12 December, 2009

कथित बाबा सचिदानन्द का कच्चा चिट्ठा और कुछ सवाल --गताँक से आगे
नवांशहर  पंजाब के बाबा सचिदानन्द को पुलिस् ने कविता के कत्ल के जुर्म  मे गिरफ्तार कर लिया तो कविता की माँ के हाथ एस एस पी राकेश अग्रवाल के लिये दुआ देने को उठे कि बाकी लोगों को तो कम से कम उसके चँगुल से छुडा लिया।वो खुद को रिटायर्ड जज और अपनी मुँह बोली बेटी को को आई,  पी, एस. अधिकारी बताता था। जब कि हकीकत मे वो 10वीं पास था।अपने श्रद्धालुयों की संख्या बढाने के लिये बाबा साधना चैनल पर प्रवचन भी देता था। अब सवाल ये है कि क्या ये धार्मिक चैनल हिन्दु धर्म का कुछ भला कर रहे हैं या उन्हें ऐसे ढोंगी बाबाओं के चँगुल मे फसाने का साधन बन रहे हैं। वो साधना चैनल को एक प्रवचन का ढेड लाख रुपया देता था। अनपढ लोगों को क्या पता कि चैनल पर आने वाले उन श्रद्धालूयों के पैसे खर्च करके ही प्रवचन देते हैं। मैने एक-दो गली की औरतों से  पूछा कि क्या उन्हेंसे पता है कि चैनल पर बाबा कैसे प्रवचन करने पहुँचते हैं तो उसे नहीं पता था। उसने कहा कि वो पहुँचे हुये बाबा होंगे तभी तो चैनल पर आते हैं।
हम लोग ब्लाग्स पर रोज़ धर्म के लिये लडते झगडते हैं लेकिन ऐसे ढोंगी बाबाओं के खिलाफ क्यों नहीं कुछ बोलते?  ऐसे धार्मिक चैनलों के खिलाफ क्यों नहीं कुछ कहते जिन को देख कर लोग इन के झाँसे मे आ जाते हैं। दो साल पहले मैं नये घर मे आयी थी। यहाँ प्राईवेट कालोनी है पहले हम जहाँ रहते थे वहाँ सभी नौकरी पेशा लोग थे औरतें भी अधिकतर नौकरी पेशा थी । हम मे धर्म पर बहुत कम बात होती थी। लेकिन इस कालोनी मे 70% लोग रिटायरी हैं और साथ ही आस पास ग्रामिण इलाका भी लगता है। मेरी अपनी गली मे 20 के आस पास घर हैं जहाँ हर घर किसी न किसी बाबा को मानता ह। और हर आये दिन किसी न किसी बाबा का कीर्तन प्रवचन होता है। बहुत अच्छी बात हैलेकिन मन तब और दुखी होता है जब आर्ती के समय केवल उस बाबा की ही आरती होती है। हरेक बाबा ने अपनी अलग अलग आरती लिख रखी है, उसे या उसकी तस्वीर को ही भोग  लगाया जाता है। उसकी बहुत बडी तस्वीर होती है और उसके नीचे छोटी छोटी तस्वीरें हिन्दू देवी देवतायों की रखी होती हैं जैसे वो बेचारे इनके दास हों। अब आस पडोस की बात है ऐसे समारोह मे जाना भी पड्ता था। लेकिन अब मैने ऐसे घरों मे जाना बन्द कर दिया है जो बाबा संस्कृ्ति को बढावा देते हैं। मगर मन मे क्षोभ होता है कि आखिर ये हो क्या रहा है।उनमे तो कई बाबा अनपढ ही हैं बस कथा कहानिया सुना कर चले जाते हैं। उनके प्रवचनों  मे एक बात पर ही बल दिया जाता है कि गुरू के बिना गति नहीं। बस गुरू ही आपका भगवान है। सही बात है मगर क्या गुरू के मायने भी उन्हें बताते हैं कि गुरू मे क्या विशेशतायें होनी चाहिये।
अब मेरा सवाल ये है कि आज के इस युग मे जहाँ हम ये तय नहीं कर सकते कि कौन सच्चा है कौन झूठा तो धर्म के नाम पर ऐसे आश्रम और बाबाओं की जरूरत है? 
क्या इन बाबाओं के बिना लोग धर्म का ग्यान नहीं ले सकते?
धार्मिक चैनल क्या ऐसे लोगों को बढावा नहीं देते? ये दोनो की दुकानदारी मिली भगत नहीं है?
दूसरा इन धार्मिक चैनलों का अगर फायदा है तो क्या हानि नहीं है? ऐसे लोगों को दिखा कर ये धर्म को हानि नहीं पहुँचा रहे? ऐसे ढोंगी बाबाओं के रोज़ प्रवचम सुन कर ही लोग इनके चंगुल मे नहीं फसते? क्या धार्मिक चैनलों पर कुछ प्रतिबन्ध नहीं लगने चाहिये? ये इन दुकानों के व्यापार मे साझीदार हैं।
क्या सरकार को इस मामले मे हस्तक्षेप करना चाहिये?
आज पंजाब इन्हीं बाबाओं की वजह से जल रहा है लुधिआना मे दो दिन कर्फ्यू और बन्द रहाुआये दिन कोई न कोई शहर इस आग की लपेट मे आ जाता है।
क्या साधु सन्तों को ए.सी गाडियाँ,एसी आश्रम और सुख सुविधा के साधन रखने चाहिये? अगर नहीं तो आपमे से कितने हैं जो ऎसे गुरुओं का वहिष्कार   करते हैंजो भौतिक वस्तुयों का उपयोग कर रहे हैं?


आखिर धर्म के ठेकेदार क्यों नहीं कुछ करते। मेरे हिसाब से तो सभी आश्रम बन्द होने चाहिये जिसे धर्म का प्रचार करना है वो साधु बन कर रहे और केवल धार्मिक स्थान मन्दिर आदि मे ही प्रवचन दे और लोगों से कोई धन न ले। खुद सादा जीवन व्यतीत कर वैभव  और भौतिक साधनों का मोह छोड कर एक छोटी सी कुटी मे रहे जहाँ किसी को भी आने की अनुमति न हो बस प्रवचन के लिये शहर का मंदिर  या  कोई सार्वजनिक स्थान चुन सकते हैं। । जगह जगह मन्दिर अपने- अपने नाम से बनवाये जा रहे हैं, जिन की न तो सफाई का उचित प्रबन्ध है न ही और रखरखाव का। बस चढावे के रूप मे धन इकट्ठा करना ही इनका मकसद है। क्या लाभ है ऐसे मन्दिर निर्माण करने का जहाँ भगवान उपेक्षित होते हों?  क्या एक छोटे शहर मे एक मन्दिर काफी नहीं? आज इस बाबा संस्कृ्ति पर लगाम कसने की जरूरत है। नहीं तो एक दिन लोग ये भूल जायेंगे कि हिन्दु देवी देवता कौन हैं उनकी जगह इन बाबाओं के नाम ही होंगे। ये सिर्फ हिन्दु धर्म की बात नहीं है किसी भी धर्म मे ये बाबा लोग दीमक की तरह उसे चाट जायेंगे। आईये हम सब मिल कर इस बाबा संस्कृ्ति से लडें। जब लोग समझ जायेंगे तो फिर अपने आप ये दुकाने बन्द हो जायेंगी । इन  आश्रमों मे होने वाले कुकर्मों और शोषण के विरुध आवाज़ उठायें। इस मे सब का भला है। ये लोग एक नाम दे देते हैं और लोग इसी को बस धर्म समझ कर जपते रहते हैं मगर धर्म के मर्म तक कम ही लोग जाते हैं, अगर जाते तो आज दुनिया मे इतने अपराध न होते।   आज हम केवल धार्मिक बन रहें अध्यात्म क्या है इसे जानते ही नहीं।  आओ लोगों को बाबा संस्कृ्ति का सच बतायें और इन के चंगुल से लोगों को बचायें। मैं तो जहाँ भी जाती हूँ जम कर इन लोगों के खिलाफ बोलती हूँ। बोलती रहूँगी। हम लोग धर्म के नाम पर ब्लाग्स पर भी आपस मे लडते रहते हैं लेकिन इन असली गुनहगारों के खिलाफ एक शब्द भी क्यों नहीं कहते?

10 December, 2009

ढोंगी बाबा सचिदानन्द निकला कातिल

  ये खबर कल दैनिक जागरण  अखबार मे थी। नंवाशहर, पंजाब मे कुछ दिन पहले कविता नाम की एक महिला का कत्ल हुया था। तब से पुलिस कातिल  की तलाश मे थी। अखबार के अनुसार ये बाबा लोगों को बहला फुसला कर उन से धन सम्पति एंठता था। बाबा उर्फ सतिन्दर कुमार् ही कविता का कातिल निकला। पोलिस ने सोमवार रात को उसे गिरफ्तार कर लिया।बाबा ने गला घोंट कर उसकी हत्या की थी।वो कई लोगों को अपने झाँसे मे ले कर बर्बाद कर चुका था। कविता भी इस के झाँसे मे आ गयी।करीब 4 साल मे वो बाबा पर 4--5 लाख लुटा चुकी थी। विदेश से उसके बेटे जो पैसे भेजते वो बाबा के चरणो मे अर्पित कर देती। इसी दौरान कविता को बाबा के ढोंगी पहरावे की भनक लगी तो वो अपना पैसा वपिस मांगने लगी। कविता को पता चला कि बाबा सचिदानन्द पर गुरदासपुर के कस्बे कादियाँ मे धोखा धडी के कई केस दर्ज हैं और पोलिस रिकार्ड मे भगौडा है। पोल खुलने पर उसने बाबा से अपने पैसे लौटाने के लिये कहा और वापिस न करने पर पोल खोल देने की धमकी दी।


28 नवम्बर की रात करीब 11 बजे बाबा कविता के घर पहुँचा और उसे समझाया। कविता के बार बार अपनी बात पर अडे रहने के बाबा ने पजले उसके सिर पर जोर से घूँसा जडा और बाद मे उसी की चुन्नी से उसका गला घोंट दिया।हत्या को लूट का मामला बनाने के लिये उसने उस के बाल बिखेर दिये और घर का सारा सामान भी बिखेर दिया।ुसके 2 मोबाईल फोन भी नष्ट कर दिये।। फिर कमरे को ताला लगा कर दूसरे दरवाजे से चला गया ।अगली सुबह छ: बजे बाबा अपने चेलों को साथ ले कर गाडी से कुरुक्षेत्र चला गया। इसके बाद वो जालन्धर और अमृतसर मे भी घूमा।। 7 दिस्मबर को जब वो नवां शहर लौटा तो पोलिस ने उसे दबोच लिया।जाँच के दौरान पोलिस लो पता चला कि  कविता का उस बाबा के पास काफी आना जाना था। बाबा कविता का भाई बना हुया था। पोलिस ने जब सबूत जुटाने शुरु किये तो सभी कडियाँ खुलती चली गयी।

पोलिस को पता चला कि बाबा लोगों को सम्मोहित करने की क्रिया जानता था।बस बात यहीं तक नहीं थी जो लोई भी उसके पास आता वो उसी का हो कर रह जाता। 1990 मे खुद को बाबा कह कर प्रचार करने वाले बाबा पर ठगी धोखाधडी अवैध हथियार रखने, हत्या का प्रयास करने के चार केस दर्ज हुये। वो उसके बाद अपने परिवार को वहीं छोड कर दिल्ली के गनेश नगर मे चमन लाल मूँगा के घर पहुँचा।। वहाँ उन्को उनके बेटे की मौत का वहम डाल कर उन से लाखों रुपये ठग लिये यही नहीं मूँगा परिवार की लडकी नेहा को भी अपने जाल मे फंसा लिया और उसे अपने साथ ही नवांशहर ले गया। नेहा इस कदर बाबा के चंगुल मे फसी कि उसने अपने ही पिता समेत 11 लोगों पर बलात्कार का केस दर्ज करवा दिया। इस के इलावा कई पोलिस वाले भी बाबा के सम्मोहन मे थे। पोलिस जब पूछताछ करती तो बाबा अपने सम्मोहन और प्रवचनों से सम्म्मोहित कर लेता।
फिर एस एस पी श्री राकेश अग्रवाल ने खुद पूछताछ शुरू की तो वो टूट गया और सारी कडियाँ खुल गयी। 
ये खबर तो अखबार की है बाकी खबर कल और फिर इसी को ले कर मेरे  कुछ सवाल होंगे। बाकी कल ।
क्रमश:



07 December, 2009

गुरू मन्त्र {कहानी}-------- गताँक से आगे

पिछली कडी मे आपने पढा कि मदन लाल ज अपनी पत्नि से बहुत प्रेम करते थे उसने कभी अपने लिये उनसे कुछ नहीं माँगा था मगर आज कल उसे हरिदचार जा कर गुरू धारण करने की इच्छा थी जिसे मदन लाल जी ने पूरी करने के लिये अपना स्कूटर तक बेच दिया । बेशक उन्हें इस दाधु सन्तों पर इतना विश्वास नहीं था मगर पत्नी के मन को ठेस पहुँचाना नहीं चाहते थे। वो उसे ले कर हरोदवार पहुँचे और आश्रम मे एक कमरा किराये पर ले लिया। और धर्म के नाम पर जो लूट और धर्मिक सन्तों का वैभव देखा उसने उसके मन मे इन बाबाओं के प्रति और भी नफरत भर दी। अगर वो अपनी पत्नि को घर बैठ कर ही सब कुछ बताते तो शायद वो उन्हें नास्तिक कहती मगर प्रत्यक्ष रूप मे सामने सब कुछ देख कर सन्ध्या पर क्या असर हुया ये पढिये आगे------

दन लाल जी बहुत परेशान हो गए थे । आज कमरे का किराया भी पड़  गया । अगर कल भी समय रहते काम न हुआ तो एक दिन का किराया और पड़ जायेगा । उनके पास एक हजार रू बचा था । 280 / रू जाने का किराया भी लग जायेगा । उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। मदन लाल जी कुछ सोच कर उठे और बाहर चल दिए । आज चाहे उन्हें कुछ भी करना पडे वह करेंगे । जब गंरू जी का काम चोर दरवाजे से चलता है तो वो भी थोड़ा झूठ बोलकर काम निकलवा लेंगे । सोचते हुए वो  पिछले दरवाजे की तरफ गए तो उन्हें गुरू जी का एक सेवक् मिल गया । पिछले दरवाजे पर अभी भी कुछ लोग अन्दर आ- जा रहें थे । मदन लाल जी आगे लपके ‘महाराज, देखिए मैं एक अखबार का प्रतिनिधि हू । मेरे पास छुटटी नही है अगर इन लोगों के साथ हमें भी गुरू जी के साथ मिलवा दें तो बड़ी कृपा होगी । अखबार में इस आश्रम के बारे में जो कहें लिख दूगा । नही तो निराश  होकर जाना पड़ेगा ।" मदन लाल जी ने झूठ का सहारा लिया।

 ‘‘ठीक है आप 15-20 मिनट बाद आना, मैं कुछ करता हूं ‘‘ वह कुछ सतर्क सा होकर बोला ।

मदन लाल जी मन ही मन खुश हो गए । उनका तीर ठिकाने पर लगा था । वह जल्दी से अपने कमरे कें गए और संध्या को साथ लेकर उसी जगह वापिस आ गए । संध्या के पांव धरती पर नहीं पड़ रहे थे । इस समय वह अपने को मंत्री जी से कम नहीं समझ रही थी । उसके चेहरे की गर्वोन्नति देख मदन लाल जी मन ही मन उसकी सादगी पर  मुरूकराए । वो सोच रही थी कि यह उसकी भक्ति और आस्था की ही चमत्कार है जो गुरू जी ने इस समय उन पर कृपा की है । उसने मदन लाल की तरफ देखा ‘‘ देखा गुरू जी की महानता ।‘‘ वो  हस पड़े ।


पाच मिनट में ही वो सेवक  उन्हें गुरू जी के कमरे में ले गया । संध्या ने दुआर पर नाक रगड़ कर माथा टेका । जैसे ही उसने अंदर कदम रखा उसे लगा वह स्वर्ग के किसी महल में आ गई है । ठंडी हवा के झोंके से वह आत्म विभोर हो गई । उसने पहली बार वातानुकूल कमरे को देखा था । उसके पाँव किसी नर्म चीज में धंसे  जा रहे थे । उसने नीचे देखा, सुन्दर रंगीन गलीचा बिछा था, इतना सुन्दर गलीचा उसने जीवन में पहली बार देखा था । कमरे में तीन तरफ बड़े- 2 गददेदार सोफे थे । छत पर बड़ा सा खूबसूरत फानूस लटक रहा  था । कमरे की सजावट देख कर लग रहा था कि वह किसी राजा के राजमहल का कमरा था । सामने गुरू जी का भव्य आसन था । और कमरे मे दो जवान सुन्दर परिचातिकायें सफेद साडियों मे  खडी थीं।वि आगे बढे और  दोनों ने गुरू जी के चरणों में माथा टेका । संध्या ने गुरू दक्षिणा भेंट की । गुरू जी ने आशीर्वाद दिया । वों दोनों आसन के सामने गलीचे पर बैठ गए ।

 

‘‘ देखो बच्चा, हमें किसी चीज का लोभ नही । मगर भक्तों की श्रद्धा का हमें सम्मान करना पड़ता है । उनकी आत्म संतुष्टी में ही हमारी खुशी है । बहुत दूर-2 से भक्त आते है । विदेशों में भी हमारे बहुत शिष्य  है । यह इतना बड़ा आश्रम भक्तों की श्रदा और दान से ही बना है ।‘‘ मदन ला जी मन ही मन समझ रहें थे कि गुरू जी उन्हें यह सब क्यों बता रहे है ।

‘‘स्वामी जी मेरी पत्नि टेलिविजन पर आपका प्रवचन सुनती रहती है । इसकी बड़ी इच्छा थी कि आपसे गुरू मंत्र ले । ‘‘ मदन लाल जी अपना काम जलदी करवाना चाहते थे । उन्हें डर था कि कहीं गुरु जी ने अखवार के बारे में पूछ लिया तो संध्या के सामने भेद खुल जाएगा ।

 ‘‘बेटी तुम राम-2 का जप करा करो यही तुम्हारा गुरू मंत्र है ।‘‘संध्या ने सिर झुकाया ‘‘पर गुरू जी मुझे पूजा -विधि बिधान नही आता । भगवान को कैसे पाया जा सकता है ? ‘‘ संध्या की बात पूरी नही हुई थी कि गुरु जी के टेलिफोन की घंटी बज गई । गुरू जी बात करते-2 उठ गए । पता नही किससे फोन पर बात हो रही थी कि। उन्हें गुस्सा आ गया और वो बात करते-2 दूसरे कमरे में चले गए ----- उन दोनों के कान में इतनी बात पड़ी ------ "उस साले की इतली हिम्मत ? मैं मंत्री जी से बात करता हू ------‘‘


मदन लाल और संध्या का मन कसैला सा हो गया । आधे धंटे बाद उनके एक सेवक  ने आकर बताया कि अब गुरू जी नही आ पाएगे । उनका मूड ठीक नही है, कोई समस्या आ गई है ।वो दोनो निराश  से बाहर आ गए ।

दोनो के मन मे एक ही सवाल था क्या संतों का मूड भी खराब होता है? अगर ये लोग अपने मन पर काबू नहीं पा सकते तो लोगों को क्या शिक्षा देते होंगे। क्या इन लोगों को भी क्रोध आता है? क्या ये लोग भी अपशब्द बोलते हैं -- ये लोग हम से अधिक भौतिक सुखों भोगते हैं। स्वामी जी के कमरे मे कितना बडा एल सी डी लगा था।----- ऐसे कई प्रश्न----

 ‘‘संध्या ! आने से पहले तुम्हारे मन में जो स्वामी जी की तस्वीर थी क्या अब भी वैसी ही है ?"

‘‘पता नही जी, मैंने तो सोचा भी नहीं था कि साधु संत इतने वैभव-ऐश्वर्य में रहते है । खैर ! वो गुरू जी हैं, अन्तर्यामी है उन्होने मेरी सच्ची आस्था को समझा तभी तो इतने लोगों को छोड़कर हम पर कृपा की ‘‘ संध्या अपनी आस्था को टूटने नहीं देना चाहती थी ।

‘‘तुम जैसे भोले लोग ही तो इनके वैभव का राज है । तुम जानती हो कि हम लोगों को क्यों पहले बुलाया ?"

‘‘क्यों?", संध्या हैरानी से मदन लाल को देख रही थी । मदन लाल ने उसे नूरी बात बताई कि किस तरह उन्होंने पत्रकार बनकर सेवक को पटाया था । क्योंकि उनके पास पैसे भी कम पड़ रहें थे । उधर मुनीम जी उनकी नौकरी से छुट्‌टी न कर दें ।‘‘

" पता नहीं जी यह सब क्या है ?" क्या सच? मैं तो समझी गुरू जी अन्तर्यामी हैं--वो मेरी आस्था को जान गये हैं इस लिये जल्दी बुलाया है?संध्या ने मदनला की ओरे देखा।

‘‘फिर तुमने देखा फोन पर बात करने का ढंग ? गाली देकर बात करना फिर मंत्री जी की धोंस दिखाना, क्रोध में आना क्या यह साधु संतों का काम है?"अगर साधू सन्तो मे धैर्य न हो तो वो भक्तों को क्या शिक्षा देंगे?क्या ये सब साधू संतों का आचरण है?: मदन लाल सन्ध्या की मृगत्रिष्णा मे सेंध लगाने की कोशिश कर रहे थे।

"फिर देखो साधू सन्तों का रहन सहन क्या इतना भैववशाली होना चाहिये?वातानुकूल महलनुमां कमरे,बडी बडी ए सी गाडियाँ अमीर गरीब मे भेद भाव। तुम ही बताओ क्या ये हम जैसे भोले भाले लोगों को गुमराह नहीं कर रहे?हमे कहते हैं भौतिक वस्तुयों से परहेज करो धन से प्यार न करो,और हम से धन ले कर उसका उपयोग अपने सुख भैवव के लिये कर रहे हैं।" मदन लाल ने एक और कील ठोंकी।

":देखो जी मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा।फिर भी सब कुछ ठीक ठाक सा नहीं लगा।"

"संध्या आज वो साधू सन्त नहीं रहे जो लोगों को धर्म का मार्ग बताते थे। खुद झोंपडिओं मे रहकर लोगों को सुख त्याग करने का उदहारण पेश करते थे। आज धर्म के नाम पर केवल व्यापार हो रहा है। किसकी दुकान कितनी उँची है ये भक्त तय करते हैं। कुकरमुत्तोंकी तरह उगते ये आश्रम असल मे दुकानदारी है व्यापार है चोर बाज़ारी है जहाँ अपराधी लोग शरण पाते हैं और फिर कितना खून खराबा इन लोगों दुआरा करवाया जाता है लोगों की भावनायों को भडका कर राजनेताओं को लाभ पहुँचाना आदि काम भी यही लोग करते हैं। मैं ये नहीं कहता कि सब ऐसे होंगे अगर कोई अच्छा होगा भी तो लाखों मे एक जो सामने नहीं आते। लाखों रुपये खरच कर ये टी वी पर अपना प्रोग्राम दिखाते हैं जहाँ से तुम जैसे मूर्ख इन के साथ जुड जाते हैं। अगर इन्हें धर्म का प्रचार करना है तो गली गली घूम कर धर्मस्थानों पर जा कर करें वहाँ जो रूखा सूखा मिले उस खा कर  आगे च्लें मगर लालच वैभव और मुफ्त का माल छकने के लिये ये बाबा बन जाते हैं।" मदन लाल जी अपना काम कर चुके थे।

 चलो इसी बहाने तुम ने कुछ क्षण ही सही वातानुकूल कमरे.गद्देदार कालीन का आनन्द तो उठा लिया ? साधु-सन्तों का मायाजाल भी देख लिया, अपना मायाजाल तोड कर ।ऎसे साधुयों के काराण ही तो लोग धर्म विमुख हो रहे हैं।" मदन लाल को लगा कि अब वो सन्धया की मृग त्रिष्णा को भेद चुके हैं।

   सन्ध्या सब समझ गयी थी।वो मदन लाल से आँख नहीं मिला पा रही थी।उसकी आस्था ऐसे सन्तों से टूट चुकी थी।उसे आज मदन लाल जी इन सन्तों से महान नज़र आ रहे थे जिन्हों ने अपना स्कूटर बेच कर उसका मन रखने के लिये अपने सुख का त्याग किया था।अब उन्हें रोज़ पैदल ही दफ्तर जाना पडेगा। सच्चा मन्त्र तो ईश्वर की बताई राह पर चलना है। मगर मैं साधन को साध्य समझ कर भटक गयी थी

 प्रेम भाव और दूसरे की खुशी के लिये अपने सुख का त्याग करना---ओह्! यही तो है वो मन्त्र! इसे मैं पहले क्यों नहीं समझ पाई? आज इस आत्मबोध को सन्ध्या ने धारण कर लिया था -गुरू-मन्त्र की तरह । 

समाप्त