पृथ्वि आहत है --भाग-- 3
संवेदनाओं की ज़ुबाँ नहीं होती
कोई कोई आकार
या रूप नहीं होता
मगर उमड पडती हैं
करा देती हैं एहसास
अपने अस्तित्व का
और ढल जाती हैं
परिस्थिती के अनुसार
वो जात पात रंग भेद नहीं करती
आती हैं सब मे बराबर
दुख मे ेआँसू बन कर
बहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
गरीब के लिये करुणा
मगर इन्सान
अपने सुख के लिये
मार देता है इन्हें भी
और बन जाता है
मानव से दानव
नहीं सहेज पाता
इन संपदाओं को
क्या प्रकृति आहत नहीं होगी
अपनी इन संपदाओं के तिरस्कार से
निश्चित ही होगी
संवेदनाओं की ज़ुबाँ नहीं होती
कोई कोई आकार
या रूप नहीं होता
मगर उमड पडती हैं
करा देती हैं एहसास
अपने अस्तित्व का
और ढल जाती हैं
परिस्थिती के अनुसार
वो जात पात रंग भेद नहीं करती
आती हैं सब मे बराबर
दुख मे ेआँसू बन कर
बहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
गरीब के लिये करुणा
मगर इन्सान
अपने सुख के लिये
मार देता है इन्हें भी
और बन जाता है
मानव से दानव
नहीं सहेज पाता
इन संपदाओं को
क्या प्रकृति आहत नहीं होगी
अपनी इन संपदाओं के तिरस्कार से
निश्चित ही होगी
"बन जाता है
ReplyDeleteमानव से दानव
नहीं सहेज पाता
इन संपदाओं को
क्या प्रकृति आहत नहीं होगी
अपनी इन संपदाओं के तिरस्कार से
निश्चित ही होगी"
आपकी रचना में सम्वेदना का
सागर उमड़ पड़ा है।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
भावों के आपने शब्दों में सुन्दर तरीके से पिरोया है !
ReplyDeleteदर्द का कोई प्रकार नहीं होता ,
ReplyDeleteहवाओं का कोई आकार नहीं होता ,
भावों में कोई रार नहीं होता ,
सवेदानाओं में'वर्ण-विचार'नहीं होता||
बहुत भाव-पूर्ण क्रम प्रस्तुत कर रही हैं::
दुख मे आँसू बन कर
बहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
गरीब के लिये करुणा
बधाई है
नमस्कार!
ReplyDeleteआज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आप की रचनाएँ, स्टाइल अन्य सबसे थोड़ा हट के है....आप का ब्लॉग पढ़कर ऐसा मुझे लगा. आशा है आपकी और अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे. बधाई स्वीकारें।
आप के अमूल्य सुझावों और टिप्पणियों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
संवेदनाओं की ज़ुबाँ नहीं होती
ReplyDeleteकोई कोई आकार
या रूप नहीं होता
मगर उमड पडती हैं
करा देती हैं एहसास
अपने अस्तित्व का
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत-बहुत बधाई ।
aap ko padhna bahut achcha lagta hai
ReplyDeleteसंवेदनाओं को स्वर दे दिया आपने!
ReplyDeleteaadarniy nirmala ji
ReplyDeletenamaskar ..
दुख मे आँसू बन कर
बहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
गरीब के लिये करुणा..
aapke shabdo ka chunaav ..dil ko bhigo deta hai ji ....
bahut hi accha aur saarthak lekhan .....
meri dil se badhai sweekar karen..
vijay
आपकी रचना हमेश जिंदगी और प्रकृति से जुडी होती है
ReplyDeletewah ji
ReplyDeletebahoot khoob
it is heart touching
beutiful
brilliant
mind blowing
sunder
vchaarneey
i have many expression
'इंसान
ReplyDeleteबन जाता है
मानव से दानव
नहीं सहेज पाता
इन संपदाओं को'
- इसी लिए प्रकृति आहत होती है. लेकिन इंसान को चिंता नहीं.यही दानवत्व इंसान को महंगा पड़ेगा.
आप ने सभी भावो की एक माला पिरो दी इस कवित के रुप मे , बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
दुख मे ेआँसू बन कर
ReplyDeleteबहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
bhavo ki itni sundar abhivyakti yek yek shabd me sambedna ko udel kar bhar diya hai aap ne samvednaao ke aastitv ko lekar jis tarah ki uthal puthal har vyakti ke deel me hoti hai par aap ne unki sahi stithi ka nirdharan jis tarh se kiya hai atulniy hai
mera prnaam swikaar kare
saadar
praveenpathik
9971969084
करा देती हैं एहसास
ReplyDeleteअपने अस्तित्व का
और ढल जाती हैं
परिस्थिती के अनुसार
bhut khoob lkha hai
sara arth aagya hai inme
करा देती हैं एहसास
ReplyDeleteअपने अस्तित्व का
और ढल जाती हैं
परिस्थिती के अनुसार
bhut khoob lkha hai
sara arth aagya hai inme
bahut khoob kahii
ReplyDeleteभावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति. शब्दों को ढूँढ ढूँढ के पिरोया सा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइन संपदाओं को
ReplyDeleteक्या प्रकृति आहत नहीं होगी
अपनी इन संपदाओं के तिरस्कार से
निश्चित ही होगी
bahut hi sahi kaha aapane ..............iski kimmat to insan ko chukana hi padega........behatrin
aaderneey nirmala ji
ReplyDeletesader pranam....
bahut hi shandar kavita hai....
उम्दा रचना,
ReplyDeleteबहुत बदल गया हैं, मानव आज के इस युग मे,
आपके लिए मेरे ब्लॉग मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति की नयी पोस्ट पर एक अवार्ड है. कृपया आप अपना अवार्ड लें और उसके बारे में जाने.
ReplyDeleteख मे आँसू बन कर
ReplyDeleteबहा ले जाती हैं पीडा
सुख मे समा जाती हैं पाँव मे
थिरकन बन कर
और दे जाती हैं हो्ठ पर्
सुन्दर मुस्कान
वात्सल्य मे माँ
गरीब के लिये करुणा
ye jo rishta hai iske baare main jitan bhi padhoon utna apni maa pe aur dharti maan pe garv hota hai !!
lekin dharti maa ke upar daya bhi kam nahi aati !!
acchi rachna share karne ke liye dhanyavaad !!
'.... आहत है'--१-२-३ पढीं. आप पहले की ही तरह दमदार रचनाएँ पेश कर रही हैं. ब्लॉग से पहले भी आपका जादू छाया था, ब्लॉग पर भी छाया हुआ है....और हाँ, साहित्य हिन्दुस्तानी में प्रकाशित गीत पर अपनी कीमती राय देने का शुक्रिया.
ReplyDeleteसच much praakriti aahat है आज............. bhagvaan भी aahat है आज............ prakriti और bhagwaan में क्या fark .............. एक diije के poorak ही तो हैं............ maanav prakriti का bhakshan कर रहा है........... leel रहा है उसके somy sondary को............. १-२-३ सब रचनाएँ लाजवाब हैं ...........
ReplyDeleteअच्छी रचना..... साधुवाद..
ReplyDeleteआज से आपके परिवार में मैं भी हूं. आपकी ये रचना भी अच्छी है और ललित जी वाली पोस्ट भी. मेरे भी दो बेटियां हैं ईश्वर करें कि मुझे भी ललित जी जैसे दामाद मिलें. उम्मीद है आगे बातचीत होती रहेगी. ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिये शुक्रिया..
ReplyDeleteHello I'd like to thank you for such a terrific quality site!
ReplyDeletethought this is a perfect way to introduce myself!
Sincerely,
Laurence Todd
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