श्री प्राण शर्मा जी की गज़लें
बहुत दिन हुये प्राण भाई साहिब की पुस्तक "गज़ल कहता हूँ" मिली। मगर कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते उस पर कुछ कह नही सकी। गज़ल के बारे मे कुछ कहने लायक भी नहीं हूँ, मगर जो गज़लें मुझे दिल के करीब लगीं उन्हें आपको पढवाना चाहती हूँ। उनका परिचय किन्हीं शब्दों का मुहताज़ नही है। वो कई सालों से यू. के. मे रह कर हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, मगर उनका अपनी माटी से प्र्यार और उसे छोड कर विदेश जाने का दर्द्, उनकी साफ गोई इस शेर मे देखिये
कहीं धरती खुले नीले गगन को छोड आया हूँ।
कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ
एक उस्ताद शायर की शायरी मे क्या है? लीजिये उनकी पहली गज़ल का लुत्फ उठाईये----
कहीं धरती खुले नीले गगन को छोड आया हूँ।
कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ
एक उस्ताद शायर की शायरी मे क्या है? लीजिये उनकी पहली गज़ल का लुत्फ उठाईये----
गज़ल
आपको रोका है कब मेरे जनाब
शौक़ से पढ़िए मेरे दिल की किताब
बात सोने पर सुहागा सी लगे
सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब
साथ दुःख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
छोड़ अब दिन- रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब
वास्ता दुक्खों से पड़ता है हजूर
कौन रखता है मगर उनका हिसाब
धुंध पस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आये दिलों के आफताब
रोज़ ही इक ख्वाब से आये है तंग
" प्राण" परियों वालों हो कोई तो ख्वाब
आपको रोका है कब मेरे जनाब
शौक़ से पढ़िए मेरे दिल की किताब
बात सोने पर सुहागा सी लगे
सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब
साथ दुःख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
छोड़ अब दिन- रात का गुस्सा सभी
कम न पड़ जाए तेरे चेहरे की आब
वास्ता दुक्खों से पड़ता है हजूर
कौन रखता है मगर उनका हिसाब
धुंध पस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आये दिलों के आफताब
रोज़ ही इक ख्वाब से आये है तंग
" प्राण" परियों वालों हो कोई तो ख्वाब
प्राण जी की ग़ज़लों में एक आकर्षण सा होता है जो पढ़ने वाले का मन मोह लेता है....सुंदर प्रस्तुति माता जी बधाई
ReplyDeleteसाथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
ReplyDeleteकब जुदा होता है कांटे से गुलाब
यही तो जीवन है । अच्छी रचना
और हां कभी मुलाकात हुई तो लिट्टी जरूर खिला कर आपका आशीर्वाद लुंगा ।
कहीं धरती खुले नीले गगन को छोड आया हूँ।
ReplyDeleteकि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ
रोज़ ही इक ख्वाब से आये है तंग
" प्राण" परियों वालों हो कोई तो ख्वाब
बहुत सुन्दर शेर कहे हैं ।
पूरी ग़ज़ल शानदार ।
अहा!!बहुत सुन्दर गज़ल...प्राण जी की बात निराली.
ReplyDeleteधुंध पस्ती की हटे तो बात हो
ReplyDeleteकुछ नज़र आये दिलों के आफताब ।
बेहतरीन गज़ल, निर्मला जी । प्राणसाहब का जवाब नही ।
pran ji ki gazale taazagi bharee hoti hain unko padhana ek sukhad ehasaas ke saaye men hona hai .. sundar rachana ke liye unko badhayi aur aapko dhanyvaad .
ReplyDeleteSabhi ashar gazab hain...koyi ek yaa do chun nahi paa rahi!
ReplyDeleteati uttam!
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteआप का बहुत-बहुत आभार, इस सुन्दर सी रचना के लिये, जो आपके माध्यम से हमें पढ़ने को मिली।
ReplyDeleteयह सुन्दर गज़ल अपने ब्लॉग पाठकों तक लाने के लिए आपका भी धन्यवाद।
ReplyDeleteसरल शब्दों से उकेरे गहरे भाव ।
ReplyDeleteसुन्दर गज़ा. हमने इसी बहाने आपकी ग़ज़ल "ना तो रिश्ते न दोस्त कोई अपना मिला मुझको" का लुत्फ़ उठाया. आभार.
ReplyDeleteसाथ दुःख के होता है सुख कुछ न कुछ
ReplyDeleteकब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
बहुत खूब लाज़बाब है हर शेर..
प्राण जी की तो बात ही निराली है……………उनकी लिखी गज़ल पढवाने के लिये आभार्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल जी आप का ओर प्राणसाहब का धन्यवाद
ReplyDeletebada aanand mila.........
ReplyDeletepran ji ki gazalon me ek laybaddh pravah toh hota hi hai, sabse khaas baat hai content !
aapka bahut bahut shukriya
कहीं धरती खुले नीले गगन को छोड आया हूँ।
ReplyDeleteकि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ
दिल की तह तक पहुंचे ये शब्द ...
आभार निर्मला जी !
खूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteवास्ता दुक्खों से पड़ता है हजूर
ReplyDeleteकौन रखता है मगर उनका हिसाब..
dukhon ka hisaab rakhne se behtar hai unko jee lena..
अब उनकी क्या तारीफ करुँ.. इस लायक भी नहीं मैं अभी..
ReplyDeleteप्राण शर्मा जी की ग़ज़ल हमेशा की तरह बहुत अच्छी है आभार
ReplyDeleteप्राणजी को हमारा नमन और आपका आभार गजल उपलब्ध कराने के लिए।
ReplyDeleteगजल बहुत अच्छी लगी... श्री.प्राण शर्मा जी की गजलें मशहूर है!....और आपकी प्रस्तुति निर्मलाजी, हंमेशा की तरह लाजवाब है!
ReplyDeleteगजल बहुत अच्छी लगी... श्री.प्राण शर्मा जी की गजलें मशहूर है!....और आपकी प्रस्तुति निर्मलाजी, हंमेशा की तरह लाजवाब है!
ReplyDeletehrek sher khubsurat hai .
ReplyDeleteabhar
बहुत ही बेहतरीन गजलें हैं!
ReplyDeleteइतनी खूबसूरत गज़ल को हम सभी तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! आदरणीय प्राणजी की लेखनी को नमन !
ReplyDeleteSunder gazal ke leye shukria!!!
ReplyDeletebahut bahut shukriya...............
ReplyDeleteशुभकामनाएं शुभ काम के लिए।
ReplyDeleteसाथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
ReplyDeleteकब जुदा होता है कांटे से गुलाब
.... esi ka naam jiwan hai...
bahut achhi gajal lagi...
Prastuti hetu dhanyvaad.
वाह्! गजल वाकई बहुत सुन्दर बन पडी है.....
ReplyDeleteआभार्!
"Bikhare sitare" blog pe aapka comment: isme bhi kramash:?To yah jeevani mai punah prakashit kar rahi hun...satykatha hai.
ReplyDeleteAapka tahe dilse shukriya!
सरल शब्दों की सहज अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत....गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया!
निर्मला जी डी एल ए के ब्लागचिंतन में इस बार आप के ब्लाग की चर्चा. शनिवार को दोपहर बाद देखें पेज 11 पर
ReplyDeletewww.dlamedia.com
Waaaaaaaah!
ReplyDeleteNirmala Ma,
Pairi pauna!
Bahut sukoon mila!