गज़ल।
कैसे कैसे शौक मन मे मै जगाया करता हूँकागज़ों की कश्तियाँ जल मे बहाया करता हूँ
जानता हूँ मै हवा के सरफिरे झोंके मगर
ताश के पत्तों के फिर भी घर बनाया करता हूँ
थोडी है सादा दिली और थोडी है मुझ मे अदा
इसलिए मै ज़िन्दगी को रास आया करता हूँ
क्यों न ओढूँ नित सच्चाई को सवेरा होते ही
रात भर माना कि मैं सपने सजाया करता हूँ।
काम कानों का भी करते हैं नयन ए दोस्तो
इस लिए मैं गीत बहरों को सुनाया करता हूँ
प्राण कंजूसी दिखाऊँ ये कभी मुमकिन नहीं
मैं खजाने प्यार के खुल कर लुटाया करता हूँ
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteकमेन्ट की समस्या यहाँ रिपोर्ट करें
http://spreadsheets.google.com/viewform?formkey=dEpRZEk5YzRmVUQ5d3B4ZFVSYVQ1UFE6MQ
शुक्रिया इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए !
ReplyDeleteबहुत उत्तम गजल। बस ऐसे ही पढ़वाती रहें। आपके यहाँ तो बाढ़ नहीं आयी ना?
ReplyDeleteकागज की कश्तियां जल में बहाया करता हूं, बहुत ही सुन्दर शब्द संयोजन, बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल पढवाने के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल्।
ReplyDeleteइसी तरह प्रेम लुटाते रहें सब।
ReplyDeletegazal ki saari ki saaripanktiyan hi bhaut hi khoob surat lagi.
ReplyDeletepoonam
Pran saahab to vaise bhi GAZAL UTAADON mein se hain .. unki kalam se likha har sher gazab dha deta hai .... bahut hi kamaal ki gazal ...
ReplyDeletePran saahab to vaise bhi GAZAL UTAADON mein se hain .. unki kalam se likha har sher gazab dha deta hai .... bahut hi kamaal ki gazal ...
ReplyDeleteनिर्मला जी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आभार.
ReplyDeleteतभी मैं कहूँ की आधे घंटे की बारिश से दिल्ली में इतना पानी कहाँ से आया ?????आपने ये जो प्रेम की नदियाँ बहाई है.
थोड़ी है सदा दिली और थोड़ी मुझमे है अदा ..
ReplyDeleteइसलिए ही मैं जिंदगी को रास आया करता हूँ ...
कुछ कुछ खट्टी कुछ कुछ मीठी जिंदगी तभी तो
कम कानो का भी करते हैं नयन ...
और आँखें दिल का बयान ...!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पढवाने के लिए बहुत आभार ...
कमेंट्स की प्रॉब्लम और भी कई ब्लोग्स पर हैं ...कई ब्लॉग तो खुलते ही नहीं या बहुत समय ले रहे हैं ...
बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल है, शुक्रिया
ReplyDeleteBehad khoobsoorat gazal hai!
ReplyDeletebahut hi badhiyaa
ReplyDeleteबढ़िया गजल है!
ReplyDelete--
आपकी बहुमुखी प्रतिभा का कायल हूँ!
गजल बहुत ही सुंदर है!... मजा आ गया!... कोमेन्ट्स का पता नहीं ऐसा क्यों रहा है!... कोमेन्टस दिखते नहीं है!
ReplyDeleteइसी तरह लिखती रहे आप
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
और हां.. मिल चुके सम्मान के लिए भी दोबारा शुभकामनाएं
रंजन जी धन्यवाद देखती हूँ उस साईट पर जा कर।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना , निर्मला जी ।
ReplyDeleteप्राण सर ऐसे ही नहीं सिरमौर शायरों में से एक हैं... आभार मासी..
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteरामराम.
बेहतरीन गजल निर्मला जी....
ReplyDeleteगजल का पाँचवा शेर तो कमाल का लगा...
आभार्!
खूबसूरत भावनात्मक गजल
ReplyDeleteएक सुंदर गजल से रू ब रू करवाने का सुक्रिया... कमेंट का प्रोब्लम कई जगह है, लेकिन अब सुधर गया लगता है.. हाँ, कुछ ब्लॉग पर जाते ही सिस्टम बंद हो जा रहा है..
ReplyDeleteकागज की कश्तियां जल में बहाया करता हूं..
ReplyDeleteसुंदर गजल......
माता जी सुंदर शब्द संयोजन से बनी एक बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए आभार..साथ ही साथ प्राण जी को भी बधाई...
बहुत सुंदर........बेहतरीन गज़ल है..........
ReplyDeletebahut pasand aayi aapki rachanaa
ReplyDeletebahut sundar gjal
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल!!!
ReplyDeleteaafareen!
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteनिर्मला जी
ReplyDeleteकथित समाजसेविकाओं के बारे में आप लिख सकती है. आपको पूछना भी नहीं चाहिए था.
आपको पूरा अधिकार है.
धन्यवाद.
मन को छू गये आपके जज्बात।
ReplyDelete--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
कट - पेस्ट करने की सुविधा जरूरी है. जो शेर अच्छा लगा उसका हवाला दिया जा सकता है..आगे आपकी मर्जी.
ReplyDeleteइस ग़ज़ल का प्रभाव सकारात्मक, उत्पादक व रचनात्मक है।
ReplyDeleteशुक्रिया इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए
ReplyDeleteममतामयी निर्मला कपिला मौसीजी
ReplyDeleteब्लॉगोत्सव में वर्ष की श्रेष्ठ कहानी लेखिका पुरस्कार पाने पर हार्दिक बधाई !
आदरणीय प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल पढ़ने का अवसर देने के लिए आभार !
प्राण साहब का जवाब नहीं …
जानता हूँ मै हवा के सरफिरे झोंके मगर
ताश के पत्तों के घर फिर भी बनाया करता हूं
सच फ़रमाते हैं …
'प्राण' कंजूसी दिखाऊं ये कभी मुमकिन नहीं
मैं खजाने प्यार के खुल कर लुटाया करता हूं
प्यार-ख़ुलूस और अदब-ओ-फ़न के न खत्म होने वाले ख़ज़ाने जिनके पास हैं , वे इसी अंदाज़ से जीते हैं ।
आप दोनों का आभार !
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं