03 April, 2009


व्यक्तित्व
या समाज सेवा से संबंधित कोई भी काम है वो इन सज्ज्न के बिन नहीं होता कोई प्रवासी भरतीय आपको आज एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रही हूँ जो कि हमारे नगल शहर की शान है1 आज इस शहर मे जितनी भी सहित्यिक गतिविधियाँ नगल मे आ जाये, ये महाशय उन को किसीै न किसी स्छूल मे ले जाते हैं1 उन से वहाँ के बच्चों को वर्दी या किताबें कापियां दिलवा कर ही छोडते हैं1 परियावरण के लिये शहर के लोगों को पेड लगाने के लिये पता नहीं कहाँ कहाँ से पकड कर ले आते हैं1 आज शहर कि हरियाली और खुशमिज़ाजी इनकी वज़ह से ही है1 हर फंक्शन मे स्टेज सैक्रेटरी का काम इन्हीं का होता है1पता नहीं कितने लोग इन की प्रेरणा से लेखक बने हैं1 इसका एक उदाहरण तो मैं आपके सामने हूँ1इनका नाम है गुरप्रीत गरेवाल इनकी निज़ी ज़िंन्दगी के बारे मे मैं सिर्फ इतना ही जानती हूँ कि इनके माँ बाप भगवान को प्यारे हो गये हैं[बचपन मे] चाचा चाची ने पालन पोशण किया है1 वो भी अब शायद कैनेडा मे रहते हैं1 उम्र कोई 30--32 के आस पास होगी1शादी अभी तक नहीं की1 बस लोगों, दोसतों, मित्रों के लिये ही जी रहे हैं1 आजकल अजीत समाचार के संवाददाता हैं1 लोगों के जीवन को, उनकी बातचीत को बहुत ही तन्मयता से सुनते और समझते ह और कोई गलत बात किसी के मुंह से निकली नहीं कि इनकी डायरी मे नोट हो जाती है1 और अगली बार किसी समारोह मे वो चुटकुला बन कर सब का मनोरंजन करती है1 उनकी आलेख कई पत्र पत्रिकाओं मे आते रहते हैं1उनका एक बडा मज़ेदार लेख जो 13 . 2002 मे छपा था आज मेरी फाईल मे मुझे मिला 1इनकेेआलेख की खासियत ये होती है कि उसमे मनोरन्जन की भी भरपूर सामग्री होती है1इनके इस लेख को आपके सामने प्रस्तुत करना चाहती हूं1इस छोटी सी उम्र मे समाज सेवा की इतनी लगन के लिये सारा शहर इनका ऋणी है1 इन के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात ये है कि इन्होंने नगल मे कला रंग मंच की स्थापना की और कई अंतर्राजीय मुकाबलों मे पंजाब की ओर से भाग लिया और पदक जीते1
बातचीत करने की कला
सर्दियों की गुनगुनी धूप 1 एक मित्र के घर के खुले प्रांगण मे बैठ कर मै भारतीय् सागर तटों के बारे मैं लिख रहा था1दूरभाश की घंटी बजीरिसीवर दो घंटे कान से लगा रहा1शानिया का फोन जब भी आता है, ऐसा ही होता है1शानिया मेरी अत्यंत समझदार मित्र है1 मै हैरान हूँ कि इस कालेज छात्रा ने इतनी अल्प आयु मे जिण्दगी को इतनी नज़दीक से कैसे देख लिया!बातचीत करने की कला मे परिपक्व शानिया मेरे साथ सी.टी.बी.टी,हिन्द-पाक संबंध इज़राईल फलस्तीन् टकराव इत्यादि महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रिय मुद्दों पर बात करती हैवह ज़िन्दगी के प्रत्येक पक्ष के बारे मे तर्कपूर्ण ढंग से बात कहती है कि आज भी भ्रतीय नारी लगाने, पाने, और दिखाने तक सीमित है1खूबसूरत देश मारिशियस के सौंदर्य भरपूर तटों की बात करते करते अचानक वो मेरी दुखती रग पर हाथ रख देती है1 वो मालविका जेतली का चर्चा छेड देती है मालविका मुझ से नफरत करती है1 मैने कुछ साल पहले एक धार्मिक उत्सव के दौरान उसके साथ अभद्र व्यवहार किया था1 जेतली परिवार की नफरत आज भी बरकरार है1यद्यपि मेरे प्रति उनका व्यवहार सदा ही गाँधीवादी रहा है1शानियां अंत मे ये कहते हुये फोन रख देती है किमालविका को भूल कर नयी ज़िन्दगी शुरू करो1 उसकी नफरत कभी समाप्त नहीं हो सकती.... आयु के अंतर ,मानसिक स्तर को तो देखो... और् शीघ्र करो अपने जुनून का इलाज
भले ही मालविका को भूलना असम्भव है मगर फिर मै शानिया की एक एक बात को ध्यान से सुनता हूँ1 बातचीत करना भी एक कला है हर व्यक्ती मे अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग कहने की क्षमता नहीं होती1 ये हर कोई व्यक्ती नहीं जानता कि कौन सी बात किस से कब और कहाँ कहनी है1हार तो फूलों के भी होते हैं और जूतों के भी1अपके मुख से निकले शभ्द ही तय करते हैं कि कौन सा हार आपके गले का शिंगार बने1 बातचीत करने का ढंग आदमी उस माहौल से सीखता है जिस मे उसका पालनपोशण हुआ है1कुछ लोगों को बोलने की तह्ज़ीब नहीं होती1ाइससे सज्जनों को अपने शब्दों की वजह से कई बार शर्मिंदा होना पडता है1
रंगकर्मी फुलवंत मनोचा एक बार किसी वस्त्र विक्रेता के घर अफ्सोस प्रकट करने जा रह थे1 वस्त्र विक्रेता के युवा पुत्र की सडक दुर्घटना मे मृ्त्यु हो गयी थी रास्ते मे उनको शिमलापुरी मिल गये1 लाल कोट सफेद दाढी व भूरे दाँतों वाले शिमलापुरी जरूरत से अधिक गप्पें हांकते हैँ1 मृ्त्य वाले घर मे शमशान की सी खामोशी थी 1घर के बाहर असंख्य लोग बैठे अफसोस कर रहे थे 1शिमलापुरी 4-7 मिन्ट तो चुप रहे 1मगर चुप रहना उनके लिये असह हो गया,'' इतने मे कोई दम्पती पास से गुज़रे1 शिमलापुरी ने उन्हे देखा और कहा फुलवंत देखना"महिला लम्बी है या पुरुश?' फुलवत ने धीरे से उनके कान मे कहा महिला लम्बी है..प्लीज़ अब कुछ ना बोलना1'' पर उनसे रहा ना गया उन्होंने पास बैठै ऎक अन्य स्ज्जन से यही सवाल कर दिया1 उनकी इस बात का कोई उतर तो नहीं मिला मगर उनकी असमय ये मूर्खता पूर्ण बात कई कानों मे पड गयी1
कुछ लोग इतने सीधे होते हैंकि समाज मे लतीफा बन जाते हैं1ऐसे सज्जन भी समाज के लिये जरुरी हैं1क्यों कि ये लोग फिज़ा मे हंसी की फुहार फेंकते हैं1 मेरे एक मित्र्1सुगन चंद धीमान आई.टी़.आई मे अध्यापक हैं1एक बार एक लडकी वहाँ दाखिला लेने आई1सुगन ने आवेदन पत्र देख कर कहा 'बेटा इसमे आपका चरित्र प्रमाण पत्र तो है नहीं?'लडकी ने झट से जवाब दिया 'सर मेरी तो शादी हो चुकी है!'बेचारे चुप कर गये1
अनाप शनाप जवाब झगडा करवा देता है जबकि सोच समझ कर दिया गया जवाब क्रोधित व्यक्ति को भी शाँत कर देत है1मेहतपुर {उनाःहि.प.]से एक युवा धर्म संस्कृ्ति के लेखक बहुत लिखते हैँ1वे धडाधड छपते भी हैं1एक बार उनका लेख निश्चित तिथी को प्रकाशित होने से रह गया1 गुस्साये लेखक समाचार पत्र् की सम्पादिका से झगडने पहुँच गये सम्पादिका की एक टिप्पणी ने उन्हें ये कह कर शाँत कर दिया1' आपके दर्जनों लेख छपे आप कभी धन्यवाद करने नहीं आये अगर आपका एक लेख नहीं छपा तो इतना गुस्सा क्यों?' वो चुपचाप चले गये1
कुछ सज्जन इतने तेज़ दिमाग होते हैं कि बात बात पर शगूफा छोडते रहते हैं कि दूसरा व्यक्ती उम्र भ्रर नहीं भूलता1 एक बार की बात है कि नगल शहर के किलन एरिया मे एक छोटा सा खूबसूरत घर था[ अब् भी है घर के बाहर लिखा था 'भगवत कुटीर' उन दिनो उस मकान मे मेरे एक मित्र प्रोफेसर रविन्दर गर्ग रहा करते थे1 एक बार वो एक माह की छुटी पर चले गये और घर की चाबी मुझे सौंप गये1 चोरी की सम्भावना शून्य थी क्यों की मेरी मित्र मंडली रात भर महफिल सजाये रखती1 प्राँगण् मे गीत संगीत का प्रोग्राम होता1 सुरिन्दर शर्मा जब हारमोनियम पर गज़ल गायन करते तो पडोसी भी मुंडेर पर आ जाते1 खाली मकान और हमारी महफिल का चर्चा मित्रों के मित्रों तक भी जा पहुंचा1 शाकाहारी रसोई मे मीट मछली पकने लगा1 सिगरेट के छ्ल्ले तो मैने किसी तरह बर्दाश्त कर लिये मगर उस दिन मेरे भी होश उड गये जब मंडली ने प्रांगण मे'पटियाला पेग' सजा दिये1 जब गर्ग साहिब लौटे तो संयोग से घर साफ था1 उन्हें एक दो शिकायतें भी मिली मगर उन्हों ने मुझ से कुछ नहीं कहा1 मुझे अचानक पटियाला जाना पडा 1एक सप्ताह बाद जब मैं घर लौटा तो ये शगूफा नगल मे काफी मकबूल हो चुका था'बाहर से' भगवत कुटीर अन्दर बन रहा मीट मछ्ली'1ये शगूफा मेरे ही एक मित्र ने छोडा था1 उसके बाद वो मुझे कभी चाबी दे कर नहीं गये1
बात करने की कला मे परिपक्व सज्जन तभी बोलते हैं जब जरूरी हो 1 वो अंदाज़ा लगा लेते हैं कि लोग क्या सुनना चाहते हैं1 वो उस विशय के बारे मे ही बोलते हैं जिनकी उन्हें जानकारी होती है1वो अच्छे श्रोता भी होते हैं उनके ज़ेहन में अंग्रेजी लेखक ए.जी.गारडिनर के ये शब्द हमेशा ही रहते है';किसी को सभी बातों का ग्यान् नहीं होता और कोई ऐसा भी नहीं होता जिसे कुछ्ह भी मालूम ना हो1'[NO ONE IS THE MASTER OF ALL THE ITEMS AT THE SAME TIME NO ONE IS THE SO POOR AS NOT TO KNOW ANY THING]बातचीत करने के माहिर अगर मूर्खों की महफिल मे फंस जायें तो मुह पर पट्टी बांध लेते हैं1 एक बार विचार गोष्ठी के बाद प्रबंधकों ने तीन बुद्धिजीविओं को एक बातूनी अमीर आदमी के घर ठहरा दिया1 अमीर आदमी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र मे खासी भूमी का मालिक था1 वो रात भर मे बुद्धिजीविओं का दिमाग चाट गया1 सुबह-सुबह वो लोग नाश्ता लिये बिना ही चले गये1इतने वर्षों बाद भी वो बुद्धिजीवी उस बातूनी आदमी के ये संवाद और असमय पर अप्रसांगिक विशय को ले कर हंसते -2 लोट पोट हो जाते हैं 'एक बार तराई मे हमार भूमी पर् गुँडे काबिज़ हो गये... कोई प्रशासनिक अधिकारी बात ही ना सुने....मरते क्या ना करते1पंचायत प्रधान संतोखा सिंह पहुंच गया दिल्ली इन्दिरा{ पूर्व प्रधान मंत्री] के घर वो पिछले कमरे मे आराम फरमा रही थी...संतोखे ने कमरे मे जा कर हंगामा वरपा दिया...बीबी ने झट से दूरभाष की घंटी बजाई .....प्रसाशन मे भगदड मच गयी1'
जरूरी नहीं कि शिक्षित व्यक्ति ही तर्कसंगत बात करे कई शिक्षित व्यक्ति भी ऐसी बात करते हैं कि उनकी बुद्धि पर तरस आने लगता है1 इंडियन ऐक्सप्रेस चन्डीगढ के पूर्व संपादक ऋ. प्रेम कुमार विभिन्न नगरों व वहाँ के निवासियों के बारे मे एक बहुत ही दिलचस्प कालम[ OF PEOPLE AND PLACES] लिखते थे1 मै आज भी उनका प्रशंसक हूँ 1 एक दिन हमारे इंजीनियर मित्र हमारे घर आये1बातों बातों मे उन्होंने प्रेम कुमार का वेतन पूछ लिया मैने अनुमान से ही कह दिया कि आठ दस हजार होगा उन दिनों चम्पक नाम के एक युवक ने भैंसों की डायरी खोली थी1इंजीनियर मित्र जो चम्पक के पडोसी थे झट से बोले ' इस से अच्छा तो चम्पक है दस हजार तो वो भी नहीं छोडता1'
व्यक्ति बातचीत से ही पहचाना जाता है1भाषा की उपयुक्त जानकारी व सही उच्चारण ही बातचीत की कला मे परिपक्व होने का आधार है1भाषा का उच्चारण ठीक ना होने से कई बार बडे-2 लोगों को शर्मिंदा होना पडता है1 शिक्षा संस्थानों मे कई अच्छे -2 अध्यापक भी मात्र् इस लिये लतीफा बन जाते हैं क्यों कि उनका उच्चारण सही नहीं होता1 भारतीयों के मन मे एक बडा भ्रम् ये भी है कि ेअंग्रेजी दुनिया की सर्वश्रेष्ट भाषा है1यही वजह है कि भ्ररतीय भाषाओं के अच्छे जानकार भी अंग्रेजी मे बात करने को प्राथमिकता देते हैं1आज़ादी के इतने साल बाद भी् राष्ट्र भाषा के बजाये अंग्रेजी का ही बोलबाला है कोई भाषा अच्छी या बुरी नहीं है1 भाषा तो चुपी तोडने का माध्यम है1 बातचीत करते हुये दूसरी भाषा के शब्द प्रयोग करने मे भी बुराई नही है पर ऐसी खिचडी नही पकानी चाहिये जो आपका जलूस निकाल दे
किसी पार्टी मे मेरे जानपहचान वाली युवति ने मेरे समक्ष पकौडों की प्लेट रखते हुये कहा ;एक फरिटर [FRITTER] तो ले लो भईया'1 बात बात मे उसने पूछा ; कहाँ -2 घूम चुके हो?'मैने अभी उसे जगहों के बारे मे बताना शुरू ही किया था कि वो बोली ''भैया देखा चंडीगढ के चौक कितने समार्ट् हैं1''भले ही मैने उस से उसके अंग्रेजी प्राध्यापक का नाम भी पूछा पर उसकी समझ मे कुछ नहीं आया1 ऐसे ही एक भईया का संवाद मुझे आज भी याद है1 वो अपनी प्रेमिका से दूरभाश पर बात करते हुये पूछ रहा था ''उस दिन तुम ने फील तो नहीं किया जब मैंने मधुबन पार्क मे तुम्हारी बाँह[ बाजू] पर चूँडी बडी[चिकोटी भरी]?''
शब्द तो वही होते है1शब्दों को हम सभी लिखते, बोलते हैं1वारिसशाह.मुंशी प्रेमचंद.शिवकुमार बटालवी ने भी वही शब्द् इस्तेमाल किय मगर वो अमर हो गये1संवाद ही फिल्मों को डाइमड-जुबली बना देते हैं1जार्ज बर्नार्ड शाह,मिर्ज़ा गालिब बेशक आज जहां-ए-फानी को अलविदा कह गये हैं मगर उनकी बातें आज भी जिन्दा हैंकिसी ने उनका कलाम पढा हो या ना मगर उनकी हाज़िर जवाबी के किस्से जरूर सुने होंगे1भारत का बच्चा -2 सम्राट अकबर के दरबारी बीरबल के किस्से पढता सुनताहै1बातचीत की कला तभी सार्थक है अगर उसका प्रयोग मानवता के हित मे हो1मंदिर मस्ज़िद गुरद्वारा गिर्ज़ा सभी मह्फूज़ हैं मगर ये बडे बडे नेताओं व धर्म गुरूऔं के भाशण ही हैं जो लोगों मे जनून भर देते हैं और मानवता शर्मसार हो उठती है
गुरप्रीत गरेवाल
सम्पर्क--17 मेन मार्कीट
नगल डैम 140124
Email ---grewal.dam@gmail.com

29 March, 2009



( भारतीय संस्कृ्ति )


मेरे मन मे जाने क्य आया
ये जानने का मन बनाया
कि देखें
भारत की संस्कृ्ति
किस मुकाम पर खडी है
लोगों पर उसकी
क्या छाप पडी है
गये घर घर मे
स्कूल ,कालेज परिसर मे
बाज़ार,क्लब,खेल के मैदान मे
सब जगह नज़र दौडाई
मगर भारतीय संस्कृ्ति
नज़र नही आई
मै बडा चकरायी
सोचा शायद मुझे ही
पता नही है
फिर एक बुकस्टाल पर
नज़र दौडाई बोली
:भाई सहिब-मुझे
भारतीय संस्कृ्ति पर कोई
पुस्तक दिखा दो
:नहीं है" वो बोला
पर कहाँ मिलेगी
इतना तो बता दो
उसने उपर से नीचे तक
मुझे निहारा और बोला
आप कवि या लेखक तो नहीं?
पर देखने मे लगते आउट डेटड नहीं
अजी किसी साधू महात्मा के पास जाईये
वहीं से जानकारी पाईये
एक आश्रम की राह पर निकल पडे
गेट पर थे दो संतरी खडे
मैं बोली;हम स्वामी जी के
दर्शन करना चाहते हैं
भारतीय संस्कृ्ति का
अवलोकन करना चाहते हैं
संतरी बोला;स्वामी जी नेट पर्
चैट कर रहे हैं
आप बैठ जाईये
लोग भी वेट कर रहे हैं
दो घंटे बाद स्वामी जी आये
आँखों पर धूप का चश्मा चढाये
हमने
अपने आने का मन्तव बताया
स्वामी जी हंसे और बोले
बेटी हम बार बार बता कर थक गये हैं
भारतीय संस्कृ्ति सुन लोगों के कान पक गये हैं
हम साधूओं ने भी
जीने का ढंघ अपना लिया है
अपना इस प्रोजैक्ट को ले कर
एक विदेशी टूर बना लिया है
हम ने जान लिया है
जब तक हमारी संस्कृ्ति
विदेश हो कर नहीं आयेगी
तब तक भारतीय जनता
इसे नहीं अपनायेगी
क्योंकि विदेशी लेबल बिना
भारतियों को कुछ भाता नहीं
घर की मुर्गी दाल बराबर
खाने मे मज़ा आता नहीं