सुखदा कहानी-- भाग ------ 3
पिछले भाग मे आपने पढा कि कैसे सुखदा
के पिता के बीमार होने पर उसे एक ओझा के पास ले गये उस ओझा ने सुखदा को घर के लिये मनहूस बताया और एक आश्रम का पता दिया कि इसे वहाँ छोड दें। मगर उसकी माँ नही मानी और उसे नानी के घर भेज दिया। जहाँ स्कूल की एक टीचर शारदा देवी और उसके पति उमेश ने उसे गोद ले लिया। अब आगे पढें----
दिन साल बीते सुखदा ने कभी पीछे मुड कर नही देखा और एक दिन वो डाक्टर बन गयी। वो बहुत खुश थी मगर कभी कभी जब उसे अपनी माँ का चेहरा याद आता तो बहुत उदास हो जाती। उस चेहरे को उसने हर दिन याद किया है। कई बार उसका मन तडप उठता-- पता नही कैसे होंगे वो सब छोटा भाई कैसा होगा वो भी तो बहुत रिया था उसके आने पर। मगर वो लोग उसे ऐसे भूले कि किसी ने कभी जरूरत नही समझी उसकी सुध लेने की। पता नही कहाँ होंगे? आज वो अपने बाप को बताना चाहती थी कि वो अभागिन नही है।
उमेश और शारदा ने उसके डाक्टर बनने की खुशी मे घर मे एक पार्टी रखी थी। वो दोनो बहुत खुश थे मगर कई बार सुखदा को उदास होते देख कर वो उसकी हालत समझते थे। अब तक तो उसे यही कहते रहे थे कि बस पढाई की ओर ध्यान दो पिछली बातें भूल जाओ। अपने पिता को दिखा दो कि तुम अभागिन नही हो। और वो उसका ध्यान इधर उधर लगा देते। वो उसकी उदासी से कभी अनजान नही रहे। उन्हें एहसास था कि सुखदा की उदासी अस्वाभाविक नही है।
आज दोपहर का खाना खा कर सुखदा अपने कमरे मे जा कर लेट गयी। वो कोशिश करती थी कि कभी अपने इन माँ बाप को अपने मन की उदासी का पता न चलने दे मगर शारदा देवी की आँखों से ये छुप नही पता। कुछ देर बाद शारदा ने कमरे मे जा कर झाँका तो सुखदा किसी सोच मे डूबी थी। वो उसके सिरहाने जा कर बैठ गयी
* क्या बात है आज मेरी बेटी कुछ उदास लग रही है।*
कुछ नही माँ क्या कोई काम था?* मै तो ऐसे ही लेटी थी। भला मैं उदास क्यों होने लगी। पार्टी के बारे मे ही सोच रही थी।*
*हाँ मै समझ सकती हूँ । बेटा मैने चाहे कभी तुम से पुरानी बातों का जिक्र नही किया बस मन मे एक ही बात थी कि तुम किसी मुकाम पर पहुंच जाओ। कहीं वो बातें तुम्हें अपनी मंजिल से दूर न कर दें। मगर आज मन मे एक बात है।* कह कर शारदा देवी सुखदा की तरफ देखने लगी।
*हाँ हाँ कहो माँ?*
बेटी मै चाहती हूँ कि एक निमन्त्रण पत्र तुम अपने माँ बाप को भी दो। बेशक मैने कभी तुम से उनका जिक्र नही किया मगर जानती थी कि तुम्हें उनकी याद अकसर आती है। मै नही चाहती थी कि तुम उनके विषय मे सोच कर पढाई से दूर न हो जाओ। आज तुम ने अपने आप को साबित कर दिया है।ाब मुझे कोई डर नही क्योंकि मुझे पता है तुम हमारी बेटी हो और हमे तुम पर पूरा विश्वास है। इसलिये हम तुम्हे उदास भी नही देख सकते। मैं चाहती हूँ कि तुम अपने माँबाप से अब मिल लो।।*
*नही माँ मै इस लिये उदास नही कि मै उनके पास जाना चाहती हूँ । अब तो केवल आप ही मेरे माँ बाप हैं और मुझे आपकी बेटी होने पर गर्व है। आपने मेरे जीवन को एक अर्थ दिया है। आपके सिवा कोई नही मेरा। फिर भी कई बार माँ का चेहरा और छोटे भाई का रुदन याद आता है तो दिल तडप सा उठता है दोनो की बेबसी याद आती है बस।* सुखदा ने शारदा देवी के गले मे बाहें डालते हुये कहा।
*अच्छा चलो,उठो कुछ कार्ड खुद जा कर देने हैं कल तेरे शहर चलेंगे। कहते हुये शारदा देवी उठ गयी।
अगले दिन अपने घर जाते हुये--- वो सोच रही थी अपना कौन सा घर अपना घर तो उसका वो है जहाँ अब रह रही है।-- वो ति किसी के घर बस कार्ड देने जा रही है। एक अभिलाशा लिये , अपनी सगी माँ से मिलने
की चाह लिये बस कार्ड देना तो एक बहाना था।
सुभ 10 बजे जैसे ही गाडी सुखदा के घर के आगे रुकी मोहल्ले के बच्चे गाडी के आस पास इकट्ठे हो गये। गरीब बस्तियों मे भला कभी कुछ बदलता है? इन लोगों के लिये आज भी गाडी एक दुर्लभ वस्तु है। वो भी तो इतनी उत्सुकता से मोहल्ले मे आने वाली गाडी को देखा करती थी। जैसे ही ये लोग गाडी से बाहर निकले सब इनकी ओर देखने लगे। सामने कुछ लडके जमीन पर बैठे ताश खेल रहे थे औरतें नल से पानी भर रही थी-- बच्चे नंग धडंग खेल रहे थे। मोहल्ले मे कुछ घर नये बन गये थे।उन्हों ने किसी से सुखदा के बाप का नाम ले कर घर पूछा सुखदा को कुछ कुछ याद था । एक लडके ने इशारे से एक घर की ओर उँगली की।
दरवाजा टूट गया था।सुखदा ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा दरवाज चरमराहट से खुल गया। इतनी गंदगी? उसका घर तो जहाँ तक उसे याद है साफ सुथरा हुया करता था। कुछ और आगे बढी तो कंपकंपाती क्षीण सी आवाज़ आयी।
*कौन? अन्दर आ जाओ।*
बरसों बाद माँ की आवाज़ सुनी थी। दिल धडका और आँख भर आयी। शारदा देवी ने हल्के से उसका कन्धा दबाया और आगे बढने का इशारा किया। वो लोग अन्दर आ गये। कमरे के एक तरफ मैले कुचैले बिस्तर पर उसकी माँ लेटी थी दूसरी तरफ दो टूटी फूटी कुर्सियाँ एक स्टूल पडा था। सुखदा तेजी से माँ की तरफ लपकी
*मईया?* बडी मुश्किल से सुखदा के मुँह से आवाज़ निकली बचपन मे वो ऐसे ही अपनी माँ को बुलाया करती थी। सब की जैसे साँसें रुक गयी थी आँखें सब की नम ---- सुन कर माँ एक झटके से उठ कर बैठ गयी। ऐसे तो सुखदा ही पुकारा करती थी ।इतने बर्षौ बाद किसी ने मईया कहा था। उसे लगा जैसे किसी ने उसके दिल की तपती रेत पर ठंडे पानी की बौछार कर दी हो।
*सुखदा?*
एक झटके से खडी हो गयी उसे छुआ और फफक कर रो पडी। शाय्द गले लगाने से हिचक रही थी उनलोगों के साफ सुथरे कपडे देख कर।
*माँ!* सुखदा झट से उसके गले लग गयी। सब की आँखें सावन भादों सी बह रही थीं।
बेशक माँ के कपडों से बू आ रही थी----- क्रमश"
के पिता के बीमार होने पर उसे एक ओझा के पास ले गये उस ओझा ने सुखदा को घर के लिये मनहूस बताया और एक आश्रम का पता दिया कि इसे वहाँ छोड दें। मगर उसकी माँ नही मानी और उसे नानी के घर भेज दिया। जहाँ स्कूल की एक टीचर शारदा देवी और उसके पति उमेश ने उसे गोद ले लिया। अब आगे पढें----
दिन साल बीते सुखदा ने कभी पीछे मुड कर नही देखा और एक दिन वो डाक्टर बन गयी। वो बहुत खुश थी मगर कभी कभी जब उसे अपनी माँ का चेहरा याद आता तो बहुत उदास हो जाती। उस चेहरे को उसने हर दिन याद किया है। कई बार उसका मन तडप उठता-- पता नही कैसे होंगे वो सब छोटा भाई कैसा होगा वो भी तो बहुत रिया था उसके आने पर। मगर वो लोग उसे ऐसे भूले कि किसी ने कभी जरूरत नही समझी उसकी सुध लेने की। पता नही कहाँ होंगे? आज वो अपने बाप को बताना चाहती थी कि वो अभागिन नही है।
उमेश और शारदा ने उसके डाक्टर बनने की खुशी मे घर मे एक पार्टी रखी थी। वो दोनो बहुत खुश थे मगर कई बार सुखदा को उदास होते देख कर वो उसकी हालत समझते थे। अब तक तो उसे यही कहते रहे थे कि बस पढाई की ओर ध्यान दो पिछली बातें भूल जाओ। अपने पिता को दिखा दो कि तुम अभागिन नही हो। और वो उसका ध्यान इधर उधर लगा देते। वो उसकी उदासी से कभी अनजान नही रहे। उन्हें एहसास था कि सुखदा की उदासी अस्वाभाविक नही है।
आज दोपहर का खाना खा कर सुखदा अपने कमरे मे जा कर लेट गयी। वो कोशिश करती थी कि कभी अपने इन माँ बाप को अपने मन की उदासी का पता न चलने दे मगर शारदा देवी की आँखों से ये छुप नही पता। कुछ देर बाद शारदा ने कमरे मे जा कर झाँका तो सुखदा किसी सोच मे डूबी थी। वो उसके सिरहाने जा कर बैठ गयी
* क्या बात है आज मेरी बेटी कुछ उदास लग रही है।*
कुछ नही माँ क्या कोई काम था?* मै तो ऐसे ही लेटी थी। भला मैं उदास क्यों होने लगी। पार्टी के बारे मे ही सोच रही थी।*
*हाँ मै समझ सकती हूँ । बेटा मैने चाहे कभी तुम से पुरानी बातों का जिक्र नही किया बस मन मे एक ही बात थी कि तुम किसी मुकाम पर पहुंच जाओ। कहीं वो बातें तुम्हें अपनी मंजिल से दूर न कर दें। मगर आज मन मे एक बात है।* कह कर शारदा देवी सुखदा की तरफ देखने लगी।
*हाँ हाँ कहो माँ?*
बेटी मै चाहती हूँ कि एक निमन्त्रण पत्र तुम अपने माँ बाप को भी दो। बेशक मैने कभी तुम से उनका जिक्र नही किया मगर जानती थी कि तुम्हें उनकी याद अकसर आती है। मै नही चाहती थी कि तुम उनके विषय मे सोच कर पढाई से दूर न हो जाओ। आज तुम ने अपने आप को साबित कर दिया है।ाब मुझे कोई डर नही क्योंकि मुझे पता है तुम हमारी बेटी हो और हमे तुम पर पूरा विश्वास है। इसलिये हम तुम्हे उदास भी नही देख सकते। मैं चाहती हूँ कि तुम अपने माँबाप से अब मिल लो।।*
*नही माँ मै इस लिये उदास नही कि मै उनके पास जाना चाहती हूँ । अब तो केवल आप ही मेरे माँ बाप हैं और मुझे आपकी बेटी होने पर गर्व है। आपने मेरे जीवन को एक अर्थ दिया है। आपके सिवा कोई नही मेरा। फिर भी कई बार माँ का चेहरा और छोटे भाई का रुदन याद आता है तो दिल तडप सा उठता है दोनो की बेबसी याद आती है बस।* सुखदा ने शारदा देवी के गले मे बाहें डालते हुये कहा।
*अच्छा चलो,उठो कुछ कार्ड खुद जा कर देने हैं कल तेरे शहर चलेंगे। कहते हुये शारदा देवी उठ गयी।
अगले दिन अपने घर जाते हुये--- वो सोच रही थी अपना कौन सा घर अपना घर तो उसका वो है जहाँ अब रह रही है।-- वो ति किसी के घर बस कार्ड देने जा रही है। एक अभिलाशा लिये , अपनी सगी माँ से मिलने
की चाह लिये बस कार्ड देना तो एक बहाना था।
सुभ 10 बजे जैसे ही गाडी सुखदा के घर के आगे रुकी मोहल्ले के बच्चे गाडी के आस पास इकट्ठे हो गये। गरीब बस्तियों मे भला कभी कुछ बदलता है? इन लोगों के लिये आज भी गाडी एक दुर्लभ वस्तु है। वो भी तो इतनी उत्सुकता से मोहल्ले मे आने वाली गाडी को देखा करती थी। जैसे ही ये लोग गाडी से बाहर निकले सब इनकी ओर देखने लगे। सामने कुछ लडके जमीन पर बैठे ताश खेल रहे थे औरतें नल से पानी भर रही थी-- बच्चे नंग धडंग खेल रहे थे। मोहल्ले मे कुछ घर नये बन गये थे।उन्हों ने किसी से सुखदा के बाप का नाम ले कर घर पूछा सुखदा को कुछ कुछ याद था । एक लडके ने इशारे से एक घर की ओर उँगली की।
दरवाजा टूट गया था।सुखदा ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा दरवाज चरमराहट से खुल गया। इतनी गंदगी? उसका घर तो जहाँ तक उसे याद है साफ सुथरा हुया करता था। कुछ और आगे बढी तो कंपकंपाती क्षीण सी आवाज़ आयी।
*कौन? अन्दर आ जाओ।*
बरसों बाद माँ की आवाज़ सुनी थी। दिल धडका और आँख भर आयी। शारदा देवी ने हल्के से उसका कन्धा दबाया और आगे बढने का इशारा किया। वो लोग अन्दर आ गये। कमरे के एक तरफ मैले कुचैले बिस्तर पर उसकी माँ लेटी थी दूसरी तरफ दो टूटी फूटी कुर्सियाँ एक स्टूल पडा था। सुखदा तेजी से माँ की तरफ लपकी
*मईया?* बडी मुश्किल से सुखदा के मुँह से आवाज़ निकली बचपन मे वो ऐसे ही अपनी माँ को बुलाया करती थी। सब की जैसे साँसें रुक गयी थी आँखें सब की नम ---- सुन कर माँ एक झटके से उठ कर बैठ गयी। ऐसे तो सुखदा ही पुकारा करती थी ।इतने बर्षौ बाद किसी ने मईया कहा था। उसे लगा जैसे किसी ने उसके दिल की तपती रेत पर ठंडे पानी की बौछार कर दी हो।
*सुखदा?*
एक झटके से खडी हो गयी उसे छुआ और फफक कर रो पडी। शाय्द गले लगाने से हिचक रही थी उनलोगों के साफ सुथरे कपडे देख कर।
*माँ!* सुखदा झट से उसके गले लग गयी। सब की आँखें सावन भादों सी बह रही थीं।
बेशक माँ के कपडों से बू आ रही थी----- क्रमश"
कहानी में रोचकता बनी है,आगे का इन्तजार.....
ReplyDelete"मज़ा आ रहा है देखते हैं आगे क्या होता है..........."
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
मेरी आंखों में भी अब आंसू हैं...
ReplyDeleteजय हिंद...
प्यार,अंधविश्वास,भावनाएँ सब कुछ समेटे कहानी अपनी शिखर पर चल रही है..सुखदा ने तो सभी को दिखा दिया की वो किसी के लिए अभागी नही थी पर उसके अनुपस्थित में उसके घर,उसके पिता के क्या भाग्य उदय हुए अब यह भी जानने की जिज्ञासा हो गई....माँ के रूप में बेटी के मन को समझने वाली शारदा जी का बेहतरीन चरित्र चित्रण...आगे के अंक का इंतज़ार है...माता जी प्रणाम
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रवाह बना है संपूर्ण रोचकता के साथ...आगे इन्तजार है.
ReplyDeleteआपको नव संवत्सर की मांगलिक शुभकामनाएँ.
nice
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteक्या बात है आज मेरी बेटी कुछ उदास लग रही है।*
ReplyDeleteकुछ नही माँ क्या कोई काम था?* मै तो ऐसे ही लेटी थी। भला मैं उदास क्यों होने लगी। पार्टी के बारे मे ही सोच रही थी।
mummy aanso la diye ankho me
bahut acchi rachna hai ,
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
कहानी बहुत अच्छी चल रही है जी
ReplyDeleteप्रणाम
पिछली किश्तें भी पढ़ीं . कहानी अच्छी जा रही है और आगे का इंतज़ार है
ReplyDeleteNirmala ji
ReplyDeletemanviy samvedanaoo par aapkii kalam bakhubi chalti hai.
silk jaisee soft!
bahut hee badhiya...
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील कहानी...अंधविश्वास को धता बताती हुई.....आगे इंतज़ार है
ReplyDeleteएक अच्छी गति से चल रही है कहानी और हम भी उसके ही साथ आगे बढ़ रहे हैं उत्सुकता लिए हुए
ReplyDeleteबहुत ही रोचकता के साथ प्रवाह लिए कहानी आगे बढ़ रही है......अच्छी गति है कहानी में ....व्यग्रता के साथ,अगली कड़ी का इंतज़ार
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील कहानी... आगे का इंतज़ार है..
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील और रोचकता से परिपुर्ण, आगे का इंतजार है.
ReplyDeleteरामराम.
दिल के किसी कोने मै फ़िर भी अपने बसे रहते है, ओर जिन से मिलने को दिल बेचेन रहता है,कहानी बहुत अच्छी चल रही है, ओर कहानी पढते पढते मै भी कही खो सा गया
ReplyDeleteरोचक। आगे का इंतज़ार!
ReplyDeleteआज मैंने कहानी के तीनों भाग पढ़ा .....बहुत रोचक .....लगी ये कहानी .......आगे भी रोचकता बरकरार है ......आगे की कड़ी का इन्तेजार है
ReplyDeleteआज कहानी का तीनो भाग एकसाथ ही पढ़ा.....मन भर आया है...
ReplyDeleteबड़े ही मार्मिकता से आपने कथा का ताना बाना बुना है...
अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी...
कहानी बहुत ही रोचक और मज़ेदार लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteaankhein nam ho gayi ........bas agli kadi ka intzaar hai .
ReplyDelete"मईया .....ऐसे तो सुखदा ही पुकारा करती थी "......AAh.....निर्मला जी किसकी कहानी है ये इतनी दर्दनाक .....??
ReplyDeleteज़िन्दगी भी क्या क्या रंग दिखाती है ......!!
kahani bahut achchhi lagi ,stri ko apni pahchaan banaane ke liye bahut kuchh kho dena padta hai ,agar sabhi ke marzi baandh kar chale to vazzod .yah ladaai silsila ban chalti rahi ,umda .
ReplyDeleteइतनी हृदयग्राही कहानी है कि अभी तक उसके सम्मोहन से मुक्त नहीं हो पाई हूँ ! अंत जानने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है ! अधीरता से प्रतीक्षा है !
ReplyDeleteसुखदा और उसके के अवास्तविक माता पिता ने साबित दिया कि सुखदा मनहूस नहीं थी ...मनहूस वे लोग होते हैं जो अंधविश्वास अपनाते हैं ...
ReplyDeleteसुखदा की कहानी दिल को छु रही है ..अगली कड़ी का इन्तजार ....
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें .....!!
sundar kahani ke liye
ReplyDeletebahut bahut abhar
Vastta ke karan dusara bhag bhi aaj hi pada ...kahani me maza araha hai rochakata bani hui hai ...Dhanywaad!
ReplyDeletewaah...agla bhaag le ke aaiye ji jaldi se :) ..
ReplyDeleteBahut hi sundar prastuti..
ReplyDeleteBadhai aapko..
Behad achha kathan chal raha hai..agli kadika intezaar hai!
ReplyDeleteagalee kadee ka besabree se intzar..........
ReplyDeleteन ज़रिया दिया.Wah ! Teeno rachnayen bahut khoob! Kaise soojh jata hai aapko yah shabdon ka khel? Kamal hai!
ReplyDeleteRamnavmiki anek shubhkamnayen!
Pravpurn Kahani...
ReplyDeleteagli kadi ka intjaar hai....
Aapko bahut shubhkamnayne.
सभी का धन्यवाद । जल्दी ही सब के ब्लाग पर आती हूँ।
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