03 April, 2010

इधर उधर की

इधर उधर की
सोचा था अमेरिका जा कर रोज़ पोस्ट लिखा करूँगी, रोज़नामचे की तरह मगर कुछ दिन तो जेट लैग की वजह से नही लिख पाई फिर एक दो दिन घूमने चले गये और अब फ्लू ने घेर लिया। यहाँ फ्लू इतना भयानक फैला हुया है कि एक बार पकड ले तो छोडने का नाम नही लेता ।भारत की बहुत याद आ रही है। मेरे पतिदेव का तो बिलकुल मन नही लग रहा। कहाँ तो सारा दिन इतने लोगों से मिलना जुलना और कितनी जगह आना जाना कहाँ अब दिन भर कमरे मे बन्द रहना । शाम को चाहे रोज़ घूमने जाते हैं मगर ठंड इतनी पड रही है , बारिश दो दिन से लगातार हो रही है सैर करने भी अधिक देर नही जाया जाता। घर मे हीटर लगा कर बैठे हैं। नातिन स्कूल गयी है बेटी की डाक्टर के पास एपोईँटमेन्ट थी वो लोग भी गये है, तो सोचा 10 मिन आपलोगों से बात कर लूँ।सामने खिडकी मे से बहुत सुन्दर नज़ारा दिख रहा है, बहुत सुन्दर गार्डन पीछे पहाड सब कुछ उजला सा , सोचा शायद कोई कविता लिख पाऊँ मगर दिमाग मे एक शब्द भी नही आ रहा, पता नही क्यों लगता है कि कहीं कुछ मिस्सिन्ग है शायद हवा मे अपने देश की मिट्टी की खुश्बू नही है वो एहसास नही हैं, कुछ तो है जो कुछ भी लिख नही पा रही। नींद नही आती अपना बिस्तर और घर याद आता है। शायद उस बिस्तर की सलवटों मे कुछ लोरियाँ कुछ एहसास हैं जो मीठी नींद ले आते हैं। बेशक यहाँ बहुत कुछ अपने देश से अच्छा भी है मगर अपने देश जैसा प्यार और मेल जोल नही है। इस मैंशन मे भारत्तीय लोगों ने आपस मे बहुत अच्छे सम्बन्ध बना रखे हैं, मुश्किल मे एक दूसरे का साथ भी देते हैं। कितने दिन से मेरी बेटी बहुत बिमार थी तो उसकी सहेलियाँ ही बारी बारी से खाना बना कर भेजती रही और उसे पूछती रही। हम लोग आये तो मिलने भी आयी। और हमे अपने घर भी बुलाया है। छुट्टी के दिन जायेंगे।एक दिन सैनफ्राँसिसको घूमने गये तो पतिदेव की तबीयत खराब हो गयी । सफर मे मन खराब होने लगता है।इस हफ्ते लास एन्जलेस् जाने का विचार था मगर कपिला साहिब मान नही रहे। देखते हैं अगर सब की तबीयत ठीक हुयी तो जायेंगे। सैन्फ्रांम्सिसको के भ्रमण का हाल फिर लिखूँगी। ये पोस्ट इस लिये लिख रही हूँ कि कहीँ आपलोग मुझे भूल ही न जायें।