतीजा निकला था वो सुबह सात बजे गज़ट देखने गया था और बारह बजे घर आया था।मेरे तो प्राण सूखे जा रहे थे। इतनी देर भी बेटे को आँखों से दूर देखना भारी पड रहा था --लेकिन जब वो शहर पढने जायेगा तो कैसे रह पाऊँगी? पर अब तो दिल पर पत्थर रखना ही पडेगा।
क्रमश:

14 comments:

  1. भावुक कहानी की शुरूआत - अगली कड़ी का इन्तजार है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. कहानी की सिर्फ भूमिका हुई है।

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  3. शुरूआत तो रोचक हुई है...

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  4. बहुत ही अच्‍छी शुरूआत ...

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  5. अगली किश्त के इंतजार में ...

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  6. भावनाओं का सैलाब उमड़ रहा है इस रचना में............ प्रतीक्षा है आगे ..........

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  7. बहुत ही सुन्दरता से कहानी की शुरुआत है बहुत ही सुन्दर और रोचक कहानी

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  8. भावना पुर्ण कहानी की रोचक शुरुआत है. आगे का ईंतजार है.

    रामराम.

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  9. माँ तो माँ है. हम भावुक हो उठते हैं. अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.

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  10. आपका रचनाओं में एक बहुत बेहरतीन रचना!
    ---
    शैवाल (Algae): भविष्य का जैव-ईंधन

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  11. aap dhnya hain nirmalaaji.............
    aapki soch
    aapke vishya
    aapka shabd saamarthya
    aur aapki shaili
    DHNYA HAIN
    badhaai dil se dil.......... ki gaharaai se

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  12. prnaam maa yek maa ki antrvedna ko apne putr ke prti uske sneh ko parakastha tak le jaati is kahani se mai abhi bhut hun maa to maa hai aap ne apni is kahani me yek nischal maa ki chhabi dikai hai jiska jivan keval putr tak hi simit hai yaisa lagta hai jaise uska sara kary keval putr ke nimmit maatr hi hai
    जब से नीरज गया था मैने कपडे सिलने बन्द कर दिये थे। हिम्मत ही नहीं थी।
    ye layne to yahi darsaati hai
    mai nat mastak hun apni yaisi maa ke prti mera prnaam swikaar kare
    saadar
    praveen pathik
    9971969084

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।