17 June, 2011

गज़ल

गज़ल

जुलाई 2010 मे इस गज़ल पर  कदम दर कदम------  http://kadamdarkadam.blogspot.com/ { तिलक भाई साहिब }के ब्लाग पर विमर्श हुआ था। जिस से ये गज़ल निकल कर सामने आयी थी। ये तिलक भाई साहिब को ही समर्पित हैीआजकल लिखने पढने का सिलसिला तो खत्म सा ही है । देखती हूँ कब तक/ जीने के लिये कुछ तो करना ही पडेगा फिर कलम के सिवा अच्छा दोस्त कौन हो सकता है?चलिये दुआ कीजिये कि कलम रुके नही।

दर्द आँखों से बहाने निकले
गम उसे अपने सुनाने निकले।

रंज़ में हम से हुआ है ये भी
आशियां अपना जलाने निकले।

गर्दिशें सब भूल भी जाऊँ पर
रोज रोने के बहाने निकले।

आग पहले खुद लगायी जिसने
जो जलाया फिर , बुझाने निकले।

आज दुनिया पर भरोसा कैसा?
उनसे जो  शर्तें  लगाने निकले।

प्‍यार क्‍या है नहीं जाना लेकिन
सारी दुनिया को बताने निकले।

खुद तो  रिश्‍ता ना निभाया कोई
याद औरों को दिलाने निकले!

झूम कर निकले घटा के टुकडे
ज्‍यूँ धरा कोई सजाने निकले।

सब के अपने दर्द दुख कितने हैं?
आप दुख  किसको सुनाने निकले।

76 comments:

  1. दिल को छू गयी यह उम्दा ग़ज़ल. आभार. आपके अच्छे स्वास्थय और उत्तम लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं .

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  2. बेहतरीन पंक्तियाँ निर्मलाजी..... दिल से दुआ है की आपकी कलम चलती रहे..... कृपया अपना ख्याल रखें...

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  3. आंसू भरके आँखों में दर्द सुनाना ........ ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी

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  4. waah !!
    aap ki qalaam ruk gaee to paathakon ka kya hoga jin ko ap ke likhe hue ki aadat ho gaee hai ,,,,is liye ap to kabhi mat chhodiyega apna likhna padhna .
    shukriya

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  5. हृदयस्पर्शी रचना!

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  6. चांद के साथ् कई दर्द पुराने निकले
    कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले

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  7. अपना दुःख किसे सुनाने चले ...

    औरों का ग़म देखा तो अपना ग़म भूल गए ...

    खूबसूरत ग़ज़ल !

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  8. गर्दिशें सब भूल भी जाउँ मगर
    रोज रोने के बहाने निकले ।
    उत्तम गजल...

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  9. खूबसूरत ग़ज़ल !

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  10. खुद तो रिश्‍ता ना निभाया कोई
    याद औरों को दिलाने निकले!


    सब के अपने दर्द दुख कितने हैं?
    आप दुख किसको सुनाने निकले।

    बहुत खूबसूरत गज़ल

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  11. खुद तो रिश्‍ता ना निभाया कोई
    याद औरों को दिलाने निकले!
    वाह .. बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।

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  12. झूम कर निकले घटा के टुकड़े
    ज्यूं धरा कोई सजाने निकले।
    जिसकी सोच इतनी पवित्र हो उसकी कलम कभी नहीं रुकेगी। उम्दा भाव के साथ बेहतरीन ग़ज़ल।
    दीदी आपकी कलम रुके नहीं यही दुआ है।

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  13. @निर्मला जी
    यह ग़ज़ल आपने तब कही जब ग़ज़ल कहना आरंभ ही किया था और अब प्रकाशित की जब यह विधा समझ में आ गयी है। यह अच्‍छी बात है। स्‍वॉंत: सुखाय: लेखन से सार्वजनिक लेखन में आने के लिये ग़ज़ल इतना समय मॉंगती ही है।
    ग़ज़ल विधा के प्रति आपका समर्पण और तमाम व्‍यस्‍तताओं में समय निकाल लेना प्रशंसनीय है।
    ग़ज़ल अच्‍छी लगी।
    दर्द सीने में हो फिर भी मुस्‍करायें
    गीत ऑंसू से लिखें पर गुनगुनायें।

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  14. सब के अपने दुःख दर्द कितने हैं ,
    आप अपना दुःख सुनाने निकले |

    हकीकत बयाँ हो गयी ...
    स्वस्थ रहें |

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  15. बेहतरीन गज़ल..हरेक शेर दिल को छू जाता है..आभार

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  16. अरे इतनी अच्छी गज़ल लिखने वाले की कलम रुक ही नहीं सकती.और हमारी दुआएं तो हमेशा साथ हैं ही:)
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.

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  17. हृदयस्पर्शी रचना.......हरेक शेर दिल को छू जाता है..आभार

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  18. निम्मो दी,
    हर बार की तरह ही बेहतरीन गज़ल.. और तिलक राज जी का नाम इससे जुदा होना तो वैसे भी हॉलमार्क का निशाँ है!!

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  19. कपिला जी आपने बहुत सुंदर लिखा, हमारी दुआ है कि इस कलम को सब की-बोर्ड्स की उम्र लग जाए।

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  20. बहुत बढ़िया प्रस्तुति खासतौर पर
    "गर्दिशें सब भूल भी जाउँ मगर
    रोज रोने के बहाने निकले ।"

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  21. हम कामना करते हैं एक लंबे अरसे तक आपकी लेखनी से गजलें,विचार आदि हम सब को पढ़ने को मिलते रहें.

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  22. आपकी यह उत्कृष्ट ग़ज़ल कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी है!

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  23. खुद तो रिश्‍ता ना निभाया कोई
    याद औरों को दिलाने निकले!

    हृदयस्पर्शी,कलम रुक ही नहीं सकती सब की दुआएं साथ हैं

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  24. बहुत अच्छी हृदयस्पर्शी रचना|

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  25. सच कहा, सबका घड़ा पहले ही से भरा है।

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  26. जिंदगी के दुःख दर्द को बहुत खूबसूरती से समेटा है इस ग़ज़ल में ।
    आप स्वस्थ रहें और लिखती रहें , यही दुआ है निर्मला जी ।

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  27. निर्मला दी, लम्बे अन्तराल के बाद आपकी यह उम्दा ग़ज़ल पढने को मिली, बहुत अच्छा लगा. ग़ज़ल कम शब्दों में अधिक लिखने की विधा है और उस पर आपका लिखा हुआ. आपकी स्वस्थता की कामना के साथ.

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  28. दर्द खुद ही मसीहा दोस्तों,
    दर्द से भी दवा का दोस्तों, काम लिया जाता है...
    आ बता दें के तुझे कैसे जिया जाता है...

    जय हिंद...

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  29. सब के अपने दुःख दर्द कितने हैं ,
    आप अपना दुःख सुनाने निकले |

    भाव भरी गजल के लिए आभार
    कुछ शेर तो बहुत सुंदर बन पड़े हैं।

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  30. निर्मलाजी दिल को छू गयी यह उम्दा ग़ज़ल.बहुत सुन्दर ... आभार

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  31. गर्दिशें सब भूल भी जाऊं पर
    रोज रोने के बहाने निकले
    निर्मला कपिला जी नमस्कार -सुन्दर भाव क्या खूब कही आप ने -मन को छू गये न जाने कब ये रोना हमारा जायेगा
    सब के अपने दर्द दुःख कितने हैं ---
    शुक्ल भ्रमर ५

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  32. khoobsoorat hai gazal...gam ka pairahan odhe hue ...

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  33. माँ जी!
    सादर प्रणाम!
    कल ही गाँव से लौटी हूँ.. घर को ठीक ठाक करते करते आपकी याद आयी तो सोचा थोडा आपसे मुलाकात कर लूँ बस चली आयी हूँ आपके ब्लॉग पर और आपके ब्लॉग पर आकर यह जानकार बहुत अच्छा लगा की आपको अब हाथ की परेशानी से राहत है और आपकी गजल पढ़कर मन को बहुत अच्छा लगा ... बहुत दिन बाद कुछ अच्छा पढने को मिले तो मन को बहुत अच्छा लगता है...
    सादर
    गजल की ये लाइन मन में गहरे उतर गयी ...
    खुद तो रिश्‍ता ना निभाया कोई
    याद औरों को दिलाने निकले!
    सब के अपने दर्द दुख कितने हैं?
    आप दुख किसको सुनाने निकले।

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  34. सब के अपने दर्द दुख कितने हैं?
    आप दुख किसको सुनाने निकले।
    बहुत ही अच्‍छी रचना ।

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  35. बहुत हृदयस्पर्शी गज़ल है निर्मला दी ! हर शेर मन को उद्वेलित सा कर गया है ! आशा है आप पूर्णत: स्वस्थ व सानंद होंगी !

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  36. प्यार क्या है नहीं जानता लेकिन
    सा्री दुनिया को बताने निकले।
    उम्दा ग़ज़ल , निर्मला जी को मुबारकबाद।

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  37. निर्मला जी,
    नमस्कार !
    दिल को छू गयी यह उम्दा ग़ज़ल........आपके अच्छे स्वास्थय के लिए हार्दिक शुभकामनाएं !

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  38. निर्मला जी,
    नमस्कार !
    दिल को छू गयी यह उम्दा ग़ज़ल........आपके अच्छे स्वास्थय के लिए हार्दिक शुभकामनाएं !

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  39. Nirmala ji! bahut sundar gazal likhi....aaj ke waqt par satik lekhni ....bahut khub .

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  40. क्या कहूं, ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।

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  41. प्यार क्या है नहीं जाना लेकिन,
    सारी दुनियाँ को बताने निकले।

    वाह! क्या बात है ... बहुत सुन्दर लाइनण् कभी मेरे ब्लॉग पर भी आइए!

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  42. रंज में हम से हुआ है यह भी
    आशियाँ अपना जलाने निकले

    भावों की विविधता से भरी बहुत ही सुंदर ग़ज़ल.

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  43. सुन्दर शिक्षा देती उम्दा ग़ज़ल।

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  44. खुद तो रिश्ता न निभाया कोई ...
    बहुत ही लाजवाब शेर है .. जीवन की सच्चाइयों को लिखा है इस ग़ज़ल में आपने ... आप सदा ऐसे ही लिखती रहें ये कामना है ...

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  45. शब्द दर शब्द दिल में उतर गयी ये गज़ल लाजवाब बेमिसाल

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  46. आदरणीय निर्मला जी,

    बहुत खूबसूरत शे’र लगा :-

    सबके अपने दर्द-दु:ख कितने हैं?
    आप दुःख किसे सुनाने निकले?

    शायद इसी बात को तो मैं भी कहना चाह रहा था कि....बहुत दिनों के बाद आने के लिए मुआफी चाहता हूँ....जीवन की आपा-धापी बहुत कुछ छीन लेती है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  47. अच्छी लगी यह रचना ...

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  48. bahut khubsoorat gazal likhi hai aapne.seedha dil tak pahunchi:)

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  49. खुद तो रिश्‍ता ना निभाया कोई
    याद औरों को दिलाने निकले!
    kya sher hai taji hawa sa
    jhum kr nikle..........
    lajavab
    bahut sunder gazal
    saader
    rachana

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  50. gazal ka ek -ek sher dil me utar gaya.

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  51. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  52. एक एक शेर झकझोर कर जवाब देने को कहते हुए....

    लाजवाब ग़ज़ल...बस लाजवाब....

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  53. शानदार गज़ल...अंतिम में कही बात भी एकदम सही है, सबके अपने अपने दुःख हैं, किसे हम अपना दुःख सुनाने जाएँ.

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  54. और निर्मला आंटी, आप कैसी हैं अब? पिछले एक पोस्ट में पता चला आपके बारे में...सुनकर अच्छा नहीं लगा.

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  55. बढ़िया ग़ज़ल......हर शेर बेहतरीन

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  56. किसी एक पंक्ति का क्या कहें,हर शेर ही बेमिसाल है.

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  57. बेहद खूबसूरत गज़ल । आप शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करें और ऐसी सुंदर सुंदर रचनाएं पढवाते रहें ।

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  58. गर्दिशें सब भूल भी जाउँ मगर
    रोज रोने के बहाने निकले ।

    बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
    हार्दिक शुभकामनायें।

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  59. टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  60. .
    गर्दिशें सब भूल भी जाउँ मगर
    रोज रोने के बहाने निकले ।

    बहुत खूब...सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं..
    मैने पहले भी कमेन्ट किया था...पता नहीं कहाँ गया...आज सोचा देखूं आपने कुछ नया लिखा है क्या तो पाया पुराने पोस्ट से भी कमेन्ट गायब हैं..:(
    जल्दी लिखिए कोई कहानी....आजकल मैं भी दूसरे ब्लॉग में ही उलझी हूँ..कहानी नहीं लिख पा रही...आप तो लिखिए :)

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  61. निर्मला जी
    जोरदार गजल लिखी
    खुद तो रिश्ता निभाया न कोई
    याद औरों को दिलाने निकले
    उम्दा सेर
    बधाई स्वीकारें ..........

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  62. बेहतरीन पंक्तियाँ.. दिल से दुआ है की आपकी कलम चलती रहे.....

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  63. नकारात्मक भाव,चाहे वे सच्चाई को ही क्यों न बयां करते हों,निराश करते हैं।

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  64. गर्दिशें सब भूल भी जाऊं पर ,
    रोज़ रोने के बहाने निकले ।बेहतरीन ग़ज़ल छोटी बहर की .बधाई .
    निर्मला जी यहाँ अमरीका में हमारे नाती भी यही सब कर रहे हैं -बाहर घर के अमरीकी खाद्य (बीफ ,टर्की ,चिकिन ,नहीं ,यहाँ तो डबल रोटी में भी बीफ होता है )नहीं खाते घर में दाल रोटी -लेदेकर एक आलू पराठा या प्लेन पराठा ,वाईट राईस या फिर नान औरदही , दबाके फीदर से दूध .बड़ी मुश्किल से डायपर से पिंड छुड्वाया है बेटी और दामाद ने .टी वी पर गेम तो यहाँ खुद माँ -बाप ही परोस देते हैं .खुद उन्हें दफ्तर के लिए तैयार जो होना है ।
    दो तरह के बच्चे आ रहें हैं एक वो जिनका ध्यान खाने की चीज़ों पर पूरा होता है यहाँ सर्विस काउंटर पर तीनचार तरह का टेट्रा पेक में दूध ,ज्यूस ,इफरात से रखा रहता है ,मल्टी ग्रेन सिरीयल दुनिया भर कारंग बिरंगा ,बे -इन्तहा विविधता है खाने पीने की चीज़ों की लेकिन बच्चे बहुत चूजी हैं जोर ज़बस्ती डाट डपट मार पीट का बच्चों के साथ यहाँ सवाल ही नहीं गोरों की देखा देखी ये कभी पोलिस को ९११ पर डायल करके आपको हैरानी में डाल सकतें हैं ।
    दूसरे ध्रुव पर हमारे यहाँ ऐसे भी बच्चे आते हैं जिनकी पहली नजर सर्विस काउंटर पर रखी चीज़ों पर पडती है घुसते ही कहेंगें -अंकल कैन आई टेक दिस .यहाँ नो का रिवाज़ नहीं है .तो समस्या "कुछ भी न खाने वाले" बच्चों की भी विकराल है यहाँ भी .शुक्रिया आपका .

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  65. दिल को छू गयी यह उम्दा ग़ज़ल.

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  66. अंतिम पंक्तियाँ बेहद गहन... सबके अपने-अपने इतने दुःख हैं कि उनको अपने दुःख और सुना-सुना कर बोझ बाधा देते हैं अनजाने में ही..
    और लिखना न रुके.. यही दुआ रहेगी हमेशा...

    परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

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  67. निर्मला जी कैसी हैं आप । जल्दी वापिस आइये ब्लॉग जगत में आपकी कमी महसूस हो रही है ।

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।