ये गज़ल दोबारा पोस्ट की पहले एक दो गल्तियाँ थी उन्हें सही करते हुये पोस्ट डिलीट हो गयी कृप्या इसे दोबारा देखें। असुविधा के लिये खेद है।
गज़ल
गज़ल
देखो उनकी यारी रामा
दुनियाँ है दो धारी रामा
खाली बैठे तोडें कुर्सी
नौकर हैं सरकारी रामा
माँग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्यापारी रामा
कैसे कैसे नाच दिखाये
नारी की मत मारी रामा
मजबूरी रिश्ते ढोने की
पिछला कर्जा भारी रामा
सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा
ऊपर है बाना साधू का
मन मे पर मक्कारी रामा
झूठे रिश्ते झूठे नाते
ये है दुनियादारी रामा
होड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा
दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा
रोटी कपडों के लाले हैं
लोगों की लाचारी रामा
रिश्वत दे कर सम्मानों की
करते दावेदारी रामा
दुनियाँ है दो धारी रामा
खाली बैठे तोडें कुर्सी
नौकर हैं सरकारी रामा
माँग रहे बेटों की कीमत
रिश्तों के व्यापारी रामा
कैसे कैसे नाच दिखाये
नारी की मत मारी रामा
मजबूरी रिश्ते ढोने की
पिछला कर्जा भारी रामा
सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा
ऊपर है बाना साधू का
मन मे पर मक्कारी रामा
झूठे रिश्ते झूठे नाते
ये है दुनियादारी रामा
होड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा
दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा
रोटी कपडों के लाले हैं
लोगों की लाचारी रामा
रिश्वत दे कर सम्मानों की
करते दावेदारी रामा
आदरणीय निर्मला जी
ReplyDeleteनमस्कार !
.............सुन्दर सशक्त संदेश
.हर शेर का एक ख़ास मतलब है ...बढ़िया गजल ...शुक्रिया
ReplyDeleteअज अपनी गलती सही करते हुये मुझ से पोस्ट ही डिलीट हो गयी जिस पर इन सब के कमेन्ट्स आ चुके थे
ReplyDelete1 संजय भास्कर [दोबारा कमेन्ट देने के लिये शुक्रिया\
2आशा जी
3 सोमेश सक्सेना जी
4 अजीत गुप्ता जी
5 वन्दना जी
6 अभि जी
7 इस्मत ज़ैदी जी
8 रश्मि जी
9 हर्षवर्धन जी
10 सदा जी
11 सुशील बकलीवाल जी
12सुरिन्द्र मुह्लिद
12डा. रूपचन्द शास्त्री मंयक जी
14 वाणी जी
15 अन्तर सोहिल जी
16 अरविन्द जी
17 ग्यानचंद मर्मग्य जी
इन्दर्जीत भट्टाचार्य सैल जी
18 श्री दिनेश राय दिवेदी जी
इन सब से क्षमा चाहती हूँ। कृ्प्या अन्यथा न लें।
अरे कोई बात नहीं...ये तो होता रहता है...आप बेवजह ही क्षमा मांग रही हैं ... :)
ReplyDeletejai siya rama,jai siya rama---------------------------------------------------------------------------------rama,rama
ReplyDeleteNirmala jee, kshama mang kar hamein sharminda na karein ... aapki lajawaab ghazal ko phir se kya baar baar padhne ko jee karta hai ...
ReplyDeleteसबकी सामत आयी रामा !
ReplyDeleteकोई बात नही जी, यह हो जाता हे, धन्यवाद
ReplyDeleteहर शेर का एक ख़ास मतलब है ...बढ़िया गजल ...शुक्रिया
ReplyDeleteहर शेर का एक ख़ास मतलब है ...बढ़िया गजल ...शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है निर्मला जी.... हर एक शेअर मायनेखेज़ है...
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर :)
ReplyDeleteएकदम अलग तरह की गज़ल है
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया.
समाज की विसंगतियों पर
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया, रचना
इस रचना में आपने बहुत से भावों को समेटा है. 'रामा' ने मानवीय व्यथा ढोने का कर्तव्य निभाया है. बहुत अच्छी ग़ज़ल.
ReplyDeletebahut badiya rachna
ReplyDeleteआनंद दायक पोस्ट ...शुभकामनायें !
ReplyDeletesabhi sher kaabile-taareef.
ReplyDeleteनिम्मो दी!!
ReplyDeleteसमाज की वर्त्तमान स्थिति को आईना दिखाती ग़ज़ल!!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है निर्मला जी ।
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें ।
ग़ज़ल पर ऐसे ऐसे प्रयोग,
ReplyDeleteब्लॉगिंग की महिमा न्यारी रामा ;)
ऐसे ग़ज़ल तो कहीं नहीं पढ़े ;)
लिखते रहिये ....
• इस ग़ज़ल में अपने समय और समाज की गहरी पहचान नज़र आता है।
ReplyDeleteखुबसूरत शेर बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाये ,नया साल आपको खुशियाँ प्रदान करे
लो हम फिर से आ गए।
ReplyDeleteपुरानी टिप्पणियों को मेरे खयाल से ब्लागर में जा कर देखा जा सकता है।
वाह!आज तो कुछ नया ही पढ़ने को मिला।
ReplyDelete..कविता को आम जन से जोड़ने के लिए आम जन द्वारा समझी जा सकनी भाषा में भी अवश्य लिखा जाना चाहिए। इस कोशिश में यह ध्यान रखना होगा कि सरलतम भाषा में गहनतम चिंतन रखा जा सके क्योंकि आमजन भाषा नहीं सार बखूबी समझते हैं। इस दृष्टि से आपकी इस गज़ल महत्व अधिक है।
ला-जवाब, बेहतरीन गजल....
ReplyDeleteहर शेर उम्दा!!!
निर्मम और सपाट व्यंग।
ReplyDeleteकपिला जी, बहुत ही अच्चा व्यंग कसा है आपने इस ग़ज़ल के माध्यम से ... संदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसात जनम का झूठा वादा
ReplyDeleteएक जनम ही भारी रामा
रिश्ता अगर बोझ हो, तो हर पल भारी हो जाता है, बहुत ही सच्चा शेर है...
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा...
हर तरफ़ यही देखने को मिल रहा है...
बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
लाजवाब..... एक एक शेर खजाने से ढूंढ़ कर लायीं हैं आप
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल है !!
ReplyDeleteरिश्वत देकर,सम्मानों की '
ReplyDeleteकरते दावेदारी रामा। बेहतरीन शे'र , सार्थक और उम्दा ग़ज़ल , निर्मला कपिला जी को मुबारकबाद।
एक से बढ़कर एक..
ReplyDeleteबढ़िया गजल.
ReplyDeletechaliye isi bahane phir aapka post upar aa gaya aur ek baar phir main gazal ke saath ho gai ....
ReplyDeleteअब क्या होगा रे रामा
ReplyDeleteदेश तेरे भरोसे रे रामा
लाजवाब
arey anayatha lene wali kya baat hai ji.......achi rachna hai....
ReplyDeleteraama re raama!
हर एक शेर पर सिर्फ वाह वाह वाह कहते चले जाने को जी चाह रहा है...
ReplyDeleteक्या लिखा है आपने...ओह..लाजवाब !!!!
आपको और आपके कलम को नमन,इस अद्वितीय कृति के लिए....
आप इतना सुन्दर लेख, कहानियां, कवितायेँ, ग़ज़ल आदि कैसे लिख लेती है निर्मला जी?..... मैंने तो जब भी लिखना चाहा, एक सिरा पकड़ो तो दूसरा छूट जाता है .......... बहरहाल!
ReplyDeleteइस सुन्दर रचना के लिए आभार.
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल है निर्मला दी ! हर शेर गहन भाव को समेटे हुए है और हर व्यंग चुटीला है ! अपनी रचना में आपने जीवन की विषमताओं को बड़ी खूबी से अभिव्यक्त किया है ! मेरी शुभकानाएं स्वीकार करें !
ReplyDeleteइतनी सुंदर गजल लिखी है
ReplyDeleteमैं तो हूं बलिहारी रामा ।
गजल के शब्द बहुत सुन्दर और गहन अर्थ लिए हुए हैं |बधाई |
ReplyDeleteआशा
aadarniy mam
ReplyDeleteabhi tak to aapke lekh v sasmaran hi padhti aai thi,par aap gazal bhi utni hi khubsurati ke saath likhti hain ,aapki likhi pichhle gazlo ko bhi padha .bahut hi bahatreen tath yatharthata se bhari bilkul sateek gazlen hai aapki---
hardik bhinadan karti hun---
poonam
मांग रहे बेटों की कीमत
ReplyDeleteरिश्तों के व्योपारी, रामा
खोते सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी, रामा
ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में सम्पूर्ण है
भाव और कहन लाजवाब हैं ...
बधाई .
मांग रहे बेटों की कीमत
ReplyDeleteरिश्तों के व्योपारी, रामा
खोते सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी, रामा
....माँ जी!
जीवन का कटु सत्य उजागर कर रही है आपकी ग़ज़ल की हर पंक्ति.....
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना
har pangti lajabab.
ReplyDeleteछोटी बहर पे लिखी लाजवाब ग़ज़ल है ...
ReplyDeleteआपके विचार स्पष्ट और अभिव्यक्ति कमाल की होती है हमेशा ..
निर्मला जी, छोटी बहर में बहुत प्यारी गजल।
ReplyDelete---------
पति को वश में करने का उपाय।
जीना हुआ मुहाल रे रामा.
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDeleteबहुत खूब - बहुत सुन्दर
"सात जनम का झूठा वादा
एक जनम ही भारी रामा
खोटे सिक्के शान से चलते
सच्चाई तो हारी रामा"
पूरी रचना में हमारे समाज की नब्ज है.
हर पंक्ति सत्यता लिए असरदार है
एक जगह पर थोड़ी मुस्कान आ गयी :
"दाल दही थाली से गायब
हो गयी चीनी खारी रामा"
सोच रहे थे की यहाँ चीनी की जगह
प्याज हो सकता है कि नहीं :)
राम-राम!
ReplyDeleteनिर्मला जी,
ReplyDeleteमुझे तो बार बार पढ़कर भी यह ग़ज़ल नई लगती है !
आज के दौर की संवेदना से लबालब भरी है आपकी ग़ज़ल !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह, निर्मला जी, बेहतरीन ग़ज़ल है यह।
ReplyDeleteसमाज की विसंगतियों पर अच्छा कटाक्ष किया है आपने।
बधाई।
बहुत खूब निर्मलाजी । आज की समाज की मानसिकता को दर्शाती हुई एक सुन्दर गज़ल ।
ReplyDeleteनये साल की बधाई स्वीकारे ।
wahwa....achhi rachna....sadhuwad..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteवाह वाह वाह!
ReplyDeleteक्या बेहतरीन रचना है ये..
बहुत ही सुन्दर..
आभार
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है|धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गजल........... प्रत्येक शेर मेँ बेशकीमती भाव कलमबद्ध किया है आपने ।
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को मकर संक्रान्ति की शुभकामनायेँ
"गजल............ आईँ थी जब सामने मेरे तुम"
बेहतरीन रचना ..... आइना है
ReplyDeleteआज के सामाजिक और व्यावहारिक पक्ष का
बहुत ही गहरी बात कही है आपने !
ReplyDeleteहोड लगी है बस दौलत की
होती मारा मारी रामा......
बिल्कुल सही कहा है आपने ....
कर दिया है
दौलत की दौड़ में
खुदा लापता !
आभार
हरदीप
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर
ReplyDeleteकर दिया है
ReplyDeleteदौलत की दौड़ में
खुदा लापता !……………यही होता है।
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उतरायाण: मकर सक्रांति, लोहड़ी, और पोंगल पर बधाई, धान्य समृद्धि की शुभकामनाएँ॥
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Nice post .
ReplyDeleteशब्द,भाव,लय हर तरीके से दुरुस्त एक बेहतरीन ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई..प्रणाम माता जी
ReplyDeleteनिर्मला जी , बहुत करारा व्यंग्य है ।
ReplyDeleteduniyaa kee bahut saari visangatiyon par comment karti hui rachna hai ...bahut acchi lagi
ReplyDelete