14 February, 2011

लघु कथा

 दोहरे मापदंड

शुची बहुत दिनो बाद आयी थी। कितने दिन से मन था उसके पास बैठूँगी अपने दिल की बात करूँगी\ मगर आजकल वो बहुत परेशान है, अपनी मकान  मालकिन से। शहरों मे पानी की कितनी किल्लत रहती है। इसके चलते रोज़ उसका मकान मालकिन से झगडा हो जाता है। अब और कहीं अच्छा घर मिल नही रहा। वैसे भी रिओज़ रोज़ घर बदलना कौन सा आसान है। एक बार मैने कहा भी था कि थोडा खुद को उसकी जगह रख कर देखो, शायद वो भी सही हो! उसने बताया कि मकानमाल्किन का हुक्म है कि सुबह जब पानी आता है तभी उठ कर अपना काम निपटा लिया करे। बस एक घन्ट ही वो ऊपर पानी देंगे बाद मे टंकी भरने के लिये ही रखेंगे। टंकी के पानी से काम करना उन्हें बिलकुल अच्छा नही लगता कई बार टंकी भरी न हो तो पानी खत्म हो जाता है फिर दिक्कत होती है। आजकल बच्चों को जल्दी उठने की भी आदत नही रही। कई बार एक घन्टे मे काम खत्म नही होता तो मुश्किल। सुबह वो मुझे यही बात बता रही थी और नहाने के लिये बाल्टी भरने को लगा दी। तभी पानी खत्म हो गया।
:माँ पानी नही आ रहा।'
" चला गया?अब 12 बजे आयेगा।"
" तो क्या टंकी भी खाली है?"
हो गयी होगी। हमारी ऊपरवाली किरायेदार देर से उठती है तो सारा काम टंकी से ही चलता है इस लिये खत्म हो गया होगा।"
" तो आप उनसे कहती क्यों नही?"
" कई बार कहा है।"
 " आप नीचे से उनका पानी बन्द कर दिया करो?"
" कैसे करूँ तुम्हारी बातें सुन कर सोचती हूँ वो भी मुझे उसी तरह कोसेगी जैसे तुम अपनी मकानमालकिन को कोसती हो।"
 अब शुची मेरी तरफ देख कर कुछ सोचने लगी थी। यही बात तो मै उसे समझाना चाहती थी थोडा खुद को बदले। बार बार कहाँ घर बदलती रहेगी और ऐसे ही परेशान रहेगी। हो सकता है मकानमालकिन अपनी जगह सही हो।

59 comments:

  1. सही बात है। हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

    ReplyDelete
  2. ठीक बात.. नजरिया ही कई चीजों को बदल देता है.

    ReplyDelete
  3. किसी का नजरिया समझने के लिए जरूरी है उस की परिस्थितियों में खुद को रख कर देखा जाए।

    ReplyDelete
  4. kitne pyaar se aapne samnewale ko samjhaya hai... dekhne me laghu hai

    ReplyDelete
  5. नमस्ते आंटी जी,
    पानी की समस्या तो हर जगह ही है, सुबह उठ के पानी भर लेने में ही समझदारी है!
    अच्छी लघु-कथा!

    ReplyDelete
  6. हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। प्रेरक लघुकथा।

    ReplyDelete
  7. इसी तरह के एक उदाहरण एक बार मेरी माँ ने मेरी बहन को दिया था :)

    ReplyDelete
  8. सही कहा ...परिवर्तन नजरिये में होना चाहिए !

    ReplyDelete
  9. अच्छा संदेश दिया है....कहानी के माध्यम से...
    जबतक खुद उस परिस्थिति में ना हों..असलियत का अंदाजा नहीं होता

    ReplyDelete
  10. सही बात है। हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

    ReplyDelete
  11. सही बात नज़र बदलते ही नज़ारा बदल जाता है।

    ReplyDelete
  12. शिक्षाप्रद लघु कथा ! हम लोग दूसरों को ही सजेशन देने में माहिर है !

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर लघुकथा..बधाई.

    देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' पत्रिका के लघु-कथा विशेषांक का अतिथि संपादन मेरे द्वारा किया जा रहा है. आपकी लघुकथाओं की प्रतीक्षा बनी रहेगी.

    ReplyDelete
  14. दृष्टिकोण हमारे जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है ..

    ReplyDelete
  15. दृष्टिकोण बड़ा करना होगा।

    ReplyDelete
  16. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  17. बहुत अच्छी सीख, जब हमारे सामने कोई मुझे गलत लगाने वाला हो तो हमें कभी कभी खुद को उस जगह पर रख कर देख लेने की सीख आपका सही जीवन दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है. बहुत सही सीख दी आपने.

    ReplyDelete
  18. सही बात है हम बदले तो जग बदले.

    ReplyDelete
  19. बहुत शिक्षा दायक.

    रामराम.

    ReplyDelete
  20. aadarniy mam
    bahut hi sixha-prad avam sahi-marg
    dikhati hai aapki laghu -katha.jab ham apne ko agle ki jagah rakh kar dekhenge tabhi sahi vastu -sthiti ko samajh payenge.
    ek prerak -prastuti
    hardik dhanyvaad
    poonam

    ReplyDelete
  21. सही कहा । दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है ।

    ReplyDelete
  22. जब अपने ऊपर आती है तब पता चलता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  23. बहुत सही सीख दी आपने, हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

    ReplyDelete
  24. पहले अपनी सोच में बदलाव करना चाहिए ...अच्छी सीख देती लघुकथा ...

    ReplyDelete
  25. अच्छी लघु-कथा,पसंद आयी,आभार.

    ReplyDelete
  26. विस्तृत दृष्टिकोण कई समस्याएं हल कर सकता है ...... सुंदर कथा

    ReplyDelete
  27. ise kahte hain anubhaw kee ot se kahani ke madhyam se kuch kahna ...waah

    ReplyDelete
  28. बेहतरीन लघु कथा.
    सलाम.

    ReplyDelete
  29. निम्मो दी!
    सच में जो पहनता है जूते वही जानता है कि कौन सी कील कहाँ चुभती है.. कभी दूसरे के जूते में पैर डालें तो पता चलता है!!

    ReplyDelete
  30. एक बहुत सुंदर सीख, धन्यवाद

    ReplyDelete
  31. बहुत सुन्दर लघुकथा...और शिक्षाप्रदान

    ReplyDelete
  32. किसी भी मामले में सामने वाली की परिस्थति में अपने को रखकर लोग तथ्यों को देखने समझने लगें तो तकरार की कोई गुंजाइश ही नहीं बचा करेगी..

    बहुत सुन्दर तरीके से आपने बात समझाई है...

    आभार..

    ReplyDelete
  33. लघु कथा इस सत्य को उद्घाटित करती है कि अपना नजरिया बदलने से कई समस्यायों का समाधान स्वतः हो सकता है !

    ReplyDelete
  34. निर्मला जी, आज पहली बार आपके ब्लोक पर आई हु --ऐसा लगता हे जेसे अब तक बहुत कुछ मिस किया हे ---आइन्दा कुछ मिस नही करने वाली हु --धन्यवाद |

    ReplyDelete
  35. Pradam Mata ji,
    aapki laghu katha bahut pashand aai.

    ReplyDelete
  36. सही है। जैसा सामर्थ्य हो,वैसी ही जीवन-शैली होनी चाहिए।

    ReplyDelete
  37. सही बात है। हमें अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता है।

    ReplyDelete
  38. सुन्दर , सार्थक सन्देश देती बेहतरीन लघु कथा ।
    आभार ।

    ReplyDelete
  39. बहुत शिक्षाप्रद लघु कथा निर्मला दी ! कहानी के माध्यम से आपने जीवन की कठिनाइयों के प्रति देखने का दृष्टिकोण ही बदल दिया ! सभी इसी तरह से सोचने लगें तो मुश्किलें कितनी आसान हो जायें ! इतनी सुन्दर कथा के लिये धन्यवाद एवं आभार !

    ReplyDelete
  40. बहुत बढ़िया द्रष्टान्त ! शुभकामनायें आपको

    ReplyDelete
  41. जब अपने ऊपर आती है तब पता चलता है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  42. प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
    कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

    ReplyDelete
  43. Seedhee,saral bhashame likhi hui khoobsoorat laghukatha!

    ReplyDelete
  44. इअ बहाने ही सही, कम से कम दूसरे की मजबुरी भी तो समझे.

    ReplyDelete
  45. अच्‍छी सीख देती कहानी। हम नाहक की दूसरे को दोष देते हैं। एक बार उसकी जगह खुद को रखकर देखें तो समझ आ सकता है कि वह किस हद तक सही है और हम किस हद तक गलत।
    बधाई हो आपको।

    ReplyDelete
  46. आदरणीया निर्मला कपिला जी सादर नमस्कार
    सुबीर जी के ब्लॉग पर आपकी ग़ज़ल पढ़ी बहुत आनंद हुआ और अब ये कहानी| आप अप्रतिम हैं आदरणीया, नमन|

    ReplyDelete
  47. बहुत ही बढ़िया लघुकथा ... हर सिक्के का दो पहलु होता है जी ...

    ReplyDelete
  48. दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलना ज़रूरी है ।

    ReplyDelete
  49. नजरिया अपना अपना...
    सुन्दर लघु कथा..

    ReplyDelete
  50. बहुत ही बढ़िया लघुकथा
    amar rajbhar ji
    surhan azamgarh
    9278447743

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।