05 March, 2010

गज़ल कविता नज़्म

इसे गज़ल कविता नज्म कुछ भी कह लीजिये बस मेरा मन्तव आज के ज्वलन्त मुद्दे पर कुछ कहने का है। आज कल टी वी पर आप देख रहे हैं इन साधू सन्तों की करतूतें अभी पता नही और कितने भेडिये साधुयों की खाल मे छुपे बैठे हैं हम केवल अपनी आस्था के चलते आस्तीन मे साँ पाल रहे हैं जो हमे धर्म से कोसों दूर ले जा रहे हैं। खुद को भगवान कह कर और खुद के नाम की आर्तियाँ गवा कर हमे भगवान से दूर ही नही ले जा रहे बल्कि धर्म का विनाश भी कर रहे हैं। मै यहाँ किसी की भावनाओं को ठेस नही पहुँचाना चाहती मगर इस कडवे सच पर चुप रहूँ तो भगवान की अपराधी भी हूँ। चन्द पँक्तियाँ रात की खबरें सुन कर लिखी थी हाजिर हैं ।--

धर्म कैसी आस्था है जो लडाये आदमी को
तू बुरा है और अच्छा मैं बताये आदमी को

सादगी से दूर करते ऐश और आराम साधू
मोह माया है बुरी फिर क्यों बताये आदमी को

हो शनाख्त साधू की जो ए.सी  कार से जब
ये तरीका साधुयों का क्या सिखाये आदमी को

सोच कर देखो जरा यह  धर्म का है रूप कैसा
खुद को कह भगवान अपना नाम रटवाए आदमी को

33 comments:

  1. माता जी आज कल यही आम बात हो गई है धर्म के आड़ में अपने निजी हितों की पूर्टि में लगे होते है ये धर्म के ठेकेदार, इतना ही होता तो भी चलो ठीक था पर नही उन्हे दूसरों के सुख चैन में भी आग लगाने की ठान ली है...धर्म के नाम पर ऐसी कारनामें कब तक चलेंगे सवाल बन गया है.......बहुत बढ़िया बात कही आज अपने अपनी इस ग़ज़ल के माध्यम से..समाज को चेतने की ज़रूरत है ऐसे समय.....सादर प्रणाम

    ReplyDelete
  2. निर्मलाजी
    इन लोगों पर अपनी कलम चलाने से तो समय भी बर्बाद होता है। इस देश में लगभग 80 लाख साधु हैं, कुछ भिखारियों की तरह पल रहे हैं और कुछ मठाधीश हैं। करोडो-अरबों की सम्‍पत्ति के मालिक हैं फिर भी संन्‍यासी हैं? इनमें से कुछ संन्‍यासी समाज के लिए कार्य भी कर रहे हैं लेकिन इनके अंध-भक्‍त ही इन्‍हें करोडपति बना रहे हैं। आज भारत की भूमि का बहुत बड़ा भाग इनके पास है। पता नहीं कहाँ जाकर रुकेगी यह अंध-भक्ति।

    ReplyDelete
  3. bahut acchee rachana aaj ke guru ko aaina dikhatee...
    ashiksha ko hee mai isaka jimmedar thahratee hoo.
    andhvishvas bhee to manav ka peecha nahee chodate.

    ReplyDelete
  4. विषय और रचना दोनों ज्वलंत है ...
    ये विडम्बना है हमारे देश की अरबों की संपत्तियां मठों में पड़ी है और उसका उपयोग चंद मक्कारों और कामचोरों को पालने के लिए हो रहा है ..
    किन्तु चंद महात्मा ऐसे भी हैं तो इस धन का उपयोग जन सेवा के लिए कर् रहे हैं ... इनमे बाबा रामदेव का नाम प्रमुख रूप से ले सकते हैं. धन का अगर सदुपयोग अगर जन हित में हो तो ये स्वागत योग्य है ... चाहे शिक्षा के लिए या चिकित्सा के लिए अथवा किसी नए प्रयोगों के लिए ...
    बहुत आभार आपका

    ReplyDelete
  5. यकीन खोता जा रहा है अब और क्या कहें दुखद है आस्था के नाम पर ये सब...

    regards

    ReplyDelete
  6. मै तो आपकी पोस्ट को सामायिक कहूंगा माँ जी ।

    ReplyDelete
  7. सोचने पर मजबुर कर दिया माँ आपने ।

    ReplyDelete
  8. सही प्रहार किया आपने. जरुरी सन्देश दिया.

    ReplyDelete
  9. एक जरूरी पोस्ट...और सहज अभिव्यक्ति की खूबसूरती के साथ....!

    ReplyDelete
  10. मम्मा...यह रचना दिल को छू गई...

    ReplyDelete
  11. यह तो बहुत ही सामयिक है,बढ़िया,आभार.

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छी पोस्ट. हर कोई अपने स्वार्थ में लगा है साधू, अपने नेता अपने. हर गलत काम करने वाला दो चार नेता पाल कर रखता है की जब कुछ हो तो नेता बचा लेगा और होता भी यही है . हमें तो पहले भी साधुओं पर विश्वास नहीं था

    ReplyDelete
  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

    ReplyDelete
  14. समसामयिक रचना...अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  15. बिल्कुल सही लिखा है आपने.....इन लम्पट बाबाओं, ठगाधीशों के चलते ही आज धर्म अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। शायद कलयुग बहुत तेजी से अपना प्रभाव दिखाने लगा है......

    ReplyDelete
  16. पखंडी बाबाओं पर जब तक इस देश के लोगो को आस्था है तब तक कुछ् नही हो सकता ।

    ReplyDelete
  17. अरे इन बाबाओं पर तो बहुत कोफ़्त होती है....न जाने कब ख़त्म होगी ये अंधभक्ति..

    ReplyDelete
  18. इन पाखंडी बाबाओं को भगवान बनाने वाले भी हम ही हैं।
    घोर कलियुग नज़र आता है।

    ReplyDelete
  19. "अक्सर मेरी माँ लाड़ से मुझे भूतनाथ, कम्ब्खत कहकर पुकारती हैं अब यदि वे मुझे "आप" कह कर संबोधित करें तो मेरे लिए तो ये तो यंत्रणा ही होगी।
    ये मेरी गुज़ारिश है आपसे कि आप मुझे "आप" संबोधन से बहुत दूर रखें । आपके शब्द मेरे लिये आशीर्वाद हैं .............।"
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

    ReplyDelete
  20. Bahut sahi baat kahi aapane news pad kar mera bhi sar thank raha tha....Bharat ki bholi janata pata nahi kab kat in lampato ke jaal me phansati rahegi !!
    Aabhar

    ReplyDelete
  21. bilkul sahi vaar kiya hai...........aur ye sabse ghrinit roop hai magar ise dekhkar bhi insaan andha bana rahta hai ye sabse badi vidambna hai

    ReplyDelete
  22. ये साधु नही शैतान हैं

    ReplyDelete
  23. बिलकुल सामयिक लिखा है और हर शेर गहरी चोट करता लग रहा है

    इनको तो १०० जूते मारो और १ गिनो

    ReplyDelete
  24. धर्म कैसी आस्था है जो लडाये आदमी को
    तू बुरा है और अच्छा मैं बताये आदमी को

    सादगी से दूर करते ऐश और आराम साधू
    मोह माया है बुरी फिर क्यों बताये आदमी को
    nirmala ji bahut unchi baate kahi aapne ,par updesh kushal bahutere wala haal hai inka .

    ReplyDelete
  25. बहुत सटीक और समयानुकूल रचना !!

    ReplyDelete
  26. आज की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या पर आपने सही वक्त पर चोट की है ! इन ढोंगी साधू बाबाओं ने देश और देशवासियों का कितना अहित किया है इसका अनुमान लगाना असंभव है ! आपने बहुत ज्वलंत मुद्दे को उठाया है ! आभार !

    ReplyDelete
  27. ये साधू संत नही .... कलंक हैं समाज के नाम पर ... अपने धर्म का इस्तेमाल जो अपने स्वार्थ के लिए कर सकता है वो कुछ भी कर सकता है ... शर्म आती है ऐसे लोगों पर ...

    ReplyDelete
  28. seedha prahaar kiya aapne...bhaav aur lay dono bahut shandaar hain ,,, chaaro sher ek hi saans me padh gaya ek sher aur hota to musalsal ghazal ho jaati ... :)

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।