29 June, 2010

श्री प्राण शर्मा जी की गज़लें
 बहुत दिन हुये प्राण भाई साहिब की पुस्तक "गज़ल कहता हूँ" मिली। मगर कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते उस पर कुछ कह नही सकी। गज़ल के बारे मे कुछ कहने लायक भी नहीं हूँ, मगर जो गज़लें मुझे दिल के करीब लगीं उन्हें आपको पढवाना  चाहती हूँ। उनका परिचय किन्हीं शब्दों का मुहताज़ नही है। वो कई सालों से यू. के. मे रह कर हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, मगर उनका अपनी माटी से प्र्यार और उसे छोड कर विदेश जाने का दर्द्, उनकी साफ गोई इस शेर मे देखिये
कहीं  धरती खुले  नीले गगन को  छोड आया हूँ।
कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ
 एक  उस्ताद शायर की शायरी मे क्या है? लीजिये उनकी पहली गज़ल का लुत्फ उठाईये----
 गज़ल

आपको  रोका है कब  मेरे जनाब
शौक़ से पढ़िए मेरे दिल की किताब

बात सोने पर  सुहागा सी   लगे
सादगी के साथ हो कुछ तो हिजाब

साथ दुःख के होता है सुख कुछ न कुछ
कब जुदा  रहता है  कांटे   से  गुलाब

छोड़ अब दिन- रात का  गुस्सा   सभी
कम  न पड़  जाए  तेरे चेहरे की  आब

वास्ता  दुक्खों   से पड़ता  है    हजूर
कौन  रखता  है  मगर उनका   हिसाब

धुंध   पस्ती  की हटे  तो   बात   हो
कुछ नज़र  आये   दिलों के  आफताब

रोज़  ही   इक  ख्वाब से   आये  है तंग
" प्राण"   परियों   वालों  हो कोई तो ख्वाब

38 comments:

  1. प्राण जी की ग़ज़लों में एक आकर्षण सा होता है जो पढ़ने वाले का मन मोह लेता है....सुंदर प्रस्तुति माता जी बधाई

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  2. साथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
    कब जुदा होता है कांटे से गुलाब

    यही तो जीवन है । अच्छी रचना

    और हां कभी मुलाकात हुई तो लिट्टी जरूर खिला कर आपका आशीर्वाद लुंगा ।

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  3. कहीं धरती खुले नीले गगन को छोड आया हूँ।
    कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ

    रोज़ ही इक ख्वाब से आये है तंग
    " प्राण" परियों वालों हो कोई तो ख्वाब

    बहुत सुन्दर शेर कहे हैं ।
    पूरी ग़ज़ल शानदार ।

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  4. अहा!!बहुत सुन्दर गज़ल...प्राण जी की बात निराली.

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  5. धुंध पस्ती की हटे तो बात हो
    कुछ नज़र आये दिलों के आफताब ।

    बेहतरीन गज़ल, निर्मला जी । प्राणसाहब का जवाब नही ।

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  6. pran ji ki gazale taazagi bharee hoti hain unko padhana ek sukhad ehasaas ke saaye men hona hai .. sundar rachana ke liye unko badhayi aur aapko dhanyvaad .

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  7. Sabhi ashar gazab hain...koyi ek yaa do chun nahi paa rahi!

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  8. खूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया

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  9. आप का बहुत-बहुत आभार, इस सुन्‍दर सी रचना के लिये, जो आपके माध्‍यम से हमें पढ़ने को मिली।

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  10. यह सुन्दर गज़ल अपने ब्लॉग पाठकों तक लाने के लिए आपका भी धन्यवाद।

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  11. सरल शब्दों से उकेरे गहरे भाव ।

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  12. सुन्दर गज़ा. हमने इसी बहाने आपकी ग़ज़ल "ना तो रिश्ते न दोस्त कोई अपना मिला मुझको" का लुत्फ़ उठाया. आभार.

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  13. साथ दुःख के होता है सुख कुछ न कुछ
    कब जुदा रहता है कांटे से गुलाब
    बहुत खूब लाज़बाब है हर शेर..

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  14. प्राण जी की तो बात ही निराली है……………उनकी लिखी गज़ल पढवाने के लिये आभार्।

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  15. बहुत सुन्दर गज़ल...

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  16. बहुत सुंदर गजल जी आप का ओर प्राणसाहब का धन्यवाद

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  17. bada aanand mila.........
    pran ji ki gazalon me ek laybaddh pravah toh hota hi hai, sabse khaas baat hai content !

    aapka bahut bahut shukriya

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  18. कहीं धरती खुले नीले गगन को छोड आया हूँ।
    कि कुछ सिक्कों की खातिर मैं वतन छोड आया हूँ
    दिल की तह तक पहुंचे ये शब्द ...
    आभार निर्मला जी !

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  19. खूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया

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  20. वास्ता दुक्खों से पड़ता है हजूर
    कौन रखता है मगर उनका हिसाब..

    dukhon ka hisaab rakhne se behtar hai unko jee lena..

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  21. अब उनकी क्या तारीफ करुँ.. इस लायक भी नहीं मैं अभी..

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  22. प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल हमेशा की तरह बहुत अच्छी है आभार

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  23. प्राणजी को हमारा नमन और आपका आभार गजल उपलब्‍ध कराने के लिए।

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  24. गजल बहुत अच्छी लगी... श्री.प्राण शर्मा जी की गजलें मशहूर है!....और आपकी प्रस्तुति निर्मलाजी, हंमेशा की तरह लाजवाब है!

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  25. गजल बहुत अच्छी लगी... श्री.प्राण शर्मा जी की गजलें मशहूर है!....और आपकी प्रस्तुति निर्मलाजी, हंमेशा की तरह लाजवाब है!

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  26. इतनी खूबसूरत गज़ल को हम सभी तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! आदरणीय प्राणजी की लेखनी को नमन !

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  27. शुभकामनाएं शुभ काम के लिए।

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  28. साथ दुख के होता है सुख कुछ न कुछ
    कब जुदा होता है कांटे से गुलाब
    .... esi ka naam jiwan hai...
    bahut achhi gajal lagi...
    Prastuti hetu dhanyvaad.

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  29. वाह्! गजल वाकई बहुत सुन्दर बन पडी है.....
    आभार्!

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  30. "Bikhare sitare" blog pe aapka comment: isme bhi kramash:?To yah jeevani mai punah prakashit kar rahi hun...satykatha hai.
    Aapka tahe dilse shukriya!

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  31. सरल शब्दों की सहज अभिव्यक्ति.....
    बहुत खूबसूरत....गज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया!

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  32. निर्मला जी डी एल ए के ब्लागचिंतन में इस बार आप के ब्लाग की चर्चा. शनिवार को दोपहर बाद देखें पेज 11 पर
    www.dlamedia.com

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।