13 July, 2014

गजल 

प्यार मे फकीर हूँ
वक्त की जंजीर हूँ

आत्मा तो मर गयी
सिर्फ इक शरीर हूँ

वश नहीं चला कहीं
हाथ की लकीर हूं

मांगता उधार जब
मारता जमीर हूँ

चार शब्द लिख लिये
सोचता  कबीर हूँ

कुछ पता नहीं कि क्यों
 आज मै अधीर हूँ

हूँ तो मै गरीब ही
दिल का पर अमीर हूँ

21 comments:

  1. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ

    आप कैसी हैं...? सादर शुभकामनायें

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  2. अच्छी ग़ज़ल ...बड़े दिनों बाद नज़र आईं ..कैसी हैं आप ?/

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  3. कैसी हैं आप ... आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... ग़ज़ल के दौर में आपको कई दिनों बाद देख के अच्छा लग रहा है ...

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  4. अच्छी ग़ज़ल पढ़ने के साथ बहुत दिनो के बाद आपको यहाँ लिखते देखकर खुशी हुई। कैसी हैँ आप?

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  5. आजकल आपका आना दि‍खना कम हो गया है जी

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  6. कैसी हैं आप ? काफी समय बाद आपको पढ़ा, सकुशल रहें - यही कामना है

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  7. आपको फिर से यहाँ देखकर बहुत ख़ुशी हुई।
    स्वागत है आपका और आपकी लाज़वाब ग़ज़ल का ...

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  8. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।

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  9. माँ जी ! एक लम्बे अरसे बाद आपको पढ़कर मन को बहुत ख़ुशी हो रही है .... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखियेगा..
    बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी गजल है ...

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  10. आ द र णी य नि र्म ला दी दी
    मेरी ब्लॉग पोस्ट How to Resize Your All Post-Images in Blogger at a Time पर टिप्पणी लिखने के लिए आप का हार्दिक अभारी हूँ और भविष्य में भी आशीर्वाद जारी रखने के लिए प्रार्थी हूँ।

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  11. वाह!! बहुत सुन्दर :)

    इससे भी ज्यादा सुन्दर लग रहा है आपके ब्लॉग का फिर से अपडेट देखना. कैसी हैं आप?

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  12. हर एक शेर के भाव बहुत गहरे हैं।
    आभार, आ. निर्मला जी ।

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  13. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण गजल
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर -----

    आग्रह है ------मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
    आवाजें सुनना पड़ेंगी -----
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  14. Respected nirmala didi,
    I have not read the literature but the poem is really heart touching and your lucidity is appreciable

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  15. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है माँ

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।