05 October, 2009

दोहरे माप दंड ---कहानी [गताँक से आगे

पिछली बार आपने पढा कि रिचा और रिया दोनो स्कूल मे इकठी पढती थीं । दोनो सहेलियाँ थी। रिया शहर मे और रिचा साथ लगते गाँव मे रहती थी। जिस दिन स्कूल मे छुटियाँ हुई उस दिन जब रिचा स्कूल से घर नहीं पहुँची तो उसके घर वालों को चिन्ता हुई। उसके पिता पोलिस मे केस दर्ज नहीं करवाना चाहते थे। सभी इसी सोच मे थे कि क्या किया जाये उसे कहाँ ढूँढा जाये। tतभी पता चला कि वो खून् से लथपथ खेत मे पडी है उसे असपताल लाया गया। पोलिस मे केस दर्ज हुया मगर रिचा के पिता ने उसे मना कर दिया कि किसी का नाम मत बताये क्योंकि उन्हें रिचा ने बता दिया था कि वो साथ के गाँव के ्रपंच का बेटा था रिचा घर आ गयी। मगर उसे किसी से बात करने की इजाजत नहीं थी वो अकेली अन्दर बैठी आँसू बहाती रहती उसकी सहेली रिया उससे मिलने आती है। रिचा रिया को बताती है कि कैसे उसके दिल मे एक लावा सा फूट रहा है घर वालों .समाज और उन दरिन्दों के लिये। औसके पढने पर भी प्रतिबँध लग जाता है रिया उसे आश्वासन देती है कि वो अपने माँ बाप को कह कर उसके घर वालों को समझायेगी। अब आगे पढिये------------


घर आ कर मै अपनी माँ की गोद मे सिर रख कर खूब रोई। क्या सच मे एक लडकी इतनी कमज़ोर और बेबस होती है?बिना किसी कसूर के हर तरफ से उसे ही सज़ा? मैने माँ और पिता जी को सारी बातें बतायी।फिर माँ और पिता जे के साथ दो तीन बार उनके घर गयी । पिताजी ने धीरे धीरी उसके पिता से उसके बारे मे बात की कि इसे अब स्कूल भेजना चाहिये मगर वो स्कूल भेजने के लिये किसी तरह भी राज़ी ना हुये।मगर पिता जी के बहुत समझाने पर उसके पिता उसे घर रह कर पढाने के लिये मान गये। उसने अब घर रह कर पढना शुरू कर दिया मै हर दूसरे तीसरे दिन उसके घर चली जाती । उसने पलस टू के बाद घर मे ही बी.ए करनी शुरू कर दी और मैने इन्जनीरिन्ग मे प्रवेश ले लिया। उसके माँ बाप उसके लिये लडका ढूँढने लगे। वो जल्दी से उसकी शादी कर देना चाहते थे ।अभी 18 साल की भी पूरी नहीं हुई थी। वो जहाँ भी बात चलाते, वहीं उसके अतीत की परछाई पहले पहुँच जाती। अब तो हम लोग भी चाहते थे कि उसकी शादी हो ही जाये तो सही रहेगा ।इन हालात मे वो अच्छी तरह पढ भी नहीं पा रही थी।

हमारे पडोस मे धर्मपाल जी रहते थे।उनके एक बेटा और दो बेटियां थी।उनका लडका रवि जिस कीदो वर्श पहले शादी हो चुकी थी,मगर शादी के बाद बहुएक बेटे को जन देते ही दुनिया से विदा ले गयी। छोटा सा बच्चा अपनी दादी के पास पलने लगा।रवि की नौकरी दिल्ली मे थी । उसके माँ बाप चाहते थे कि उसकी दोबारा शादी कर दें तो बच्चे को माँ मिल जायेगी ।एक दिन मेरी मम्मी ने ये रिश्ता सुझाया मेरे पिता जी ने रिचा के पिता से बात की। उन्हें क्या आपति हो सकती थी जानते थे कि उनकी बेटी को अब इस से अच्छा घर और लडका नहीं मिल सकता। उसे जो दाग लग गया है इस के साथ इसे कौन स्वीकार करेगा वही जिसमे खुद मे कोई कमी होगी। मगर रवि बहुत अच्छा लडका था पडोस मे होने के कारण हम लोग इकठे खेला भी करते थे मेर अच्छा दोस्त था वो। पिता जे ने और मैने रवि को समझाया तो वो भी मान गया।उसके घर मे सभी मान गये मगर उसकी माँ कुछ असमजस मे थी। रवि की हाँपर उसे भी मानना पडा। उसकी मां को भी यही बात सता रही थी कि लोग क्या कहेंगे कि ऐसी लडकी ही मिली थी इनके लडके को क्योंकि लडके की कोई भी कमी समाज को कमी नहीं लगती।मगर लडकी बेकसूर होते हुये भी अपराधी बन जाती है।लडके मे चाहे लाख अवगुण हों मगर लडकी 16 कला सम्पूर्ण चाहिये होती है। उनको ये भी था कि अभी अपनी लडकियों की शादियाँ करनी हैं तो उनके रिश्ते करने मे इस लडकी के कारण अडचने आयेंगी। लेकिन रवि के समझाने से उन्हें झुकना पडा।

मै बहुत खुश थी इस रिश्ते से चाहे रवि एक बच्चे का बाप था मगर फिर भी हर तरह से रिचा के लिये अच्छा पति साबित होगा ये मुझे विश्वास था। वो बहुत संवेदन शील और सनझदार लडका था।वैसे भी उससे अच्छा लडका उसे और कोई मिल नहीं सकता था। शादी हो गयी और रिचा हमारे शहर मे आ गयी पडोस मे होने से मुझे तो खुशी थी ही मगर वो भी खुश थी ।रवि ने दो महीने की चुटी ले रखी थी। उन दो महीनों मे रिचा के मुँह पर् रोनक लौटने लगी थी।ब्च्चे को वो ऐसे सम्भालती जैसे उसकी सगी माँ हो। शायद उसे ये भी एहसास हो गया था कि रवि एक अच्छा पति है जो उसकी भावनाओं का ध्यान रखता है तो उसे भी अपना ्र्तव्य अच्छी तरह से निभाना है।रवि ने उसे पूरा प्यार दिया उससे कभी उस हादसे का ज़िक्र नहीं किया ना ही उसे एहसास होने दिया कि उसमे कोई दोश है। समाज मे विरले ही ऐसे लोग होते हैं।

अब रिचा को भी विश्वास होने लगा कि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती समाज मे अच्छे बुरे सब तरह के लोग होते हैं। दो महीने की छुट्टी के बाद रवि दिल्ली चला गया अपनी ड्यूटी पर।उसका विचार था कि दिल्ली मे मकान ढूँढ कर फिर रिचा को साथ ले जायेगा। दूसरी बात कि रिचा तब तक बच्चे को सम्भालना नहलाना भी सीख लेगी। रवि की माँ पुराने विचारों की औरत थी। र्वि के कारण चाहे उसने शादी की रज़ामंदी दे दी थी मगर अन्दर ही अन्दर उसे रिचा का अतीत कचोटता रहता । आस पडोस की कोई औरत कभी सहानुभूति जताने के बहाने बात छेड लेती तो वो तिलमिला उठती। उसे रिचा का बन ठन कर रहना भी अच्छा न लगता था।बेटियों के रिश्ते की बात कहीं नहीं बनती तो रिचा के सिर भँडा फोड देती।* मै पहले ही कहती थीहमारी बेटियों को कोई अपनी बहु नहीं बनायेगा इस कुलटा के कारण । रवि के जाने के बाद वो उसे काफी रोकने टोकने लगी थी।,पर रिचा कोई जवाब न देती। कई बार मैं उसे बाज़ार ले जाती तो आते ही उसे ताने सुनाने लगती।---* मुझे तुम्हारा कहीं जाना अच्छा नहीं लगता।कहीं पहले जैसी कोई बात हो गयी तो हमारी भी नाक कटवायेगी।*

रिचा अन्दर ही अन्दर आहत हो जाती।रवो को पत्र लिखती या फोन करती तो भी माँ की बातें न बताती। वो रवि की एहसान मंद थी कि कम से कम उसने उसका हाथ थामने की हिम्मत तो की। रवि के कहने पर उसने आगे पढाई भी शुरू कर दी। रिचा उस दिन सारी रात सो न पाई थी।सुबह देर से आंम्ख खुली तो सास गर्म हो गयी।मगर वो कुछ न बोली।सरा काम जल्दी से खत्म किया। आज वो बाज़ार जाना चाहती थी।ागले हफ्ते रवि का जन्म दिन था उसके लिये कोई तोह्फा खरीदना चाह्ती थी।उसने अपनी ननद को साथ चलने के लिये कहा तो उसने मना कर दिया।------ * न बाबा न तेरे साथ नहीं जा सकती।मैं ही ला देती हूँ जो मंगवाना है।* *नहीं दीदी मैं अपनी पसंद से लेना चाहती हूँ।* उधर उसकी सास सुन रही थी ,बोल पडी * हाँ हँ इसे तो बाहर घूमने के लिये बहाना चाहिये। मायके मे भी तो ऐसे ही घूमती थी तभी तो बदमाश उठा कर ले गये।* *माँ क्या ऐसा खतरामुझे ही है भगवान से डरिये,अप बेटियों की मा होकर भी ऐसी बातें करती हैं। * कह कर रिचा अंदर चली गयी और रोने लगी। आज मेरी दादी ने उसकी यही बात सुनी थी सास ने क्या कहा ये उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जिस से दादी पर मुझे भी गुस्सा आ गया था। अपना गुस्सा शाँत होने पर मैने दादी को सारी बात बताई।कि उसकी सास किस तरह के ताने उसे देती है ।तब दादी को भी बुरा लगा।
क्रमश:

26 comments:

  1. सामाजिक विरोधाभासों को बड़ी संजीदगी से प्रस्तुत कर रही है यह कथा ...अगली कड़ी के इन्तजार में ..

    ReplyDelete
  2. आप कहानी को पूरी यथार्थता के साथ प्रस्तुत कर रही हैं।

    ReplyDelete
  3. जीवन की सच्चाई!
    अगली कड़ी का इंतजार है।

    ReplyDelete
  4. लडके मे चाहे लाख अवगुण हों मगर लडकी 16 कला सम्पूर्ण चाहिये होती है।
    satya vachan


    सिर भँडा फोड देती।
    maan ji lagta hai ye galti se ho gaya yaah pe to theekra phod dena hona chaiye tha.Shayad main galat hooun....
    Apne alp gyan ke karan thodi shubha hai ki 'bhanda phod dena' yani pol khol dena aur 'theekhra phod dena' yaani ilzaam lagana
    :)
    "माँ क्या ऐसा खतरामुझे ही है भगवान से डरिये,अप बेटियों की मा होकर भी ऐसी बातें करती हैं।"
    kahani rochakta ki ore agraasan ho rahi hai...
    ..Pranam.

    ReplyDelete
  5. ये ही तो जीजिविषा है,अगली कड़ी का इन्तजार....

    ReplyDelete
  6. यथार्थ से रूबरू हो रहे हैं. अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा. .

    ReplyDelete
  7. आपका प्रस्तुतीकरण बहुत बेहतरीन है

    ReplyDelete
  8. yatharth prastut karti kahani hai.........agli kadi ka intzaar hai.

    ReplyDelete
  9. चिंतन मनन करने योग्य कहानी !

    बेसब्री से अगली प्रस्तुति का इंतज़ार निर्मला जी

    प्रणाम यहीं से ..:)

    ReplyDelete
  10. सामाजिक विसंगतियों पर अच्छा ताना बाना बुना है,और रवि का चरित्र भी अच्छा लगा, कहानी में ऐसे चरित्रों की उपस्थिति एक सुखद हवा के झोंके जैसी लगती है.

    ReplyDelete
  11. दर्पण बेटाजी मुझे पता चल गया है कि कहानी ध्यान से पढी है गलती बताने के लिये धन्यवाद। शाबास अब मूँछ ऊँची कर लो हा हा हा

    ReplyDelete
  12. puri jame nahi hai darpan ke muchh.. abhi bachha hai naa apnaa ladalaa hai ...
    saadar charansparsh

    arsh

    ReplyDelete
  13. आपकी कहानी इसे सच साबित करती प्रतीत हो रही है कि समाज में औरत ही औरत की सबसे बडी शत्रु बनी हुई है !
    आगामी कडी की प्रतीक्षा है.....

    ReplyDelete
  14. सामाजिक परिवेश को बहुत ढंग से आपने इस कहानी में पिरोया है।
    बधाई।

    ReplyDelete
  15. निर्मला जी आप की यह कहानी बिलकुल किसी के जीवन की यात्रा ही लगती है, एक बात ओर नारी को जितने दुख नारी ने दिये है, पुरुष ने नही दिये, किसी भी कहानी मे देख ले, घर मै देख ले नारी के सामने नारी ही खडी मिलती है लडने के लिये, फ़िर पुरुष क्यो बदनाम???
    इस सुंदर कहानी के लिये आप का धन्यवाद

    ReplyDelete
  16. phle maa pita ki avhelna ab sans ki avhelna .richa ko aur kitne morche jhelne honge ?
    khani achhi ja rhi hai .
    intjar?????/

    ReplyDelete
  17. परिवार और समाज कुछ भी अछूता नही रहता है कड़वाहट भरे एक दो सगे संबंधियों से..अब सब कुछ ठीक चल रहा था तो सास जी आ गयी बीच में....बहुत भावत्मकता लिए हुए कहानी आगे बढ़ रही है...
    बहुत बढ़िया कहानी....फिर से अलगी कड़ी का इंतज़ार शुरू...धन्यवाद

    ReplyDelete
  18. maanviya padap ki anmani kali ,gal-gal mom ki tarah jali .jaha sneh mila wahi bati si jali .janni anjaan rahi bas janko ka naam .
    sundar lekh . baaki sab vicharon se sahamat hoon .

    ReplyDelete
  19. सत्‍यता के बेहद निकट, अभी तक प्रस्‍तुत कहानी बहुत ही अच्‍छी लगी, अगली कड़ी का उत्‍सुकता के साथ इन्‍तजार ।

    ReplyDelete
  20. आप कहानी को पूरी यथार्थता के साथ प्रस्तुत कर रही हैं।
    अगली कड़ी का इंतजार है...............

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  21. vvvvकहानी अछी चल रही है आगे इंतजार रहेगा

    ReplyDelete
  22. करवाचौथ और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
    ----------
    बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

    ReplyDelete
  23. nirmala ji

    deri se aane ke liye kshama chahunga.. maine ab tak ki saari kadiyon ko padha hai , aapki kahani hame samay ke paar le jaati hai aur aaj ki samajik vyavastha ke baare me batati hai ..main to ye kahunga ki ye to jeevan ki aaj ki sacchai hai..

    meri dil se badhai sweekar kare..

    dhanywad

    vijay
    www.poemofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  24. Jis tarah se bache har raat ka intzar karte hain ki nani se kahani sunne ko milegi usshi tarah me aapk lekhni ka............hamesha intzar rahta he aab aage kya

    ReplyDelete
  25. यथार्थता व संजीदगी से प्रस्तुत रचना,इंतजार अगली
    कड़ी का

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।