17 November, 2009

कविता

भेजी हैं नासा ने
मंगल से
कुछ तस्वीरें
कहा मंगल पर
कभी हुया करती थी नहरें
शायद कभी टकराया था केतू
कोई और कर दिया था
मंगल के दिल पर छेद्
मगर मैं जानती थी
बहुत पहले सुना भी था कि
मंगल का संबन्ध तुम से था
और मेरा वीनस {शुक्र} से
मुझे पता है वो नहर
मेरे आँसूओँ का समुद्र था
जो तुम्हारी कठौरता, निर्दयता पर
मैने ने बहाये थे
वो केतू और कोई नहीं
मेरी आहों का धूम केतू था
जिसने तुम पर बरसाये
तमाम उम्र आँसू
मगर तोड सकी न तेरा गरूर
और सूख गया वो दरिया भी
ज्यों ज्यों जली मेरे जज़्बातों की अर्थी
शाप दिया था मैने
नहीं पनपेगा ए मंगल
तुझ पर जीवन मेरे बाद
और आज भी तू पत्थर ही है
केवल पत्थर की चट्टान

-- निर्मला कपिला

37 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव और सच कहती रचना ...खूब जोड़ा आपने मंगल और वीनस को ..

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  2. बहुत सुन्दर कविता बहुत सी गहराईया समेटे !

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  3. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, हर शब्‍द गहराई लिये हुये,सत्‍यता का अहसास कराती अनुपम अभिव्‍यक्ति, आभार ।

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  4. बहुत सुंदर कविता-आभार

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  5. दिल ्का दर्द खूबसूरती से बयान किया आपने

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  6. गज़ब की जादूगरी................
    गज़ब की कारीगरी ..........

    बड़े गहरे में गोता लगवा दिया आपने______


    अभिनन्दन !

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  7. बहुत सुन्दर कविता

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  8. माँ जी चरण स्पर्श

    बहुत ही सुन्दर रचना लगी ।

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  9. आदरणीया निर्मला जी; जादूई कविता..रोम-रोम पुलकित हो गया इसका कलेवर देखकर और शब्द तो कहर ढा ही रहे हैं..उत्कृष्ट..रचना..

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  10. waah bahut khub,gehre bhav liye sunder rachana

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  11. nirmla di,
    aaj to is kavita mein dard hi dard bhar diya......kya khoob likha hai har shabd........bahut hi gahrayi mein chali gayi .

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  12. akoe kitne bhi aansu rula le shraap kaha diye jate hai dil se...zindgee ko ghreho..sitoro se jodhne ka behad nirala andaaz....

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  13. बहुत सुन्दर रचना है । इसका एक - एक शब्द दिल की गहराईयों तक उतर गया है ....

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  14. विज्ञान को आधार बना कर सुंदर कविता रची है आपने। बहुत बहुत बधाई।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  15. बहुत बढ़िया है जी!
    नासा को बधाई और आपको धन्यवाद!

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  16. गहरे दुख और क्षोभ की अभियक्ति है आपकी रचना में .... भ्रमांड के बिंबों का लाजवाब प्रयोग है इस रचना में .... प्रभावी रचना है ... अपनी बात को स्पष्ट रखते हुवे .........

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  17. बहुत ही सुंदर कविता है ये । प्रतीकों का बहुत ही सुंदर प्रयोग है । मंगल और शुक्र का ऐसा प्रयोग पूर्व में नहीं देखा । स्‍त्री और पुरुष के लिये बहुत ही सटीक ग्रहों का चयन किया है ।

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  18. मंगल की कठोरता और शुक्र की कोमलता को लेते हुए अच्‍छी रचना की आपने .. बिल्‍कुल अनूठी !!

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  19. बहुत ही अनूठी प्रेम कहानी है दर्द से सराबोर.बहुत बहुत बहुत बधाई इस सुंदर प्रस्तुती पर

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  20. बहुत सुन्दर रचना
    आहों का धूमकेतू और भावनाओ का टकराव
    बेहतरीन

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  21. मन की व्य्थायों को एक कवि ही इतने सुंदर शब्द दे सकता है ,शुभकामनायें ।

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  22. मन की व्य्थायों को एक कवि ही इतने सुंदर शब्द दे सकता है ,शुभकामनायें ।

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  23. मन की व्य्थायों को एक कवि ही इतने सुंदर शब्द दे सकता है ,शुभकामनायें ।

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  24. मन की व्य्थायों को एक कवि ही इतने सुंदर शब्द दे सकता है ,शुभकामनायें ।

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  25. मंगल तथा शुक्र ग्रह का बहुत ही अच्छे एवं अनूठे तरीके से प्रयोग किया आपने इस कविता में......
    बहुत ही बढिया लगी ये रचना!!
    आभार्!

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  26. आदरणीया निर्मला जी,
    ग्रहों के माध्यम से आपने बहुत ही सूक्ष्म संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दी है।शुभकामनायें।
    पूनम

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  27. एक नये तरीके से आप ने बेहतरीन विचार प्रस्तुत किए ..बढ़िया रचना..बधाई

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  28. आप की कविता मै बहुत दर्द झलकता है, बहुत अच्छी रचना.
    धन्यवाद

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  29. Ise kahte hain kavita... dil khush ho gaya..
    मासी जी चरणस्पर्श, मैंने आपको मेल करके आपकी तबियत और फ़ोन न. के बारे में पूछा था मगर पता नहीं आप नाराज़ हैं क्या? आजकल ऑनलाइन भी नहीं मिलतीं, अब बिना नंबर और पाते के मैं कैसे आपसे मिलने आ सकूंगा???? बताइए ज़रा.. :)
    जल्दी भेज दीजिए प्लीज़
    जय हिंद...

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  30. दीदी चरण स्पर्श
    असाधारण शक्ति का पद्य, बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं। ग्रहों से साक्षात्कार दिलचस्प है ... वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रण।

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  31. निर्मला दी,

    कविता में नवीन प्रयोगशीलता| वाह! उत्तम !! नए उपमान और उपमेय के प्रयोग से कविता का भाव पक्ष और भी सुदृढ हो गया. साधू!!!

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  32. निर्मला जी,

    ये ताकत और अहंकार के नसे वालों (सॉरी...सॉरी नासा) के चरण कमल जहां पहुंच जाए वहां जीवन और प्रकृति की रचनाओं का ये हाल होना ही है...मेरा मतलब अमेरिकी चौधराहट से है...

    जय हिंद...

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  33. निर्मला जी,
    मनोभावों को आपने ग्रहों के साथ जोड़कर बहुत सुन्दर ढंग से कविता में पिरोया है बहुत अच्छी लगी कविता
    शुभकामनायें।
    हेमन्त कुमार

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  34. क्या कहने! मंगल और शुक्र दोनों आखों के सामने साकार हो उठे. अपने आप मैं अनूठी रचना. बधाई और धन्यवाद्.

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