05 September, 2010

   बहुत दिन से कुछ अच्छा लिखा नही गया। मूड बनाने के लिये कुछ यत्न करते हैं। चलो आज आपको प्राण भाई साहिब के साथ मेले मे घुमाते हैं। पढिये उनकी गज़ल मेले मे।
मेले में -- प्राण शर्मा
                  
घर वापस जाने की सुधबुध बिसराता है मेले में
लोगों की रौनक में जो भी   खो   जाता है मेले में
 
किसको याद  आते हैं घर के दुखड़े,झंझट और झगड़े
हर कोई खुशियों में खोया   मदमाता    है   मेले में
 
नीले -  पीले लाल- गुलाबी   पहनावे   हैं   लोगों     के
इन्द्रधनुष   का  सागर    जैसे   लहराता    है   मेले   में
 
सजी   -  सजाई    हाट - दुकानें   खेल - तमाशे  और झूले
कैसा  -  कैसा   रंग    सभी   का भरमाता  है   मेले   में
 
कहीं  पकौड़े  , कहीं   समोसे ,  कहीं   जलेबी   की महकें
मुँह   में   पानी   हर   इक  के  ही भर आता है मेले   में
 
जेबें   खाली  कर   जाते हैं   क्या   बच्चे   और क्या  बूढ़े
शायद    ही    कोई      कंजूसी      दिखलाता   है मेले   में
 
तन    तो क्या मन भी मस्ती में झूम उठता है हर इक का
जब   बचपन    का   दोस्त अचानक मिल जाता है मेले में
 
जाने  -  अनजाने   लोगों   में   फर्क   नहीं    दिखता    कोई
जिससे     बोलो    वो    अपनापन    दिखलाता   है   मेले  में
 
डर  कर   हाथ   पकड़   लेती   है हर माँ अपने   बच्चे    का
ज्यों    ही    कोई    बिछुड़ा   बच्चा   चिल्लाता   है   मेले में
 
ये दुनिया   और   दुनियादारी    एक    तमाशा    है     भाई
हर    बंजारा    भेद     जगत   के     समझाता    है    मेले   में
 
रब    न   करे    कोई    बेचारा    मुँह   लटकाए    घर     लौटे
जेब    अपनी   कटवाने    वाला     पछताता     है     मेले    में
 
राम   करे  ,  हर   गाँव -  नगर   में   मेला  नित दिन लगता हो
निर्धन   और  धनी   का    अंतर    मिट  जाता    है   मेले    में
 
 

40 comments:

  1. सुन्दर, सहज और सरल वर्णन ...

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  2. बिल्कुल सच्ची बात।
    निर्धन और धनी का अन्तर मिट जाता है मेले में।

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  3. बहुत खूब । सरल शब्दों में सुन्दर रचना । बचपन के मेलों की याद आ गई ।

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  4. अच्छा वर्णन है मेले का ।

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  5. निर्मला जी, बहुत अच्‍छी रचना पढ़वाने के लिए आभार। अपना फोन नम्‍बर दीजिएगा, बहुत दिन हो गए बात नहीं हुई है। मन बहल जाएगा।

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  6. अनुपम ग़ज़ल..........

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  7. kis sher ki taarif karoon kiski na karoon vaah vaah.

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  8. मेले की ग़ज़ल बेमिसाल है| प्राण साहब को पढ़ना हमेशा ही सुखद होता है
    ?ब्रह्मांड

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  9. बहुत हो लाजवाब ग़ज़ल है प्राण साहब की .... ये उनकी लेखनी का कमाल है की हूबहू उतार देते हैं माहौल को .....

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  10. बहुत ही सहज अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  11. प्राण साहब को पढ़ना अच्छा लगता है बचपन तक घुमा लाये है प्राण साहब

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  12. बिछुडे़ बच्चे के चिल्लाने पर माँ का हाथ पकड़ लेना...

    बहुत सुन्दर चित्र दिया है. प्राण जी को पढ़कर हमेशा ही एक सुखद अनुभूति होती है.

    आपका बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए.

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  13. मेले का सुन्दर वर्णन

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  14. आपका मूड बन जाने की कामना करता हूँ!
    --
    भारत के पूर्व राष्ट्रपति
    डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
    शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  15. आपका मूड बन जाने की कामना करता हूँ!
    --
    भारत के पूर्व राष्ट्रपति
    डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
    शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  16. बहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुती!
    शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  17. सही में मेला चीज ही ऐसी है...जहां जा कर मनुष्य अपना स्वत्व खो देता है...आनंद ही आनंद होता है..दुःख दर्द सब पीछे छूट जाते है!.....प्राण भाई साहब की सुंदर रचना पेश की है आपने!...धन्यवाद!

    मेरा उपन्यास प्रकाशक श्री शैलेश भारत वासी भिजवा देंगे!..उनके ई-मेल "Shailesh Bharatwasi" , पर आप सम्पर्क करें! अथवा मेरे ई-मेल पर अपना address भेज दें...मै यहां से भिजवा दूंगी!... अपनी सेहत का ध्यान रखें!...

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  18. डर कर हाथ पकड़ लेती है....
    ..सुंदर गज़ल पढ़वाई आपने..आभार।

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  19. डर कर हाथ पकड़ लेती है....
    ..सुंदर गज़ल पढ़वाई आपने..आभार।

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  20. डर कर हाथ पकड़ लेती है हर माँ अपने बच्चे का
    ज्यों ही कोई बिछुड़ा बच्चा चिल्लाता है मेले में।

    वाह ! बहुत खूब ! दिल को छू गया यह शेर !
    सुभाष नीरव

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  21. सुन्दर मेला चित्रण .

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  22. प्राण जी, आप ने मेले का एक सम्पूर्ण चित्र खींचने का सफल प्रयास किया है. मेले की खुशी, मेले का डर और मेले का मनोविज्ञान सब कुछ समेट लिया है. जब मेले की बात आती है तो दुष्यंत का एक शेर याद आता है...
    दुकानदार तो मेले में लुट गये यारों
    तमाशबीन दुकानें लगा के बैठ गये.
    यह सामाजिक राजनीतिक विसंगति का एक अन्य पहलू है. यह मेले के माध्यम से राजनीति की बात है जब कि प्राण जी ने मेले के हृदय को अभिव्यक्ति दी है. बधाई

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  23. मेले की सुंदर यादों को समेटे एक बढ़िया ग़ज़ल...प्रणाम माता जी

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  24. बहुत सुंदर रचना, अब मेले बस याद आते हैं, वो पहले जैसे मेले लगते कहां हैं?

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  25. आँखें नम हो गई, इतने बेहतरीन गीत के सम्मान में.
    आपके भी हम आभारी हैं जो आपने हमें आइसे गीत से रु-ब-रु कराया

    हार्दिक धन्यवाद

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  26. अब तो सारे संस्कृतिक कार्यक्रमों को लोग फिजूलखर्ची की नज़रों से देखने लगे हैं, ऐसे में पहले सा मेले में मज़ा कहाँ रह गया................

    सुन्दर ग़ज़ल से रु-ब रु करने का हार्दिक आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  27. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  28. दी, क्यों हम गरीबों की इतनी कठिन परीक्षा ले रही हो. प्राण जी की रचना और नाचीज़ टिप्पणी दे-- औकात ही नहीं है. मैं तो सिर्फ एक जुमला कह सकता हूँ-----
    शानदार चमत्कार.
    बहुत दिनों बाद आया हूँ, आप के परिवार में किसी के गुज़र जाने की घटना जान कर दुखी हूँ.
    बहुत जल्द आमने-सामने की मुलाक़ात करने वाला हूँ.

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  29. bahut sunadar ...vastaw me bachpan ke kisi mele me hee pahuch gaye

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  30. Bahut sundar saral aur sarthak rachna---shoping malls aur big bazars ke chakkar men ab to log melon ko bhoolte hee ja rahe hain.aise men yah rachna kuchh to yad dilayegee logon ko.
    Poonam

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  31. आपकी वापसी ही काफी है हमारे लिए ... आदरणीय प्राण साब की ग़ज़लों का तो हमेशा से ही मुरीद रहा हूँ ...


    अर्श

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  32. अच्छी लगी यह गज़ल ।

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  33. Nirmala ji Pran sahab ki mele kee gajal ne to raunake laga di. Bahut abhar aapka ye gajal padhwane ka.

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  34. मेले का वर्णन अच्छा लगा ......बहुत अच्छी रचना !!

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  35. प्राण शर्मा जी की ग़ज़लें अपने आप में ग़ज़ल का पाठ रहती हैं, मेरी तो कोशिश रहती है तत्‍काल ग़ज़ल का अनुसरण कर कम से कम एक शेर कहलूँ।

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।