07 August, 2009

वक्त के पाँव (कहानी )


गाँव की मिट्टी की सोंधी खुश्बू मे जाने कैसी कशिश थी कि इस बार खुद को अपने गाँव भारत आने से रोक नहीं पाई।शादी के तुरँत बाद पति के साथ विदेश चली गयी थी दो साल बाद माँ और पिताजी एक दुर्घटना मे चल बसे थे। भाई बहन कोई था नहीं।इनका भी एक ही बडा भाई था। माँ बाप के बिना घर घर ही नहीं लगता ।जब भी कभी अवसर आता कि घर जायेँ - मैं घबरा जाती।कैसे देख पाऊँगी उस घर को\ बीस पच्चीस वर्ष से हम भारत नहीं आये थे।एक चाचा थे बस पहले उन से चिठी पत्री अब जब से टेलीफोन उनके लगा है तब से टेलीफोन पर ही कभी कभार बात हो जाती है। दस दिन बाद चाचा जी के बेटे की शादी है । उन्हों ने बहुत ताकीद की थी कि हम लोग जरूर आयें।वे बीमार भी रहते हैं।बस एक बार मुझे जरूर देखना मिलना चाहते हैं।अब बच्चे सेटल हो गये( मरा मन भी विदेश मे नहीं लगता था।हम लोग सोच रहे थे कि भारत जा कर ही बस जायें।
जहाज से भी तेज मन दौड रहा था।बचपन की यादें खेत ( खलिहान पास लगती] शिवालिक की पहाडियाँ(सत्लुज दरिया पर बना मंदिर] गुरदवारा( दरिया के किनारे वैसाखी का मेला( वो गाँव की रामलीला ( दशहरे पर निकलती सुन्दर भव्य झाँकियाँ( बचपन की सखियाँ] संगी- साथी( बेरी] आम] अमरूद के पेड(जहाँ एक दूसरे की पीठ पर खडे हो कर आम] अमरूद तोडते(गन्ने के खेतों से गन्ने चूपते(खेत मे लगे बेलन से गन्ने का रस पीते ] गरम गरम भट्टी से निकलता गुड खाते( । क्या बचपन था उडती फिरती तितली जैसा।अज के बच्चे तो उस बचपन की कल्पना भी नहीं कर सकते। तनाव मुक्त( स्वच्छ्न्द बचपन ।
फिर वो तालाब क्या वैसा ही होगा\ जहाँ हम घडे पर तैर कर उस पार निकल जाते।वो मेमणा जिसके पीछे भागते पर पकड ना पाते( वो मक्की के बडे बडे झुन्ड जिन के पीछेछुपा छुपी खेलते(वो सफेद गाय जिसके थन से दूध की धार दादी सीधे हमरे मुह मे डालती(और वो शीला बूआ और उनका भतीजा मनु हमारी पलटन का रिंग लीडार और उस आँगन मे तारों की छाँव मे( गरमी के दिनो मे बिछी 50 - 60 चारपाईयाँ( बारी बारी सब कथा कहानियाँ चुटकुले सुनाते एक दूसरे को छेडते( बातों का दौर चलता और लगता ही नहीं था कि ये सब अलग अलग परिवार हैं।
सब का एक साँझा आँगन और उसके आसपास सब घर। कुछ घर कच्चे होते थे ।सारे आँगन के लिये एक ही ढियोडी*दरवाजा* होता था। उस दरवाजे के अंदर के सभी दुख सुख साँझे होते थे।उस आँगन को बेहडा कहते थे हर बेहडे का अपना अपना नाम था।
पंजाब के चिभाजन के बाद हमारा गाँव रायपुर हिमाचल मे आ गया।जो ऊन्ना जिले मे पडता था।इस गांवँ का बचपन पंजाबी( और जवानी पहाडी है इस लिये रिती रिवाज़ भी मिले जुले हैं।इन बेहडों का प्यार पंजाबियों की दरिया दिली और पहाडों की सादगी और सुसंस्कृति की पहचान थी।
बेहडे की याद आते ही शीला बुआ की शादी की याद आ गयी।बुआ बहुत सुन्दर थी। लडका भी अच्छी घर से और सुन्दर था।बूआ को गहनों से लाद दिया था ससुराल वलों ने।उस जमाने मे लडका लडकी देखने का आम रिवाज़ नहीं था।माँ बाप (घर जमीन (और लडके की नौकरी या धन्धा देखा जाता था।
जैसे ही बुआ की बारात आयी थी( बुआ ने मुझे घूँघट निकाल कर अपनी जगह बिठा दिया था और अन्दर से कुन्डी लगाने की ताकीद कर खुद घूँघट मे और शाल मे चूडा कलीरे लपेट कर छत पर चढ गयी। दुल्हा देखने की बेचैनी वो रोक ना पाई। सभी बारात की अगवाई मे लगे थे ।किसी ने बुआ को नहीं देखा। जैसे ही बुआ ने दुल्हे को देखा खुशी से दिवानी सी हो गयी। और भाग कर नीचे आते ही मुझ से लिपट गयी
**अशू तुम्हारे फूफा बहुत सुन्दर हैं।बिलकुल राजकुमार्! हाँ देखो तुम उन्हें फूफा नहीं कहना( जीजा जी कहना और उनके कान मे मेरी तरफ से कहना कि जल्दी गौना करवा कर मुझे ले जायें । मैं इन्तज़ार करूँगी।**
तब रिवाज़ था कि गौना शादी के कुछ माह बाद ही होता था।उस समय का इन्तज़ार लडकियाँ एक उत्सव के रूप मे करती। नई नई शादी शुदा लडकियाँ जिन का गौना नहीं हुया होता वो अपने पति के जल्दी आने के लिये एक पूजा करती जिसे *बाट -पूजना* कहा जाता था \बाट कअर्थ है रास्ता ।
सुबह नहा धो कर सभी लडकियाँ अच्छे से तैयार हो कर बेहडे मे इकठी हो जाती।फिर गाय के गोबर से जमीन तीन छोटी छौटी गोलाकार जगह लीपती]धूप टिक्का[ चावल मौली से पूजा कर आटे के दिये मे दीप जलाती। पूजा के बाद कन्या पूजन मे सब लडकियों को सजाती चूडियां पहनाती नेल पोलिश मेहँदी लगाती। इस तरह ये पूरे बेहडे का उत्सव बन जाता। अगले दिन उस जगह से आगे फिर उसी क्रम मे पूजा करतीं।ये माना जाता था कि पूजा करते करते जब वो डियोडी तक पहुँच जायेंगी तो उनके पति उन्हें लेने जरूर आ जायेंगे। अगर तब तक गौना नहीं होता तो दोबारा फिर वहीं से शुरू कर देतीं कि शायद पूजा मे कोई विघ्न पड गया होगा।उस उत्सव को मै बहुत याद करती थी। बूआ से वैसी भी मेरा लगाव अधिक था इस लिये उसे मिलने को उतावली हो रही थी।---------------------------------------------क्रमश।

16 comments:

  1. मनोव्यथा के गहन विचारों को परोसती
    कथा बहुत अच्छी लगी।
    अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।

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  2. सजीव संस्मरण पढ़कर अच्छा लगा निर्मला जी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. आपकी कहानी एक अलग अंदाज मे होती हैं. बहुत अच्छा लगता है उनको पढना. आगे का इंतजार है.

    रामराम.

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  4. एकदम जीवंत चित्रण..जारी रहें. प्रवाह में पढ़ते जायेगे जो आपने प्रदान किया है.

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  5. परंपराएँ देखने को मिल रही हैं।

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  6. रोचक कहानी है और रोचक लगा इसके कहने का ढंग ...

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  7. बिल्‍कुल सजीव चित्रण पढ़कर बहुत अच्‍छा लगा, अगली कड़ी के इन्‍तजार में ....

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  8. आपने गाँव की या यूँ कहें कि जीवन की उन सारी यादों को ताजा कर दिया है जिसको इस भागम भाग की जिन्दगी में याद करना बड़ा कठिन सा लगता है । आगे की कहानी का ..............।

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  9. जिस कहानी का टाइटल इतना रोचक है, वह कहानी कितनी अच्छी होगी!
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    'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!

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  10. kahani bahut rochak lag rahi hai........agle bhag ka intzaar hai.

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  11. ek baat to sahi hai ki aapake kahani kahane ka andaj jo hai wah nirala hai ........fir ek achchhi kahani ke sath ......bahut hi sundar

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  12. aadarniya nirmala ji

    namaskar , bahut dino baad blog world me aaya hoon ..aaj aapki saari posts padhi , kahi ruk gaya , khin ro padha ,kahin chup ho gaya .. mere paas ab shabd nahi hai kuch kahne ko ..

    mera man poori tarah se vyateeth ho utha hai aapki posts padhkar ..

    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

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  13. गाँव की मिटटी की सोंधी खुशबू और रीती रिवाज़ एवं संस्कार से लबलब ...

    अगली पोस्ट का इंतज़ार है
    बेसब्री से निर्मला जी ..
    सादर !!!

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  14. बहुत सुंदर.... अच्छा लिखती हैं आप .....गहरे तक छू गयी .....!!

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  15. ਅਮਿਟ ਯਾਦਾਂ ਦੀ ਅਮਰ ਤਸਵੀਰ

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आपकी प्रतिक्रिया ही मेरी प्रेरणा है।