गज़ल ------एक और सफर पर
पिछले दिनों मुझे द्विजेन्द्र "द्विज"जी ने अपनी पुस्तक गज़ल संग्रह `जन गण मन ` भेजी और उस पर अपनी प्रतिक्रिया करने को कहा । मै कई दिन बहुत तनाव मे रही कि मुझे तो गज़ल की ABC भी नहीं पता तो इतने बडे शायर की इतनी लाजवाब पुस्तक के बारे मे कैसे क्या कहूँ।अंत मे मैने उन से क्षमा प्रार्थना की कि इस पर कुछ भी कहना मेरे सामर्थ्य से बाहर है।इसके बाद एक बहुत बडे गज़लकार की गज़lल पर टिप्पणी दी और जो शेर मुझे बहुत अच्छा लगा उस पर लाजवाब लिख दिया फिर उनका मुझे ई मेल आया कि चलो अपको एक शेर तो पसंद आया धन्यवाद ।तब मुझे महसूस हुय कि अब मुझे गज़ल सीख लेनी चाहिये।
उसके बाद जब मैने अपने शहर के कवि सम्मेलन मे जाना शुरू किया तो कई बार सोचा कि गज़ल सीखूँ स. बलबीर सौणी जी की गज़लों से इतना प्रभावित हुई कि उनसे गज़ल सीखने का निर्णय लिया ।कल ही उन्हें गुरू जी के रूप मे माना और उन से पंजाबी गज़ल सीखनी शुरू कर दी। स. सैणी जी की लगभग 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमे अधिक गज़ल संग्रह हैं। हरियाणा अकेडमी दुआरा भी उनकी पुस्तक का प्रकाशन हुआ है और सम्मानित हुये हैं जालन्धर दूर दर्शन पर भी उनकी गज़लों का प्रसारण होता रहता है ।उनके पहले सबक मे एक पंजाबी गज़ल लिखी मगर उसे अभी पोस्ट नहीं कर सकती क्यों कि अभी पंजाबी मे टाईप करने मे अस्मर्थ हूँ उस सबक से एक हिन्दी गज़ल लिखने की कोशिश की है। उन्हीं के आशीर्वाद से उसे आपके सामने प्रस्तुत करूँगी।
। पहली कोशिशै है इस लिये आप सब का सहयोग चाहूँगी और गुरू जी का आशीर्वाद। वैसे तो वो मुझे गुरू जी नहीं कहने देना चाहते उनका कहना है कि तुम अपने शहर की बेटी हो और मेरी छोटी बहन की तरह हो इस लिये मुझे गुरू जी ना कहो । मगर बडे भाई भी गुरू समान होते हैं इस लिये उन्हें गुरू जी ही कहूंगी।हाँ अर्श का भी धन्यवाद करना चाहूँगी क्यों कि जहाँ मैं अटक गयी थी वहाँ उसने मेरी सहायता की। अभी भी उसकी तसल्ली नहीं थी इस गज़ल पर मगर पहले प्रयास पर कुछ तो रियायत होनी ही चाहिये ।मै यहाँ`` द्विजेन्द्र द्विज`` जी का भी धन्यवाद करना चाहूँगी कि उन की पुस्तक की वजह से मुझे गज़ल सीखने का ख्याल आया।
बह`र
ss ss ss ss ss
तेरे सपनों मे आऊँ तो कैसे
तुझ को मै पास बुलाऊँ तो कैसे
यूँ रूठा है वो रूठे हैं अरमाँ
कोई भी जश्न मनाऊँ तो कैसे
दीदार -ए-हसरत तो अपनी भी थी
चाँद न हो ईद मनाऊँ तो कैसे
तेरे आँसू ले लूँ तकदीर नहीं
अपने भी अश्क छुपाऊँ तो कैसे
लोग यकीं माने यूं अफसानो पर
अपना सच भी बतलाऊँ तो कैसे
किसने कैसे कब तोडा है हमको
मैं जख्मे दिल दिखलाऊँ तो कैसे
खुबसुरत गजल।
ReplyDeleteये ग़ज़ल साफ़-साफ कह रही है कि आपको ग़ज़लें बहुत पहले कहना शुरू कर देना चाहिये था. ख़ैर हज़ारों लोग तो अपनी आधी उम्र ग़ज़लों में बिता देने के पश्चात भी ऐसी ग़ज़ल नहीं कह पा रहे हैं. मैं आपके जज़्बे को प्रणाम करता हूं. जिसके पास भाषा का मुहावरा है वह जो भी लिखेगा अच्छा ही लिखेगा जैसे कोई अच्छा दर्जी ऐसी ड्रैस बनाने को दी जाये जो उसने पहले नहीं बनायी हो तो तो वह नयी ड्रैस भी उतनी ही ख़ूबसूरत बनायेगा जैसे और बनाता रहा है. अच्छी ग़ज़ल है.
ReplyDeletegazal bahut achcha hai..
ReplyDeletepyar me dard ki anubhuti hoti hai to kuch yahi haal hota hai..
aap kahati hai ki gazal nahi aata aapko..
behad umda..dhanywaad..
आपका गज़ल सीखने का किस्सा पढ़कर मेरा भी मन हो रहा है गज़ल सीखने का,
ReplyDeleteहमने भी एक पोस्ट लिखी थी गजल पर: हम तो गजल कहेंगे .
बहुत ही अच्छी गजल लिखी है आपने बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteमैं भी संजीव से सहमत हूं>
ReplyDeletekyaa khoob ghazal !
ReplyDeletebahut khoob ghazal !
बहुत बढ़िया गजल है।
ReplyDeleteप्रस्तुत करने के लिए आभार।
बहुत बढिया गजल्!!!
ReplyDeleteआभार्!
बेहतरीन गजल
ReplyDeleteवाह
कौन कह सकता है आपको gazal kahna नहीं आता.........bahoot lajawaab tarike से piroya है इस gazal को आपने..........
ReplyDeletekhoobsoorat
AAPKI PEHLI GHAZAL NE HI DHAAMAL MACHA DIYA....
ReplyDeleteतेरे आँसू ले लूँ तकदीर नहीं
अपने भी अश्क छुपाऊँ तो कैसे..........
...WAH AAPKA YE SHER TO BAHUT BAHUT BAHUT PASAND AAIYA.
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई।
ReplyDeleteBahut shaandar gazal kahi hai Aapne. Badhayi.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
WAH NIRMLA JEE,PAHLEE GAZAL AUR
ReplyDeleteITNEE DAMDAAR!DEKH KAR ATYANT
PRASANNTA HUEE HAI KI AAPNE GAZAL
VIDHA MEIN AATE HEE CENTURY LAGAA
DEE HAI.ISEE TARAH CENTURY LAGAATEE
RAHEN ,MEREE SHUBH KAMNA HAI.
बहुत ही खुब है आपकी यह रचना जिसका कोई जबाव नही ........यह सफर दिल को छूता हुआ निकल गया.......बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल है
ReplyDelete---
1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बेहतरीन ग़ज़ल से रु -ब -रु कराया आपने ..! आपके आलेख पे तो क्या टिप्पणी दूँ...इतनी क़ाबिल नही..!
ReplyDeleteपहली ग़ज़ल और ये धमाल वाकई अद्भूत है , निश्चित रूप से आपको भी एक सुखद अनुभूति हुई होगी ... हलाकि आपने जिस तरह से म्हणत की है वोही आपके सामने है ... इस उम्र में आप जीतनी म्हणत करती है साहित्य के लिए वो आश्चर्यचकित कर देने वाला है कितनी ऊर्जा है आप में ... और इस पहली ग़ज़ल के बारे में कुछ भी कहाना एक हद से परे है... जब ग़ज़ल पितामह श्री प्राण शर्मा जी खुद आपकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे तो फिर मेरी क्या मजाल के कुछ कहूँ वाकई बहोत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने कुछ एक शे'र तो ऐसे है के वाकई दिल उनपे कड़े होकर करोडो दाद दे रहा है अलग से ... सादर चरणस्पर्श
ReplyDeleteअर्श
कोई शक नहीं, लिखा आपनें बेहतरीन है ,बधाई.
ReplyDeleteप्रणाम माँ मै क्या कहूँ बस नतमस्तक हूँ इतनी बेहतरीन गजल एक एक शेर में वजन है और कई शेर टी यैसे बन पड़े है की दिल को छू जाते है मैंने आप को बाते तो है की मै भी लिख रहाहूँ पर बन ही नहीं रहे सब कविता ही बनते चले जा रहे है एक जो कुछ कुछ लगता है प्रस्तुत है
ReplyDeleteकैसी तरतीबी से साधी है हद ,,
शमशेरो पे शेर बनाऊं तो कैसे ,,,
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बेहद खूबसूरत...
ReplyDeletewish you all the best!
ReplyDeleteआपने साबित कर दिखाया ...
ReplyDeleteयदि हौसले हो बुलंद तो इंसान क्या नहीं कर गुजरता ..
लोग यकीं माने यूं अफसानो पर
अपना सच भी बतलाऊँ तो कैसे
पहली ही ग़ज़ल लाजवाब !!!
अब आपकी बहादुरी को नमन मेरा ..:)
बहुत सुन्दर , अपनी कशमकश ऐसे भी बयाँ होती है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगी आपकी यह गजल शुक्रिया
ReplyDeleteपहली ही ग़ज़ल में धूम मचा दी है आगे क्या होगा । गज़ल में भावों को भलि भांति व्यक्त किया गया है । पहले कदम पर मेरी बधाई ।
ReplyDeletegazal padhkar kahin se bhi nhi laga ki pahli baar likhi gayi gazal hai..........aapmein to ye kshamta janmjaat hi hai shayad..............bahut hi khoobsoorat gazal .........har alfaz lajawaab.
ReplyDeleteनिर्मला जी,
ReplyDeleteजब अर्श, और स्वंय गुरूजी श्री पंकज सुबीर साहब ने कहा तो हम कहाँ?
बहुत ही खूबसूरत आपने भावों को बयाँ करती हुई गज़ल। मुझे यह शे’र बहुत पसंद आया :-
लोग यकीं माने यूं अफसानो पर
अपना सच भी बतलाऊँ तो कैसे
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
पहली गज़ल वाह खूब....
ReplyDeleteआगाज़ ही बढिया है आगे के सफ़र के लिये शुभकामनाएं
श्याम सखा श्याम
Sundar likhti hai ap.
ReplyDeleteपाखी की दुनिया में देखें-मेरी बोटिंग-ट्रिप
आगाज़ ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा! पहली ग़ज़ल ही बहुत सुन्दर है निर्मला जी...
ReplyDeleteमुझे बहुत पसंद आई...सचमुच बहुत
ReplyDeleteआज ही घर से वापस आया हूँ...राखी पर घर गया था