05 July, 2010

अनन्त आकाश भाग --2

अनन्त आकाश भाग-- 2

 पिछली  किशत मे आपने पढा कि मेरे घर के आँगन मे पेड पर कैसे चिडिया और चिडे का परिवार बढा और कैसे उन्हों ने अपने बच्चों के अंडों से निकलने से ले कर उनके बडे होने तक देख भाल की---- पक्षिओं मे भी बच्चों के लिये इस अनूठे प्यार को देख कर मुझे अपना अतीत याद आने लगता है। अब आगे पढें------
इधर उधर से पक्षी आते और छत पर पडा लड्डूओं का चूरा खाते और उड जाते। आज चिडिया के बच्चों के जन्म के साथ आँगन मे कितनी रौनक आ गयी थी।
ऐसी ही रौनक अपने घर मे भी थी जब हमारे बडा बेटा हुया था। मेरी नौकरी के कारण मेरे सासू जी भी यहीं आ गये थे। स्कूल से आते ही बस व्यस्त हो जाती। हम उसे पा कर फूले नही समा रहे थे अभी से कई सपने उसके लिये देखने लगे थे। इसके बाद दूसरा बेटा और फिर एक बेटी हुयी। तीन बच्चे पालने मे कितने कष्ट उठाने पडे ,ये सोच कर ही अब आँखें भर आती कभी कोई बच्चा बीमार तो कभी कोई प्राबलेम । जब कभी सासू जी गाँव चली जाते तो कभी छुट्टियाँ ले कर तो कभी किसी काम वाले के जिम्मे छोड कर इन्हें जाना पडता ।  अभी बेटी 6 माह की हुयी थी कि सासू जी भी चल बसीं। बच्चों की खातिर मुझे नौकरी छोडनी पडी।उस दिन मुझे बहुत दुख हुया था। मेरी बचपन से ही इच्छा थी कि मै स्वावलम्बी बनूँगी-- मगर हर इच्छा कहाँ पूरी होती है! इनका कहना था कि आदमी अपने परिवार के लिये इतने कष्ट उठाता है अगर अच्छी देख भाल के बिना बच्चे ही बिगड गये तो नौकरी का क्या फायदा । मुझे भी इनकी इस बात मे दम लगा। मगर  बच्चे कहाँ समझते हैं माँ बाप की कुर्बानियाँ  ।उन्हें लगता है कि ये माँ बाप का फर्ज़् है बस। मै नौकरों के भरोसे बच्चों को छोडना नही चाहती थी। हम जो आज़ाद पँछी की तरह हर वक्त उडान पर रहते अब बच्चों के कारण घर के हो कर रह गये।

बच्चे स्कूल जाने लगे ।छोटी बेटी भी जब पाँचवीं मे हो गयी तो लगा कि अब समय है बच्चे स्कूल चले जाते हैं और मै नौकरी कर सकती हूँ। वैसे भी तीन बच्चों के पढाई एक तन्ख्वाह मे क्या बनता है। भगवान की दया से एक अच्छी नौकरानी भी मिल गयी। मैने भाग दौड कर एक नौकरी ढूँढ ली। पता था कि मुश्किलें आयेंगी-- घर परिवार-- और-- नौकरी -- बहुत मुश्किल काम है। मगर मैने साहस नही छोडा बच्चों को अगर उच्चशिक्षा देनी है तो पैसा तो चाहिये ही था।

बच्चे पढ लिख गये बडा साफट वेयर इन्ज्नीयर बना और अमेरिका चला गया दूसरा भी स्टडी विज़ा पर आस्ट्रेलिया चला गया। बेटी की शादी कर दी।हम दोनो बच्चों के विदेश जाने के हक मे नही थे मगर ये विदेशी आँधी ऐसी चली है कि बच्चे पीछे मुड कर देखते ही नही जिसे देखो विदेश जाने की फिराक मे है। बच्चे एक पल भी नही सोचते कि बूढे माँ बाप कैसे अकेले  रहेंगे-- कौन उनकी देखभाल करेगा।कितना खुश रहते हम बच्चों को देख कर। घर मे चहल पहल रहती। कितना भी थकी होती मगर बच्चों के खान पान मे कभी कमी नहीं रहने देती। खुद हम दोनो चाहे अपना मन मार लें मगर बच्चों को उनके पसंद की चीज़ जरूर ले कर देनी होती थी। छोटे को विदेश भेजने पर इनको जो रिटायरमेन्ट के पैसे मिले थे लग गयी ।कुछ बेटी की शादी कर दी। घर बनाया तो लोन ले कर अब उसकी किश्त कटती थी ले दे कर बहुत मुश्किल से साधारण रोटी ही नसीब हो रही थी।
मगर बच्चों को इस बात की कोई चिन्ता नही थी।बच्चों के जाने से मन दुखी था। मुझे ये भी चिन्ता रहती कि वहाँ पता नही खाना भी अच्छा मिलता है या नही-- कभी दुख सुख मे कौन है उनका वहाँ दिल भी लगता होगा कि नही। जब तक उनका फोन नही आता मुझे चैन नही पडती। हफते मे दो तीन बार फोन कर लेते।
बडे बेटे के जाने पर ये उससे नाराज़ थे। हमारी अक्सर इस बात पर बहस हो जाती। इनका मानना था कि बच्चे जब हमारा नही सोचते तो हम क्यों उनकी चिन्ता करें। जिन माँ बाप ने तन मन धन लगा कर बच्चों को इस मुकाम पर पहुँचाया है उनके लिये भी तो बच्चों का कुछ फर्ज़ बनता है। वैसे भी बच्चों को अपनी काबलीयत का लाभ अपने देश को देना चाहिये। मगर मेरा मानना था कि हमे बच्चों के पैरों की बेडियाँ नही बनना चाहिये। बडा बेटा कहता कि आप यहाँ आ जाओ -- मगर ये नही माने--- हम लोग वहाँ के माहौल मे नही एडजस्ट कर सकते।

 बडे बेटे ने वहाँ एक लडकी पसंद कर ली और हमे कहा कि मै इसी से शादी करूँगा। आप लोग कुछ दिन के लिये ही सही यहाँ आ जाओ। मगर ये नही माने। उसे कह दिया कि जैसे तुम्हारी मर्जी हो कर लो। दोनो पिता पुत्र के बीच मेरी हालत खराब थी किसे क्या कहूँ? दोनो ही शायद अपनी अपनी जगह सही थे। उस दिन हमारी जम कर बहस हुयी।---

"मै कहती हूँ कि हमे जाना चाहिये। अब जमाना हमारे वाला नही रहा। बच्चे क्यों हाथ से जायें?"

" वैसे भी कौन सा अपने हाथ मे हैं-- अगर होते तो लडकी पसंद करने से पहले कम से कम हमे
पूछते तो ?बस कह दिया कि मैने इसी से शादी करनी है आप आ जाओ। ये क्या बात हुयी?"

" देखो अब समय की नज़ाकत को समझो। जब हम अपने आप को नही बदल सकते , वहाँ एडजस्ट नही कर सकते तो बच्चों से क्या आपेक्षा कर सकते हैं फिर हमने अपनी तरह से जी लिया उन्हें उनकी मर्ज़ी से जीने दो। फिर हम भी तो माँ बाप को छोड कर इस शहर मे आये ही थे!"

" पर अपने देश मे तो थे।जब मर्जी हर एक के दुख दुख मे आ जा सकते थे। वहाँ न मर्जी से कहीं आ जा सकते हैं न ही वहाँ कोई अपना है।"

कई बार मुझे इनकी बातों मे दम लगता । हम बुज़ुर्गों का मन अपने घर के सिवा कहाँ लगता है? जो सुख छजू दे चौबारे वो न बल्ख न बुखारे। मै फिर उदास हो जाती । बात वहीं खत्म हो जाती।
एक दिन इन्हों ने बेटे से कह दिया कि हम लोग नही आ सकेंगे  तुम्हें जैसे अच्छा लगता है कर लो हमे कोई एतराज़ नही।  मै जानती थी कि ये बात इन्होंने दुखी मन से कही है।
बेटे ने वहीं शादी कर ली। और हमे कहा कि आपको एक बार तो यहाँ आना ही पडेगा। इन्हों ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं वहाँ तुम मेडिकल का खर्च भी नही उठा पाओगे, आयेंगे जब तबीयत ठीक होगी। बेटा चुप रह गया। मगर मै उदास रहती । एक माँ का दिल बच्चों के बिना कहाँ मानता है? छोटे को अभी दो तीन वर्ष और लगने थे पढाई मे उसका भी क्या भरोसा कि वो भी यहाँ वापिस आये या न।
एक साल और इसी तरह निकल गया। बेटे के बेटा हुया। उसका फोन आया तो मारे खुशी के मेरे आँसू निकल गये।उसने कहा कि माँ हमे जरूरत है आपकी आप कुछ दिन के लिये आ जाओ।
इन्हें खुशखबरी सुनाई मगर इन के चेहरे पर खुशी की एक किरण भी दिखाई नही दी।----- क्रमश:

31 comments:

  1. अभी भाग १ पढ़ रहा हूँ.

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  2. चिड़िया , उसके बच्चे, और सोच की बानगी .... अन्दर में उमड़ते भावनाओं के साथ मैं पढ़ गई इस सत्य को , पर कुछ कहने में असमर्थ हूँ...

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  3. kahani bahut acchi hai...agli kadee kaa intejaar rahegaaa.

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  4. आपके आशीर्वाद और स्नेह के लिए आभारी हूँ.
    " अभी पहली किश्त पढनी है, कहानी की पहली पंक्ति में चिड़िया के घरोंदे के बारे में पढ़ कर उत्सुकता जग गयी की आगे क्या हुआ , आगे की कड़ी का इंतजार है, और पहली कड़ी पढने जा रही हूँ.."
    regards

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  5. माता-पिता के मन का द्वंद्व पूरी तरह दिख रहा है ।

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  6. कहानी की दोनों कड़ियाँ एक साथ पढ़ीं... बहुत मार्मिक चित्रण है...एक एक शब्द दिल से निकला हुआ और दिल से ही महसूस हुआ...ऐसे हर माता पिता के मन की बात कह दी है ...

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  7. कहानी की मार्मिकता के बारे में लिखने लगूं तो मेरे शब्‍द सही तरह से शायद व्‍यक्‍त न कर पायें, बहुत ही सुन्‍दर सजीव चित्रण ।

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  8. Aisa laga jaise mai swayam ko padh rahi hun...Aisahi laga tha jab bitiya America chali gayi..

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  9. विरह व्यथा का विस्तृत वर्णन अच्छा लग रहा है पढ़ना अभी इस स्थिति को आने में समय लगेगा फिर भी अपने आप को तैयार कर रही हूँ

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  10. माँ बाप का दर्द पूरी तरह उभर कर आ रहा है………………मगर वक्त ही ऐसा आ गया है कि कुछ नही किया जा सकता।

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  11. बहुत मार्मिकता से लिखी हैं आपने ये २ किश्ते ..दिल को छूती है कहानी ..अगली कड़ी का इंतज़ार है.

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  12. पढ रहा हूं मस्ती से आप की यह मार्मिक कहानी... अगली कडी का इंतजार है

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  13. uttam soch..aur matr sneh ke darshan.yahee hain Nirmala ji aap ka vyaktitv....

    bachche kyun haath se jayen??

    thodi see soch badley to kai masle hal hon jayen ..

    regards
    Sehar

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  14. कहानी बहुत ही नाज़ुक मोड पर छोड़ी है...और आगे का इंतज़ार है...

    हर भारतीय माँ-बाप की और विदेश में बैठी औलाद की आप-बीती कह डाली.

    बहुत सुंदर.

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  15. आपकी रचना हमेशा से कुछ छूटने वाली चीजों से साक्षात्कार कराती है. आपको बधाई.

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  16. कहानी प्रवाह के साथ आगे बढ़ रही है!
    --
    बधाई!

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  17. रचना का प्रवाह और पत्रों की स्थिति बांधे हुए है। रोचकता बनी हुई है। अगले अंक की प्रतीक्षा है।

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  18. भाग एक और दो दोनों आज ही पढ़े। मजा आ गया। सोच रहा हूं इतने दिन से कहां था मैं। क्यों नहीं खोज पाया इसे। धन्य हो गया। वाह। अब तो जल्दी से अगला अंक पढऩे का मन कर रहा है। आपको साधुवाद।

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  19. दर्द को उकेरती ये कहानी अपने पूरे प्रवाह में चल रही है...आगामी कडी की प्रतीक्षा में!
    आभार्!

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  20. ये कहानी जाने कितनों का दर्द बंटाने का काम करती है.. और साथ ही एक सार्थक सन्देश देती है कि वास्तव में जीवन जीने का सही तरीका क्या है.. आभार मासी..

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  21. रोचकता बनी हुई है। अगले अंक की प्रतीक्षा है।

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  22. आपने सही फरमाया है निर्मलाजी!... वात्सल्य के मामले में चिडिया और मनुष्य एक जैसे ही तो होते है!... अपने जिगर के टुकडों को टूट कर ही चाहते है!...आगे की कहानी का इंतजार है!

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  23. दोनों किश्त आज ही पढ़ी ..मन भीग भी गया ...एक शहर या अपने देश में होने से ये इत्मीनान तो रहता है की जब चाहे , मिल ले ..!

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  24. बहुत संवेदना है इस कहानी में ... बहुत से परिवारों की आप बीती लिख रही हैं आप ....

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  25. माँ-बाप के दिल की व्यथा बहुत ही अच्छे से व्यक्त हुई है...बहुत ही मार्मिक कहानी...अगली कड़ी का इंतज़ार है.

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  26. माँ-बाप के दिल की व्यथा बहुत ही अच्छे से व्यक्त हुई है...बहुत ही मार्मिक कहानी...अगली कड़ी का इंतज़ार है.

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  27. 'अनंत आकाश' की दोनों कड़ियाँ एक साथ पढ़ी हैं ! यहाँ ४ जुलाई अमेरिका का स्वतन्त्रता दिवस होने के कारण लंबी छुट्टी पड़ गयी थी इसलिए पढने का अवसर नहीं मिला ! बहुत ही यथार्थपरक और मार्मिक कहानी है ! दिल के कहीं बहुत करीब ! अगली कड़ी की अधीरता से प्रतीक्षा है ! आशा है आप पूर्णत: स्वस्थ होंगी !

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  28. संवेदनाओं से भरपूर एक बढ़िया रचना प्रस्तुत किया आपने..परिवार के अंदर हर एक रिश्ते और उसके बीच उठने वाली छोटी-मोटी लहरों का बखूबी वर्णन किया आपने..आज कल यही हो रहा है माता जी बच्चे बड़े हो रहे है तो उन्हे पंख से लग जाते है हाँ ये भी बात होती है कि वो अपने भविष्य के साथ माँ-बाप का भी उतना ही ध्यान देते है पर माँ-बाप को इस उम्र में और कुछ चाहिए ही नही उन्हे तो बस बच्चे का साथ चाहिए..बस आधुनिकता की चकाचौंध में आज की पीढ़ी यही नही समझ पाती.....बहुत सुंदर भाव को समेटे हुई सुंदर प्रस्तुति...बधाई माता जी..प्रणाम

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  29. आगे की कहानी का बेसब्री से इन्तिज़ार है.....पहली कड़ी भी आज ही पढ़ी है....! जिज्ञासा बनी हुयी है अब आगे क्या होगा....!

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।