23 September, 2010

गज़ल्

आज गज़ल उसताद श्री प्राण शर्मा जी की एक गज़ल पढिये

ग़ज़ल - प्राण शर्मा

क्यों न हो मायूस मेरे राम जी अब आदमी
इक सुई की ही तरह है लापता उसकी खुशी

माना कि पहले कभी इतनी नहीं ग़मगीन थी
गीत दुःख के गा रही है हर घड़ी अब ज़िन्दगी

कितना है बेचैन हर इक चीज़ पाने के  लिए
आदमी को  चाहिए अब चार घड़ियाँ चैन की

झंझटों में कौन पड़ता है जहां में  आजकल
क़त्ल होते देख कर छुप जाते हैं घर में सभी

बात मन की क्या सुनायी जान कर अपना उसे
बात जैसे पर लगाकर हर तरफ उड़ने   लगी

दोस्ती हो दुश्मनी ये बात मुमकिन है मगर
बात ये मुमकिन नहीं कि दुश्मनी हो स्ती

दिन  में चाहे बंद कर लो खिड़कियाँ ,दरवाज़े तुम
कुछ न कुछ तो रहती ही है सारे घर  में रोशनी

कोई कितना भी  हो  अभ्यासी मगर ए दोस्तो
रह ही जाती है सदा अभ्यास में थोड़ी   कमी

हमने सोचा था  करेंगे काम अच्छा रोज़  हम 
सोच इन्सां की ए यारो एक सी कब है  रही

गर कहीं मिल जाए तुमको मुझसे मिलवाना  ज़रूर
एक मुद्दत से नहीं देखी  है  मैंने  सादगी

हो भले ही शहर कोई " प्राण "  लोगों से भरा
सैंकड़ों में मिलता  है पर संत जैसा आदमी 


21 September, 2010

दहेज्-- अपनी बात।

क्या सामर्थ्यवान लोगों को दहेज देना चाहिये?
 मेरे ब्लाग www.veerbahuti.blogspot.com/ पर एक लघु कथा-- दो चेहरे पढ कर खुशदीप सहगल जी ने अपने ब्लाग http://deshnama.blogspot.com/ पर अपने विचार दिये और कई लोगों ने भी अपने अपने विचार दिये। आज उन से ही मन मे कुछ सवाल उठे।किसी का उन से सहमत होना न होना जरूरी नही जरूरी है हम फिर भी संवाद करें और अपने अपने विचार दें तो शायद कोई बीच का रास्ता हमे भी सूझ जाये।
मेरी लघु कथा का जिक्र हुया मुझे खुशी हुयी।लेकिन उस लघु कथा मे विषय ये नही था कि दहेज लिया दिया जाये य नही मै तो बस ये कहना चाहती थी कि लोग  दोहरी नीति अपनाते हैं, जब समाज की बात आती है तो ये कुरीति बन जाती है जब अपने घर की बात आती है तो ये जायज़ है। लेकिन दहेज के बारे मे आज कुछ बातें करना चाहूँगी। कुछ लोगों ने दहेज के लिये कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से दहेज देना चाहता है तो उसमे कोई बुराई नही। इस बात पर मन मे कुछ सवाल और भ्रम से उत्पन हुये जिन्हें आपके साथ बाँटना चाहती हूँ। िस व्यवस्था के लचीले पन मे कुछ सवाल उभरते हैं।  जिस जगह भी कुछ लचीला पन रहा है वहाँ लोग अपने स्वार्थ के लिये राह तलाश लेते हैं। हर पक्ष के दो पहलू होते हैं,देखने वाली बात ये है कि दोनो मे कौन सा समाज के लिये हानिकारक है और कौन सा सिर्फ कुछ लोगों के खुद के लिये। जो समाज के लिये हनिकारक हो।
 सब से पहले तो हमे ये तय करना चाहिये कि क्या हम लडकियों को समान अधिकार देने के हक मे हैं या नही।
अगर हैं तो लडकी को जब लडकों की तरह पढाया लिखाया जाता है और पिता की सम्पति पर बेटी का भी बेटे के बराबर हक होता है तो फिर दहेज किस बात के लिये। उपर से लडकी ने अगर नौकरी करनी है तो उसकी पूरी कमाई ससुराल मे ही तो जायेगी। फिर भी लडकी वालों को ये मजबूरी क्यों कि वो दहेज दें। अगर सच कहें तो अधिकतर दहेज केवल मजबूरी मे दिया जाता है। वो मजबूरी चाहे समाज की रीत हो या फिर  अपने  मान सम्मान की। ये भावना दहेज की कुरीति से ही पनपी है कि इस पवित्र बन्धन को आज केवल पैसे से तौला जाने लगा है। इसे अपने सम्मान और प्रतिष्ठा से जोडा जाने लगा है।
दूसरी बात जो कुछ लोगों ने उठाई है वो है कि जो समर्थ है वो अगर अपनी मर्जी से अपनी बेटी को कुछ देता है तो उसमे कोई नुकसान नहीं। हाँ सही है, लेकिन इसी लेन देन से बाकी लोगों के लिये एक लकीर खींच दी जाती है कि उसने अपनी लडकी को इतना दिया और हम ने क्या दिया? या हमे क्या मिला?  फिर जब एक ही घर मे दो बहुयें आती हैं एक को माँ बाप ने कैश या दहेज दिया दूसरी बहु बिना कुछ लिये आयी तो घर मे ही दो लकीरें खिंच जाती हैं। हमारा समाज इतना भी उदार नही हुया कि ऐसी बहुयों मे फर्क करना छोड दे।  अपनी एक रिश्तेदारी की बात बताती हूँ।  उन्होंने जब लडकी का रिश्ता किया तो शादी से पहले ही बात हो गयी कि दहेज नही लेंगे। लडकी  बहुत अच्छी जाब कर  रही थी। एक महीने मे 60 हजार रुपये तन्ख्वाह लेती थी। शादी धूम धाम से हो गयी और उसके दो माह बाद ही दूसरे बेटे की शादी की तो उसके माँ बाप ने अपनी लडकी के नाम दहेज  के रूप मे 10 लाख रुपये जमा करवा दिये। अब धीरे धीरे छोटी बहु तो सब की आँखों का तारा बन गयी वो भी जाब करती थी, मगर घर का कोई काम काज आदि नही करती थी और ऐश से रहती। वहाँ दूसरी बहु को पूरा घर भी सम्भालना पडता, मगर घर के लोग दूसरी को कुछ नही कहते।अब बडी बहु के माँ बाप रिटायर हो चुके थे जो धन मिला उससे घर बनाया और तीनों बच्चों को अच्छी तालीम भी दी। कोई सरकारी नौकरी मे कितना धन जोड सकता है आखिर जब लडकी को ताने मिलने लगे तो उन्होंने कुछ राशी लडकी के नाम दे दी।। वो राशी ये सोच कर भी दी कि  दी कि उनके कोई बेटा नही मरने के बाद भी इसी का होगा। उसके बाद मजबूरी मे दूसरी लदकी को भी उतना ही देना पडा। और सारी जमा पूँजी समाप्त हो गयी।लेकिन कुछ समय बाद घर मे बीमारी ने ऐसे पाँव फैलाये कि वो लोग पैसे के अभाव मे आ गये।
आज वो उस की पूर्ती अपने खाने दाने मे और अपनी जरूरतों मे कटौती कर के कर रहे हैं जबकि ससुराल वाले उस बहु की इतनी बडी कमाई से शाही जीवन जी रहे हैं । ऐसे कितने उदाहरण अपने आस पास के दे सकती हूँ।
 अब अगर वो लाखों न दिया होता तो शायद अब उनके काम आता लडकियाँ चाहे कमाती हों मगर इतनी भी आज़ाद नही हुयी कि वो अपने माँ बाप पर अपनी मर्जी से कोई बडा खर्च कर सकें। फिर ऐसे हालात मे जहां बहु की कद्र सिर्फ पैसे से होती हो। इन्सान का मन बहुत विचित्र है। पैसा बडे बडों का ईमान गिरा देता है ये तो आपने देखा ही होगा जैसे इस परिवार का गिराया है। पहले चाहे उन्हों ने इसे कुरीति ही मान कर दहेज नही लिया मगर जब अपने आप आ गया तो लालच बढ गया। अगर आप गौर करें तो देहेज प्रथा मे  लचीलापन उन लोगों की सोच है जिनके लडके हैं। लडकी वालों मे बहुत कम लोग होंगे जो समर्थ होते हुये भी दहेज देना चाहेंगे। ये प्रथा है इस लिये उन्हें ये अपनी बेटी का मान सम्मान लगता है, तो इसे बुरा नही मानते। मगर ये बाकी समाज के असमर्थ लोगों के लिये मजबूरी बन जाता है।
मेरा मानना है कि जिस जगह लचीनापन होता है वहाँ अपने अपने स्वार्थ के लिये रास्ते जरूर खुल जाता हैं।  अगर यही लचीलापन हम केवल लडकियों को बराबरी का हिस्सा देने मे रखें तो शायद बाकी असमर्थ लोगों को कुछ राहत मिले।हिस्सा देने मे जो कुछ विसंगतियाँ आती हों उनके लिये हल खोजे जा सकते हैं।
एक सवाल और पूछना चाहती हूँ कि क्या जो लोग दहेज की हिमायत करते हैं वो इस बात की भी हिमायत करेंगे कि उनका बहु जो कमाती है उसमे से आधा अपने माँ बाप को दे कम से कम बुढापे मे उनके गुजर बसर का जिम्मा ले? कहने को तो हर कोई कह देगा लेकिन होगा नही। जिन के बेटे नही होते उन माँ बाप से तो लडके वालों की और भी आपेक्षायें बढ जाती हैं। कि बाद मे भी तो लडकी को ही मिलेगा इस लिये पहले ही उनकी आँखें लडकी वालों की सम्पति पर लग जाती हैं। इससे पहले कि वो अपना पैसा कहीं और न लुटा दें उन्हे मिल जाये। फिर हर तौहारों पर लेन देन केवल लडकी वालों की जिम्मेदारी होती है। इस प्रथा मे यही काफी नही कि दहेज दिया और छुट्टी मिल गयी। हर त्यौहार पर ससुराल वालों की आपेक्षायें बढती ही जाती हैं, जैसे बेटी को जन दे कर उन्हों ने कोई गुनाह किया है जिस की सजा उन्हें उम्र भर मिलती रहेगी।
 कुछ दिन पहले ही किसी के घर मे ऐसा वाक्या हुया कि लडकी को  अपने माँ बाप के पास जमीन खरीदने के लिये पैसे लेने भेजा गया।  लेकिन लडकी के बाप के पास जो था उसी मे से अपना गुजर बसर करते थे। जब इन्कार किया तो लडकी  को मायके भेजना बन्द कर दिया। अब मरता क्या न करता कुछ पैसे दे कर अपनी बेटी से मिलने का हक लिया।
  कि बाद मे भी तो लडकी को ही मिलेगा इस लिये पहले ही उनकी आँखें लडकी वालों की सम्पति पर लग जाती हैं।
 बहुत कुछ इस विषय पर लिखा जा सकता है। मगर पोस्ट बडी नही करना चाहती। बस एक बात कहना चाहती हूँ कि अपनी सामर्थ्य और अपने मान सम्मान के लिये दिया गया दहेज क्या असमर्थ लोगों के लिये मजबूरी तो नही बन रहा? क्योंकि कई बार ससुराल वाले ताने दे देते हैं देखों फलाँ के घर कितना कुछ आया और तुम्हारे माँ बाप ने क्या दिया। और दिये गये समान मे मीन मेख निकलनी शुरू हो जाती है जिस से सास बहु मे या बाकी सब के दिलों मे मन मुटाव शुरू हो जाता है।अगर ये सब जायज़ है तो समान अधिकारों की बात छोडो।ऎसे कानून का विरोध करो जो लडकी को समान अधिकार देता है।
आज जिस समाज मे लोगों की सोच ये है कि पडोसी को देख कर अपना रहन सहन उनसे ऊँचा रखने की रेस लग जाती है, उस समाज मे ये लचीलापन एक अभिशाप से कम नहीं। फिर भी ये सब होता रहेगा हम और आप केवल बहस करते रहेंगे। बस ।सब की अपनी अपनी भावनायें अपनी अपनी सोच है।
किसी व्यवस्था मे उसके प्रबन्धन मे लचीलापन उस व्यवस्था के लिये घातक होता है, जैसे एक बाप घर की व्यवस्था मे  कई बार सख्ती से काम लेता बच्चों की बेहतरी के लिये  लेकिन माँ का व्यवहार लचीला  होता है जब माँ बच्चों की गलतियाँ  बाप से छुपाती है तो बच्चों को मनमर्जी करने की आदत पड जाती है। और कई बार आपने सुना होगा अकसर ये कहा जाता है इसे माँ ने बिगाडा है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि जहाँ लचीलपन होता है वहीं से लोग अपने स्वार्थ का रास्ता तलाश लेते हैं। इन्सान के आपसी व्यवहार  और रिश्तों मे लचीनापन उस व्यवस्था को मजबूत करता है, लेकिन बुनियादी ढाँचे मे हानिकारक होता है। घर की नींव मजबूत हो लेकिन उपर की सज्जा अपनी सामर्थ्य के अनुसार हो यहाँ लचीलापन चलेगा लेकिन नींव मे नही। । अगर आज हमारे संविधान मे लचीलापन न होता तो शायद आज देश का ये हाल न होता। स्वतन्त्रता जब अभिशाप बन जाये तो स्वतन्त्रता के क्या मायने? पंजाबी की कहावत है कि
"भट्ठ पिया सोना जेहडा कन्ना नूँ खावे"  अर्थात उस सोने का क्या फायदा जो कानो को नुकसान दे।
 एक बात और जैसा हमारी हिन्दू संस्कृ्ति व जीवन दर्शन मे[बाकी धर्मों मे भी}, हमारे लिये रहन सहन के नियम  तय किये गये हैं क्या हम उनके अनुसार अपना रहन सहन या व्यव्हार करते हैं। नही!  हम उन्हें रूढीवादी कह कर अपने हिसाब और सुविधा से जीते हैं। तो फिर उस समय के हिसाब से चली व्यवस्था अगर समाज को हानि पहुंचा रही है तो उसे बदलने की जरूरत क्यों नही। लेकिन होगा तब जब हम अपनी सोच को इस जमाने के हिसाब से बदलेंगे। न कि लडकी को अभी भी निरीह प्राणी समझेंगे । शादी सामाजिक व्यवस्था का एक   जरूरी अंग ,इसे सार्थक और सुन्दर बनाने के लिये हमे ऐसी कुरीतियों का विरोध करना ही होगा।  इसकुरीति के चलते  न तो भ्रूण हत्यायें रुकेंगी और न दहेज हत्यायें। धन्यवाद।

19 September, 2010

लघु कथा

दहेज--{ दो चेहरे --  -2}-- लघु कथा
दो चेहरों वाले व्यक्तित्व पर कुछ सवाल उठे थे।मगर समाज मे ऐसे चेहरे हर जगह देखे जा सकते हैं उसी संदर्भ मे कुछ लघु कथायें लिखनए जा रही हूँ। नाम तो दो चेहरे ही रहेगा मगर कडी का नम्बर साथ दूँगी। 

आज जोशी जी अपने लडके के लिये लडकी देखने जा रहे थे। वो ुच्च पद से रिटायर्ड व्यक्ति थे एक ही बेटा था इस लिये चाहते थे कि शादी धूम धाम से हो। उच्च पद पर रहने से शहर मे उनकी मान प्रतिष्ठा थी। कई संस्थायें उन्हें अपने समारोह मे बुलाती जहाँ कई बार उन्हें समाज मे पनप रही बुराईओं पर वक्तव्य भी देने पडते। इस लिये लोग उन्हें समाज सुधारक भी मानते थे।
लडकी के घर पहुँचे। लडके लडकी मे बात चीत हुयी और दोनो ने एक दूसरे को पसंद कर लिया। लडकी के पिता को अन्दर से ये डर खाये जा रहा था कि पिछली बार की तरह इस बार भी दहेज पर आ कर बात न्न अटक जाये। पिछली बार लडके ने कार की माँग रख दी थी। उन्होंने अपना शक मिटाने के लिये जोशी जी से पूछा
" जोशी जी , अब आगे की बात भी हो जाये।यूँ तो हर माँ बाप अपनी बेटी को कुछ न कुछ दे कर ही विदा करता है, फिर भी अगर आपकी   कोई डिंमाँड हो तो हमे निस्संकोच बता दें ।"
" शर्मा जी आपको पता है हमारे घर मे भगवान का दिया सब कुछ है अगर फिर भी आप इतना आग्रह कर रहे हैं तो बता देना चाहता हूँ कि हमे कुछ नही चाहिये, आप कन्यादान स्वरूप  इन दोनो के नाम एक ज्वाँइट एकाउँट खुलवा कर उसमे राशी जमा करवा दें"