07 June, 2011

गज़ल
आज फिर से ब्लाग पर आते हुये खुशी सी महसूस हो रही है\ मै तो उमीद छोड बैठी थी कि अब शायद ऊँगली काटनी ही पडेगी । लेकिन एक दिन श्रीमति संगीता पुरी जी , [गत्यात्मक ज्योतिश वाले ]से अपनी तकलीफ कही तो उन्होंने आश्वासन दिया कि ऐसा गम्भीर कुछ नही है आप जल्दी ठीक हो जायेंगी । उनके आश्वासन से मै फिर से डाक्तर के पास जाने से रुक गयी और एक देसी इलाज शुरू किया, डरी इस लिये भी थी कि पहले एक   अंगूठे मे इसी प्राब्लम के चलते उसका टेंडर कटवाना पडा था।उस देसी दवा से ही ठीक हुयी हूँ लेकिन कुछ दिन स्प्लिन्ट जरूर बान्धना पडा। बेशक ज्योतिश आपकी समस्या हल नही कर देता लेकिन कई बार ऐसे आश्वासन से आशा सी बन जाती है और आशा ही जीवन है। इतने दिनो पढा सब को लेकिन कुछ कह नही पाई लिख नही पाई। अब भी अधिक देर लिखने से अँगुली दुखने लगती है लेकिन ये भी ठीक हो जायेगी कुछ दिन मे । तो चलिये आज एक गज़ल पढिये----



1 गज़ल
न वो इकरार करता है न तो इन्कार करता है
मुझे कैसे यकीं आये, वो मुझसे प्‍यार करता है)

फ़लक पे झूम जाती हैं घटाएं भी मुहब्‍बत से
मुहब्‍बत का वो मुझसे जब कभी इज़हार करता है

मिठास उसकी ज़ुबां में अब तलक देखी नहीं मैंने
वो जब मिलता है तो शब्‍दों की बस बौछार करता है

खलायें रोज  देती हैं  सदा बीते  हुये  कल को
यही माज़ी तो बस दिल पर हमेशा वार करता है

उड़ाये ख्‍़वाब सारे बाप के बेटे ने एबों में
नहीं जो बाप कर पाया वो बरखुरदार करता है

नहीं क्‍यों सीखता कुछ तजरुबों से अपने ये इन्‍सां
जो पहले कर चुका वो गल्तियां हर बार करता है

उसी परमात्‍मा ने तो रचा ये खेल सारा है
वही धरती की हर इक शै: का खुद सिंगार करता है

अभी तक जान पाया कौन है उसकी रज़ा का सच
नहीं इन्‍सान करता कुछ भी, सब करतार करता है

कहां है खो गई संवेदना, क्‍यों बढ़ गया लालच
मिलावट के बिना कोई नही व्यापार करता है

बडे बूढ़े अकेले हो गये हैं किस क़दर निर्मल
नहीं परवाह कुछ भी उनका ही परिवार करता है )