अब और तब ( कविता )
तब रिश्ते
अग्नि के चारों ओर
फेरे दे कर
तपाये जाते
प्रण ले कर
निभाये भी जाते
सात जन्मों तक
जबकि
कई बार
रिश्तों मे
एक पल निभाना भी
हो जाता है कितना कठिन
पर निभते थे ताउम्र
समय कितना
बदल गया
तभी तो आजकल
रिश्ते कागज़ पर
लिखाये जाते हैं
अदालत मे और
बनाये जाते है
वकील दुआरा
अब कितना आसान हो गया
रिश्ते को तोड्ना
कागज़ पर कुछ
शब्द जोड्ना
बन्धन से आज़ाद
और हो जाना
zindagi ko is samaanantar tarike se aap dekhti hai ye soch ke hatprabh hun aur stabhdh hun... aaj pe yug me yahi hotaa hai ,magar hamaare desh me aaj bhi wo fere liye jaate hai ye soch ke sukhadh anubhuti hoti hai..
ReplyDeletearsh
यही है धर्म और कानून में अंतर .. धर्म का पालन करने में 'स्व' को जगह नहीं मिलती .. जबकि कानून का सहारा लेनेवाले सिर्फ 'स्व' की सोंचते हैं।
ReplyDeleteधर्म और कानून में यही अंतर होता है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , इस नजरिये से तो सोचा ही नहीं था , अब लगता है कि रिश्ते जो अग्नि के चारों ओर तपाये जाते रहे , वो मन की कच्ची स्लेट पर एक नाम लिख कर भी तपा दी जाती रही , तभी तो वो नाम अमिट हो जाता रहा |
ReplyDeleteकगाज़ पर बनाये जाने वाले बंधन शाश्वत नहीं हो सकते.
ReplyDeleteकहते हैं रिश्ते बनाना जितना आसान है, निभाना उतना ही कठिन. लेकिन हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति हमें रिश्तों को जीना सिखाती है ना कि निभाना. आजकल निभाने वाली प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है. इसी वजह से ये कागज़ पर बनाये जाने वाले रिश्ते बन रहे हैं.
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
saare rishtey aasan nahi hain,
ReplyDeleteKintu nibhane padte hai...
kuch kagaz kore acche hain...
shabd chupane padte hai !!
-Darpan Sah
रिश्तो को जीना लोग भूल रहे है शायद यही कारण है कि रिश्ते कागज पर बनने लगे है....... अच्छी रचना
ReplyDeletebilkul sahi. rishte yakeen dwara hi bante hain.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कितना सही कहा आपने......एकदम खरा खरा सच...
ReplyDeleteसोचने को विवश करती बहुत ही सुन्दर रचना...
बिल्कुल सही कहा आपने..रिश्तों मे।ं जिस तपिश की जरुरत है, वो नदारत हो गई है.
ReplyDeleteसत्य कहा..........रिश्तों में वो ताजगी........वो बंधन..........वो भावना कहाँ रही अब............कागज़ के बंधन खुशबू तो नहीं देते न............अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeletegood words!
ReplyDeletesach kaha......tab aur ab mein kitna antar aa chuka hai.......rishtey ab kaagaz ke ban gaye hain man ke nahi,janam janam ke nhi.....sirf kagzi rishtey ho chuke hain.
ReplyDeleteyou are doing commendable job by writing such beautiful poems.ab aur tab is a very beautifully written poem,each word has a deeper meaning and makes every sense to the reader.
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