मुझे निभाना है प्रण ( कविता )
जीवन मे हमने
आपस मे
बहुत कुछ बाँटा
बहुत कुछ पाया
दुख सुख
कर्तव्य अधिकार
इतने लंबे सफर मे
जब टूटे हैं सब
भ्रमपाश हुये मोह भँग
क्या बचा
एक सन्नाटे के सिवा
मै जानती थी
यही होगा सिला
और मैने सहेज रखे थे
कुछ हसीन पल
कुछ यादें
हम दोनो के
कुछ क्षणो के साक्षी1
मगर अब उन्हें भी
तुम से नहीं बाँट सकती
क्यों कि मै हर दिन
उन पलों को
अपनी कलम मे
सहेजती रही हूँ
जब तुम
मेरे पास होते हुये भी
मेरे पास नही होते
तो ये कलम मेरे
प्रेम गीत लिखती
मुझे बहलाती
मेरे ज़ख्मों को सहलाती
तुम्हारे साथ होने का
एहसास देती
अब कैसे छोडूँइसका साथ्
अब् कैसे दूँ वो पल तुम्हें
मगर अब भी चलूँगी
तुम्हारे साथ साथ्
पहले की तरह्
क्यों की मुझे निभाना है
अग्निपथ पर
किये वादों का प्रण
"मगर अब भी चलूँगी
ReplyDeleteतुम्हारे साथ साथ्
पहले की तरह्
क्यों की मुझे निभाना है
अग्निपथ पर
किये वादों का प्रण"
सुन्दर भाव,
अच्छी कविता।
bahut hi khoobsurat bhaav liye hue
ReplyDeletemujhe bahut bahut bahut achchhi lagi
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
निश्चित ही बीते हुए पल तो वापस आ नासकेंगे आगे आने वाले पालो के प्रति समर्पण युक्तिसंगत है. बहुत ही सुन्दर रचना आभार.
ReplyDeletekhubasurat ehasas ko samete our uname jine marane ke kasam bahut khub ......ek sundar abhiwyakti
ReplyDeletekitni maasumiyat se aapne apne ehsaasaat ko sanjoyaa hai aur sajaaya.. hai... itni khubsurat kavitaa ke liye .. dhero badhaayee aur aapke lekhani ko salaam...
ReplyDeletearsh
saath dene kii baat ke main sadke...
ReplyDeleteजीवन में आये सन्नाटे को utaar लिया कविता में.......फिर भी साथ निभाने का वादा पूरा करने का संकल्प............ लाजवाब है
ReplyDeletekuch pal aise bhi aate hain aur unhein nibhana bhi hota hai...........bahut h saralta se is katu satya ko apni lekhni se ujagar kiya hai aapne..........bahut badhiya.
ReplyDeleteजब टूटे हैं सब
ReplyDeleteभ्रमपाश हुये मोह भँग
क्या बचा
एक सन्नाटे के सिवा
मै जानती थी
यही होगा सिला
bhut shi kha .chlte jana hai.
निर्मला जी, आप जैसे महान लेखिका का टिपण्णी मिलने पर लिखने का उत्साह और बढ जाता है पर आपके कविता के सामने मेरी शायरी कुछ भी नहीं है! आप एक उम्दा लेखिका हैं और आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है!
ReplyDeleteआपका ये कविता मुझे बेहद पसंद आया ! बहुत बढ़िया !
आपकी इन पंक्तियों ने तो मौन कर दिया....क्या कहूँ....
ReplyDeleteमगर अब भी चलूँगी
ReplyDeleteतुम्हारे साथ साथ्
पहले की तरह्
क्यों की मुझे निभाना है
अग्निपथ पर
किये वादों का प्रण
-बहुत बेहतरीन भावाव्यक्ति!! सुन्दर रचना!
जब प्रण कर लिया जाए, पथ अग्निपथ हो ही जाता है निर्मला जी
ReplyDeletekitna pyaar sanjoya maine
ReplyDeletesab tukdon men bikhar gaya
kuchh aansoo men kuchh ahon men
kuchh geeton men nikhar gaya
aapki khoobsurat kavita/khayalaat ko dekh ye muktak yaad aa gaya. badhai sweekaren.