30 June, 2017

गज़ल



#अंतरराष्ट्रीय_हिन्दी_ब्लॉग_दिवस की आप सब को बधाई 1दूसरी पारी पहले की पारी से भी ऊंचाई पर जाये इसी कामना के साथ सब को शुभकामनाएं1

एक गज़ल 


ख्वाहिशें मैं कैसे रक्खूँ ज़िन्दगी के सामने"
हसरतें दम तोड़ती हैं मुफलिसी के सामने

ये तिरी शान ए करम है ऐ मिरे परवरदिगार"
अब भी हूँ साबित क़दम मुश्किल घड़ी के सामने।

ज़िंदगी की मस्तियों में भूल बैठा बंदगी"
आह क्या मुँह ले के जाऊँ अब नबी के सामने।

तीलियाँ लेकर खड़े हैं लोग घर के द्वार पर
बस उठे दिल से न धूंआँ अजनबी के सामने

चींटियों से सीख ले मंजिल मिली कैसे उन्हें
अड़चनों दम तोडें क्यों रस्साकशी  के सामने

उम्र  लंबी  हो  नहीं  ख्वाहिश  मेरी ऐसी रही

 पर खुशी इक पल भी अच्छी इक सदी के सामने

राहमतों की आस किस से कर रहा बन्दे यहां
आदमी  कीड़ा     मकोड़ा   है धनी के सामने

ताब अश्कों की नदी की सह न पायेगा कभी
इक समंदर कम पडेगा इस  नदी के सामने

प्यार  में क्या हारना और क्या है निर्मल जीतना"
बस मुहब्बत हो न शर्मिंदा किसी' के सामने।