13 July, 2010

गज़ल

कुछ दिन से मेरे ब्लाग पर पूरे कमेन्ट पोस्ट नही होते --मुझे मेल आती है कि कमेन्ट किया था मगर पोस्ट पर नही दिखा। और मैं भी कई बार  किसी की पोस्ट पर कमेन्ट करती हूँ तो दोबारा देखती हूँ तो कमेन्ट वहाँ नही होता। क्या और भी किसी के ब्लाग पर ये प्राबलम है। अगर नही तो मेरे ब्लाग पर क्यों है क्या कोई बता सकता है? देखिये और साथ ही श्री प्राण शर्मा जी की एक प्यारी से गज़ल पढिये------

गज़ल।
कैसे कैसे शौक मन मे मै जगाया करता हूँ
कागज़ों की कश्तियाँ जल मे बहाया करता हूँ

जानता हूँ मै हवा के सरफिरे झोंके मगर
ताश के पत्तों के फिर भी घर बनाया करता हूँ

थोडी है सादा दिली और थोडी है मुझ मे अदा
इसलिए मै ज़िन्दगी को रास आया करता हूँ

क्यों न ओढूँ नित सच्चाई को सवेरा होते ही
रात भर माना कि मैं सपने सजाया करता हूँ।

काम कानों का भी करते हैं नयन ए दोस्तो
इस लिए मैं गीत बहरों को सुनाया करता हूँ

प्राण कंजूसी दिखाऊँ ये कभी मुमकिन नहीं
मैं खजाने प्यार के खुल कर लुटाया करता हूँ

38 comments:

  1. बहुत सुन्दर..


    कमेन्ट की समस्या यहाँ रिपोर्ट करें

    http://spreadsheets.google.com/viewform?formkey=dEpRZEk5YzRmVUQ5d3B4ZFVSYVQ1UFE6MQ

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  2. शुक्रिया इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए !

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  3. बहुत उत्तम गजल। बस ऐसे ही पढ़वाती रहें। आपके यहाँ तो बाढ़ नहीं आयी ना?

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  4. कागज की कश्तियां जल में बहाया करता हूं, बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द संयोजन, बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  5. खूबसूरत ग़ज़ल पढवाने के लिए आभार

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  6. बहुत सुन्दर गज़ल्।

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  7. इसी तरह प्रेम लुटाते रहें सब।

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  8. gazal ki saari ki saaripanktiyan hi bhaut hi khoob surat lagi.
    poonam

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  9. Pran saahab to vaise bhi GAZAL UTAADON mein se hain .. unki kalam se likha har sher gazab dha deta hai .... bahut hi kamaal ki gazal ...

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  10. Pran saahab to vaise bhi GAZAL UTAADON mein se hain .. unki kalam se likha har sher gazab dha deta hai .... bahut hi kamaal ki gazal ...

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  11. निर्मला जी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आभार.
    तभी मैं कहूँ की आधे घंटे की बारिश से दिल्ली में इतना पानी कहाँ से आया ?????आपने ये जो प्रेम की नदियाँ बहाई है.

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  12. थोड़ी है सदा दिली और थोड़ी मुझमे है अदा ..
    इसलिए ही मैं जिंदगी को रास आया करता हूँ ...

    कुछ कुछ खट्टी कुछ कुछ मीठी जिंदगी तभी तो

    कम कानो का भी करते हैं नयन ...
    और आँखें दिल का बयान ...!

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल पढवाने के लिए बहुत आभार ...

    कमेंट्स की प्रॉब्लम और भी कई ब्लोग्स पर हैं ...कई ब्लॉग तो खुलते ही नहीं या बहुत समय ले रहे हैं ...

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  13. बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल है, शुक्रिया

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  14. बढ़िया गजल है!
    --
    आपकी बहुमुखी प्रतिभा का कायल हूँ!

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  15. गजल बहुत ही सुंदर है!... मजा आ गया!... कोमेन्ट्स का पता नहीं ऐसा क्यों रहा है!... कोमेन्टस दिखते नहीं है!

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  16. इसी तरह लिखती रहे आप
    बहुत ही सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
    और हां.. मिल चुके सम्मान के लिए भी दोबारा शुभकामनाएं

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  17. रंजन जी धन्यवाद देखती हूँ उस साईट पर जा कर।

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  18. बेहतरीन रचना , निर्मला जी ।

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  19. प्राण सर ऐसे ही नहीं सिरमौर शायरों में से एक हैं... आभार मासी..

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  20. बहुत सुंदर गजल.

    रामराम.

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  21. बेहतरीन गजल निर्मला जी....
    गजल का पाँचवा शेर तो कमाल का लगा...
    आभार्!

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  22. खूबसूरत भावनात्मक गजल

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  23. एक सुंदर गजल से रू ब रू करवाने का सुक्रिया... कमेंट का प्रोब्लम कई जगह है, लेकिन अब सुधर गया लगता है.. हाँ, कुछ ब्लॉग पर जाते ही सिस्टम बंद हो जा रहा है..

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  24. कागज की कश्तियां जल में बहाया करता हूं..

    सुंदर गजल......

    माता जी सुंदर शब्द संयोजन से बनी एक बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए आभार..साथ ही साथ प्राण जी को भी बधाई...

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  25. बहुत सुंदर........बेहतरीन गज़ल है..........

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  26. bahut pasand aayi aapki rachanaa

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  27. बेहतरीन ग़ज़ल!!!

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  28. खूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया.

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  29. निर्मला जी
    कथित समाजसेविकाओं के बारे में आप लिख सकती है. आपको पूछना भी नहीं चाहिए था.
    आपको पूरा अधिकार है.
    धन्यवाद.

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  30. कट - पेस्ट करने की सुविधा जरूरी है. जो शेर अच्छा लगा उसका हवाला दिया जा सकता है..आगे आपकी मर्जी.

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  31. इस ग़ज़ल का प्रभाव सकारात्‍मक, उत्‍पादक व रचनात्‍मक है।

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  32. शुक्रिया इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए

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  33. ममतामयी निर्मला कपिला मौसीजी
    ब्लॉगोत्सव में वर्ष की श्रेष्ठ कहानी लेखिका पुरस्कार पाने पर हार्दिक बधाई !
    आदरणीय प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल पढ़ने का अवसर देने के लिए आभार !

    प्राण साहब का जवाब नहीं …

    जानता हूँ मै हवा के सरफिरे झोंके मगर
    ताश के पत्तों के घर फिर भी बनाया करता हूं

    सच फ़रमाते हैं …
    'प्राण' कंजूसी दिखाऊं ये कभी मुमकिन नहीं
    मैं खजाने प्यार के खुल कर लुटाया करता हूं


    प्यार-ख़ुलूस और अदब-ओ-फ़न के न खत्म होने वाले ख़ज़ाने जिनके पास हैं , वे इसी अंदाज़ से जीते हैं ।
    आप दोनों का आभार !
    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।