02 October, 2010

गज़ल ------

बहुत दिनों से हाथ पाँव  पटक रही थी कि मुझे गज़ल सीखनी है। मगर ये उम्र और मन्द बुद्धि! कहीं से बहर की नकल कर लेती और टूटी फूटी गज़ल लिख लेती हूँ।अब तक  ये इल्म नही था कि बहरें  क्या होती हैं। नाम जरूर सुन लिया करती। बडे भाई साहिब श्री प्राण शर्मा जी को इस्सलाह के लिये भेज देती। अब उनके पास भी इतना तो समय नही कि मुझे गज़ल की ए बी सी विधीवत रूप से सिखा सकें। उनसे सवाल भी तो ही कर सकती हूँ अगर मुझे पहले गज़ल के बारे मे कुछ पता हो। फिर भी अब तक उनसे बहुत कुछ सीखा है और सीखती रहूँगी, और श्री तिलक राज कपूर जी, सर्वत भाई साहिब को भी काफी तंग किया है। तिलक भाई साहिब ने पहले पहल मुझे कुछ नोट्स भेजे थे उन से भी बहुत कुछ सीखा उनका भी धन्यवाद करना चाहूँगी। फिर ये अल्प बुद्धि मे बहुत कुछ पल्ले नही पडा।मगर गज़ल के सफर { श्री पंकज  सुबीर जी का गज़ल का ब्लाग} से और उनसे पूछ कर बहुत कुछ सीखा। फिर भी अभी बहुत कुछ सीखना है अभी तो ए बी. सी ही हुयी है।  तो  आज मै अपने सब से छोटे भाई श्री पंकज सुबीर जी से लड पडी। कि मुझे अपने गुरूकुल मे दाखिला दें। मगर उनकी  --- क्या कहूँ--- स्नेह ही कह सकती हूँ, कि "दी" का मोह नही त्याग रहे।  मुझे "निम्मो दी" कह कर टाल रहे हैं।  अभी अर्ज़ी पूरी स्वीकार नही हुयी। मगर मै भी कहाँ पीछे हतने वाली हूँ। आज से जब भी मै गज़ल की बात करूँगी तो उन्हें गुरू जी ही कहूँगी। गज़ल के सफर मे उनके ब्लाग से ही गज़ल के बारे मे विधिवत रूप से जान सकी हूँ । इसके लिये गुरूदेव की आभारी हूं। आज उनके आशीर्वाद से ये गज़ल आपके सामने रख रही हूँ। आज कल वो कुछ मुश्किल दौर मे हैं कामना करती हूँ कि उनकी सभी मुश्किलें जल्दी दूर हों और वो अपने गुरूकुल वापिस लौटें। गुरू जी का धन्यवाद। मिसरा उनका ही दिया हुया है---- नहीं ये ज़िन्दगी हो पर मेरे अशआर तो होंगे,

गज़ल

नहीं ये ज़िन्दगी हो पर मेरे अशआर तो होंगे,
मुहब्बत मे किसी के वास्ते उपहार तो होंगे |

रहे आबाद घर यूं ही, सदा खुशियाँ यहाँ बरसें,
न होंगे हम तो क्या, अपने ये घर परिवार तो होंगे|

ये ऊंचे नीचे रस्‍ते जिंदगी जीना सिखाते हैं
नहीं हो कुछ भी लेकिन तजरुबे दो चार तो होंगे

बिना कारण नही ये दौर नफरत का जमाने मे
कहीं फेंके गये नफरत के कुछ अंगार तो होंगे

यूं ही मरती रहेगी हीर अपनों के ही हाथों से
रहेंगे मूक जब तक लोग अत्याचार तो होंगे

नहीं उत्‍साह अब मन में मनाएं जश्‍ने आज़ादी
कहीं हम आप सब भी इसके जिम्‍मेदार तो होंगे

कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
छुपे  कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे

79 comments:

  1. बहुत सुन्दर गज़ल
    सभी शेर शानदार ...

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  2. आखरी कलाम में अपना नाम 'मजाल' जोड़ देतें है यूँ,
    सीखने को आप ग़ज़ल तैयार तो होंगे .. ?

    काफी अच्छी है, कुछ शेर बेहद उम्दा है... जारी रखिये ...

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  3. निर्मला जी आज की गजल से तो यही लग रहा है कि आप तो पूरी उस्‍ताद हो गयी हैं। अरे क्‍या एक से बढ़कर एक शेर हैं, आनन्‍द आ गया। बेहतरीन रचना पढ़ने का आनन्‍द ही कुछ और है। बस ऐसे ही शेर हमें उपलब्‍ध कराती रहें, शुभकामनाएं।

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  4. अब आप विधिवत् ग़ज़लकार होती जा रही हैं। ग़ज़ल में सोच भी है और सरोकार भी।
    ईश्‍वर करे आ और आपके उपहार साथ-साथ बने रहें।

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  5. मैं भी कुछ ए बी सी सीख आता हूँ, फिर ही प्रतिक्रिया देने की कोशिश करूँ

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  6. बिना कारण नही ये दौर नफ़रत का जमाने मे,
    कहीं फेंके गये नफ़रत के कुछ अंगार तो होगे।

    वाह !

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  7. हम न होंगें तो घर परिवार तो होंगें -बहुत सुन्दर

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  8. निर्मला जी , यह एक शिष्या की नहीं --एक गुरु की ग़ज़ल लग रही है । बहुत अच्छा लिखा है । मुझे लगता है , इसे पढ़कर सभी जाने माने ग़ज़लकार आनंदित हो जायेंगे । बधाई ।

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  9. किसी के पास जाने की ज़रूरत नहीं है। वहां से जो आप सीखेंगी,वह किसी पैटर्न पर ही आधारित होगा। बस,लिख डालिए। क्या पता,कोई नई विधा चल पड़े!

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  10. दीदी आपके प्रयास सफ़ल होवें

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  11. भैया को मानना ही होगा हमें लगता है दीदी के गुरु बनने में कुछ संकोच है.
    पंकज भैया बायोलाजिकल नही होते गुरु आप दी की बात स्वीकारिये सत्याग्रह-प्रारम्भ करें क्या ?

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  12. "रहे आबाद घर यूं ही, सदा खुशियाँ यहाँ बरसें,
    न होंगे हम तो क्या, अपने ये घर परिवार तो होंगे|"
    बेहद सुन्दर. लगता है आप तो डॉक्टरेट के करीब हैं.

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  13. nimmee di bolne wala ek aur aagaya aaj se aapkee jindgee me...........
    ek ek sher anmol hai...........
    badhaee.......

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  14. निर्मला माँ,
    नमस्ते!
    मीनिंगफुल और लयबद्ध!

    मैं भी, मैं भी......

    हम ना भीग पायें बेशक उनमें,
    कल भी मगर गिरते आब'शार तो होंगे!

    मुहब्बत नहीं किस्मत में बेशक हमारी,
    झूठे ही सही इज़हार तो होंगे!

    जीते जी तो ना हो पाया खुदा हासिल,
    मौत के बाद सही, दीदार तो होंगे!

    बदतमीजी के लिए माफी!
    आशीष

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  15. मैं गजल के बारे में कुछ भी नहीं जनता। हॉं, इतना अवश्‍य पता है कि इसका भी अपना वैयाकरणिक अनुशासन होता है। आप इस अनुशासन का पाठ पढ कर गजल लिखना चाह रही हैं, यह प्रशंसनीय तो है ही, इस जमाने में विलक्षण बात भी है। अन्‍यथा, आज तो हर कोई गजलकार बन रहा है। आपको अभिनन्‍दन और शुभ-कामनाऍं।

    यहॉं प्रस्‍तुत गजल के कुछ शेर अच्‍छे लगे। क्रम निरन्‍तर रखिएगा। 'करत-करत अभ्‍यास के, जडमति होत सुजान।' आप तो बेहतर स्थिति में हैं।

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  16. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे ..

    शानदार ..!
    मुझे भी अपनी एक निम्मो दी याद आ रही हैं!

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  17. बिना कारण नही ये दौर नफरत का जमाने मे
    कहीं फेंके गये नफरत के कुछ अंगार तो होंगे
    बहुत सच्ची बात कही है शेर में...
    कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे
    बिल्कुल...बस ऐसे लोगों से सावधान रहने की ज़रूरत है...
    अच्छी ग़ज़ल पेश करने के लिए शुक्रिया.

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  18. गजल के बारे में तो खास आइडिया नहीं .. पर इन्‍हें पढकर अच्‍छा लगा!!

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  19. शानदार अल्फाजों से सजी एक बेहतरीन ग़ज़ल!
    ये भी और वो भी जिसका विडियो आप ने साइड बार में लगाया हुआ है.

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  20. शानदार अल्फाजों से सजी एक बेहतरीन ग़ज़ल!
    ये भी और वो भी जिसका विडियो आप ने साइड बार में लगाया हुआ है.

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  21. बाप रे! दी, तुम ने मुझे चित करने का पूरा इंतज़ाम कर लिया है. इतनी मुकम्मल गज़ल, मैं तो स्तब्ध हूं. हां, मतला थोडा कमज़ोर है, वो भी पहला मिसरा. थोडी सी मेहनत और फिर ये छोटा भाई चित.

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  22. वाह... वाह...

    समर्पित कुछ पंक्तियाँ.

    खिलेंगे फूल-लाखों बाग़ में, कुछ खार तो होंगे.
    चुभेंगे तिलमिलायेंगे, लिये गलहार तो होंगे..

    लिखे जब निर्मला मति, सत्य कुछ साकार तो होंगे.
    पढेंगे शब्द हम, पर व्यक्त बे-आकार तो होंगे..

    कलम कपिला बने तो, अमृत की रसधार हो प्रवहित.
    'सलिल' का नमन लें, अब हाथ-बन्दनवार तो होंगे..

    - Sanjiv 'Salil'

    http://divyanarmada.blogspot.com

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  23. नहीं उत्‍साह अब मन में मनाएं जश्‍ने आज़ादी
    कहीं हम आप सब भी इसके जिम्‍मेदार तो होंगे
    ********************************
    कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे

    सुन्दर भावमयी ग़ज़ल
    बहुत बधाई

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  24. बहुत सुंदर रचना.

    रामराम.

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  25. वाह , बहुत खूबसूरत गज़ल ...हर शेर मन को छूता हुआ ..बधाई

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  26. इसकी बहर ऐसी है कि कइयों ने अपनी टिप्पणियों में ग़ज़ल कह डाली है. यह ग़ज़ल की परिपक्वता दर्शाता है. आपको बहुत बधाई.

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  27. ये बढती उम्र उसपर सीखने जज़्बा निम्मो दी
    कहीं दिल में छुपे अनुभव के कुछ अशआर तो होंगे.

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  28. अभ्यास जारे रहे यह कामना

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  29. नहीं उत्‍साह अब मन में मनाएं जश्‍ने आज़ादी
    कहीं हम आप सब भी इसके जिम्‍मेदार तो होंगे

    बेहतरीन ग़ज़ल है...हर शेर लाज़बाब

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  30. नहीं उत्‍साह अब मन में मनाएं जश्‍ने आज़ादी
    कहीं हम आप सब भी इसके जिम्‍मेदार तो होंगे
    कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे
    ....माँ जी !बहुत ही अच्छी गजल ... लगता है अच्छे गजलकार अगर आपकी गजल पढ़ ले तो मुझे पूरा यकीं हैं की वे उन्मुक्त कंठ से आपकी प्रसंशा किये बिना नहीं रह सकेंगें... आप धुन की पक्की है शायद तभी ऐसी परिपक्वता झलकती है... सच है धुन के पक्के इंसान के लिए कुछ भी असंभव नहीं ....हार्दिक शुभ कामनाएं .. आपने ब्लॉग पर पूछा...क्या कहूँ ..... आजकल बच्चों की परीक्षा और ऑफिस में ट्रेनिंग के चलते कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो चली हूँ इसलिए संवाद कुछ अवरुद्ध सा हो चला है.... आप अपना ख्याल रहिएगा जी...सादर

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  31. चल पड़े जिधर दो पग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
    पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गये कोटि दृग उसी ओर।
    नमन बापू!

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  32. गुरुदेव की बात ही निराली है ....
    पर आपका भी जवाब नही है ... इतने बेहतरीन शेर, लाजवाब ख्यालात है की हर शेर पर वाह वाह निकलता है .... कमाल है और सलाम है आपकी लेखनी को ....

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  33. आप तो सिद्धहस्त हैं, नवोदित कहने की भूल कौन करेगा।

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  34. हमें तो आपकी ये गजल बहुत बढिया लगी...मान को भायी!

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  35. ise sikhna kahenge to daudna kise kahenge ...... gazal mein bhi aapne maharath hasil ker li

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  36. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे

    कितनी बड़ी बात कह दी निर्मला दी ! काश यह बात लोग समझते और दूसरों की आँख में पड़े तिनके गिनने की जगह अपनी आँख में पड़े शहतीर को निकाल पाते ! सबसे पहले गद्दारों से अपना घर आँगन साफ़ करने की सख्त ज़रूरत है ! उनकी सहायता सहयोग के बिना कोई घुसपैठ नहीं कर सकता ! बहुत खूबसूरत गज़ल ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत बहुत बधाई !

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  37. निर्मला जी,
    कुछ दिनों से दैनिक जीवन अस्तव्यस्त है। इस ने सब से अधिक पढ़ने को प्रभावित किया है। कल शिवराम जी ने अलविदा कह दी। वे मेरे पथ प्रदर्शक थे। 35वर्षों का साथ था। अभी उन के संस्कार से लौट कर आया हूँ।
    ग़ज़ल खूबसूरत बनी है। खास तौर पर ये शेर बहुत उम्दा लगा...

    यूं ही मरती रहेगी हीर अपनों के ही हाथों से
    रहेंगे मूक जब तक लोग अत्याचार तो होंगे

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  38. वाह वाह्…………………बेहद शानदार गज़ल है………………हर शेर ज़िन्दगी की दास्तान कह रहा है।

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  39. इतने गुणीजन आपके साथ है तो हम क्या कह सकते हैं ।
    शानदार ,शानदार और शानदार ।

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  40. बहुत सुन्दर!
    --

    दो अक्टूबर को जन्मे,
    दो भारत भाग्य विधाता।
    लालबहादुर-गांधी जी से,
    था जन-गण का नाता।।
    इनके चरणों में मैं,
    श्रद्धा से हूँ शीश झुकाता।।

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  41. निर्मला जी,
    बेहद उम्दा,
    मैं गज़ल की अलिफ़ बे भी नहीं जानता लेकिन यहां हिंदी के एक-दो शब्दों की जगह आप उर्दू के लफ़्जों का इस्तेमाल करें तो शायद और निखार आएगा...जैसे उपहार की जगह तोहफ़े बेशुमार, उत्साह की जगह जोश...मूक की जगह ख़ामोश, अत्याचार की जगह सितमों के वार (या सितमसार) का ज़रा इस्तेमाल कर देखिए...

    जय हिंद...

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  42. और घर परिवार की जगह घर-बार...

    जय हिंद...

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  43. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे

    बहुत ही अच्छी लगी आप की यह गजल ओर गजल का एक एक शेर, धन्यवाद

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  44. कहां हिम्मत है ग़ैरों में, तबाही कर चले जाएं,
    छुपे कुछ अपने ही घर में कुछ गद्दार तो होंगे।

    इस ग़ज़ल को पढ़कर कौन कहेगा कि आप अभी ग़ज़ल लिखना सीख रही हैं, आप तो अब दूसरों को सिखा सकती हैं ...बहुत ही शानदार ग़ज़ल...एक एक शे‘र लाजवाब...बधाई।

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  45. यूं ही मरती रहेगी हीर.................

    बहुत सटीक बात ,अत्याचार को देखकर भी मौन ...अत्याचार ही है

    कहां हिम्मत है ग़ैरों........
    सतर्क रहने और समझदारी से काम लेने की आवश्यकता है

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  46. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! सभी शेर एक से बढ़कर एक है! सुन्दर प्रस्तुती!

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  47. Bahut hi sundar aur hridayasparshi gajal----Bapu evam Shastree ji ke janmdivas ki hardik shubhkamnayen.
    Poonam

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  48. सुंदर जज्बातों से सजाया हर शेर लाजवाब है.
    बहुत उम्दा गज़ल.
    बधाई.

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  49. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे ..
    ---------------------------------
    कितना अच्छा लिखा आपने... बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही .... सार्थक और प्रासंगिक

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  50. आदरणीया मौसी निर्मला कपिला जी
    प्रणाम !
    वाह ! वाऽह ! वाऽऽऽह ! ।
    बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है …

    न होगी ज़िदगी, लेकिन मेरे अशआर तो होंगे
    मुहब्बत मे किसी के वास्ते उपहार तो होंगे

    मतला ही ऐलान कर रहा है कि संसार के लिए कितने ख़ूबसूरत उपहार आपके ख़ज़ाने में हैं ।
    सलाम !

    रहे आबाद घर यूं ही, सदा खुशियां यहां बरसें
    न होंगे हम तो क्या, अपने ये घर परिवार तो होंगे

    आंखें नम हो गईं , कसम से …


    कहां हिम्‍मत है ग़ैरों में, तबाही कर' चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे


    आपके इस शे'र पर मुझे मेरी ग़ज़ल का एक शे'र याद हो आया …
    सादर आपको समर्पित है -

    चमन के सरपरस्तों से न गर नादानियां होतीं
    न हरसू ख़ार की नस्लें गुलिस्तां में अयां होतीं


    पूरी ग़ज़ल के लिए एक बार फिर बधाई
    और
    बहुत बहुत शुभकामनाएं

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  51. बहुत अच्छी लगी आपकी गज़ल ।

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  52. अच्छी ग़ज़ल,बधाई

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  53. मैं दो दिन के लिए कहीं गई थी..लौटकर देखा तो आपकी गज़ल...क्या बात है, लग ही नहीं रहा है कि आप अभी गज़ल लिखना सीख रही हैं...अरे कमाल कर दिया आपने..बहुत गज़ब की है....मजा आ गया पढ़कर...

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  54. बेहतरीन रचना , शुभकामनाएं।

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  55. निर्मला जी,
    यह तो आपकी विनम्रता है की आप अपनी गज़लों को टूटी फूटी बोल रहीं हैं.
    यह गज़ल बहुत ही अच्छी है. सभी शेर बहुत पसंद आये.

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  56. निर्मला जी, कृपया अपने ब्लॉग की बैकग्राउंड बदल दें, पढने में बहुत परेशानी होती है।
    ................
    .....ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

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  57. ईतनी सुंदर गजल!...बधाई!...मै यहां देर से पहुंची!...क्षमा चाहती हुं!....

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  58. एक निहायत ही मुरस्सा और बढ़िया गज़ल
    -रमेश जोशी

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  59. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे

    Aah! Kitna saty hai!

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  60. रहे आबाद घर यूं ही, सदा खुशियाँ यहाँ बरसें,
    न होंगे हम तो क्या, अपने ये घर परिवार तो होंगे|

    ये ऊंचे नीचे रस्‍ते जिंदगी जीना सिखाते हैं
    नहीं हो कुछ भी लेकिन तजरुबे दो चार तो होंगे
    bahut hi khoobsurat gazal likha hai .

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  61. तो आपका ग्रेजुएशन हो गया लगता है । बहुत ही बढिया गज़ल । ये वाले शेर तो खूब ही अच्छे लगे ।
    नहीं उत्‍साह अब मन में मनाएं जश्‍ने आज़ादी
    कहीं हम आप सब भी इसके जिम्‍मेदार तो होंगे

    कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे
    वाह वाह ।

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  62. Nimmo di.........:) (ye to bada pyara naam hai)

    waise di, mujhe to gajal kya kavita bhi kya hoti hai, nahi pata!!

    bas padh leta hoon, aur jo kaan ko behtar lagta hai......kah deta hoon:)

    rahe abdad ghar yun hi,
    sada khushiyan yahan barse...

    pyari pankti.....:)

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  63. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे


    बहुत उम्दा!!

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  64. बहुत सुन्दर गज़ल है।
    सभी शेर शानदार ।बधाई स्वीकारें।

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  65. बहुत सुन्दर गज़ल है।
    सभी शेर शानदार ।बधाई स्वीकारें।

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  66. कहां हिम्‍मत है गैरों में, तबाही कर चले जाएं
    छुपे कुछ अपने ही घर में कहीं ग़द्दार तो होंगे

    behatreen sher, aur ghazal bhi kamaal ki hai ...

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  67. ऐसे ही गद्दारों से सावधान रहना है ...

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  68. ऐसे ही गद्दारों से सावधान रहना है ...

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  69. एक उम्दा ग़ज़ल ! बधाई !

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  70. बेहतरीन ग़ज़ल है...हर शेर लाज़बाब

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।