26 September, 2017

  गज़ल

बेवफाई के नाम लिखती हूँ
आशिकी पर कलाम लिखती हूँ

खत में जब अपना नाम लिखती हूँ
मैं हूँ उसकी जिमाम लिखती हूँ

आँखों का रंग लाल देखूँ तो
उस नज़र को मैं खाम लिखती हूँ

ये मुहब्बत का ही नशा होगा
मैं  सुबह को जो शाम लिखती हूँ

फाख्ता होश कौन करता है
जब जमी को भी बाम लिखती हूँ

है बदौलत उसी की ये साँसें
ये खुदा का ही काम लिखती हूँ

जो सदाकत में ज़िंदगी जीए
नाम उसका मैं राम लिखती हूँ

हौसला बा कमाल रखता है
वो नहीं शख्स आम लिखती हूँ

बादशाहत सी ज़िंदगी उसकी
महलों की ताम झाम लिखती हूँ

दोस्त, दुश्मन मेरा है रहबर भी
किस्से उसके तमाम लिखती

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-09-2017) को
    निमंत्रण बिन गई मैके, करें मां बाप अन्देखी-; चर्चामंच 2740
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।